कुल मिलाकर बड़ी 'बम्फाट' होली मनी ब्लॉग-जगत में.
सुबह से ही लग रहा है जैसे होली का मौसम जाता रहा और हम मन ही मन गाते रहे कि; "अभी न जाओ छोड़कर, ये दिल अभी भरा नहीं..." लेकिन होली का मौसम तो निकल गया. हाँ, जाते-जाते सांत्वना का परसाद थमा गया. बोला; " क्यों चिंता करते हो? चुनाव का मौसम आ रहा है न. वो काफी दिनों तक रहेगा. तुम तो बस उसे निहारो."
इसका नतीजा यह हुआ कि आलोक जी ने चुनाव के मौसम का स्वागत किया. इस मौसम के तमाम लक्षणों के बारे में बताते हुए आलोक जी लिखते हैं;
"बाल ग्वाल पहुंचे हैं, मथुरा होली खेलने।कोई नहीं है मथुरा में।सीनियर टाइप लोग राजधानी गये हैं, टिकट का जुगाड़ करने, चुनाव सामने हैं।"
ये सीनियर लोग जुगाड़मेंट वाले मोड से कब निकलेंगे? चुनाव लड़ते-लड़ते जूनियर से सीनियर हो लिए लेकिन चुनावी टिकट के लिए अभी भी राजधानी जाना पड़ता है.
आलोक जी चुनावी माहौल के बारे में आगे लिखते हैं;
"लड्डू वाले होली के लिए नहीं, नेताओँ को तौलने के लिए लड्डू बना रहे हैं। लड्डू भले ही शर्मा रहे हों, कि हाय कैसों के साथ तुलना पड़ रहा है, पर नेता नहीं शरमा रहे है, चुनाव सामने हैं।"
इन तुले-अनतुले लड्डुओं और नेताओं के बारे में आप आलोक जी की पोस्ट पढिये.
चुनावी मौसम का असर 'मयंक' जी की गजल में भी दिखाई दे रहा है. अपनी गजल में मयंक जी ने गद्दारों की बात की है. वे बता रहे हैं कि;
ये गद्दार मेरा वतन बेच देंगे।
ये गुस्साल ऐसे कफन बेच देंगे।
बसेरा है सदियों से शाखों पे जिसकी,
ये वो शाख वाला चमन बेच देंगे।
अब हमें जागना है. अपने चमन को बचाना है. कहते हैं चुनावी मौसम में जनता जाग जाती है. वोट हाथ में लेकर निकलती है और किसी को हराकर किसी को जिता डालती है. गजल पढिये. शायद चमन को बचाने का इन्सिपिरेशन मिले.
चुनावों का मौसम नेताओं से क्या-क्या करवा रहा है? लातिकेश जी की माने तो
"हमारे देश में हर चीज़ बिकाऊ है ..और शायद यही वजह है की हमारे नेता हमारे ही पैसे
से हमें खरीदते है.."
वे आगे लिखते हैं;
"दरअसल जब समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के लोगो द्वारा उनके गृह
प्रदेश में गरीब लोगो को १०० रुपैए बाटते हुआ देखा ॥तो लगा की हमारे देश में एक वोट
की कीमत अब १० रुपैए से बढ़ कर १०० रुपैए हो गयी है । ॥हमारे देश में कितना विकास
हुआ है इसका अंदाजा यह देख कर जरूर लगाया जा सकता है"
ऐसा अभूतपूर्व विकास! फिर काहे की मंदी? दस रूपये में बिकने वाला वोट सौ रूपये में बिक जायेगा? खैर, यह बात तो चुनावों के बाद ही पता चलेगी. सौ रूपये वाले कितने वोट नेताजी को मिलेंगे?
आप लातिकेश जी की पोस्ट पढिये और खरीदारों के चरित्र के बारे में अनुमान लगाईये.
कौशलेन्द्र मिश्र लिखते हैं;
"होली की खुमारी ख़त्म होने के बाद अब सभी का ध्यान आगामी लोकसभा चुनाव पर होगा ।"
वे आगे लिखते हुए सवाल करते हैं;
"लोकसभा चुनाव में कैसे नेताओ का हो चयन?"
मुझे एक बात की शंका है. वो यह कि कहीं यही सवाल करते हुए नेता तो नहीं पूछ रहा कि; "लोकसभा चुनाव में कैसे वोटरों का हो चयन?"
मतलब यह कि नेता लोग क्या पहले अपने वोटर तय नहीं करते? वोटर तय करके ही रहने, बोलने, चलने, उठाने-बैठने का काम करते हैं. आप लातिकेश जी की पोस्ट पढिये और विचार कीजिये कि कैसे नेताओं का चयन हो कि देश में लोकतंत्र दौड़ता नज़र आये.
भारतीय राजनीति में प्रश्नों की कमी नहीं है. लेकिन भारतीय राजनीति का यक्ष-प्रश्न क्या है? यह बता रहे हैं 'युवा' जी. उनके अनुसार;
"राहुल गाँधी की युवा ब्रिगेड( भलेही राजनीती में उनका प्रवेश अनुकम्पा के आधार पर हुआ हो ) से मुकाबला करने वाले कौन हैं ? यह भाजपा से लेकर तमाम दलों के लिए यक्ष प्रश्न बना हुआ है.."
युवाओं का राजनीति में प्रवेश भारत के लिए क्या-क्या कर सकता है? बाकी के अनुभवी लोग इन युवाओं से क्यों चिढ़ते हैं? भारतीय जनता पार्टी युवाओं को आगे क्यों नहीं आने देती?
यह सब जानने के लिए 'युवा' जी की पोस्ट पढिये. युवाओं से देश का भला होना ज़रूरी है. सीनियर लोग तो अभी भी 'जुगाड़मेंट' के मारे हैं.
चुनावों के मौसम में वोट मांगने से क्या-क्या हो सकता है? यह डिपेंड करता है मांगने वाले पर. अब शेफाली पांडे जी की मानें तो;
"कोई हसीना जब वोट मांगती है तो ..तो ...तो ...
कोई हसीना जब वोट मांगती है
तो और भी हसीन हो जाती है."
ऐसी स्थिति में और क्या-क्या हो सकता है यह बताते हुए शेफाली लिखती हैं;
उसकी एक मुस्कान से पड़ जाते हैं वोट हज़ार
नज़र भर के देख जो ले मन जाते कईयों के त्यौहार
दिए जलते हैं दिल में और ईद की सिवईं,
होली की नमकीन बन जाती है
आप उनका यह गीत पढिये और 'नेता-हसीना' के बारे में जानिए. उन्हें जानना वोट के मौसम में सहायक सिद्ध होगा.
सोचा था, आज जल्दी चर्चा करेंगे. लेकिन ऐसा हो न सका. खैर, अगले वृहस्पतिवार को बड़ी चर्चा करेंगे.
(हमरी गलती नहीं है. चुनावी मौसम में वादे ही काम आते हैं. कम से कम अगले वृहस्तिवार तक तो चर्चाकार की कुर्सी नहीं जायेगी.)
बडी बम्बाट [हैदराबाद में यही शब्द का प्रयोग होता है भाई] चर्चा कर डाळी:) चुनाव में तो लड्डू बटेंगे ही- चाहे हलवाई नेताओं को तोलने के लिए बनाए या वोटरों को भरमाने के लिए - हां, शर्त यह है कि वोटरों के लड्डू में भांग अव्श्य हो:)
जवाब देंहटाएंचर्चा बम्बाट भी है और हसीन भी है!
जवाब देंहटाएंइसलिये चर्चाकार की कुर्सी तो सु्रक्षित है। लेकिन सोचा जा रहा है जांच आयोग बैठा दिया जाये कि चर्चाकार ने चर्चा करने में देर काहे करी। देर के बाद भी अगली बार जल्दी चर्चा करने का आश्वासन देने की बजाय लम्बी चर्चा करने का लालीपाप क्यों थमा रहा है?
पता चला है चर्चा का अति महत्वपूर्ण काम छोड़कर चर्चा कार अँग्रेज़ी में गणितीय समीकरण करते पाए गये... इसी कारण से देर हुई.. वैसे देरी के बाद भी चर्चा बम्बाट है..
जवाब देंहटाएंमेल से प्राप्त सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की टिप्पणी
जवाब देंहटाएं________________________________________________
बम्फाट चर्चा... हि.. ही.. बम्बाट चर्चा हा..हा.. फाड़ू चर्चा हु.. हू.. लालीपॉप चर्चा हे...हे...।
अब चुनाव भर तो यही करना है:) जमाए रहिए जी।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजबसे फ़ुरसतिया जी उर्वशी का दिल लेके भागे हैं उनको चर्चा भी बम्बाट और हसीन लगने लगी है. शायद रंगपंचमी तक लगेगी.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
wah badrkya charcha rahi.....
जवाब देंहटाएं"सोचा था, आज जल्दी चर्चा करेंगे. लेकिन ऐसा हो न सका. खैर, अगले वृहस्पतिवार को बड़ी चर्चा करेंगे"
जवाब देंहटाएंचलिये आप को एक हफ्ते की मुहलत दी जाती है. लेकिन बडी चर्चा न हुई तो तो हम आप को एक भी वोट नहीं देंगे.
ताऊ जी की टिप्पणी पता चला कि फुर्सतिया की चर्चायें इतनी "सजीव" क्यों होती जा रही हैं!!
सस्नेह -- शास्त्री
जवाब देंहटाएं' मनी ब्लाग जगत ' में बम्बाट चर्चा !
आज कर गये शिवभाई..
है तो मिन्नी , पर लगता आँधी लाई ।
chunavai charcha ka daur to abhi shuru hi hua hai, dheere dheere ye parwan charega....Bum-baant charcha.....kis kis ko baante ab tak
जवाब देंहटाएंआप की चिठ्ठा चर्चा और इतनी संक्षिप्त...कब शुरू हुई कब ख़त्म हो गयी पता ही नहीं चला...आप तो ऐसे ना थे...समय की आपको कभी कमी रहती नहीं फिर शब्दों की ये कंजूसी किसलिए....हमारे लिए शोध का विषय है...हम शोध करते हैं आप डॉक्टरेट की डिग्री तैयार रखें...और हाँ अगर संक्षिप्त पोस्ट का कारण पेट की गड़बड़ है तो रामदेव जी की शरण में जाएँ...या वज्र आसन करें...( दोनों से कुछ वैसे होगा नहीं....फिर भी टाईम पास के लिए ट्राई करें...)
जवाब देंहटाएंनीरज
शायद अगली चर्चा तक कोई ‘मौसम’ का गाना " दिल ढूँढता है फिर वही होली के सात रंग...." बेमौसम गाता बरामद हो जाए।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल होली की तरह चर्चा-शुरु हुई और खत्म!! मगर फिर भी बम्फाट..:)
जवाब देंहटाएंमेल से प्राप्त ज्ञानदत्त जी उर्फ़ GD Pandey की टिप्पणी
जवाब देंहटाएं________________________________________________
भरतलाल ने बताया कि चर्चा में बम बाँटे जा रहे हैं, तो हम भी आगये लेने ! और कुछ नहीं तो पिल्लों के खेलने के काम आ जायेंगे :)
: ज्ञानदत्त । GD Pandey