नीचे आगए ? अब यह पढें
..."मैंने इससे कहा कि भाई, मेरी ब्लॉग पढ़। बोला कि ये ब्लॉग कौन सा "लोग" होता है। मैंने बताया कि यार मैं हिन्दी में लिखता हूँ। बोला कि कौन सा बड़ी बात है, हिन्दी में तो कोई भी लिख लेता है।"
औकात पता चल गई ? अब थोडा सीरियस हो जाइए क्योकिं हमारे दो बुजुर्ग ( हालाँकि ये दोनों शायद बुजुर्ग कहलाना पसंद न करें ) बडे परेशान हैं क्योंकि इन दोनों को ही इनीशियल एडवाण्टेज नहीं मिल सका . अगर मिल गया होता तो सोचिए ये दोनों हिन्दी ब्लॉग लिखते ? न भी लिखते तो चलता . यह हम नहीं कह रहे जी. के. अवधिया के लेख मे इशारा किया गया है
"अधिकतर लोग नहीं जानते कि वर्तमान समय में हिन्दी ब्लोगिंग इतनी ऊँचाई पर पहुँच चुकी है कि उसे अपने परिचय के लिये बड़े नामों की आवश्कता नहीं है।"
इस लेख में और भी अच्छी जानकारियाँ हैं इस गली में चले जाइए । तो यह भी पता चल जाएगा कि हिन्दी ब्लॉग्स की संख्या कम होने के क्या कारण हैं .
अब इस मोड से मुड जाइए । और कुछ सुन्दर कविताओं का मजा लीजिए । तत्पश्चात सुरेश चिपलूनकर की बात ध्यान से सुनिए । इनके लेख बडे ही खरे होते हैं । आज इन्होनें बडा कठिन प्रश्न पूछ लिया है कि क्या NDTV में दाऊद का पैसा लगा हुआ है ?
वैसे अनुराग जी के शब्दों में कहें तो सबकी अपनी अपनी स्वीकृति है . कोई जो जी चाहे सोचे सोचने पर कोई रोक तो है नहीं . कोई चाहे तो यह भी सोच सकता है कि मुम्बई का हमला एक ड्रामा था न कि आतंकवादी हमला ….. . फिर चाहे अमित जैसे लोग गुस्सा हो तो हों अरुन्धती राय की बला से ।
कुछ लोग तो गुस्से में जूते भी मारने लगते हैं फिर चाहे सामने वाला ताऊ बुश ही क्यों न हो । ऐसे में मज़ा लेने वाले भी पीछे नहीं रहते । खूब हुल्लड करते हैं . जैसे कि " अरे जूता ही तो था ! " . और कुछ लोग तो वीडियो भी जारी कर देते हैं जूते वाले को शाबाशी देते हैं . इतने पर भी कहेंगे कि अन्दर की बात है . अब बताइए मौज लेने की कोई सीमा है ?
अरे सीमा से सीमा गुप्ता याद आगईं । चलिए कुछ लम्हे उनके साथ भी बिता लेते हैं । इनके ब्लॉग पर जाने में मुझे तो डर सा लगता है । अजीब अजीब से फोटो, अजीब से कलर्स, दर्द , दृष्टि , इंतज़ार के बीच गूँज़ता हा हा हा हा हा ....... नहीं मैं नहीं जा सकता । आप होकर आइए मैं यहीं खडा हूँ . डर लगे तो भाग खडे होना . ज्यादा वीरता दिखाने आवश्यकता नहीं है ।
वीरता देखनी हो तो रतन सिंह शेखावत का ब्लॉग देखिए ना । जहाँ राव जयमल, मेडता जैसे योद्धा पधारे हैं . मिल ले .. अबे मिल ले . फायदे में रहैगा । वैसे तो पंकज अवधिया भी कम वीर नहीं हैं देखिए तो अंधविश्वास से कब से लड रहे हैं . 61 वाँ अनुभव सुना रहे हैं आज . कैसे कैसे अनुभवों से गुजरे हैं एक बानगी देखिए
"उन्होने बताया कि आजकल कोलिहा अर्थात लोमडियो का बहुत शिकार हो रहा है। उसकी खाल मुँह माँगे दाम पर खरीदी जा रही है। जंगल मे इनकी संख्या बहुत है और शाम होते ही ये गाँवो के पास दिख जाती है। व्यापारियो के एजेंट घूम रहे है और खाल खरीद रहे है। मैने अखबार मे कभी इस तरह के व्यापार के बारे मे नही सुना था। आखिर क्यो लोमडी के पीछे पडे है ये लोग? मै सोचता रहा। सरकारी विभागो मे पता किया तो उन्हे भी इस बात की खबर नही थी। बाघ या तेन्दुए की खाल की बात होती तो शायद वे सक्रिय होते। मैने सर्प विशेषज्ञ से ही पता लगाने को कहा। व्यापारियो से भी पूछताछ की। अब इंटरनेट मे यह सुविधा तो मिली ही है कि छदम खरीददार बनके व्यापारिक पूछताछ की जा सकती है। जल्दी ही राज खुल गया। देश के महानगरो मे एक विशेष तरह के जूतो का प्रचलन बढ रहा है। इन जूतो मे लोमडी की खाल का प्रयोग होता है। यह दावा किया जाता है कि इस जूते को पहनने से बवासिर (पाइल्स) आराम हो जाता है। मै यह जानकर भौचक्क रह गया। "
आप यह न सोचें कि अच्छे लोगों की कमी हो रही है । अच्छे लोग सब जगह मिल जाते हैं . जो आसपास के माहौल का भला सोचते है . जी हाँ ब्लॉगिंग मे भी । प्रभात जी को ही देखिए
"मेरा विचार है कि हिन्दी ब्लागजगत में विषयों की विविधता की अब भी बहुत कमी है। ज्यादातर 'राजनीति' के परितः लिखा जा रहा है। तकनीकी, अर्थ, विज्ञान, व्यापार, समाज एवं अन्यान्य विषयों पर बहुत कम लिखा जा रहा है।दूसरी जरूरत है आसानी से सहमत न होने की। इमर्शन ने कहा है कि जब सब लोग एक ही तरह से सोचते हैं तो कोई नहीं सोच रहा होता है। उसने यह भी कहा है कि हाँ-में-हाँ मिलाना सभ्यता के विकास में सबसे बड़ी बाधा है। जब तक सम्यक प्रकार से विचारों का विरोध/अन्तर नहीं होगा तब तक न नये विचार जन्म लेंगे न विचारों का परिष्कार होगा। "
संत समीर जी सिर्फ नाम के संत नहीं हैं इनके विचार भी उत्तम और विचार करने योग्य हैं
"आइए, अपनी अन्तरात्मा में थोड़ा आत्मबल जगाएँ, ईमानदारी की राह पर दो पग बढ़ाएं, अपने सगे-सम्बन्धियों-पड़ोसियों को भी इस राह का राही बनने की थोड़ी प्रेरणा दें - और इस तरह, इस संसार को थोड़ा और रहने के क़ाबिल बनाएं। मनुष्य जीवन की सार्थकता इसी में है।"
हर्षवर्धन त्रिपाठी बात का बतंगड बनाने में माहिर हैं इसलिए शायद सबसे अलग दिखते हैं कह्ते हैं ज़रदारी पर भरोसा करने में हर्ज़ क्या है? हमने तो इन्हें मना किया नहीं करो भरोसा । ज़रदारी पर , ओसामा पर या किसी और पर हमने रोका है ? आज़ाद हो आप ।
देश के लिए करने वाले बेशक कम हों पर सोचने वाले कम नहीं हैं । लो एक और आगए
"यदि किसी एक शब्द को देश निकाला दिया जाए तो मैं इस 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द को देश निकाला देना चाहूंगा। मुझे तो इस शब्द के लिए लड़ना पड़ा है। मैंने श्रीमती गांधी से कहा भी था कि संविधान में धर्मनिरपेक्ष का अनुवाद 'सेकुलर' किया गया है, जो स्वीकार करने योग्य नहीं है। उन्होंने इस बात को स्वीकार किया। अब हमारे संविधान का जो अधिकृत अनुवाद है उसमें 'सेकुलर' के लिए पंथनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग किया गया है।"
कुछ लोग नारियों को बेवज़ह भडकाने में लगे हैं
"पुरूष किसी भी देश-काल और युग में नारी को उसकी देह से इतर नहीं देखता।"
जाइएगा नहीं नारियों की बात अभी जारी है । रचना जी ने खबर दी है
"सेंट्रल गवर्मेंट , राज्य सरकारों के साथ मिल कर एक कानून बनाए जाने पर विचार कर रही हैं जिसके तहत "एक विवाहिता " अगर अपने पति के अलावा किसी गैर पुरूष से सम्बन्ध बनाती हैं तो वो कानून दंडनिये अपराध होगा । लेकिन वूमन सैल इस का विरोध कर रहा हैं
अभी तक ये कानून केवल "विवाहित पुरुषों" पर लागू था । अगर कोई विवाहित पुरूष , अपनी पत्नी के अलावा किसी भी पर स्त्री से शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करता हैं तो वो कानून दंडनिये अपराध होता है"
अगर आप सोच रहे हैं कि खबर लाना कौन सी बडी बात है खबर तो रवि रतलामी भी ले आएंगे तो आपका तीर निशाने पर लगा वाकई रवि जी खबर लाए हैं पर बीस साल बाद
"लगता है सरकार ने इस क़ानून को बनाते समय अपने कर्मियों की दशा-दिशा का पूरा खयाल रखा है. आखिर सरकारी कर्मचारी भी तो उनके अपने, इस देश के प्रिय नागरिक हैं. बीस साल से एक दिन भी कम होता तो कर्मियों को कई समस्याएँ हो सकती थीं. अब जब सरकार ने ये कानून बना ही दिया है तो क्यों न सभी सरकारी कर्मचारियों को इसका लाभ आवश्यक रूप से लेना ही चाहिए?"
आज मंगलवार है . आपने जंगल में मंगल की बात तो सुनी होगी . अब आग में बाग की खबर भी देख लें . इसे पेश कर रहे हैं रंजीत - एक शहरी जो वास्तव में देहाती हैं .
"सुलगती और फैलती हुई भूमिगत आग से बुरी तरह प्रभावित झरिया की जिस जमीन पर उतरने में चिड़ियां भी खौफ खाती हैं और जहां दूर-दूर तक धुआं और खानों के कचरे के सिवा कुछ भी नजर नहीं आता, वहां हरियाली और बागवानी की बात रेगिस्तान में नखलिस्तान जैसी ही है।"
अगर आप किसी ऐसे देवता के दर्शन करना चाहते हैं जो आपकी सब तकलीफें अपने सिर ले ले तो आपका इंतजार खत्म हुआ समझें । पेश हैं राजेश घोटीकर जो आपके सामने धन की निरर्थकता की पोल खोल देंगे ।
अब देखिए बातों बातों में बडी खबरें देना तो भूले जा रहे थे ।
आदित्य के नाखून काट दिए गए हैं ।
ताऊ के कुत्ते ने चाय पी ली है ।
और ब्रेकिंग न्यूज जिसे पढकर आपका दिल गार्डेन गार्डेन हुए बिना राजी न होगा दोनों खोए पिल्ले वापस आ गए हैं ( या हो सकता है खोए ही न हों ) ।
हिमांशु को कविता ने बाँध लिया है ।
जो लोग गज़ल लिखने के चक्कर में तुकबन्दी कर करके थक चुके थे अब साहित्यशिल्पी की शरण में जासकते हैं पूरे गज़ल कार बनकर ही बाहर निकलेंगे .
"हिन्दीउर्दू में कहो या किसी भाषा में कहो
बात का दिल पे असर हो तो ग़ज़ल होती है। "
अब कुछ कार्टून देखने की गुंजाइश हो तो इस झरोखे में झाँक आएं ।
कविता के प्रेमी निराश न हों उनके लिए कविताएं मँगवाके रखी हैं ।
नीरज जी की धुँआ नफरत का देखने जाएं तो मधुबाला का फोटू फ्री देखने को मिलेगा ।
बर्ग वार्ता पर जाएंगे तो और कविताओं के लिंक भी मिल जाएंगे वहीं । जाओ पढ लो ।
अभी अभी आए आलोक पुराणिक के बयान को हम तोड मरोड पेश करें तो उन्होंने कहा है कि
" पाकिस्तान मज़े का मुल्क है . "
आज लोग प्रश्न बहुत पूछते हैं फिर जबाब भी खुद ही दे देते हैं ।
ज्ञान जी ने पूछा " यह भाषा क्या है ?"
धीरू सिंह पूछते हैं " रोटी क्या है ? " इसका जबाब ज्ञान जी ने टिप्पणी में दिया है
" पेट खाली होने पर पेट भरने की चीज है और पेट भरा होने पर खेलने की। आप को कूटनीति आती हो तो यह हथियार भी है।"
अब बारी धीरू सिंह जी की है वे ज्ञान की के सवाल का जबाव दें । हिसाब बराबर !
लोगों को हो क्या रहा है । कुछ नहीं तो अपने पिटने की ही पोस्ट ठेल देते हैं . कल भी एक पिटने की पोस्ट थी आज भी कोई पिट गया । कौन ?
जाते जाते कहना चाहेंगे कि हमारी सरकार को हमारे दोस्तों ने बनने से पहले ही गिरा दिया .
अब इससे पहले कि कोई गलतफैमिली हो हम निकलते हैं । इस गली से । क्योंकि ऊपरवाला गलतफैमिली में ही पिटा है :)
चलते-चलते ये कविता भी पढ़ लें:
इल्हाबाद में पिल्ले खोए .
कुतिया फूट फूटकर रोए .
हम सोचे अपहरण हुआ है .
मगर खुदा की खूब दुआ है .
सही सलामत वापस आये .
बिलागरों के मन हरषाए .
अच्छा अब प्रस्थान करेंगे .
अगले मंगलवार मिलेंगे .
छोटा सा यह मेरा गाना .
टिप्पणियाँ जमकर बरसाना
बढियां चर्चा !
जवाब देंहटाएंआप ने बहुत ब्लाग अपनी चर्चा में समेटे हैं, यह अच्छा है।
जवाब देंहटाएंएक कवि की गद्य चर्चा कमाल रही . बहुत से हम जैसो को लपेट लिया .धन्यबाद
जवाब देंहटाएंuf! NARAYAN NARAYAN
जवाब देंहटाएंअरे वाह विवेक,
जवाब देंहटाएंइस बार तो लहजा ही पूरा बदल लिया आपने अपना।
हम तो काव्यचर्चा की संभावना में थे। परन्तु आप भी इसी रंग में रंग गए न।
बड़ी चंगी अते वदिया कर दित्ती एह् ताँ।
बढियां चर्चा !!!!!
जवाब देंहटाएंधन्यबाद!!!!!!!!
प्राइमरी का मास्टर का पीछा करें
अनूप जी के सौजन्य संकेत से पिल्ला पोएम का भी मजा लिया -अदभुत! वाह आप तो प्यारे प्यारे और निराले जन्मजात पिल्ले अररर कवि हैं भाई -क्या कहने -काव्य सत्य से कुत्तों के सख्य की नयी" बिलागरों " की बिरादरी की पहचान हो पायी है जो उनके प्राकृतिक दुश्मनों -बिलाओं /बिलाव से अलग है और इसका श्रेय जाता है आपको ! इश्वर आपके इस अदभुत कवि कर्म को बरक्कत दें !
जवाब देंहटाएंचारोँ पिल्ले देख
जवाब देंहटाएंऔर आपकी कविता मय
इत्ते सारे ब्लोग समेटे देख
दिल गार्डन गार्डन होना ही था
- लावण्या
अंत में प्रस्तुत कविता ने चर्चा को अनोखा बना दिया है, वास्तव में कितनी छोटी छोटी बातें मन को उद्विग्न कर देती हैं और संतोष भी प्रदान कर देती हैं।
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा
जवाब देंहटाएं" हा हा हा हा तुस्सी ग्रेट हो जी "
जवाब देंहटाएंregards
वाकई विवेक जी !
जवाब देंहटाएंआपका यह नया अंदाज़ अच्छा लगा ! अच्छी चर्चा रही ! शुभकामनायें !
जूताचर्चा भी की जाये
जवाब देंहटाएंइस ब्लॉग पर
विशेष डिमांड है।
रोचक चर्चा विवेक जी
जवाब देंहटाएंअरे चिटठाचर्चा में चिटठाचर्चा कि ही चर्चा नहीं हुयी.. कल रात अनूप जी ने फुरसत में हमारी फोतुवा लगाए एकदम चकाचक.. अब कल हम कोई बिलोग तो लिख्खे नहीं थे सो लग रहा था कि उसी फोटूवा कि कोई चर्चा कर दे..
जवाब देंहटाएंखैर जे हलूमान.. :)
मुसाफिर जाट का कहना ठीक ही हो सकता है कि हिंदी ब्लाग तो कोई भी लिख सकता है। क्यों न हो, जब मसिजीवी जैसे लोग तालातोडी को सराहेंगे, तो कापी-पेस्ट कोई भी कर सकता है। नहीं समझे!? तो देखिए वे अपने चोर-चतुरानन कमेंट में क्या कहते हैं-
जवाब देंहटाएंमसिजीवीः
पर नाराजगी की कीमत पर भी मेरी सहमति डा अमर वाली लाइन से है। और खासतौर तब जब इन दृष्टांतों का इस्तेमाल तालाबंदी जैसे बेमजा उपकरणोंके समर्थन में होने लगे। हिन्द युग्म के मामले में जब ये बहस उठी थी तब ही प्रमाणित किया गया था कि तालाबंदी केवल वैध चर्चाकारों को ही हतोत्साहित करती है चौर्यकर्म वालों के मामले में बेअसर है... ओपेरा पर काम नहीं करती, स्क्रिप्ट आफ कर लें तो किसी ब्राउजर पर काम नहीं करती...मतलब ताला चोर के लिए नहंी शरीफ को बिराने भर का औजार है।
मुझे 'बेचारे' झाजी से थेड़ी सहानुभूति हो रही है। कितना ही जोर से कहें वे इतने प्रसिद्ध रचनाकार की रचना को तो अपना कह नहीं सकते थे.;न ही प्रमाणित करने की स्थिति में हैं। एडसेंस भी अब है नहीं कि कानी कौड़ी कमाई होगी। मतलब बुरे बने हाथ जलाए बेबात।
मसिजीवीः
पर नाराजगी की कीमत पर भी मेरी सहमति डा अमर वाली लाइन से है। और खासतौर तब जब इन दृष्टांतों का इस्तेमाल तालाबंदी जैसे बेमजा उपकरणोंके समर्थन में होने लगे। हिन्द युग्म के मामले में जब ये बहस उठी थी तब ही प्रमाणित किया गया था कि तालाबंदी केवल वैध चर्चाकारों को ही हतोत्साहित करती है चौर्यकर्म वालों के मामले में बेअसर है... ओपेरा पर काम नहीं करती, स्क्रिप्ट आफ कर लें तो किसी ब्राउजर पर काम नहीं करती...मतलब ताला चोर के लिए नहंी शरीफ को बिराने भर का औजार है।
क्या खूब चर्चा
जवाब देंहटाएंवाह, क्या जम कर बरसात हो रही है टिप्पणियों की। वेल-डिजर्विंग चिठ्ठा चर्चा!
जवाब देंहटाएंभाई विवेक जी आज की आपकी पिल्ला कविता पसन्द आई और टिपणियों की बरसात क्या यहां तो अभी से बाढ के हालात बन गये हैं और दिन पूरा पडा है ! वाकई आज की् चर्चा को हक बनता है टिपणिया बटोरने का ! मुबारक हो !
जवाब देंहटाएंराम राम !
ब्रेकिंग न्यूज-
जवाब देंहटाएं'बिलागरों के मन हरषाए '
अरे हम तो अब ही ख़बर पाए!.
अच्छा किए जो दिया बताए,
बिलागर खामखाँ थे घबराए.
-मंगल की चर्चा रही खूब!
- मंगल पर व्यंग्य कविताई 'तत्व 'प्रधान है.
चेहरे की मांसपेशियों की अच्छी कसरत हो गयी.
[laughter क्लब join करने की क्या जरुरत है चिटठा चर्चा की एक खुराक काफी है.]
धन्यवाद.
हमें अंदाजा नही था कि मेरी न्यूज़ पर हमारे हिन्दी ब्लोगिंग पर लेख को इतना महत्त्व मिल जायेगा कि अवधिया जी के सौजन्य से वो यहाँ चिट्ठाचर्चा तक पहुँच जायेगा
जवाब देंहटाएंचर्चा मे है आपकी चर्चा।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंइतनी अच्छी और सुखद चर्चा कि..
टिप्पणी करने के लिये शब्दों का टोटा पड़ रहा है, विवेक भाई !
माफ़ करना.. आज टिप्पणी नहीं कर पाऊँगा !
हाँ इतना अवश्य है, कि यह बानगी चर्चा को बहुत दूर तलक ले जाने वाली है !
मानो, कुतिया का रोना ब्लागिंग के लिये अशुभ हो सकता था..
उस पर लिखी बेहतरीन लाइनों ने मन को खूब गुदगुदाया..
और लगता है कुतिया का मन भी हर्षाया !
यह ज़ज़्बा सलामत रहे, बाकी ब्लागिंग को लेकर
इतने भ्रम अभी भी कायम हैं, कि
मुझे अपने ' भँड़ैती में फँस जाने ' का उलाहना भी सुनना पड़ा है !
पण, कोई वांदा नहीं.. लगे रहो मुन्ना भाई !
पर, मेरी टिप्पणी ? नहीं, आज नहीं ...
प्रिय विवेक
जवाब देंहटाएंबहुत ही आकर्षक शैली में चर्चा प्रस्तुत करने के लिये बधाई हो. शीर्षकों को मजूमन के साथ बहुत ही अच्छे तरीके से जोडा गया है.
"हमारे दो बुजुर्ग ( हालाँकि ये दोनों शायद बुजुर्ग कहलाना पसंद न करें ) बडे परेशान हैं क्योंकि इन दोनों को ही इनीशियल एडवाण्टेज नहीं मिल सका . अगर मिल गया होता तो सोचिए ये दोनों हिन्दी ब्लॉग लिखते ? न भी लिखते तो चलता ."
बुजुर्ग कहलाने में में मुझे कोई एतराज नहीं है. लेकिन ज्ञान जी मुझ से छोटे हैं, सेवानिवृत्त नहीं हुए, अत: यहां बुजुर्ग सिर्फ एक है !! (ताऊ जी भी हैं. दो हो गये).
यदि इनिशियल एड्वाण्टेज मिल जाता तो शायद हिन्दी चिट्ठाकारी न करते. न करते तो आप जैसे लोग चर्चा के लिये अच्छे चिट्ठे कैसे छांटते. इतना ही नहीं, टिप्पणियां कैसे मिलतीं ??
सस्नेह, अगले मंगल के इंतजार में -- शास्त्री
acha laga
जवाब देंहटाएंअरे भाई विवेक जी, क्या बात है, आज तो मेरी पोस्ट चिटठा जगत में सबसे ऊपर के पायदान पर है. भाई, कुछ भी हो मेरा ट्रैफिक तो आज बढ़ ही गया है.
जवाब देंहटाएंप्रिय विवेक
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा सुखद आश्चर्य रहा ...आपका ये अंदाज भला भी है ओर प्रशंसा के काबिल भी ,कविता जी की तरह मेरी भी कुछ कविता मय चर्चा की अपेक्षा थी......
एक निवेदन ओर है..डॉ अमर ने शायद पिछली किसी चर्चा में कुछ सुझाव दिए थे ,जो गौर करने लायक है.....
@ आदरणीय अनुराग जी . आपका इशारा हम नहीं समझ सके . कृपया बात पब्लिकली बताने की न हो तो मेरा मेल हाज़िर है .
जवाब देंहटाएंइतना सारा पढ लेने के बाद भी आप इतने सामान्य बने रह जाते हैं कि इतना सब लिख सकें ।
जवाब देंहटाएंअजब-गजब करते हैं आप ।
आपके डाइटीशियन का पता दीजिएगा ।
आज लोग प्रश्न बहुत पूछते हैं फिर जबाब भी खुद ही दे देते हैं ।
जवाब देंहटाएंज्ञान जी ने पूछा " यह भाषा क्या है ?"
धीरू सिंह पूछते हैं " रोटी क्या है ? ".........
चर्चा का यह अन्दाज बहुत भाया. धन्यवाद.
पिल्ला चर्चा खूब कराई।
जवाब देंहटाएंटिप्पणियों की बारिश आई।
अब आगे से रखना ध्यान।
वर्ना होंगे ब्लॉगर हैरान।
वाह भाई विवेक.. बहुत उम्दा चर्चा रही.. मुझे भी यही लगा था की काव्यात्मक चर्चा होगी.. पर इस बार की चर्चा ने सभी को ग़लत साबित किया... और अच्छा लगा की ये चर्चा पाठको को अच्छी लगने वाली चर्चा नही थी..
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा !
जवाब देंहटाएंइस मुसलाधार बारिश में एक बूंद हमारा भी.
वाह वाह!
जवाब देंहटाएंशानदार चिट्ठाचर्चा...बहुत शानदार!
कविता तो और भी जानदार है.
प्रिय विवेक
जवाब देंहटाएंदो चर्चा पहले डॉ अमर जी ने एक सुझाव दिया था की हम चिट्ठो को इस तरह से भी क्रमबद्ध कर सकते है....मै उस टिप्पणी की बात कर रहा था.....
मुझे लगता है हर टिप्पणी करने वाले को रोज एक लेख का लिंक चिटठा चर्चा में देना चाहिए जो किसी कारणवश चिटठा चर्चा में छूट गया हो...ओर उस पाठक की राय में उस लेख को कई लोगो तक पहुचना चाहिए ....श्री गणेश करते हुए मै आज एक लिंक दे रहा हूँ
जवाब देंहटाएंभूख का विकराल रूप
achchi charcha , kament ki jarurat nahin haen phir bhi kar rahe hun kyuki aap ne apnae charcha karne kae tarika ko badla haen aur badla kar karna apnae aap me bahut time laetaa haen
जवाब देंहटाएंshubhkamnaaye aapke bhavishy kae liyae hindi bloging mae
कमाल है भाई.
जवाब देंहटाएं=============
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
is charcha ko padh kar giriraj joshi ki kii hui charchae yaad aagaey
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंधांसू च फ़ांसू चर्चा। जय बजरंगबली की।
जवाब देंहटाएंजय बजरंगबली की!!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंअच्छी व शानदार चर्चा
जवाब देंहटाएं