इस साप्ताह बहुत सारी उम्दा पोस्ट आई हमारे बीच कुछ शायद हमसे पढ़ने से छूट गयी हो.. पर कोई बात नही. दोबारा पढ़ने का मौका है ना.. इसीलिए तो हम लाए है साप्ताहिक चिट्ठा चर्चा..
तो सबसे पहले चिट्ठा जगत के सौजन्य से देखिए इस सप्ताह लिखी गयी पोस्ट का आँकड़ा
अब इस सप्ताह की कुछ दिलचस्प पोस्ट
पहली हर चीज कितना थ्रिल देती है है ना......पहला किसी पतग को काटा हुआ पेचा........ मोहल्ले के खूंखार बोलर पर लगाया हुआ वो पहला चौका ..... . पहला स्कूल बंक.....स्कूल के माने हुए गुंडे को आँख मीच कर लगाया हुआ पहला घूँसा ....टूशन साथ पढने वाली काली स्कर्ट को पहला ख़त....वो पहली बार ऍ टी एम् से पैसे निकलना ..हाय कितना रोमांटिक है ना !
1. सारे कवि ब्लॉगर हो सकते हैं मगर सारे ब्लॉगर कवि नहीं होते(कुछ तो कवियों के घोर विरोधी भी होते हैं, उनके हिसाब से सारे कवियों को उठा कर हिंद महासागर में फेंक देना चाहिए)
2. सारे इंसान ब्लॉगर हो सकते हैं मगर सारे ब्लॉगर इंसान नहीं होते(आप ताऊ की रामप्यारी को ले लीजिये या फिर सैम या बीनू फिरंगी)
3. ऐसे ब्लॉगर जो इंसान होते हैं और कवि नहीं होते गधा लेखक होते हैं(रेफर करें समीरलाल जी की पोस्ट)
नीरज जी को पता चल चुका था कि काव्यपाठ में तर्क ने व्यवधान डाल दिया. दुनियाँ भर में तर्क की वजह से न जाने कितनी कवितायें बनते-बनते रह गईं और न जाने कितनी पढ़ी नहीं गईं. तर्क ने विज्ञान को ही आगे बढाया. साहित्य को तो पीछे ढकेल दिया.
वे आगे का शेर पढ़ने की कोशिश करते हुए सबको चुप कराने लगे तभी किसी ने आवाज़ लगाई; "नीरज जी आपकी इस गजल को आपके गुरुदेव का आशीर्वाद तो मिला ही नहीं."
होली पर कहते है रंग मत खेलो पानी बचाओ।दिवाली पर कह्ते है कि पटाखे मत फ़ोड़ो प्रदूषण से बचाओ।तो क्या करे?वैलिंटाईन डे, मनायें,न्यू ईयर मनाये?समझ मे नही आता सारी सीख देशी त्योहारो के लिये,सारी छेडछाड़ देसी त्योहारो के साथ?ऐसा लगता है सोची-समझी साजिश के तहत हमारे देशी त्योहारो को धीरे-धीरे मारा जा रहा है?
एक सार्थक आभासी समाज को रचती हिन्दी ब्लागिंग की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि इंटरनेट पर हिन्दी में मुद्रित सामग्री के अभिलेखीकरण से कही ज्यादा सोशल नेटवर्किग मानता हूं। इसी की वजह से दुनियाभर में हिन्दी प्रेमी एक दूसरे से मिल जुल रहे हैं, विचार-विमर्श कर रहे हैं। कोटा निवासी दिनेशराय द्विवेदी जैसे शानदार मित्र को हमने ब्लागिंग की बदौलत ही पाया है। दिनेश जी जनवरी के अंत में भोपाल आए थे। यह उनसे हमारी दूसरी मुलाकात थी। इससे पहले भी साल भर पहले वे निजी कार्यक्रम में भोपाल आए थे मगर तब उनके साथ इत्मीनान से बैठना नहीं हुआ था।
उसके इंडियन दोस्त ने कहा, क्या बकवास कर रहा है, तूझे इंडिया में इंडियन के अलावा भला कौन मिलेगा?
अमेरिकन ने जवाब दिया, कश्मीर में मैं कश्मीरी से मिला, पंजाब में पंजाबी से, गुजरात में गुजराती, बंगाल में बंगाली, तमिलनाडु में तमिल, बिहार में बिहारी, महाराष्ट्र में मराठी….
और फिर उसके बाद मुझे कोई मुस्लिम मिला, कोई हिन्दू, कोई जैनी, कोई बौद्ध, कोई ईसाई, कोई कुछ लेकिन कसम से मेरे को एक भी इंडियन नही मिला।
तो शुभ संकल्प है कि आज युवा चिट्ठाकार अभिषेक मिश्र के बारे में थोड़ी चर्चा कर ली जाय जो अभी अभी रांची के चिट्ठाकार मिलन से खट्टी मीठी यादों के साथ लौटे हैं और मुझे थोड़ा शक है कि पूरा दिल बिचारे का सही सलामत लौटा है या नहीं भी ! इस उम्र में ऐसा होना और वह भी ख़ास तौर पर सीधे साधे से युवाओं के साथ सहज ही है ! मुझे शिद्दत के साथ लगता रहा है कि कतिपय मामलों में हम और अभिषेक सरीखे पुरुषों के साथ ऐसा जीवन के अन्तिम सोपान तक होता आया है और होता रहेगा -यही तो चिरन्तन व्यथा है ! पुरूष व्यथा ! पर फिर भी बदनाम भी वही होता आया है ! कैसी बिडम्बना है ?
महात्मा गाँधी का चश्मा नीलाम हो रहा था। तमाम लोग बड़ी-बड़ी बोलियाँ लगाने को तैयार थे। चुनाव के मुहाने पर खड़ी कांग्रेस पार्टी भी बापू के चश्मे को पा लेने की क़समें खा रही थी।
आज प्रसिद्ध उत्सवधर्मी और शराब व्यापारी विजय माल्या ने गाँधी जी का चश्मा सबसे ऊँची बोली लगा के खरीद लिया है। तक़रीबन १.८ मिलियन डॉलर्स। कांग्रेस पार्टी इस घटना पर गदगद है।
बापू की आत्मा आज धन्य हो गई होगी!
चश्मा अमर है, नज़र दफ़न हो गई।
मै कल से हैरान हूँ , या अनजान हूँ ? कि जिस समय हमारे लिए ब्रिटेन मे टीनेज प्रेग्नेंसी विवाद का विषय बन रही थी और 13 साल के पिता के जगह जगह साक्षात्कार व तस्वीरें छप रही थीं उसी समय उसी युग मे म्हारा राजस्थान मे 13 वर्षीय बालिका माँ बन गयी जिसका ज़िक्र शायद ही कहीं उस जज़्बे से हुआ जिस जज़्बे से ब्रिटेन के बच्चा-पिता का हुआ।बून्दी मे जब 13 वर्षीय बालिका बच्चे को जन्म दे रही थी तो उसके पीछे ब्रिटेन के जोड़े की तरह कोई यौन इच्छा या प्रयोगशीलता नही थी,वह मजबूरी थी ,लाचारी थी,शर्म की बात थी।
फिल्म इस लिये भी बहुत पसंद आई, क्योंकि छोटे छोटे कई संदेश दे गई ये। छुआछूत....! जलेबी जो कहती है उसकी भाषा थोड़ी ठेठ हैलेकिन सच है। ठाकुर साहब या पंडित जी की मिस्ट्रेस भले नीच जाति की हो, लेकिन छूना वर्ज्य है उसका। ये बात बहुत बार मैं खुद भी सोच चुकी हूँ। अभी हाल में रास्ते की उस पागल औरत को देख कर भी जिसके शरीर के नुचे कपड़ों पर एक लिहाफ डालते सबको घृणा आ रही थी, मगर उसके कपड़े जब नुचे तब वो घृणा पता नही कहाँ थी। उस दिन आँखें बंद करो तो वही दृश्य घूम जाता, बंद आँखों में
तो मियाँ इसका मतलब तो यही हुआ की कन्या भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति देश के खाते पीते शिक्षित और संपन्न घरानों में अधिक है .....क्योंकि पंजाब और हरियाणा प्रति व्यक्ति आय और साक्षरता के मामले में अन्य राज्यों के मुकाबले कहीं बेहतर हैं ....
हरियाणा और पंजाब का लिंगानुपात पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों (आदिवासी बहुल राज्यों) के लिंगानुपात से काफी कम है ....निष्कर्ष तो यही निकलता है कि लड़कियों से सुलूक के मामले में हमारा समृद्ध समाज आदिवासी समाज से बहुत कुछ सीख सकता है .......
पिताजी की संग्रहित की हुई अनेकों किताबों में एक है ‘कहानी कैसे बनी’ । उसे महीनों पहले पढ़ना शुरु किया था । कुल आठ कहानियों की यह किताब मुझे अविश्वसनीय रचनाधर्मिता का उदाहरण लगी । मैंने इसे पूरा का पूरा पढ़ तो लिया पर उसका कथ्य, उसकी बनावट, उसका रचनात्मक कौशल –सब अन्तर में मथता रहा । आज अचानक उसकी चर्चा कर रहा हूं, क्योंकि आज उस कहानी की किताब के अप्रतिम सर्जक का जन्म-दिवस है ।
किन्तु ईश्वर की कृपा सचमुच में अकूत और चिरन्तन है। चिट्ठा जगत में आकर मेरी परिसम्पत्तियाँ तो सहस्रगुना हो गईं! जो मुझे जानते नहीं, जिन्होंने मुझे देखा नहीं, मुझसे कभी बात नहीं की ऐसे अनगिनत चिट्ठाकारों ने मानो मुझे अपने परिवार में सम्मिलित कर लिया। पल-प्रति-पत शुष्क होते जा रहे इस समय में कौन किसके रोने की चिन्ता करता है? किसी के आँसुओं की कौन परवाह करता है? कोई रो रहा है तो रोता रहे। प्रत्येक के पास अपनी-अपनी असमाप्त व्यस्तताएँ हैं।
अब यह हाल हो गया है कि यदि परिवार के कुछ बच्चे गुल्ली डंडा भी खेलने लगते हैं तो उद्दंड लोग उन्हें धमकाने लगते हैं। मोहल्ले के कोई बच्चे उनसे खेलने उनके घर आए तो वे उन्हें भी पीटना चाहते। बहुत बचा बचाकर उन बच्चों के साथ खेल खेला जाता। परन्तु एक दिन उन्होंने उन बच्चों को गालियाँ ही नहीं दीं, उनपर थूका ही नहीं अपनी गुलेलों से उन्हें घायल भी कर दिया। मोहल्ले के सारे बच्चे तो पहले ही उनके घर खेलने आने से डर के मारे बचते थे, अब तो सबने ही तौबा कर ली है। पोस्ट पढ़ने के लिए
रात बहते हुए अश्कों ने
पूछा मुझसे ...
जब बरसों तलक
न बही थीं तुम्हारी आँखें
फिर ये आज क्यों.....?
मैंने मुस्कुरा कहा....
अब इक उम्मीद सी
जगने लगी थी ....
मेरा हर शब्द है,
मेरी ही किताब की तरहां,
रेखाओं में छिपे जज़बात,
उस गुलाब की तरहां,
जिसकी हर पंखुङी,
दर्द के कांटों से बनी,
जिसके आंसू हैं,
प्यालों में शराब की तरहां,
मेरा हर शब्द है,
मेरी ही किताब की तरहां।।
इस सप्ताह की कुछ टिप्पणिया
निसंदेह यहाँ मामला दूसरा है.वैसे भी भारत में बाल शोषण मामले में कानून ओर कानून का पालन करने वाले दोनों ढीले है ..यहाँ अभी भी कितने छोटू ढाबो या दुकानों पे अपनी जिंदगी घिसट रहे है - डा. अनुराग
लेकिन जित्ता मैंने महसूस किया उत्ते से लगता है कि आपके लेखन का मूल स्वर स्त्रीविरोधी है। एक नहीं अनेको उदाहरण आपके ब्लागवाटिका में पुष्प की तरह बिखरे हैं। अगर कभी कहें तो बिन-बटोरकर आपके सामने पेश करूं।
आपको मेरी राय से इत्तफ़ाक न करने का पूरा अधिकार है। लेकिन आपने जो एक टिप्पणी की थी “….स्त्री ब्लागों पर जाकर मूत्र शंका करने लगते है” वह किसी भी परिप्रेक्ष्य में, किसी भी संदर्भ में उचित नहीं है। अगर इसे अन्यथा न लिया जाये तो वह मैं कहना चाहूंगा वह टिप्पणी बेहूदी था जिसका आपको अफ़सोस भी नहीं हुआ बाद में भी। आप उस पर पुनर्विचार करें तो शायद आपका खेद व्यक्त करने का मन करे। - अनूप शुक्ल
पर मेरा नाम तो आप लेना मत. मैने चुपचाप झांक कर देखा था कि अल्पना आंटी ने बहुत सारे लोगों (टिपणीयों) को रोक रखा है, होंगे कोई दो दर्जन.
और ताऊ के साथ क्या बात हुई ये तो मुझे सुनाई नही दी पर आप होशियार रहना अबकि बार. मुझे तो बहुत ही गडबड लग रही है.
फ़िर मुझे दोष मत देना कि रामप्यारी तुम्हारे रहते ये क्या हो गया? - मिस.रामप्यारी
इस वीक सालगिरह मनाने वाले ब्लॉग
समीर लाल जी
आज देखते देखते इस ब्लॉगजगत में तीन साल पूरे हो गये. बहुत कुछ देखा, बहुत कुछ सीखा, बहुत कुछ पाया. नये मित्र बनें, मिले और बात हुई. अब तो यह एक शौक के बदले जीवन शैली सी हो गई है. आप सबका असीम स्नेह प्राप्त हुआ. लिखने का हौसला मिलता रहा. गुरुगण सिखाते रहे. बेहतरीन सफर चला और आशा ही नहीं पूरा विश्वास है कि आपका स्नेह ऐसे ही प्राप्त होता रहेगा और यह खुशनुमा सफर यूँ ही चलता रहेगा.
मनविन्दर भिम्बरजी
आज मेरे ब्लाग को एक साल हो चला है। समय का पता नहीं चला। जब मैंने ब्लागिंग शुरू की तो मुझे ब्लाग की ए बी सी डी भी नहीं पता थी। हां, लिखने का शौक था ही क्योंकि मेरा प्रोफेशन ही ऐसा है। ब्लाग और ब्लॉगिंग में मुझे कई लोगों का सहयोग मिला है। ब्लाग से भी बहुत पहले मुझे लिखने के लिये प्रेरित करने वाले हैं
ज्ञानदत्त जी
कुल दो साल से ज्यादा हो गये मानसिक हलचल लिखते। कुल ६०० से ऊपर पोस्टें हो गयीं। पहले साल में ३५० से ज्यादा पोस्टें थीं। दूसरे साल में २५०। आवृति में कमी हुई। कुछ यह मेरी बदली पोस्ट की आवश्यकताओं से धीमी पड़ी। और कुछ जबरन लिखने की खुरक कम होने से बनी। लेकिन दोनो ही साल बराबर के संतोष और असंतोष के रहे!
अब विदा लेते है जी.. वैसे तो इस चर्चा को वृहद रूप देना चाहता था.. पर समयाभाव से संभव नही हो पाया.. पर निश्चित ही अगली साप्ताहिक चर्चा में कुछ और रंग मिलेंगे.. तब तक के लिए रंगो के त्योहार की बधाई स्वीकार कीजिए.. फिर मिलेंगे.. दसविदानिया
दसविदानिया...
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रयास है कुश.. आने वाले समय में आप इसे और नया रुप दोगे ्मुझे विश्वाश है.. होली की शुभकामनाऐं..
इस चिट्ठाचर्चा में चर्चा तो कम ही की गयी. पर चिट्ठों के चयन के लिए कुश जी प्रशंसा के हकदार हैं. कुल मिलाकर सप्ताह भर के चिट्ठों की दही में से मक्खन निकल कर रख दिया है आपने.
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा.
जवाब देंहटाएंसप्ताह भर के ब्लाग लेखन को एक जगह समेट कर प्रस्तुत करने लिए आभार। नया प्रयोग रहा। होली की बधाई॥
जवाब देंहटाएंसमीर मनविंदर और ज्ञान ले बधाई ब्लॉग वर्षगाँठ उन्होने है मनाई
जवाब देंहटाएंकुश की होली हो मनभावन किसी कुशी के रंगों से रंगीला हो उनका तन मन
चर्चा मण्डली
Neelima
अनूप शुक्ल
मसिजीवी
आलोक
Raviratlami
पंगेबाज
Sagar Chand Nahar
विपुल जैन
Jitendra Chaudhary
note pad
Tarun
कुश
Tushar Joshi, Nagpur
संजय बेंगाणी
गिरिराज जोशी
Shiv Kumar Mishra
राकेश खंडेलवाल
Atul Arora
Srijan Shilpi
रमण कौल
विवेक सिंह
अभय तिवारी
Udan Tashtari
कविता वाचक्नवी
आशीष श्रीवास्तव
Debashish
भीगे फगुनाई मौजो मे
और हिंदी ब्लॉग जगत मे
होली या फागुन
लाये बस हँसी ठिठोली
अबीर गुलाल से रंग जाये
सबके मन और तन
दूर हो कालिमा आतंक कि
होली के रंगों से
बस यही हैं कामना
मेरे मन की
ब्लॉग के मुखड़े की झाँकी दिखाना बड़ा हिट आइडिया है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रही यह साप्ताहिक चर्चा
जवाब देंहटाएंचकाचक ठेल रहे हो भाई आजकल...खैर रंगों का ये त्यौहार इश्वर करे सबके जीवन में खुशनुमा रंग लेकर आये
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा हुई ...
जवाब देंहटाएंसप्ताह भर की उल्लेखनीय़ प्रविष्टियों की चर्चा करना निश्चय ही साहस का काम है ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद इस चर्चा के लिये ।
चिठ्ठा चर्चा आजकल बहुत रंगीन हो गयी है :) :)
जवाब देंहटाएंआखिर होली जो है ....बहुत ही मजेदार
होली की शुभकामनाएँ सभी को
सौरंगी चरचा कुश...... बहुत अच्छे
जवाब देंहटाएंवाकई बहुरंगी चर्चा है जी. कंटेंट और कलेवर से भरपूर. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
कुश,(जी नहीं लगाया चलेगा ना ?) आपने चिट्ठा चर्चा को जो स्वरूप दे दिया है वह ऐसा है कि अब आपकी चिट्ठा चर्चा कभी भी मिस नहीं करना चाहूँगी। किसी भी काम को मेहनत और लगन से एक कला का नमूना बनाना आपकी विशेषता लगती है। मैं बेहद प्रभावित हूँ। आपसे बहुत प्रेरणा ली जा सकती है।
जवाब देंहटाएंहोली की शुभकामनाएँ।
घुघूती बासूती
तुम्हें तो अंदाज भी न होगा कि तुमने क्या किया है...हे प्रभु, इस नादान बालक को समझाओ!!...मालूम है तुमने क्या किया है...सारे चिट्ठाचर्चाकारों की वाट लगा कर रख दी है. अब क्या कोई चर्चा करेगा इसके सामने..सब खानपूर्ति ही करेंगे...हद करते हो!!!
जवाब देंहटाएंवाह! आपकी चर्चा ने तो ब्लॉग जगत की वास्तविक सैर करा दी। बड़ा अच्छा लगा। आपसे नये-नये प्रयोगों की उम्मीद लगी रहती है।
जवाब देंहटाएंमेरा ब्लॉग इस सप्ताह नहीं देख पाये क्या? बस यूँ ही पूछ लिया...। आप अपने जो ठहरे...।
खूब चर्चा है! होली मंगलमय हो।
जवाब देंहटाएं@ रचना
होली की आपको भी अनन्त मंगलकामनाएँ। चर्चा-परिवार को इस प्रकार बधाई देकर आपने अपने व्यक्तित्व का स्नेह उड़ेल दिया है मानो!
जीवन में सुखों के रंग आपको सपरिवार सराबोर कर दें।
आपकी मेहनत साफ़ नज़र आती है,अच्छा प्रयास है।ये सब लोगो का हौसला बढाने वाला टानिक भी है। होली की बधाई,अभी से।
जवाब देंहटाएंब्लॉग की चर्चा ब्लॉग फोटो के साथ... देखने में तो बहुत सुंदर लगता है पर..फोटो इतनी बड़ी और, साफ़ भी नहीं हो पाती कि ब्लॉग / लेखक का नाम पता चल सके (विशेष कर उन ब्लॉग के बारे में, जिनसे पहले परिचय नहीं रहा).... और चर्चा पढ़ते हुए बार- बार लिंक पर क्लिक करना भी सुविधा जनक नहीं लगता. ऐसे मैं यदि ब्लॉग या लेखक का ज़िक्र भी चर्चा में ही आ जाए तो क्या ही अच्छा हो. क्या फोटो को भी कुछ छोटा करना ठीक नहीं रहेगा ? सादर.
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा। इसीलिये हम सबेरे लिखे थे कल -अच्छी चर्चा के पहले वाली चर्चा! कुश ने हमारे विश्वास की रक्षा की इसे समीरलाल सारे चिट्ठाचर्चाकारों की वाट लगना कह रहे हैं- हाऊ फ़न्नी है न जी !
जवाब देंहटाएंरचनाजी ने सारे चिट्ठाचर्चाकारों को होली की शुभकामनायें दीं। उनको हमारी तरफ़ से भी बधाई!
अन्य सभी ब्लागर साथियों को भी होली की शुभकामनायें।
अनूप जी से सहमत :) मस्त चर्चा...चटकीले रंगों वाली...दिल खुश हो गया. आपको होली की बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरंग तो सारे निराले हैं
जवाब देंहटाएंपर बिन गुब्बारों वाले हैं
शानदार!
जवाब देंहटाएंहर बार इतनी बढ़िया चर्चा करना बहुत मुश्किल है. कह सकते हैं कि अपने ही कीर्तिमान तोड़ते रहते हो. होली की शुभकानाएं.
बहुत अच्छी चर्चा । होली की शुभकामना...
जवाब देंहटाएंकुश का एक और छक्का, बहुत बढ़िया। मुझे याद है एक बार आपने ब्लोगर आफ द डे शुरू किया था लेकिन मैं भी समझता हूँ कि वो डेली संभव नही है। लेकिन अगर इस साप्ताहिक चर्चा को जारी रखने का विचार है तो ब्लोगर आफ द वीक यहाँ डाला जा सकता है, सिर्फ एक विचार है।
जवाब देंहटाएंरचनाजी, शुभकामनाओं के लिये धन्यवाद,