ये कोई शोध परिणाम नहीं सीधा साधा अवलोकन है कि कल, बोले तो सांता ताऊ के क्रिसमस वाले दिन चिट्ठे लिखे तो गए लेकिन पढ़े नहीं गए, मतलब कम पढ़े गए। ब्लॉगवाणी के ज्यादा पढ़े गए कॉलम को देखें तो विष्णु बैरागी की पोस्ट निर्लज्ज भी और सीनाजोर भी (सीनाजोर तो निर्लज्ज ही होगा न, माया को देखो) सबसे ऊपर है पर कुल मिलाकर केवल 38 बार पढ़ी गई है।
ऐसे में टिप्पणियॉं भी मात्रा व गुणात्मकता दोनों में कम हो जाती हैं। वैसे अब तो टिप्पणीकार भी पाकिस्तान की तरह ऑंखें तरेरने लगे हैं। देखिए न वेदरत्न शुक्ल पूछते हैं कि इतनी लंबी टिप्पणी मुफ्त में की जाए कि नहीं ? दमदार ब्लॉगर दीप्ति चेन एसएमएस की प्रवृत्ति पर बमकती हुई धमकाती हैं कि इस पोस्ट को खुद भी पढें और दस लोगों को पढ़ने के लिए भी कहें... नही तो... इस तरह वे बताती हैं कि कैसे लोगों की भय वृत्ति पर पलती इन चेनों से अंधविश्वास बढ़ता है। हमें तो बहुत काम की चीज मिली हेडि़ग सो अपना ली। अब अगर किसी साई वाईं को कुछ बुरा करना होगा तो हमें बख्श देगा आखिर हमने उनकी धमकी में कुछ तो ले ही लिया :) । ब्लॉग लिखती स्ित्रयों की चर्चा एक अखबार में हुई जिसकी सूचना नारी ब्लॉग पर आई है। एक सूची भी है - पूर्णिमा , घुघूती , अनीता , सुजाता , नीलिमा , पारुल , बेजी , प्रत्यक्षा , अनुजा , अनुराधा , मीना , सुनीता , वर्षा , पल्लवी , मनविंदर , लावण्या , ममता , शायदा , फिरदोस , अनुजा , रेखा , मीनाक्षी ...
एक टिप्पणी कहती है-
मनीषा जी ,
गुट में शामिल हुए बगैर नाम जोडने का ख्वाब पाले बैठी हैं । गुटबंदी करें या जी हुज़ूरी , फ़िर देखिए ...। वैसे सभी महिला ब्लागरों को चर्चित होने की शुभकामनाएं
हमें इस आरोप ने खुशी दी, इसलिए नहीं कि इसमें कोई सच्चाई है वरन ये खुशी है 'गुटबाजी' की फील्ड में पुरुषों ने जो एकाधिकार जमाया हुआ था उसके धराशाही होने की खुशी।
दूसरी ओर छापे में ब्लॉग चर्चा की एक और सूचना पर ही सवाल उठाते हुए प्रशान्त टिप्पणी करते हैं-
ओह, लगता है फिर से हिंदी ब्लौगिंग का वह दौर लौट रहा है जब कुछ चंद लोगों का ब्लौग चर्चा किसी अखबार में होगा और उस पर सभी ब्लौगिये इतराते फिरेंगे.. कुछ महिने पहले ही यह दौर आकर गया था, फिर से.. मगर कभी क्या किसी ने सोचा है कि जिस अखबार में जिस किसी ब्लौग के बारे में लिखा जाता है वो उस पत्रकार कि पसंद भर ही होता है..
बात कही तो हमें गई है इसलिए ब्लॉग न्याय कहता है कि हमें नाराज होना चाहिए पर हमें बात में दम लगता है।
आज का चित्र हिन्द-युग्म से देखें लिखें चेपें
ये तो हुई चर्चा अब पेश है आमने-सामने
आमने सामने बेहतरीन शरुआत . अब तो नया से नया प्रयोग होगा अपनी चिटठा चर्चा मे . चिटठा कार जिंदाबाद
जवाब देंहटाएंसही रहे जी साँप भी मर गया और लाठी भी न टूटी . हम तो कहते हैं कि मसिजीवी जी को चन्दा करके थोडा समयदान दिया जाय . इनके पास शायद समय की कमी रहती है :)
जवाब देंहटाएंचिट्ठाचर्चा का सबसे आसान तरीका बताए देते हैं . जब समय की कमी हो तो ब्लॉगवाणी का लिंक देना काफी है :)
एक बात बताना तो भूल ही गए . हम आज ही पैदा हुए हैं :)
पूरे तीन बार बत्तीसी दिखा चुके हैं . अब भी बुरा मानेंगे ?
अच्छी चर्चा है। पर क्रिसमस का असर दिखाई पड़ रहा है।
जवाब देंहटाएंमसिजीवीजी ने उन पत्रों की तरह धमकी दी है जिनमें लिखा होता है कि इसकी दस प्रतियाम अपने प्रियजनों को भेजें वर्ना नाश हो जाएगा, तो इसका पालन करना ही है ना! अभी हम पते ढूंढ रहे है- एक तो मसिजीवीजी हैं ही :)
जवाब देंहटाएं>मसिजीवीजी खुश हैं कि गुटबाज़ी का अंतरलिंगीकरण[अंतरराष्ट्रीयकरण की तर्ज़ पर] हो गया है। अब पुरुष के साथ स्त्री भी इस मैदान में खडी हो गई है - बधाई उन्हे। स्त्री सशक्तीकरण की जय!!
>ब्लाग जगत की चर्चा पत्र-पत्रिकाओं में हो तो इसका स्वागत होना चाहिए।क्या ब्लागर भी अपनी चर्चा मे पत्र पत्रिकाओं को आधार बनाकर नहीं लिखते। इस सेतु का स्वागत होना चाहिए।
आमने-सामने मुकाबला करा दिया - बधाई।
अर नहीं द्विवेदी जी, यह क्रिसमस का नहीं उडन त्श्तरी इफ्फेक्ट है-:)
जवाब देंहटाएंआमने-सामने रोचक लगा
जवाब देंहटाएंआमने - सामने अच्छा प्रयोग है । बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया ! आमने सामने जबर्दस्त !
जवाब देंहटाएंरामराम !
खूब मेल मिलाया है :)
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया, भई
जवाब देंहटाएं---
चाँद, बादल, और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com/
गुलाबी कोंपलें
http://www.vinayprajapati.co.cc
"बात कही तो हमें गई है इसलिए ब्लॉग न्याय कहता है कि हमें नाराज होना चाहिए पर हमें बात में दम लगता है।"
जवाब देंहटाएंएक अध्यापक से ही ऐसी शिक्षा मिल सकती है. बाकी, चिट्ठाचर्चा बहुत बढ़िया रही. आमने-सामने तो गजब की रही.
भाई वाह ये भी एक अलग किस्म की चर्चा रही जिसमे भले भले चित्र है.आमने सामने हमने दो बार दिया था कुछ महीने पहले.....आपने इसे नामकरण दे दिया....ओर टेबल रूप .....बहुत भला लगा
जवाब देंहटाएंआमने सामने वाली चर्चा अच्छी लगी !
जवाब देंहटाएंहर बदलाव नयापन संजोये रहता है।
जवाब देंहटाएंसुंदर।
चर्चा बहुत खूब है, लेकिन ऐसी हृस्व चर्चा को सिर्फ चर्चा का एक पेराग्राफ माना जायगा!!
जवाब देंहटाएंहां "ये तो हुई चर्चा अब पेश है आमने-सामने" बहुत अच्छा प्रयोग रहा!!
सस्नेह -- शास्त्री
अच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंक्रिसमस का शिकार मेरी ताजी पोस्ट भी हो गयी। अबतक के न्यूनतम पाठक और विरलतम टिप्पणी।
कल २५ दिसम्बर को गुरुदेव ज्ञानदत्त जी और कविता वाचक्नवी जी के एक साथ दर्शन हुए। वहाँ भी समीर जी की चर्चा होती रही। यह इएक्ट भी लो ट्रैफिक का कारण हो सकता है। सारे ब्लॉगर भाई जबलपुर के जश्न में थे शायद।
वहाँ का आँखों देखा हाल अनूप जी से अपेक्षित है।
जवाब देंहटाएंआमने सामने की क्या बात है !
रेडी-रेकनर है, यह..
डा० अमर कुमार का ’रेडी-रेकन” शब्द ही ज्यादा रुचता है मुझे आमने सामने के लिये.
जवाब देंहटाएंइस नवीन प्रयोग के लिये धन्यवाद.