ब्लागजगत के ये दो धुरंधर आमने-सामने इस लिये नहीं हैं कि ये कोई शास्त्रार्थ करने जा रहे हैं या फ़िर जबाबी कव्वाली का कोई आयोजन हो रहा है। चुनाव में भी तो नहिऐं खड़े हो रहे हैं। ई इस लिये आमने-सामने हैं काहे से कि दोनों महानुभाव कल अपने-अपने ब्लाग की सालगिरह मनाते पाये गये।
कल समीरलालजी ने अपने ब्लाग के तीन साल और ज्ञानजी ने दो साल पूरे कर लिये। अब टेंट से कोई पईसा तो जाना नहीं था इसलिये समीरलाल’भर्चुअल’केक भी खिला दिये। ज्ञानजी ने बोले -समय की कमी के कारण तीसरे साल में मैं १६०-१७० पोस्टें लिख पाऊं तो एक उपलब्धि होगी द्विवेदीजी वकीलाना अंदाज में कहे-पर मेरा अनुभव कहता है कि सब से अधिक कठिन समय में सब से अच्छा और तेज गति लेखन किया जा सकता है।
समीरलाल को बधाई देते हुये वरिष्ठ ब्लागर संजय बेंगाणी ने सुखद टिप्पणी करी- बच्चे कितनी जल्दी बड़े हो जाते है! :) तीसरा जन्मदिन मुबारक!
वैसे आजकल के बच्चों का मन सिनेमा में बहुत लगता है। सो समीरलाल भी ब्लागिंग की सालगिरह पर ब्लागिंग के अनुभव बताने की बजाय दिल्ली-६ के किस्से सुनाने लगे।
दोनों धुरंधर ब्लागरों को उनका ब्लाग बर्थ डे मुबारक हो।
अनिल कान्त से एक ऐसी भूल हो गयी जिसका वे आजतक प्रायश्चित न कर सके। आप भी देख लो ताकि ऐसी भूल करने से बच सकें।
ये जो पूजा मैडम हैं न! आजकल बड़ा तरह-तरह की रिसर्च करने लगी हैं। अब बताओ गायक, कवि और ब्लागर पर शोध कर डाला। ब्लागर भी अईसा-वईसा नहीं जलन्तू टाइप का। हमें लगा कि ई मैडम तो बड़ी खतरनाक हैं सब बातें हमारे बारे में लिख डालीं। लेकिन अब जब देखा नाम तो लिखा नहीं हैं हमारा जलन्तू ब्लागर की जगह तो एक ठो सुकून की और दो ठो सन्तोष की सांस ले के डाल ली सीने में। वईसे जैसा मैडम पूजा खुद कबूल करती हैं-कुछ लोगो को जिंदगी भर खुराफात का कीड़ा काटे रहता है। हम अपनेआप को इसी श्रेणी का प्राणी मानते हैं जिन्हें कुछ पल चैन से बैठा नहीं जाता है... ये बहुत खुराफ़ाती ब्लागर हैं। अब गद्य लेखन( मतलब गदहा लेखन) करती हैं तो इनकी खुराफ़ात में चार ठो चांद लग जाते हैं एक के साथ तीन फ़्री वाली डिस्काऊंट स्कीम के तहत!
बनारस में पिछले दिन दो ब्लागर भेंटाये। पता नहीं गाना बजाया गया कि नहीं- दो ब्लागरों का मिलन है जमीं पे आज की रात! लेकिन अरविन्द मिश्र जी ने इसे युवा ऊर्जा से लबरेज और पुरूष रजोनिवृत्ति के कगार पर आ पहुँचे ब्लागरों का मिलन बताया। अब आप अभिषेक की जबानी मिलन की कहानी खुदै बांच लीजिये। युवा ऊर्जा से लबरेज पुरुष रजोनिवृत्ति के कगार पर पहुंचे ब्लागर बन्धुओं की तथा खाने की फोटॊ देख लीजिये। ललचाइये नहीं अभी तो सब आभासी है जी!
अमित भले ही सात सौ की हैरी पाटर खरीद के गच्च हो रहे हैं लेकिन राग दरबारी जो सालों से पेपरबैक में सालों से आ रही है उसका हार्डबांऊड संस्करण खरीदते पाये गये। हालांकि रागदरबारी किताब ऐसी है कि पांच सौ में भी मिले तो खरीद के रखने लायक है लेकिन हवा-हवाई दुकानों से किताबें का यही नुकसान भी रहता है भाई कि केवल मंहगे संस्करण बिकते हैं वहां। राजकमल प्रकाशन की किताबें अगर नियमित खरीदनी हों तो उनकी पुस्तक मित्र योजना का सदस्य बनकर 25% छूट पायें और साल में 200 रुपये के पुस्तक उपहार मुफ़्त में। दिल्ली वालों के लिये तो यह खासकर लाभप्रद है।
इन्दौर के मुकेश कुमार तिवारी जी कवितायें कम लिखते हैं लेकिन जब लिखते हैं तो लगता है हमारी बात लिख रहे हैं! उनकी कविता लड़कियां तितली सी होती हैंमुझे बेहद पसंद है:
लड़कियां,
सुबह के ख्वाब सी होती हैं
जी चाहता हैं आँखों में बसी रहे
हरदम और लुभाती रहे
मुस्कुराहट सी होती हैं
सजी रह्ती हैं होठों पर
कल उन्होंने लिखा:
तुम,
अक्सर मुझे आवाज देती हो
मैं जब भी उतर चुका होता हूँ
दो चार सीढ़ियॉ
फिर,
मेरे लौट के आने पर
भेज देती हो उल्टे पाँव
कहते हुये
रहने दो, कुछ नही बस यूँ ही
कविता पूरी है लेकिन लगता है इसको अभी और लिखा जाना जरूरी है।
कल सीमाजी ने लिखा:
एक अधूरे गीत का
मुखडा मात्र हूँ,
तुम चाहो तो
छेड़ दो कोई तार सुर का
एक मधुर संगीत में
मै ढल जाऊंगा ......
उनकी पीड़ा से लबरेज कविताओं से अलग नयी तरह की कविता लगी यह मुझे। आप बताइये कैसी है?
एक लाईना
- आओ, ब्लॉग सालगिरह का केक तो खाते जाओ!! : पहिले बताओ इसमें अण्डा तो नहीं पड़ा है जी!
- दो साल : एक और बवाल
- गायक, कवि और जलन्तु ब्लॉगर : से बचकर रहें!
- दो ब्लागर शहर में :खाने की मेज पर पकड़े गये!
- राग दरबारी और हिन्दी पुस्तकों पर कंजूसी:मंहगी किताब खरीद कर कम्पनसेट करी गयी
- फुरसतिया, शास्त्रार्थ, भडकीले शीर्षक! : के बाद ताऊ जी, भाटिया जी, ज्ञान जी, सुब्रमनियन जी और ….गये काम से!
- शबनम सी रखिये ताजगी : सूरज आयेगा वाट लगेगी!
- कहा-सुना:तो माफ़ करने का रिवाज है!
- "तुम चाहो तो" :टिपिया ही दें!
- मंदी में नियोक्ताओं की उन के कामगारों को काम देने में असमर्थता और उस से संबंधित कानून :तोड़ने के उपाय बताइये जी
- अब चाहिए एक हाइब्रिड नेता...।: चुनाव में अचार डालने के लिये!
और अंत में
फ़िर वही रोना। होली के मौसम में लगता है सब चर्चाकार मौज लेने में लगे हैं हमसे। बजरंगबली भक्त विवेक सिंह ने कल खबर भेजी कि उनका कम्प्यूटर बिगड़ गया सो वे चर्चा न कर पायेंगे आज!
लिहाजा हमें फ़िर आपको बोर करने हाजिर होना पड़ा।
चलिये अब तो झेल लिये। अब क्या परेशानी।
मस्त रहिये। दिन चकाचक बिताइये। कुछ सुनाइये! न समझ में आये तो यहीं टिपियाइये! आइये शुरू हो जाइये!
ललचायें न लोग और आप शुक्ल जी ,सभी को बनारस आने खिलाने और नहलाने का नेह निमत्रण ! थालियाँ ही थालियाँ कोई भी खाएं तो .......!
जवाब देंहटाएंजब आप कहते हैं कि "मेरा अनुभव कहता है कि सब से अधिक कठिन समय में सब से अच्छा और तेज गति लेखन किया जा सकता है।"... मैं सहमती मैं हाथ खडा करता हूँ --:)
जवाब देंहटाएंचर्चा बेहतरीन है। बहुत दिनों बाद इस तरह की चर्चा देखने को मिली कि एक सांस में पढ़ कर पचा ली जाए। आप ने तोड़ने के उपाय पूछे हैं। वे तो सब नियोजकों को पता हैं। समस्या ये है कि जोड़ने को कोई फेविकोल नहीं मिल रहा है।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंहाँऽऽ.. यही तो ?
सही तो कह रहें हैं, भाई साहब !
जरा देखिये तो, बच्चे कितनी जल्दी बड़े हो जाते हैं :)
यह भी कोई बात हुई, बच्चे बड़े हो जाते हैं, हाँऽऽ.. नहीं तो ?
बच्चों से कोई क्यों नहीं कहता, कि बच्चे हैं तो बच्चे ही बने रहें,
बड़े होने की ज़रूरत ही क्या है, कुछ नहीं तो..
बैठे बैठे अपने संग दूसरों का भी टाइमखोटी करने के दिन ही गिन रहे हैं,, एक दो तीन
इसके बाद मुआ चार भी आ जायेगा, हाँ नहीं तो ?
बेहतरीन चर्चा. ज्ञान जी को पुनः बधाई.
जवाब देंहटाएंशुरू तो गए हैं जी...दिन की शुरुआत यहीं टिपण्णी करने से हो रही है, उम्मीद है दिन चकाचक बीतेगा. चर्चा मस्त रही...और सबसे बड़ी बात की हमें कुछ हिंदी किताबों का ठिकाना मिल गया वरना हम बड़े दुखी प्राणी थे. और हमारे लिए तीन ठो चाँद discount में देने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंhum ye sab charcha aaj par rahe hain, isliye sabse pehle -
जवाब देंहटाएंTauji ko janamdin ki der se badhai uske baad sameerji, aur gyanji ko 3 aur 2 saal ke hone per badhai ;)
Teen ke Teen bachhe kitne bare bare ho gaye hain lekin chehre se teeno ki abhi bhi wohi masumiyat tapakti hai......
पहले पता होता तो कल ही एक टिप्पणी चिपका देते कि कल क़ी चर्चा का दिन है विवेक बाबू का पर करेंगे अनूप शुक्ल.. वो अँग्रेज़ी में कहते है ना 'हिसाब बराबर'
जवाब देंहटाएंचर्चा अतिउत्तम है.. दोनो बच्चो को इंडिविजुअल बधाई..
जोहार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा , ज्ञान जी को हार्दिक बधाईया.
इस बढ़िया चर्चा रही ..शुक्रिया ...ज्ञान जी को और समीर जो को बधाई
जवाब देंहटाएंआदरणीय ज्ञानजी और समीर जी को हार्दिक बधाई. लोग उनके पद अनुगामी बन सके इसका लाजवाब उदाहरण हैं दोनों ही महानुभाव.
जवाब देंहटाएंचर्चा तो है ही लाजवाब. आपको भी होली की अग्रिम बधाई.
रामराम.
फिर,
जवाब देंहटाएंमेरे लौट के आने पर
भेज देती हो उल्टे पाँव
कहते हुये
रहने दो, कुछ नही बस यूँ ही
चर्चा बेहतरीन..लाजवाब....ये पंक्तियाँ सच मे सुंदर और कुछ कहती हैं.....
Regards
वाकई पिछले दिनों से बेख्याली सी छायी हुई थी ओर बहुत ज्यादा उत्साहित ब्लॉग जगत नहीं लग रहा था...आपकी उर्जा वाकई तारीफ़ के लायक है ..मुकेश जी की कविता पढ़वाने के लिए शुक्रिया ...
जवाब देंहटाएंपाण्डेयजी और समीरजी ने तो शास्त्रार्थ के नहीं पर ब्लागार्थ के झंडे तो गाड़ ही दिये हैं। दोनों को बधाई।
जवाब देंहटाएं>‘ई मैडम तो बहुत खतरनाक है...’ ई का शुक्ल जी, थोडा तो सावधान हो जाइये...क्या पता कौन चोखर बाली सुन ले और कोई बवाल मचा दे:)
>‘पुस्तक मित्र योजना’ का लाभ दिल्ली वाले ही क्यों, हम भी तो उठा रहे हैं , आखिर भारत में ही है ना!
> सीमा जी के अधूरे गीत को पूरा कर दें?
एक अधूरे गीत का मुखडा़ मात्र है...
नारी तेरी यही कहानी दुखडा मात्र है।
>शास्त्री और फुरसतिया में शास्त्रार्थ!!...क्या इतिहास दोहरा रहा है? सारथी और अर्जुन के शास्त्रार्थ ही तो कुरुक्षेत्र का कारण बना:)
>विवेकसिंह जी और हमारे बीच अच्छा वेवलेंथ है और यही शायद हमारे कम्प्युटरों के बीच भी कायम हो गया। भाई विवेक जी, आपका कम्प्युटर जल्दी स्वस्थ हो जाए तो आप अपने ब्लाग और चिठाचर्चा पर लग जाइये- यही हमारी कामना है।
>बुरा न मानो होली है:)
बढ़िया चर्चा.
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी और अभिषेक जी का मिलन फोटू बढ़िया है. यह देखकर अच्छा लगा कि अरविन्द जी अभी भी टेडीबीयर पास में रखकर खाना खाते हैं. इतने वरिष्ठ लोग ऐसा करते हैं और आप लिख रहे हैं कि बच्चे कितने जल्दी बड़े हो जाते हैं!
समीर भैया और ज्ञान भैया को तीन और दो का होने पर बधाई....:-)
ब्लॉग की सालगिरह होने पर ज्ञान जी और समीर जी को बधाईयाँ
जवाब देंहटाएंचर्चा बहुत ही अच्छी रही ...बहुत से अच्छे लिंक मिल गए
रोचक चर्चा......मजेदार एक लाईना....
जवाब देंहटाएंवार्षिकी पूरी करने पर समीर जी व ज्ञान जी को बधाई।
जवाब देंहटाएं@ अनूप जी,
आपने शीर्षक ने जैसे मुझे चौंका ही दिया कि कहीं "बात दर असल इतनी-सी है कि बच्चे हो गए हैं बड़े" वाली काव्यपंक्ति की ऐसी तैसी करने की तो नहीं ठानी। खैर, शुक्र है, वैसा नहीं मिला।
वैसे शिवकुमार जी का जीवित कुत्ते को टेडीबियर घोषित करना भी क्या खूब सर्जनात्मकता है,वाह वाह।
बहुत बधाई!!
जवाब देंहटाएंसमीर जी और ज्ञानदत जी को बधाई.
जवाब देंहटाएंचर्चा का अंदाज अच्छा लगा.
मैं भी लाया हूँ जी... देर से ही सही... ले लीजिए...
जवाब देंहटाएंअरे वही... सब जो लाये हैं...
हाँ हाँ वही... बधाईईईईई...
गुरुदेव ज्ञानजी और बड़े भाई समीर जी को
सादर!
पुन: एक बार मित्रों की अनुपस्थिति के कारण चर्चा बंद न जो जाये इसका ख्याल आप ने रखा. बधाई.
जवाब देंहटाएंविविधता लिये हुए इस चर्चा के "पान" में बडा आनंद आया.
ज्ञान जी एवं समीर जी को मुबारकबाद!! आपके चिट्ठे शतायु हों!!
हां, अरविंद जी से एक प्रश्न -- यह पामरेनियन खडे होकर खाना खाता है या कुर्सी पर बैठ कर!!
सस्नेह -- शास्त्री
आप लोगों ने बच्चा माना - यही गर्व का विषय है! बड़े तो घणे हो लिये। बच्चे बन पायें तो बड़ी उपलब्धि!
जवाब देंहटाएंJay-Jay!itte sare logan se thok mulakat.Kavi kyun blog se bache.usne kya gunah kiya .saaaaaaachmuch kavita gunah hai to kiya Vaise-Kavita ek aasha hai dudh hai batasa hai/Manchon ke sarkas me mahaj ek tamasha hai.Charchakaro ko badhaiyan.Gopesh vajpayee.
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