दोपहर में की गई चिट्ठाचर्चा में समय के अभाव में एक लाईना नहीं लिख सका था. अनूप जी की नक़ल करते हुए वादा भी कर डाला कि एक लाईना रात में पेश करूंगा.
इस तरह के वादे का एक कारण यह भी था कि दोपहर में की गई चिट्ठाचर्चा बड़ी हो गई थी. मुझे लगा एक लाईना भी लिखने गए तो साथी चिट्ठाकार सोचेंगे कि; "क्या बात है? आजकल इसे और कोई काम नहीं है क्या?"
यही कारण था कि रात को एक लाईना लिखने का वादा कर डाला.
खैर, पेश है कुछ
एक लाईना
- ये तस्वीर कुछ बोलती है: थर्ड आई से सभी को तोलती है.
- जो किसी की प्यास बुझाना चाहते हैं: लोटा भर पानी ले आयें.
- मस्ती की लुकाठी लेकर चल रहा हूँ: लेकिन रास्ता ऊबड़-खाबड़ है.
- उपराष्ट्रपति केवल खेद व्यक्त करते हैं आजकल: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का तकाजा है.
- चुनाव में खड़े होनेवाले उम्मीदवार के लिए क्या योग्यताएं होनी चाहिए?: यही कि वो सपोर्ट से खड़ा हो सके.
- बापू का ख़त: आज मिला है.
- किया न कतई चाँद ने कोई अनुचित काम: धर्म बदल कर व्याह रचाया और कमाया नाम.
- वोट की ताकत: नेता को जिता देती है.
- सिंहासन खली करो कि माया आती है: ये सिंहासन की माया है जो खींच कर लाती है.
- आज फिर वही बात है: वही दिन और वही रात है.
- बेईमानों की सरकार: ईमानदारों की कमी महसूस कर रही है.
- पल-छिन वो सुहाने वाले: लौटकर अब नहीं आनेवाले.
- नागनाथ, सांपनाथ या अजगरनाथ : कोऊ नृप होई हमें का हानि: हम बैठे किस्मत को मानि.
- ताऊ को मिला चिकेन आलाफूस का पेड़: और सैम सारा चिकेन आलाफूस खा गया.
- ये कैसा प्यार है चाँद मुहम्मद: इसे मोहब्बत-ए-नेता कहते हैं. >
- कुछ तो पिला दे: शरबत नहीं है तो पानी ही दिला दे.
- मां,मात्रभूमि और मात्रभाषा : में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है
- रिश्तों का रीचार्ज : करायें , चाय-समोसा की आसान किस्तों पर
- बच्चा पुलिस !! : बड़का ब्लागर बन गई!!!
- पुरस्कारों की अहमियत: खुद को मिलें तब है!
- आज शाम छत पर: मैं मूँद आँखें तुझे देख रही थी
- मेरी पहली रचना..:पढकर हम यूं ही उलझते रहे/ कुछ कहने से डरते रहे
- मुझे एक नया सूरज चाहिये : बताओ क्या भाव मिलेगा?
- समय का कैक्टस और कमल का फूल : जोड़े से देखो, कैसे दिखते कूल-कूल
- आसमान का रंग : झटपट-पटपट है, देख कर खटपट न हो जाये
- केन्द्रीय विवि बनने से पहले ही भ्रष्टाचार के आरोपों का केन्द्र बना... : क्योंकि कहा है- काल्ह करे सो आज कर
- कलम की जिम्मेदारी और सत्य : हम लोगों के कोई संबंध नहीं है!
- संवेदना जताने वाले : को आकर ब्लाग पोस्ट पर टिपियाना तो चहिये!
- तू प्रणय की रागिनी बन बस गयी मेरे हृदय में.. : बिना किसी किराये के एग्रीमेंट के
- टकटकी सी एक आंखों में रहती हैं : पलक झपका के चैनल बदल दें
- प्रेम अजर है..प्रेम अमर है....!!: लेकिन भैये पैसा कहां है? आलू किधर है?
- शादी का इश्तेहार: हमेशा पत्नी से पूछकर दें
- संत-संयम और शर्म: का आपस में कोई संबंध नहीं है भाई
- तुम्हारी कसम मैं नहीं जानती : तो अपनी कसम खाओ न!
- सब टैम-टैम की बात है: हर घड़ी में अलग-अलग बजना पड़ता है
- आतंक का मुकाबला कौन सा हथियार कर सकता है -- गाँधी गीरी या गोलीगीरी: खुद मुकाबला करना हो तो गांधीगीरी, दूसरे को करना हो तो गोलीगीरी
- जब छत पर बैठे देखा ढलता चांद: डर लगा कि लुढ़क के हमारे ऊपर न गिर पड़े
- क्या भगवान हैं ? : हों तो कहो कि एक दिन चर्चा भी किया करें!
- कौन बचाएगा यहाँ पांचाली की लाज ?: नन अदर दैन यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत: पैकेज वाले गाड द ग्रेट
- दिल्ली में पूर्वांचली मंत्री क्यों नहीं? : ऊ अपना भोट बैंकै नहीं पहचानता है!
हमारी पसंद

जो अभी तक देखा नही गया है.
सबसे खूबसूरत वो बच्चा है
जो अभी तक पैदा नही हुआ है .
सबसे खूबसूरत वो फूल है
जो अभी तक खिला नही है.
सबसे खूबसूरत वो सुबह है
जो अभी आने वाली है.
सबसे खूबसूरत वो शब्द हैं
जो अभी कहे जाने हैं.
और सबसे खूबसूरत वो सन्देश हैं
जो अभी दिए जाने बाकी हैं .
रौशन के ब्लाग से साभार
अंत में:
दोपहर में की गई चिट्ठाचर्चा में कुश की पोस्ट पर चर्चा लम्बी हो गई. इस बात से कुश को भी आश्चर्य हुआ. मेरा मानना है कि हर आश्चर्य और शंका का समाधान करने की कोशिश की जानी चाहिए.
कुश ने अपनी पोस्ट में दो चिट्ठाकारों के लेखन की मिमिक्री की थी. ऐसे में जाहिर सी बात है कि व्यावहारिक दृष्टि से दो पोस्ट की चर्चा हो गई. दो पोस्ट की चर्चा लम्बी होनी ही थी, सो हो गई.
और रही बात ढेर सारे और चिट्ठाकारों के पोस्ट को जगह न मिलने की तो मैंने अपनी टिप्पणी में कारण बताने की कोशिश की थी. आशा है, अगली बार मैं अपनी चर्चा में ढेर सारे चिट्ठों से पोस्ट शामिल करूंगा.
इस बीच रविरतलामी जी उर्फ़ रवि भोपालीजी गब्बरसिंह को भी चर्चाकार बनाने के पवित्र उद्देश्य से ले आये। देख लीजिये। डरियेगा नहीं। गब्बर जब ब्लागर हो गया तो उससे क्या डरना?
कल चिट्ठाचर्चा मसिजीवी जी करेंगे. अगले वृहस्पतिवार तक के लिए आपलोगों से विदा लेता हूँ.
एक लाइना कमाल है मन मोहक. शीर्षकों का प्रतिउत्तर निरुत्तर कर गया
जवाब देंहटाएंbadhiya raha ye bhi..
जवाब देंहटाएंsubah post to padha magar tipiya nahi paaya tha.. tab mujhe bhi thora aaschary hua tha kush ki post ko lekar.. :)
बढ़िया है खूब..........
जवाब देंहटाएंसराह रहा हूँ वह भी बताकर... ह हा!
जवाब देंहटाएंएक लाइना के लिये धन्यवाद, और आपकी पसन्द बहुत प्यारी है.
जवाब देंहटाएं"सबसे खूबसूरत वो शब्द हैं
जो अभी कहे जाने हैं.
और सबसे खूबसूरत वो सन्देश हैं
जो अभी दिए जाने बाकी हैं ."
ये सही है चर्चा किस्तों में इस तरह एक काव्य रचना अधिक मिली। वह भी बहुत ही सुंदर। सबसे खूबसूरत बात तो अब ही होनी है।
जवाब देंहटाएंइंटरवल के बाद का सीन तो एकदम शांत है जी। लगता है गब्बर-साम्बा डायलाग से सभी सक्ते में हैं। डरो नहीं - नकली बंदूक की नकली गोली से। चर्चा तो खैर, इंटरवल के पहले ही जम कर हो गई। रवि रतलांमी उर्फ भूपाली जी का चिट्ठा पढ़ कर सभी को मज़ा आया ही होगा। बकौल फुरसतिया - खुश रहो, मज़ा करो..अरे ओ साम्बा...........
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जवाब देंहटाएंअय हय, क्या बात है ? ला तो जरा, तेरी.. नहीं, कल.. नहीं की-बोर्ड चूम लूँ ।
इसबार कोलकाता आऊँगा, तो यह करके रहूँगा ! बड़ी मस्त एक लाइना और बड़े खूबसूरत लिंक दिये हैं !
अब बड़का बिलागर का अउर कउन पहचान होता है, जी ?
शादी का इश्तेहार: हमेशा पत्नी से पूछकर दें
जवाब देंहटाएंलाजवाब...मजा आ गया एक लाइना मे ...
रा्म राम !
बहुत खूब, एक लाइना का तो जवाब ही नहीं.
जवाब देंहटाएंमजेदार
सुंदर, लाजवाब, अतिउत्तम...
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