आओ जल्दी करो आगे बढ़ते चलो !
छोड़कर वक्त आगे निकल जाएगा !!
- कुछ खट्टी कुछ मीठी :कहानी अमित की
- रोशनी : नील की
- कलम बोलती है :हर्ष पाण्डेय की
- अनचिन्हार आखर :आशीष अनचिन्हारक मैथिली ब्लॉग
- सफ़र :शुरू हुआ और कोशिश कुछ लिखने की
- रूबरू : हैं आशी, रूबरू और दीपमाला
- सन्देश: विजय वर्मा इलाहाबादी का
- सौरभ कुमार:का ब्लाग
लोग कहते हैं कि आइंस्टाइन दुनिया के सबसे मेधा संपन्न लोगों में थे। लेकिन ऐसे भी लोग रहे हैं जिनका आई.क्यू. उनके आई.क्यू. से अधिक था लेकिन उचित अवसर न मिल पाने के कारण वे उतने बड़े नामधारी न बन सके। डा.दुर्गाप्रसाद अग्रवाल जी अपने लेख कामयाबी के पीछे क्या है? में माल्कम ग्लैडवेल की हाल ही में प्रकाशित किताब आउटलायर्स: द स्टोरी ऑफ सक्सेस के माध्यम से जानकारी देते हैं:
सुपरस्टार अपनी प्रतिभा और मेधा के दम पर अचानक अवतरित नहीं हो जाते, बल्कि वे अनिवार्यत: अनेक छिपी हुई सुविधाओं और असामान्य अवसरों का लाभ लेकर और अपनी सांस्कृतिक विरासत के बलबूते पर कठिन परिश्रम कर वह सब अर्जित कर पाते हैं जो दूसरों को मयस्सर नहीं होता.
आइंस्टीन और बिलगेट्स के उदाहरण देते हुये वे बताते हैं:
कामयाबी के लिए किसी का मेधावी होना ही काफी नहीं है. इस बात को वे एक मार्मिक प्रसंग से साफ करते हैं. प्रसंग है क्रिस्टोफर लंगन का, जो अपने 195 के आई क्यू (आइंस्टीन का आई क्यू 150 था) के बावज़ूद मिसौरी के एक अस्तबल में काम करने से आगे नहीं बढ सका. क्यों नहीं वह वह एक न्यूक्लियर रॉकेट विशेषज्ञ बन गया? इसलिए कि उसका परिवेश ही ऐसा था कि वह अपनी असाधारण मेधा का फायदा नहीं उठा सका. इसलिए कि उसे जो भी करना था, अपने दम पर करना था, जबकि, बकौल ग्लैडवेल, दुनिया में कोई भी –चाहे वह रॉक स्टार हो, प्रोफेशनल एथलीट हो, सॉफ्ट्वेयर बिलिनेयर हो या कोई विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न हो– अकेले कुछ नहीं कर पाता. बिल गेट्स की कामयाबी का विश्लेषण करते हुए ग्लैडवेल कहते हैं कि वे आज सफलता के उस मुकाम पर नहीं होते अगर उनके प्राइवेट स्कूल ने उन्हें एक उन्नत कम्प्यूटर सुलभ न कराया होता. बाद में भी वे और भी बेहतर कम्प्यूटरों पर काम इसलिये कर सके क्योंकि वे वाशिंगटन के पास रह रहे थे.
मुंबई हादसे में एक आतंकवादी जिंदा पकड़ा गया। उसे पकड़ने के प्रयास में मुंबई पुलिस का कांस्टेबल निहत्था ही जूझ गया आतंकवादियों से। पेट पर गोलियां लगने से वह मारा गया। इस पर किसी से कहा-" पुलिस वालों का मोटा पेट कहीं तो काम आया" यह सुनकर शमा तिलमिला उठीं और कहती हैं:
अफ़सोस की उस व्यक्तीने कोट करते समय , यही अल्फाज़ इस्तेमाल किए। और मैंने उसे मानके लिख दिया...असंवेदनशीलता तो थीही, लेकिन उस व्याकिके मस्तिष्क में एक आलेख था,' इंडिया टुडे' मे। उसके अल्फाज़ थे," मुम्बईके पुलिस मेहेकमे को , वहाँ कार्यरत सुरक्षा कर्मियों की,उनके मोटापे को लेके चिंता करना छोड़ देनी चाहिए !सच तो ये है कि ऐसेही दस बारह पुलिस वालों का मिला जुला मोटापाही शायद कसबको पकड़नेमे काम आया! वो कसब जिसने CST और कामा अस्पताल मे ह्त्या काण्ड मचाया और भाग निकला।"
पुलिस की परेशानियों का जिक्र करते हुये वे लिखती हैं:
मुंबई मे एकेक कांस्टेबल को अपने कार्य स्थल पोहोचनेके लिए सुबह ५ बजे घरसे निकल जाना पड़ता है..कमसे कम २ घंटे, एक तरफ़ के , और कुछ ज़्यादा समय लौटते वक़्त। उसे सोने या खानेको वक़त नही मिलता वो व्यायाम कब करेगा ? बच्चे अपने पिताका दिनों तक मूह नही देख पाते...घरमे कोई बीमार हो तो उसकी ज़िम्मेदारी पत्नी पे आ पड़ती है। कैसा होता है उसका पारिवारिक जीवन, या कुछ होताभी है या नही ?
राजीव रत्नेश लिखते हैं:
इस दर्द के सहारे जिया
इस दर्द के सहारे घुटा
लूट ले गया कोई खुशी
जीवन मेरा अनमोल ।
बदलते समय में आई.टी.कम्पनी के हालचाल का जायजा ले रहे हैं निशान्त।
मानसी अपनी कुछ यादें पेश करती हैं। अपनी दादू गाड़ा के बारे में बताती हैं:
भैया की शादी के बाद इसी गाड़ी को सजा धजाकर भाभी को घर लाना...
भैया के बेटी होने पर, उसे भी इसी गाड़ी में अस्पताल से घर लाना...इस गाड़ी ने साथ नहीं छोड़ा।
जब भैया की बेटी बात करना सीख रही थी, उसे ’ई’ का स्वर कहना नहीं आता था। क्योंकि दादू की गाड़ी थी, वो इसे "दादू गाड़ा" कहती थी। तब से हम ने भी अपनी गाड़ी को "दादू गाड़ा" कहना शुरु किया।
दुनिया में सबसे अधिक चर्चित एवं आकार की दृष्टि से सर्वाधिक छोटी मात्र १७ अक्षर की कविता 'हाइकु` पर केन्द्रित 'हाइकु दिवस` का आयोजन साहित्य अकादमी नई दिल्ली के सभागार में ०४ दिसम्बर को किया गया। विस्तार से जानकारी यहां देखिये।
कल पूछी हुई पहेली का जबाब ताऊ आज देते हैं।
एक लाइना
- माँ का दूध : पिया हो तो आ कंपनी खोल
- बड़े हो रहे हैं पिल्ले :हे राम! दो तो चोरी भी हो गये
- प्रेमिकाओं का डाटा-बेस: शादी, तलाक और फ़िर शादी कराने का शानदार पैकेज
- भाई मांगे पेटी,खोखा या तिजौरी:आपके पास जो हो थमा दो
- सपने :में हमें शान्ति चाहिये
- क्या पाकिस्तानी समाज अंधा हो चुका है?: इस बारे में तो अमेरिका वाले ही कुछ कह सकते हैं
- चंदन का गुलिस्तां :बड़े शरमाते हुये पेश किया गया है
- कभी नहीं भूलेगा, स्कूल में हुई धुनाई का दिन : वाह! दिन याद रखा, पिटाई भूल गये
- कोई है जो आजकल...:किसी का ख्याल रखता है
- बावरिया बरसाने वाली 16:साल की हो गयी!
- जल्दी करो : वर्ना पोस्ट लेट हो जायेगी
- कामयाबी के पीछे क्या है? : मन पछितैहैं अवसर बीते का डर
- मेरे सुनसान के सहचर,:के दबाब में लिखी कविता
- खबरें अभी और भी हैं...:भागिये मत सब देखनी पड़ेंगी
- इंद्रियां अभी जिंदा है मेरी: और वो सब हिंग्लिश बोलती हैं
- बुड्ढा अस्पताल में भी बुला रहा है ! :स्त्री विमर्श के लिये
- नवभारत टाइम्स पर कानूनी-ब्लॉग-त्रयी, अदालत, जूनियर कौंसिल और तीसरा खंबा की समीक्षा :महीने भर बाद पता चला, काम अदालत की तरह धीमा है
- मुझ पर मँडरा गई ‘उड़न तश्तरी’ :और र्म तवे पर पड़ी पानी की बूँद की तरह ‘छन्न’ करती हुई अचानक ही गायब हो गई
- तनाव मुक्ति के अचूक नुस्खे: हा,हा, ही,ही करते रहें।
- आइये इधर आइये , आपका ध्यान किधर है अच्छा वाला ब्लॉग इधर है : हर ब्लागर अपने ब्लाग के बारें यही कहता है
- पत्रकारिता विभाग की भटकती यादें : के साथ आइये भटकते हैं
मेरी पसन्द
मेरी बाँह में
घर आ गया है
किलक कर,
रह रहे
फ़ुटपाथ पर ही
एक नीली छत तले
काँच का
टूट गया झन्नाकर
घर,
किरचें हैं आँखों में
औ’
नींद नहीं आती।
डा.कविता वाचक्नवी
और अंत में
कल की चर्चा में टिप्पणियां भले काफ़ी आईं लेकिन विजिट कम लोगों ने किया। कल केवल ३०७ लोगों ने चर्चा दर्शन किये। जबकि इसके पहले दो दिनों का यह आंकड़ा क्रमश: ४५८ और ६८३ था। इससे लगता है कि छुट्टी वाले दिन कम लोग ब्लाग देखते हैं।
मास्टर साहब ने तो धमकी दी कि उनके लेख मिड डे मील की शुरुआत कैसे हुई को चर्चा में जगह न मिली तो समझ लिया जायेगा। उन्होंने यह भी कहा:
और हाँ !!! शुक्ल जी!!!
अरे वही फुरसतिया वाले!!!!
इसको सही करें!!!
"रामचन्द्र कह गये सिया से , ऐसा कलयुग आयेगा,
रावण भी झट सीना तान के पहलवान बन जायेगा ।"
प्रशान्त प्रियदर्शी उर्फ़ पीडी को शिकायत थी-
उफ्फ..उफ्फ..उफ्फ..
मैं अभी क्यों नहीं नया चिट्ठाकार बना? क्यों दो साल पहले इंट्री मारी? अगर अभी मारा होता तो शायद मेरी तस्वीर भी यहां लगायी जाती..
उफ्फ..उफ्फ..उफ्फ.. :)
पीडी भाई उफ़्फ़,उफ़्फ़ आउच मत करो। दो मिनट में एक नया ब्लाग बनाओ। चिट्ठाजगत को बताओ। फ़िर से नये चिट्ठाकार बन जाओ।
डा.अमर कुमार की शुभरात्रि टिप्पणी थी
और, यह एक शुभरात्रि टिप्पणी
नया क्या जुड़ा... वह तो दिख नहीं रहा,
पर, मुझे तो कुछ और ही दीख रहा है
...हमारी आज जीवन साथी से बहुत पटेगी
तो क्या अब तक बहुत नहीं पटा पाये थे ?
डा. साहब नया नये दिन के साथ पेश है। जीवन साथी से पटना-पटाना तो रोज कुंआ खोदना और रोज पानी पीने जैसा है। लगातार मेहनत करनी पड़ती है। ये थोड़ी कि गये टैंक ले आये और छुट्टी मंजूर।
अन्य सभी साथियों की प्रतिक्रियाओं का भी शुक्रिया है।
फ़िलहाल इत्ता ही। कल आपको विवेक सिंह चर्चा सुख देंगे।
आज आप पर चर्चा डाल कर निश्चिन्त हो गई।
जवाब देंहटाएंआप तो धुरन्धर हैं ही। कहने न कहने से क्या होता है।
अभी देखती हूँ कहीं इस चक्कर में नैनीताल छूट गया क्या।
सपना था
जवाब देंहटाएंकाँच का
टूट गया झन्नाकर
घर,
किरचें हैं आँखों में
औ’
नींद नहीं आती।
" हर आंख की यही दास्ताँ है शायद "
अच्छी चर्चा,नये लोगो के लिये उत्साह बढाने और पीडी व हम जैसे का दिल जलाने वाली। इसके बावजूद बिना चर्चा देखे मन भी नही भरता।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसही है, जीवनसाथी के संग निभाव तनी हुई रस्सी पर चलने जैसा है
सावधानी हटी और गड़बड़ हुई ..
किंवा अनजाने में निजता पर अतिक्रमण होगया, लगता है..
खेद जताने से चलेगा ?
चर्चा तो ढिंचक है ही, पर यह आँकड़ेंबाजी का रोग कहाँ से लग गया..
आँकड़ों का खेल रचनाकार के लेखन की बेड़ी है !
चर्चा में आते हुये लोगों का समावेश स्तुत्य है, वाकई उनको पहचान की आवश्यकता है
कतिपय चिट्ठों के शामिल न किये जाने की शिकायत, महज़ मुँहलगेपन से अधिक कुछ और न माना जाये !
मेरे विचार से चर्चाकार के विवेक को ललकारना नितांत अनुचित लगता है..
चर्चा में यदाकदा टिप्पणियों का उल्लेख करना
आवाजाही एवं स्तरीय टिप्पणियों को प्रोत्साहित करती है
आवश्यक नहीं कि, सभी मुझ सरीखे चर्चा-लतिहड़ हों..
लेकिन आज बेजान दारूवाला की भविष्यवाणी क्या रही..
यह जानने की उत्कंठा रह गयी , हे हे हे !
डा.साहब,
जवाब देंहटाएंकिंवा अनजाने में निजता पर अतिक्रमण होगया, लगता है..
खेद जताने से चलेगा ?
जिस बात का गाना हम खुद गा रहे हैं उसमें निजता का अतिक्रमण कैसा?
खेद जताने की मंशा के प्रति खेद स्वयं से जतायें। हमारे से खेद जताकर मुझे शर्मिंन्दा न करें। बेफ़ालतू में चर्चा पर खेदैखेद फ़ैल जायेगा। है कि नहीं?
सूचना को आंकड़ेबाजी के रूप में ग्रहण किया जाये। न ही चर्चाकार को रचनाकार के रूप में। जाड़े में जब सबसे बड़ी रजाई न बांध पाई त कौन बेड़ी उससे बड़ी? बताइये?
आज बेजन दारूवाला की भविष्यवाणी सुनने के पहिले ही श्रीमतीजी अपने कार्यस्थल फ़तेहगढ़ के लिये गम्यमान हो गयीं। सो अब तो जीवनसाथी से मामला टनाटन है जी- हमेशा की तरह।
बकिया क्या कहें? शाम को देखा जायेगा! आप मस्त रहें।
अग्रवाल जी ने ‘द स्टोरी आफ सक्सेस’ को उद्धृत किया है। ऐसी कई अनकही कहानियां भी है जो ‘द स्टोरी आफ सेक्स’ के नाम से कही जा सकती हैं। फिल्मी क्षेत्र का उदाहरण पर्याप्त होगा- खानसामा से एक्टर बने अक्षय कुमार रवीना टंडन की सीढी पकड कर स्टार बन गए तो राखी सावंत एक अलग उदाहरण है! पर होता यह है कि जिस सीढी से ऊपर च्ढते हैं, उसे ही ठेल देते हैं।!!!!
जवाब देंहटाएं>पी डी जी को अच्छी सलाह दी पर याद रहे चिट्ठाचर्चा का काम बढ जाएगा।
>अच्छा याद दिलाया कविताजी ने - मैं भी नैनिताल जा रहा हूं- बाय!
बहुत कुछ पढा और हमको तो आज का ब्रह्म वाक्य ये लग रहा है :-
जवाब देंहटाएंडा. साहब नया नये दिन के साथ पेश है। जीवन साथी से पटना-पटाना तो रोज कुंआ खोदना और रोज पानी पीने जैसा है। लगातार मेहनत करनी पड़ती है। ये थोड़ी कि गये टैंक ले आये और छुट्टी मंजूर।
बस आज तो दिन भर का कोटा पूरा हो गया ! शुकल जी कौन से पुराणो से आप ये सब ढुंढ कर लाते है इतने महान वाक्य ? वाकई आज सबसे लाजवाब लगा ये वाक्य ! और शायद हकीकत भी !
राम राम !
कल से शुरू करके हर मंगलवार आपको हमीं चर्चा करते दिखेंगे . डन डनाडन डन ! हलूमान जी की जय !
जवाब देंहटाएंये अच्छी बताई आपने हम भी नया ब्लॉग बना के जल्दी फोटू छपवाते हैं
जवाब देंहटाएंये समझ में नही आ रहा कि पहले ब्लॉग बनाये या पहले फोटो खिंचवायें
फोटो अच्छा भी तो होना चाहिए न
चिट्ठाचर्चा ग़ज़ब ढा रही है। जबर्दस्त रेस्पांस है। नई सज धज और तेवर-कलेवर।
जवाब देंहटाएंनए ब्लागों की सूचना उपयोगी है।
डॉ कविता वाचक्नवी की कविता अच्छी लगी।
लपेटते रहो हिन्दी जगत का माँझा, बधाई हो!
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी चर्चा रही ...नए ब्लोगों से परिचय कराने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंchittacharcha main hamaare blog ko saamil karne ke liye bhaut bhuat dhanyawaad.........
जवाब देंहटाएंहाये राम.. अनूप जी, आप तो गजब ढ़ाये हुये हैं.. हम कल ही उफ्फ-आऊच कर रहे थे और आज ही आपने मुझे चिढ़ाने के लिये मेरे बहुत ही अच्छे मित्र अमित कि तस्वीर सबसे ऊपर लगा दिये.. अब वो साला मेरे को घर जाकर चिढ़ायेगा.. :( अजी वही टोपी वाले भैया जिनकी तस्वीर सबसे ऊपर है.. :)
जवाब देंहटाएंहद है भाई.. अब हमऊ जाते हैं नया चिट्ठा बनाने.. बस आपको ये वादा करना होगा कि मैं जितने चिट्ठे बनाऊंगा हर बार मेरी तस्वीर यहां होगी.. :D
मैं भी पढ़ रहा हूं लगातार. एक धमकी तो मैंने भी दी थी पर ताकतवर लोगों की धमकी ज्यादा ताकतवर होती है .
जवाब देंहटाएंचर्चा बड़ी अच्छी रही. धन्यवाद.
अरे PD भाई ...नाराज़ क्यूँ होते हो ?
जवाब देंहटाएंहम नही चिढायेगे..यार मार्गदर्शन और प्रेरणा तो तुम से ही मिली है
भाई ...बस हमारे साथ तुम यूँ ही बने रहो
हम भी नया ब्लॉग बनाने की सोच सकते हैं - बशर्ते सुकुल प्रॉमिस करें कि हमारी नॉन फोटोजिनिक फोटो प्रॉमिनेण्टली लगा देंगे।
जवाब देंहटाएंनये ब्लॉगर्स को बराबर का ठेलने के लिये आप बधाई के पात्र हैं।
बड़े फोटो लगाऊ अनुरोध आए हैं. लगा दीजिये भाई :-) एक पोस्ट फोटू ललक लोगों पर ही सही !
जवाब देंहटाएंफुरसतिया जी, जब भी वो फोटू वाला पोस्ट डालना हो उससे एक हफ्ता पहले ही हमें बता दिया जाये.. आखिर अपने भी कुछ शौक अरमान हैं.. मस्त टाईप भूरे रंग का सफारी-सूट सिलवायेंगे, काला चस्मा पहिनेंगे, अपने ओझा भाई से कुछ अंगुठी सब भी बनवायेंगे, सर पर चमेली का तेल चुपड़ कर बढ़िया से फोटू खिंचवा कर आपको देंगे.. ;)
जवाब देंहटाएंअरे मुंह में पान भी होना चाहिये ना? ये तो हम भूल ही गये थे.. :)
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जवाब देंहटाएंनए चिट्ठों की बात चल रही है तो सूचित करना चाहूंगा की मैनें भी हाल में ही लिखना शुरू किया है.
जवाब देंहटाएंविद्वतजनों के आशीर्वाद का आकांक्षी हूँ,
मेरे ब्लाग का पता है--
जवाब देंहटाएंhttp://kartikeya-mishra.blogspot.com
अच्छा प्रयास है.... ऐसे ही लिखते रहें....आपको मेरी शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा रही.....नए चिट्ठकारों का हौसला ऐसे ही बढ़ते रहिये .....कुछ एक लाइने सदा की तरह झकास रही जैसे....
जवाब देंहटाएंतनाव मुक्ति के नुस्खे....,बुड्डा अस्पताल में बुला रहा है ,ओर मां का दूध ओर हाँ कविता की कुछ रचनाये खास है...
कार्तिकेय वाकई अच्छे ब्लोगर है....
जवाब देंहटाएंशमा जी का चिढ़ना जायज था। सारी वाह वाही एन एस जी वाले बटोर ले गये, लेकिन ये सत्य कैसे झुठलाया जा सकता है कि ये पहली बार है कि भारत को एक आतंकवादी जिन्दा मिला है। हमारा उस कॉस्टेबल को सलाम्।
जवाब देंहटाएंअनूप जी हम तो श्नैः-श्नैः पुराने हो जायेंगे और आपकी नजर भी नहीं उठेगी कम्बख्त इस "http://www.gautamrajrishi.blogspot.com/" तरफ....अर्सा हो गया "रोग पाले" अब तो...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकसम से हमारा चिटठा भी चकाचक नया है, नजरे इनायत गरीब की तरफ़ भी करें|
जवाब देंहटाएंhttp://kunj-e-kafas.blogspot.com/
Aaj pehli baar aapke blog ko dekha. aapka prayaas vaastav me anutha hai. shubkamnayen.
जवाब देंहटाएंguptasandhya.blogspot.com
भई, सब लोग इतनी उतावली न दिखाएं। शुक्ल जी, सब को चानस देंगे। रोशन जी, पहले ताउंजी से फिटो उधार ले लीजिए। आपको फिट बैठ जाएगी :)
जवाब देंहटाएंपीडी जी, ई का? इत्तर लगाना भूल गवा का!!
फुटुवा में इतरवो का खुशबु आता है क्या? हमको पता ही नहीं था.. नहीं तो इतरवा कैसे नहीं लगाते.. लेकिन अब कुछो नहीं हो सकता है.. फोटुवा तो छप गया है.. :(
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनूपजी । आपकी नजर मुझ पर पडी । अच्छा लगा । अपनी चर्चा में मेरे ब्लाग को शामिल कर आपने मुझे सचमुच में सम्मान प्रदान किया है ।
जवाब देंहटाएंब्लाग जगत् के चाल-चलन और रीति-रिवाज से मेरी वाकफियत बहुत ही कम है । तकनीकी ज्ञान तो शून्यवत है ही ।
इसलिए मेरे थोडे लिखे को बहुत मानिएगा । मुमकिन हो तो इसी प्रकार नजर बनाए रखिण्गा ।
फिर से धन्यवाद ।