हिंदी ब्लाग जगत के आदि चिट्ठाकार के रूप में (?) ख्यात आलोक कुमार ने हमारे अनुरोध को स्वीकार करते हुये खिचड़ी-चर्चा पेश की। आर्यपुत्र शब्द पर कविताजी ने मौज लेते हुये टिपियाया-
पहले यह बताया जाए कि फुरसतिया ने आपको आर्यपुत्र कैसे व क्यों कहा>>>?
आर्यपुत्र केवल केवल पत्नी द्वारा पति के लिए प्रयोग किया जाने वाला सम्बोधन रहा है.
तो क्या ...?
अब हम क्या समझें?
अब हम तो खड़े के खड़े रह गये (हालांकि पढ़े हम इसे बैठे-बैठे और बाद में भी उसी दशा में रहे लेकिन कहा तो यही जायेगा न कि हम खड़े के खड़े रह गये) ।
लेकिन इत्ती जल्दी किसी का तर्क मान लिया तो काहे के ब्लागर और काहे के फ़ुरसतिया। लिहाजा लेकर बैठ गये तीन-चार किलो का अरविन्द कुमार -कुसुम कुमार रचित समान्तर कोश लेकर। खोजते रहे, खोजते रहे, खोजते रहे । लेकिन आर्यपुत्र शब्द न मिला। लगता है फ़ूट लिया होगा पलती मेरा मतलब पतली गली से। कुछ वैसे ही जैसे समीरलाल लफ़ड़े वाली जगह से साधु-साधु कहकर निकल लेते हैं। आर्यपुत्र शब्द को लगा होगा कि अगर वह कहीं आ गया पकड़ाई में तो छीछालेदर होगी। लोग कुल-गोत्र-आगा-पीछा पूछ-पूछ कर उसका जीना हराम कर देंगे।
आर्य का मतलब अलबत्ता दिया गया है पुरुष, आदरणीय। इस लिहाज से आर्यपुत्र का मतलब अगर पुरुष-पुत्र या आदरणीयपुत्र माना जाये तो कौनौ हर्जा नहीं होना चाहिये। जब आलोक आदि चिट्ठाकार होने के नाते हमारे आदरणीय च वंदनीय हैं तो उनके माता-पिता को तो आदरणीय माना ही जाना चाहिये। है कि नहीं?
इसके अलावा आर्यपुत्र केवल पत्नी के द्वारा पति को पुकारने का संबोधन कभी रहा हो शायद लेकिन संबोधन तो परिवर्तनशील होते हैं। कभी ये जी, वो जी, मुन्ना के बापू , टिल्लू के चाचा या फ़िर सुनती हो, पप्पू की अम्मा, दिनेश की भौजाई के संबोधन इधर-उधर होकर अब सीधे-सीधे नाम लेने पर आकर खड़े हो गये हैं। और देखा जाये कि जिस गुंडे को पुलिस रोज जुतियाती रही हो उसे माननीय कहने लगती है। ज्यादा दूर क्यों जाते हैं? मुंबई में देख लें। उत्तर भारत के स्त्री,पुरुष, बाल,गोपाल सब भैया में समा गये हैं। संवेदनशील लोग बुरा न मान जायें इसलिये शरीफ़ मुंबईये उत्तर भारत के लोगों को भाईसाहब जैसे औपचारिक से संबोधन से पुकारने लगे हैं।
आशा है कविताजी हमारे इस बहाने (क्या यह सच में लचर है? सच बताइयेगा! ) को स्वीकारते हुये हमारे द्वारा आलोक कुमार को आर्यपुत्र कहने की बात को ( जो कि मैंने कही ही नहीं , कस्सम से, विद्यामाता की कसम )उचित मान लेगीं। इति प्रस्तावना।
बात उन दिनों की है जब हिंदी ब्लाग जगत में बहुत दिन तक कुल जमा उतने ब्लाग थे जितने आज रोज जुड़ते हैं! जब हम जुड़े तो बने करमचंद जासूस खोजते रहे आदि-अनादि लोगों को। चौपाल से पता चला कि तमाम गुरु-गंभीर लोगों में यही एक बंदा है तो हल्का रहना चाहता है और लिखता है:
तमन्ना यह है कि यह इलाका हल्का फ़ुल्का रहे। कम से कम मेरी तो यही कोशिश रहेगी। कुछ उस तरह, जैसे गली के छोकरे व छोकरियाँ आपस में गप्पबाज़ी करते हैं। तो सबसे पहले अर्ज़ करना चाहूँगा कि ये जो चिट्ठाकार हिन्दी वाले हैं, इतने दिन कहाँ घास चर रहे थे? शायद उन बगीचों की घास खत्म हो गई, या फिर ऊब गए वही हरी दूब खा खा के, अब अङ्ग्रेज़ी में तो वह बात नहीं आ सकती जो अपनी ज़ुबान में। भई आपको कोई अङ्ग्रेज़ी में बास्टर्ड कहे तो उसका वही असर थोड़ी होगा जो हिन्दी में होगा!
गली-मोहल्ले के छोरे-छोरियों के अंदाज में गप्पबाजी करने की तमन्ना लिये , पंजाब इंजीनियरिंग कालेज यह सिविलची टर्न्ड साफ़्टवेयर अभियंता बालक, पहले फ़िलीपींस और फ़िर न जाने कहां-कहां टहलता रहा। शुरुआती दिनों में आलोक लोगों की वर्तनी सही करने का काम करते रहे। लोगों ने ध्यान नहीं दिया तो खुद सही हो गये। जिस शब्द के बारे में जानकारी न हो उसे बेझिझक पूछ लेते हैं। आज भी इनकी चर्चा में वही पुराना रुख देखकर मजा आ गया।
अब तो चिट्ठाचर्चा की पहली पोस्ट की टिप्पणियां खलास हो चुकी हैं अगर होंती तो देखते कि आलोक ने वायदा किया था कि वे तमिल के चिट्ठों की चर्चा का काम किया करेंगे। तमिल में तो नहीं हुआ लेकिन गुजराती में बेंगाणी बन्धु, सिन्धी में जीतेन्द्र, मराठी में तुषार जोशी ने चर्चायें कीं। अब कविताजी के जुड़ने से फ़िर भाषा वैविध्य आ रहा है। पता नहीं बेगाणी बन्धु कब वापस जुड़ेंगे?
माइक्रों पोस्टों का चलन तो अभी शुरू हुआ है। आलोक तो शुरुआतै से माइक्रो पोस्ट लिखते आ रहे हैं। एक दम टेलीग्रामिया भाषा। ब्लाग छपा, फ़ौरन टिपियाओ टाइप। आदि चिट्ठाकार होने के बारे में भले कोई माने या न माने लेकिन वे हिन्दी ब्लागजगत के पहले और अब भी नियमित चिट्ठाकार हैं। हिंदी ब्लागिंग के लिये चिट्ठा शब्द भी आलोक का सुझाया हुआ है।
बहरहाल आलोक हफ़्ते में एक दिन चर्चा के लिये उपलब्ध रहेंगे। तरुण के जुड़ने तक शनिवार को चर्चा करेंगे और इसके बाद शायद रविवार को या फ़िर किसी और दिन। इति ब्लागर परिचय।
स्त्री को पीटना क्या सहज व्यवहार है? यह असहज सवाल ज्ञानदत्तजी ने अपनी पोस्ट में किया। काफ़ी लोग अपराध बोध के घेरे में खड़े पाये गये। लेकिन यहां अभिनव सवाल भी उठाते हैं:
वैसे पत्नी से पिटने पर भी यदि ज्ञानीजनों के विचार प्राप्त हों तो ठीक रहे.
अब इस पर ज्ञानी जब कुछ कहेंगे तब कहेंगे लेकिन परसाई जी एक सवाल के जबाब में क्या कहते हैं यह बांच लिया जाये।
प्रश्न: पति के हजार अवगुण पत्नी अपने में समेट लेती है लेकिन पत्नी का एक भी अवगुण पति बर्दाश्त नहीं कर पता। ऐसा क्यों?
जबाब: आपको अनुभव और करना चाहिये। मैंने ऐसे कई पति देखे हैं जो पत्नियों के बहुत अवगुण सहते हैं। पत्नी से पिटते तक हैं पर परिवार नहीं तोड़ते। मैंने ऐसे पति देखे हैं जो पत्नी के प्रेमी को अपने घर ले जाते हैं, उसे खिलाते हैं-पिलाते हैं। ये पति पौरुष में कम नहीं होते। वे चाहते हैं, पत्नी अपने प्रेमी को मेरे साथ स्नेहपूर्वक बैठकर खाते-पीते देखकर प्रसन्न हों। इससे परिवार में प्रसन्नता रहे। मनुष्य स्वभाव और भावना बहुत जटिल होती है। कर्कशा पत्नियों को पति निभा लेते हैं।
पर आपका यह मत सही है कि पति अपने को श्रेष्ठ मानकर, पत्नी का पालक मानकर, उसे सेविका समझकर उसके अवगुण कम बर्दास्त करता है। इस मामले में स्त्री बहुत अधिक सहनशील होती है। - (परसाई रचनावली, खंड ६, पृष्ट ४५४ का ऊपर भाग)
वैसे हमारे विनोद श्रीवास्तवजी भी एक ठो कविता कहते हैं:
धर्म छोटे-बड़े नहीं होते, जानते तो लड़े नहीं होते,
चोट तो फ़ूल से भी लगती है, सिर्फ़ पत्थर कड़े नहीं होते।
तो भैया बोलने-चालने किंवा टिपियाने-सिपियाने से भी चोट लग सकती है। समझ लीजिये। लेकिन हम बहुत मुलायमित से कहना चाहते हैं कि ज्ञानजी अपनी पीढ़ी के शास्त्री जी के चक्कर में अपनी पोस्टों के शीर्षक भड़काऊ च हड़काऊ रखने की तरफ़ अग्रसर होते से प्रतीत होते हैं। पोस्ट भले भाभीजी ने लिखी हो लेकिन वह मर कर परिवार का भला कर गया शीर्षक नकारात्मक है। एक महिला के सकारात्मक गुण को रेखांकित करने वाला शीर्षक रखने की बजाय ज्ञानजी ने एक पुरुष के नकारात्मक चरित्र को प्रमुखता देने वाला शास्त्रीजी नुमा शीर्षक रखा। इसके लिये महिला चिट्ठाकारों को विरोध करना चाहिये जी। अब भाई ज्ञानजी आप चाहे कुछ कहें कि ये श्रीमतीजी ने रखा था। हमने नहीं। लेकिन हम यही कहेंगे कि जब आपकी पोस्टों पर वे सुझाव देती हैं तो आप ऐसा क्यों नहीं किये। भाभीजी के खिलाफ़ हम कुच्छ नहीं कह रहे। वे तो बहुत अच्छा लिखतीं हैं। स्वभाव भी अच्छा है। हमको दो कप चाय पिलाई है जी! नमकीन भी खिलाई है।
शास्त्रीजी के बारे में क्या लिखें? आजकल वे अपने दुख के दाग गिन रहे हैं। अध्यापकों ने उनको धोखा दे दिया, इनीशियल एडवांटेज न मिला, बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि मिल गई! पीएचडी करते ही किताबों की बरसात होने लगी। शास्त्रीजी का परेशानियां देखकर मुझे बरबस ऊ वाला शेर याद आ गया:
एक दो जख्म नहीं, सारा बदन है जख्मी,
दर्द बेचारा परेशान है ,कहां से उठे।
आपको लगता होगा कि हम पहेलियां बुझा रहे हैं ताउ की तरह। लेकिन भाई आपसे पहेलियां बुझाकर हमें चर्चा का फटूरे थोड़े ही खराब करना है। हम तो आपसे परिचय बढ़ाना चाहते हैं जैसा कि सीमाजी ने लिख भी दिया:
संध्या की हर साँस है घायल,
गुमसुम तारों की है झिलमिल,
कोपभवन जा छिपी चांदनी,
आँगन सूना नैन का
अब अगर हम आपसे बूझो तो जानेकी तरह पूछ लें कि भाई जब संध्या की सांस घायल हो जाती है तो उसका इलाज किस अस्पताल में कराया जायेगा तो आप तो कुछ न बता पाओगे लेकिन वो पोयटिक जस्टिस वाले लोग हमारे धुर्रे बिखेर देंगे। फ़िर डा.अनुराग आर्य भी न बचानें आयेंगे काहे से कि वे खुद जिंदगी की दौड़ में पिले पड़े हैं! वैसे डाक्साब की कुछ मुलाहिजा फ़रमाने वाली समस्याओं पर हमारे कुछ खुराफ़ाती सुझाव पेश हैं:
रात के दो बजे शहर के बीचों-बीच बने शानदार पुल पर आप अपने दोस्तो के साथ pee कर रहे हो ओर अचानक पुलिस की गाड़ी आपके पीछे आकर खड़ी हो जाये ओर आपको जिप भी बंद करने का मौका न मिले .......
यही वह समय है जब आप तय कर सकते हैं- आज से और अभी से धोतिकापरसाद बन जायेंगे। जिप न रहेगी न फ़ंसेगी।किसी पिक्चर हॉल मे आप बार बार सीटी बजा रहे हो ओर इंटरवल मे लाइट जलने पर आपको मालूम चले की मेडीसिन का खडूस हेड आपके ठीक पीछे बैठा मूवी देख रहा है ओर आप इस साल एक्साम गोइंग है .....
और खडूस हेड आपसे शरमाते हुये कहे- यार डाक्टर आने में देर हो गयी। पिक्चर कित्ती निकल गयी? तुम मुझे इंटरवल में स्टोरी सुना देना।किसी रोज मूवी के दो टिकट एक्स्ट्रा होने पर आप उन्हें ब्लैक करने की सोचे ओर उस लड़की से टकरा जाये जिसे आप पिछले दो महीनों से इम्प्रेस करने की कोशिश कर रहे हो........
और लड़की आपसे मनुहार करते हुये कहने लगे- मुझे भी सिखाओ न ब्लैक करना, प्लीईईईईईज! हाऊ स्वीट आर यूपहले साल आपने जिस लड़की को अपना कविताई प्रेम पत्र दिया हो वो तीसरे साल आकर हामी भर दे .......ठीक उसी रोज आप अब अपनी "लेटेस्ट " को प्रपोज़ करने के लिए केन्टीन में कार्ड जेब में रखे उसके साथ बैठे हो.... ?????
उसी समय आपको लगता है कि भगवान भी कित्ता खडूस ब्लागर है। कित्ती देर से प्रार्थना अप्रूव करता है।
इसके बाद आपका एक त्रिवेणी सुनाने का मन करेगा। ऐं-वैं टाइप है। इसे पढ़ने के बाद आपको डा.अनुराग की त्रिवेणियां और अच्छी लगेंगी:
चर्चा अभी खतम भी नहीं किये लोग कसमसाने लगे,
ये क्या लिखा, ये क्यों लिखा , सब भुनभुनाने लगे!
सूरज निकले तो माहौल कुछ गुनगुना सा लगे, कुछ बर्फ़ पिघले।
नैतिकता पर घणी बहस हो रही है। लेक्चर भी फ़टकारा जा रहा है। अब तो सन २००८ लग लिया जी। नैतिकता की जो परिभाषा सन ६५ में श्रीमान श्रीलाल शुक्ल ने बताई थी वही चल रही है सब जगह। कहते गयादीनजी:
"उनकी निगाह एक कोने की ओर चली गयी। वहां लकड़ी की एक टूटी-फ़ूटी चौकी पड़ी थी। उसकी ओर उंगली उठाकर गयादीन ने कहां,"नैतिकता, समझ लो कि यही चौकी है। एक कोने में पड़ी है। सभा-सोसायटी के वक्त इस पर चादर बिछा दी जाती है। तब बड़ी बढ़िया दिखती है। इस पर चढ़कर लेक्चर फ़टकार दिया जाता है। यह उसी के लिए है।"
वैसे किसी को क्या कहा जाये। भांति भाँती नहीं बच्चे ’भांति-भांति के ब्लागर’ मौजूद हैं यहां पर। हमको आज पहली बार एक अदद झंडा साथ में न होने का अफ़सोस हो रहा है। हम झंडा उठाऊ ब्लागर की अहर्ता पूरी करने में सिर्फ़ कुछ झंडों की वजह से रह गये। झंडा उठाऊ ब्लागर की हर फ़टे में टांग अड़ाने की पात्रता तो हम पूरी ही करते हैं। हम तो बहुत पहले से आवाहन कर रहे हैं:
मुश्किलों में मुस्कराना सीखिये,
हर फ़टे में टांग अड़ाना सीखिये।
काम की बात तो सब करते हैं,
आप बेसिर-पैर की उड़ाना सीखिये।
सुनीता शानू का सपना है:
सूने मन में बातें होंगी
चिडियों सी
चहचहाहट होगी
रंग-बिरंगी तितली के जैसी
खूशबू होगी
छूकर मुझको यहाँ-वहाँ
फ़ैलेगी वो
जाने कहाँ-कहाँ..
अमृता प्रीतम की लेखनी को आप गुलजार की आवाज में सुन सकते हैं पारुल के ब्लाग पर।
चक्रधर जी के अनुसार २४ दिसम्बर, वुधवार के दिन 16वीं जयजयवंती साहित्य-संगोष्ठी का विषय रहेगा
हिन्दी का भविष्य और भविष्य की हिन्दी
ब्लॉग-पाठ : एक सिलसिला
इस सिलसिले में जो ब्लागर ब्लाग पाठ करेंगे उनके नाम हैं-श्रीमती प्रत्यक्षा, डॉ. आलोक पुराणिक, श्री रवीश कुमार, श्री अविनाश वाचस्पति एवं श्रीमती संगीता मनराल! दिल्ली के आसपास के लोग पहुंचे और ब्लागरों की उपस्थिति दर्शायें। ब्लाग पाठ को सफ़ल बनायें।
संजय तिवारी से मिले दो साल होने को आये। पता चला कि उनको इस साल के लिये फीचर राइटर कैटेगरी में मदन मोहन मालवीय पुरस्कार (Madan Mohan Malviya Puraskar) के लिये चुना गया है.
यह पुरस्कार कल 21 दिसम्बर 2008 को मेवाड़ संस्थान, सेक्टर 4-सी, वसुंधरा, गाजियाबाद में श्री प्रभाष जोशी जी के हाथों दिया जायेगा और कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री नामवर सिंह जी करेंगे.
मैं संजय तिवारी को इस मौके पर मुबारकबाद देता हूं। आगे भी तमाम इनाम मिलें उनको।
चलिये अब कुछ नये चिट्ठाकारों के बारे में बतियायें
कल १३ नये चिट्ठाकार चिट्ठाजगत से जुड़े। धड़ाधड़ महाराज की भाषा में इन्द्रजाल में नवपदार्पण करने वाली इन कलियों का टिप्पणी रूपी भ्रमरों द्वारा स्वागत करें!
1. कबीर हास्पिटल डेस्क फ़ीस है केवल आपकी मुस्कान
2.अरे मेरी भी तो सुनो: अरे सुनाओ भाई संदीप। पंतग उड़ाओ पेंच लड़ाओ।
3. संजय का बुंदेलखंड:हमारा भी है भाई थोड़ा सा
4. मतदाता नहीं हो: तो क्या हुआ डाक्टर तो हैं संधूजी
5. केटी की कांव-कांव: हिंदी में केवल तिवारी
6. सत्ता का गलियारा: बजरिये रंजन जैदी
7. मिशन हिंदुस्तान: चालू आहे
8. साफ़्टेक ग्रुप:विजय गोस्वामी के माध्यम से
9. दीवाना :राज कहता है-
सुर्ख गुलाब की महक है दोस्ती
10. हमार बलिया: जिला घर बा त कौन बात क डर बा?
11. जबाबतलब: के लिये विजय शंकर पूछते हैं- बाघ को वियाग्रा क्यों दिया गया?
12. अवध-प्रवास::[|फैजाबाद|]ई नेक काम करेव अन्योनास्तिजी
13. मेरा रंगीला मारवाड़: पेश कर रहे हैं देवेन्द्र कुमार चौधरी
इन चिट्ठों की एक बात खास है कि ई-गुरू राजीव सबके फ़ालोवर बने हुये हैं। लगता है राजीव सबसे ज्यादा चिट्ठों के फ़ालोवर का रिकार्ड बना के ही मानेंगे। लगता है वे नये ब्लाग पर टिपियाते बाद में हैं फ़ालोवर पहिले बनते हैं! का कहते हो ई-गुरू? लखनऊ के राजीव से अभी तक बतियाना कैसे नहीं हुआ। इसकी जांच करानी पड़ेगी। राजीव एक स्वागती टिप्प्णी में लिखते हैं:हिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं ई-गुरु राजीव हार्दिक स्वागत करता हूँ.
मेरी इच्छा है कि आपका यह ब्लॉग सफलता की नई-नई ऊँचाइयों को छुए. यह ब्लॉग प्रेरणादायी और लोकप्रिय बने.
यदि कोई सहायता चाहिए तो खुलकर पूछें यहाँ सभी आपकी सहायता के लिए तैयार हैं.
साथ में जरूरी कड़ी का लिंक उनकी टिप्पणी को मूल्यवान बनाता है। गुरू बहुत गुरू हैं।
अब कुछ एक लाइना हो जायें
- अनिश्चितता और अविश्वास का आतंक:फ़ैलाये हैं आलोक पुराणिक इतवार को भी
- छुट्टियां: खतम होने पर पूजा पाँव पटकते स्कूल जाना शुरू कर देती थीं! आप क्या करते थे?
- उन्हें युद्ध चाहिए, हर कीमत पर: उनकी छोड़ो, अपनी बतायें आप क्या चाहते हैं?
- हमारे भाईज़ान पर एक गज़ल : जैसे कि छम-छम सी चलती हुई कोई लड़की!
- लाटसाब बचे हैं, लपटनसाब गए... :लाट साहब की खाट भी खड़ी हो जायेगी
- एक नन्हा सपना : मन में सोये तार बजे, सपनों ने ली अंगड़ाई
- हमारा समाज ईमानदार नही रहा: ये सब आधुनिकता के साइड इफ़ेक्ट हैं
- उम्र बीत जाती है एक घर बनाने में :दो मिनट लगते हैं उसे ठिकाने लगाने में
- आज का दिन- यूँ ही ब्लागिंग और रब ने बना दी जोड़ी : सब आज ही हुआ मानसी ?
- करो पलायन तुम भी...:निकल लो पतली गली से
- मन है पाकिस्तानी :क्या कह रहे हैं जानी?
- क्या अध्यापकों को बच्चों की पिटाई करने का अधिकार है?: अधिकार तो हासिल किया जाता है
- वेंगसरकर के भोंकने के बाद ही : दीवार खड़ी होती है
- भूलना नहीं आज पोलीयो रविवार है!! :सरपट दौड़ते हुये जाना
- मज़ाक एक गंभीर अवधारणा का नाम है : लेकिन गंभीर लोग मजाक खाली मजाक समझते हैं
- गांव को स्वर्ग तो बना चुके, अब शहर बसाएंगे! : सबको कायदे हिल्ले लगायेंगे
ग्वालियर मेला में विभिन्न पशु प्रतियोगिताएं आयोजित होगी : ब्लागर लोग भाग लें!- यादें :का प्रयोग करने के पहले बैरागी जी का संदर्भ दें
- कल की बात : आज सुनायेंगे भूतनाथ जी?
- ताजे दोहे :पढ़ने के लिये प्रदीप मानोरिया के यहां आइये
- फिर वही शुरुआत : फ़िर वही घिसी पिटी बात- अपने हाथों में तेरा हाथ चाहता हूँ।
- छ्त्रसाल की मां : एक नाटक
- पुलिसवाले बसों और ट्रेनों में बिना टिकट सफर करते हैं : वे सच्चे पर्यावरण मित्र हैं। नोट और टिकट दोनों का कागज बचाते हैं।
- एक सुबह भीगी सी!:तौलिये से पोछ् लो भाई मन्टू
- बहुत झूठ बोल चुका,अब सिर्फ़ सच बोलूंगा,फ़िर मत कहना सब सच-सच क्यो बक़ दिये। : सच-झूठ चलता रहेगा भाई पहिले जरा पानी पी लो, पारा उतार लो
- अंतुले जी, कृपया जिन्ना की राह न चलें! : यहां अपने यहां तमाम राहे हैं उसी तरह की उनको पकड़ें, चलें
- बचपन के अनोखे दिन:बुढौती तक पीछा करते हैं ससुर
- किसानों को जो रास्ता मिलेगा.. बच्चों को.. हमारे भविष्य को? : क्या मिलेगा कुछ सोचा कभी? अदबदाकर हुये ही सही!
- कौन: तुम कौन , मैं कौन बोलिये- तोड़िये ये मौन
- खामोश समंदर प्यासा है... : इसको एक ठो कोकाकोला पिलाओ
और अंत में
अब इत्ता खटपटाने के बाद कुछ बचा नहीं है। इतवार का दिन फ़्री रहता है लेकिन सब दूसरी ताकतों के हाथ में। सब की-बोर्ड से दूर धकेलने की साजिश करती हैं।
कल रात शुरू किये थे चर्चा करना। अब जब पोस्ट करने जा रहे हैं तो दिन आधा निकल गया। गया सो गया। अब उसका क्या रोना? आयेगा क्या लौटके रोने से? इसके बाद का दिन क्या तो मजेदार बीतेगा?
कल की चर्चा में आलोक के जुड़ने से चर्चा को नया आयाम मिला। संजय बेंगानी कभी नियमित चर्चा करते थे। कुछ व्यस्तता के चलते और कुछ लोगों द्वारा वर्तनी के लिये टोंके जाने पर वे असक्रिय हो गये। पहली मुलाकात में ही संजय बेंगाणी को हिंदी-गुजराती चिट्ठों की चर्चा के लिये पकड़ना है। देखते हैं कित्ता बच पाते हैं।
बकिया चकाचक। कल कविताजी चर्चा पेश करेंगी। कुछ और नये अंदाज में। मंगलवार को विवेक सिंह हाजिर होंगे। विवेक की पिछली चर्चा में शायद अभी तक की चर्चा की सबसे अधिक टिप्पणियां मिलीं। विवेक और कुश जिस दिन चर्चा करते हैं उस दिन लोग हाथ खोल के टिपियाते हैं। ये चर्चा जगत की लगता है सबसे पापुलर जोड़ी है।
ये तस्वीर सुनीता शानू की ब्लाग पोस्ट से साभार
धन्य हो चर्चाकार शिरोमणि ! आज तो महाचर्चा कर डाली !
जवाब देंहटाएंहमें क्यों चने के पेड पर चढा रहे हो गुरु ? सब आपकी ही तो माया है आका !ये तो वही बात हो गई कि दाम कटें घनश्याम के , छज्जन खेलै होरी !
वैसे कार्टून छा गया !
अभी तो केवल बधाई दूँगी कि इतनी विस्तृत चर्चा का धैर्य कैसे जुटाते हैं आप? कमाल है। इस बार तो खूब रंगबिरंग भी हो रहा है।
जवाब देंहटाएंमुस्कुराते हुए चेहरे!.. आपकी गत दिनों वाली पोस्ट याद आ गई।
चुन चुन कर कतार में लगा दिया आपने मुस्कुराते हुए फोटुओं को.
टिप्पणी नं. २ थोड़ा बाद में लिखूँगी, तब तक आप अपने बहाने पर इतवार के दिन इत-उत इतराइये।
शानदार महाचर्चा !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुलझी हुई महाचर्चा के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंहम भी आपकी चिठ्ठाचर्चा के ई-गुरु हैं; माने कि फालोअर! हम बस उलट करते हैं। टिप्पणी पहले करते हैं, आपकी पोस्ट फालोआते(पढ़ते) बाद में हैं! :-)
जवाब देंहटाएंआज सुना हैं कही समन्दर मे नेट का केबल उबल कट गया है ! इसी करके हमारा नेट बहुर पुराने जमाने के जैसा काम कर रहा है ! बडा जोड तोड लगा के यहां तक पहुंचे हैं ! आपका कल वाला लिंक भी नही खुल रहा है ! शायद ये समस्या रहेगी ! हम यहां इस लिये कह रहे हैं कि इस वजह से BSNL और AIR TEL वालो को ज्यादा दिक्कत आ रही है ! आज तो रविवार है पर कल शायद और परेशानी होगी !
जवाब देंहटाएंखैर आप काफ़ी मटुरे (mature) हैं तो चिट्ठा चर्चा का फ़टुरे (future) खराब नही होगा वर्ना अपना लठ्ठ फ़टुरे सुधारने के काम आयेगा ! :)
रामराम !
अर्ज किया है -
जवाब देंहटाएंभैया वैया के मामले तक तो ठीक है,और पति द्वारा पत्नी को या पत्न्ती द्वार पति को (परस्पर)कितनी भी तरह के सम्बोधन से बुलाएँ, पर इन सम्बोधनों का प्रयोग क्या कोई तीसरा या इतर भी ऐसे ही करता है?
अब जैसे पति शब्द है, पति यानि जो स्त्री की पत रख सके/या रखे.
पर फिर भी पत रखने वाला हर व्यक्ति हर किसी का पति नहीं कहा जा सकता ना, इसी तरह आर्य (अर्थात् श्रेष्ठ, बकौल ‘महाभाष्यकार’)
के पुत्र को हर कोई आर्यपुत्र नहीं कह सकता। वैसे संस्कृत की समास पद्धति की खाल खींचनी हो तो एक अर्थ आर्य(श्रेष्ठ) पुत्र(सन्तान)का देने हारा। जरूरी नहीं कि ‘आर्य का पुत्र’ बल्कि ‘पुत्रों में आर्य’ या ‘पुत्र हो आर्य जिसका’.
खैर, खतरा तो विवेक को होने वाला है, क्योंकि पति‘पत रखने वाला’(बकौल भगवतीचरण वर्मा) अगर किसी को भी कोई भी कह दे तो सबे बड़ा खतरा पानीपत वासियों को होगा। वहाँ तो पत पर्मानेण्ट है। पता नहीं कौन कब क्या बुला बैठे वहाँ ....
रंग जमा दिया आपने इस बार ! मेरी अल्प समझ में जैसे आर्यजन .वैसे ही आर्यपुत्र ! लेकिन कविता जी ने संस्कृत साहित्य से इस शब्द के अर्थबोध को उधृत किया है -जो सही लगता है क्योंकि संबोधन की /में गरिमा के लिए आदि रचनाकारों ने नारी को अपने पति के लिए इस शब्द को उपयोगार्थ अधिक उपयुक्त और व्यवहार्य पाया होगा ! पहले तो सीधे नाम लेकर पति को संबोधन करने की 'अशिष्टता' की कल्पना भी नही की जा सकती थी तो ऐसे ही शब्दों का सहज ही ईजाद हमारे मनीषियों ने किया होगा !
जवाब देंहटाएंचर्चा तो सही ही हैं पर चित्रों मे घाल पेल हैं . ज्ञान २००८ और रीता १९६० ??
जवाब देंहटाएंमेरे सवालों पर ध्यान देने के लिए धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंआपने जो कुछ लिखा उससे हमें यही समझ में आया की हिन्दी के पहले ब्लोगर आलोक जी हैं .
और चिट्ठा नाम उन्होंने ही सुझाया हुआ है
क्या हिन्दी में सक्रीय सबसे पुराने ब्लोगर भी आलोक जी ही हैं?
उनके नाम के बाद प्रश्नचिन्ह का भी क्या कोई मतलब है?
प्रश्नचिंह ख्यात के पहले है। आदि चिट्ठाकार आलोक विख्यात हैं या कुख्यात यह तय न हुआ इसलिये प्रश्नचिंह!
जवाब देंहटाएंआज की बहुआयामी व बहुरंगी चर्चा तो खुद ही चर्चा योग्य है।
जवाब देंहटाएंजो थोड़ा-मोड़ा जानकारी मुझे है उसके अनुसार 'जी' शब्द 'आर्य' से ही बना है। 'जी' संबोधन का इस्तेमाल भी बहुधा पत्नी पति के लिए करती है, जैसे - 'सुनते हो जी।' लेकिन अन्य लोगों के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है। इसी प्रकार 'आर्य' या 'आर्यपुत्र' संबोधन का इस्तेमाल आम तौर पर पत्नी पति के लिए करती रही है। लेकिन इसका इस्तेमाल अन्य लोगों के लिए भी हो सकता है।
वैसे यह मेरी व्यक्तिगत राय है..अपनी बात के अकाट्य होने का दावा मैं नहीं कर रहा।
एक लाइना पर तो आपकी बादशाहत कायम है .
जवाब देंहटाएंकुछ खोजने पर मुझे दो लोग अप्रैल २००३ से पहले के मिले हैं एक V9Y उनका नाम विनय होगा जुलाई २००१ से ब्लोगर पर हैं और एक रौशन सितम्बर २००२ से
जवाब देंहटाएंv9y २३ अक्तूबर २००२ को हिन्दी में लिखा है पर रौशन का पुराना रिकार्ड नही मिल रहा है
v9y और रोशन दोनों सक्रीय दीखते हैं v9y ने अन्तिम पोस्ट सितम्बर २००८ को और रोशन ने दिसम्बर २००८ को की है . क्या
जवाब देंहटाएंप्रश्नचिन्ह का मतलब यही था की कुछ निश्चित पता नही है?
रोशन का पुराना रिकार्ड नही दिख रहा है पर v9y ने अपने पुराने ब्लॉग पर हिन्दी में लिखा है. ये नही पता चल रहा की वो कॉपी किया हुआ है या लिखा हुआ
वाह भाई वाह !!
जवाब देंहटाएंयह हुई न फुर्सत से भरी रविवारी महाचर्चा!!!!
बढिया, चित्रमयी, विचित्रमयी चर्चा जिसपर संस्कृतदां और हमारे जैसे पानदां सुन पढ रहे हैं :) शुक्लजी भी बैठे-बैठे खडे हो गए उसी नेता की तरह जो एलेक्सन में बैठे बैठे ही खडे हो जाते है। हो भी क्यों ना - आखिर शुक्लाजी ब्लागर-नेता जो ठहरे [मस्का?] नहीं जी। [यह जी किसी और मतलब से नहीं]
जवाब देंहटाएं>आर्यपुत्र तो आर्यपुत्र जाने, पर शकुंतला ने दुश्यंत को अनार्य कहा था जव उसने पहचानने से इन्कार कर दिया था। बेचार अनजाने ही आर्यपुत्र जो बन गया था!
>‘मटरगश्ती’ करना है तो हल्का-फुलका ही रहना चाहिए। भारी-भरकम पराठा या वज़नदार पीज़ा हो तो - हज़म नहीं होता!!
>परसाईं जी ने स्त्री सशक्तीकरण की श्रेष्ठतम मिसाल देकर परिवार को बचा लिया। अब आर्यपुत्र और प्रेमी मिलजुल कर परिवार नियोजन की योजना बना सकते हैं।
>कविताजी और विवेकजी को दो दिन बुक करके फुरसतिया फुर्स्त से गुज़ारने का अच्छा प्रोग्राम बनाया लगता है। नैनिताल की वादियां तो नहीं बुला रही हैं????
आर्यपुत्र के विश्लेषण ने चिट्ठा-चर्चा को नया रंग दे दिया
जवाब देंहटाएंपूरी प्रस्तुती बड़े ही रोचक ढ़ंग से हुई है...बधाई
Every aspect has already been coomented upon..
जवाब देंहटाएंso, Nothing is left uncovered for my comment.
really, A nice and evergreen format.
wah! wah! wah!
जवाब देंहटाएंkya baat hai
maja aa gaya.
sunder evam shashwat
जवाब देंहटाएंachhee charcha
शानदार
जवाब देंहटाएं" gjab ki charcha, jaandar or shandar.."
जवाब देंहटाएंRegards
चित्रमय चर्चा है भाई...चित्रमय .पर आपकी नजर की दाद देगे........आखिरी फोटुवा गजब है.....लाइना भी.
जवाब देंहटाएंचर्चा का यह नया अन्दाज़ है ..बधाई ।
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