कल की चर्चा बड़ी मुश्किल से प्रकाशित हो पायी। न जाने क्या लफ़ड़ा था। लेकिन कविताजी लगातार लगी रहीं बिना सोये, बिना कुछ खाये पिये। अंतत: रात को दस बजे चर्चा पोस्ट हो पायी। एतिहासिक महत्व की चर्चा होने के कारण सोचा गया कि आज की चर्चा सुबह की बजाय शाम को की जाये ताकि ,जैसा ताऊजी ने कहा, अधिक से अधिक लोग इस चर्चा को देख लें।
कल की चर्चा के बाद कविताजी ने अपने ब्लाग हिन्दी भारत में बलिदानी शहीदों से संबंधित अनेक दुर्लभ एवं अद्भुत चित्र संजोये हैं।
सिद्धार्थ त्रिपाठी ने निन्न्याबे पर पूरे दस दिन नर्भाने के बाद आज सौवीं पोस्ट लिख ही डाली। सौवीं पोस्ट ठेलने के पहली की पीड़ा बयान करते हुये वे कहते पाये गये:
लेकिन चाह से सबकुछ तो नहीं हो सकता न...! कोई झन्नाटेदार आइटम दिमाग में उतरा ही नहीं। इसलिए सीपीयू का बटन ऑन करने में भी आलस्य लगने लगा। मैं टीवी पर वरुण गान्धी का दुस्साहसी भाषण सुनता रहा। चैनेल वालों की सनसनी खेज कवरेज देखता रहा जैसे मुम्बई पर हमले के वक्त देखता था। सोचने लगा कि चलो कम से कम एक नेता तो ऐसा ईमानदार निकला जो जैसा सोचता है वही बोल पड़ा। अन्दर सोचना कुछ, और बाहर बोलना कुछ तो आजकल नेताओं के फैशन की बात हो गयी है। ...लेकिन दिल की बात बोल के तो बन्दा फँस ही गया। तो ऐसे फँसे आदमी के बारे में क्या लिखा जाय?
एक वर्ष से कम समय में तमाम बेहतरीन पो्स्टों के साथ सैकड़ा मारना बधाई लायक काम है सो हमारी बधाई। आशा है कि सिद्धार्थ जी आगे भी नियमित लिखते हैं। यह आशा इस लिये भी करना लाजिमी है क्योंकि अब उनको खराब पोस्ट लिखने के फ़ायदे भी पता चल गये हैं।
अल्पना जी अपनी एक गजल पेश करती हैं जो उन्होंने पांच मार्च ,२००९ को हुये एक मुशायरे में पढ़ी:
जाने क्यूँ वक़्त के अहसास में ढल जाती हूँ,
जाने क्यूँ मैं अनजान डगर जाती हूँ.
टूट कर जुड़ता नहीं माना के नाज़ुक दिल है,
गिरने लगती हूँ मगर खुद ही संभल जाती हूँ.
ज़िन्दगी से नहीं शिकवा न गिला अब कोई,
वक़्त के सांचे में मैं खुद ही बदल जाती हूँ.
यह गजल अगर आप अल्पनी जी की आवाज में तरन्नुम में सुनना चाहते हैं तो उनके ब्लाग पर पहुंचिये। देर न करिये वर्ना और लोग सुन ले जायेंगे।
घुघुतीबासूती दिन पर दिन घर परिवार वालों द्वारा ही महिलाओं/स्त्रियों/बालिकाऒ पर होते यौन शोषण का मुद्दा उठाती हुयी सवाल करती हैं-स्त्री कहाँ सुरक्षित है? यदि अपने घर में नहीं तो फिर कहाँ? वे लिखती हैं:
घर वह जगह है जहाँ से संसार भर से त्रस्त व्यक्ति भी चैन से निश्चिन्त हो सकता है। जहाँ उसे हर तरह की स्वतंत्रता मिलती है। जहाँ वह आराम से पैर ऊपर करके या लटका के या जैसे भी बैठ सकता है। जहाँ वह कुछ भी पहनता है, कैसे भी रहता है, एक बार घर का दरवाजा बन्द किया तो बस केवल सुरक्षा का एहसास होता है। परन्तु जब समाज जिस व्यक्ति को गृहस्वामी कहता है वह अपनी ही पुत्रियों पर यूँ अपना स्वामित्व जताए तो उस पुत्री की तो घर के भीतर पाँव रखते ही रूह काँपती होगी। घर से अधिक असुरक्षित स्थान तो उसके लिए कोई हो ही नहीं सकता।
कंचन ने एक खराब काम ये किया कि अपनी एक पोस्ट डिलीट कर दी। मेरी समझ में अगर आपको कोई पोस्ट खराब लगती है तो उसे मिटाना नहीं चाहिये। रखना चाहिये ताकि आपको पता लगे कि आप यह भी लिख चुके हैं। लेकिन अगली पोस्ट कंचन ने लिखी उसमें पुरानी यादें हैं जब वे घर से दूर थीं:
ऐसा क्यों हो जाता है हम जिनकी खातिर जीते हैं,
खुद जीने की खातिर उनके विरहा का विष पीते हैं,
अपने सपनो की खातिर अपनेपन की आहुति,
ये मेरा स्वारथ है या फिर जीने की है रिति
अक्सर द्विविधा में कर देती है मुझको ये बात
खुद से मिलने की फुरसत थी कई दिनो के बाद।
एक लाईना
- कोई सिलवट नहीं ... इस चेहरे पे : न जाने कौन धोबी से प्रेस करवाया है चेहरा!
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- कागज़ के फूल भीनी खुशबू दे नहीं सकते है :क्यों भीनी खुशबू वाले सेंट नहीं आते क्या?
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- किसान का बेटा होने का मतलब: एक पोस्ट में पता करें!
- मैं कुत्ता हूँ और कमीना भी :एक के साथ एक फ़्री वाले पैकेज की तरह
- दुनिया के ब्लॉगरो, एक हो : सारे लोग एक ब्लाग पर ही लिखो।
और अंत में
रात के साढ़े दस बज चुके अब और कुछ लिखने की बजाय आपको शुभरात्रि कहना ही सबसे बेहतर होगा।
आप आराम से पढ़िय। कल फ़िर मुलाकात होगी।
पहलम् शुभरात्रि
जवाब देंहटाएंअब उस वैश्विक ब्लॉग का पता बतलायें
जिस पर सारे ब्लॉगर पोस्ट लगाएं
हड़कंप मच जाएगा
कोई पोस्ट नजर नहीं आएगा
ब्रेकिंग पोस्ट कैसे बनेगी
टिप्पणी कैसे होंगी
इन पर भी गंभीरता से मनन कीजिएगा
सारे ब्लॉगर एक हो
तो अनेक का क्या होगा
जाएंगे।
क्या वे नेक हो जाएंगे।
*"कोई झन्नाटेदार आइटम दिमाग में उतरा ही नहीं।" अरे भाई सिद्धार्थ जी कोई आइटम गर्ल को देख लेते तो झन्नाटेदार आइडिया आ ही जाता और आप के मुख से निकलता - वाट एन आइडिया,सरजी!:) अपने ब्लाग पर शतक लगाने के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थ जी को सैकडे की बधाई और हमने यह माईक्रो चर्चा पढ ली है. रात्री के साढे बारह बजे हैं और अब शुभ रात्री .
जवाब देंहटाएंरामराम.
संक्षिप्त और सुष्ठु चर्चा के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंघर में बेटी का असुरक्षित होना हमारी सभ्यता और संस्कृति को प्रश्नांकित करता है.
सचमुच ही क्या आज का मनुष्य
दमित काम कुंठाओं का पुंज भर है !
charcha padhi , achchhi lagi
जवाब देंहटाएं- vijay
चर्चा हमेशा की तरह अच्छी है..
जवाब देंहटाएंआश्चर्य हुआ अपनी तस्वीर नहीं...नहीं ..नहीं अपनी पोस्ट का जिक्र हुए देख कर..
ज़र्रा नवाजी के लिए शुक्रिया!
चिटठा चर्चा का विमान मेरे हिस्से के आसमान से भी गुजरा!
धन्यवाद.
सिद्धार्थ जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंआपको आज धन्यवाद नहीं दूँगी, एक साथ गठरी ही ठीक रहेगी।
dhanyavaad :
जवाब देंहटाएंब्लोगिंग (ग़ालिब स्टाइल) : पढो़ तब मजा आयेगा Hetu...
:)
थोड़ी छोटी पर बेहतर चर्चा । अल्पना जी का लिंक मिल गया, प्रविष्टि छूट रही थी। धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंचिट्ठा चर्चा में कविता जी के हिन्दी भारत में प्रकाशित बलिदानी शहीदों के चित्रों,अल्पना वर्मा की गजल, सिद्धार्थ जी के नियमित लेखन की कामना तथा कंचन जी पुरानी यादों को समेटे नई पोस्ट का उल्लेख अन्य ब्लागर्स के लिए भी प्रेरणा का स्रोत होगे।
जवाब देंहटाएंशुभ-कामनाओ सहित।
Guruvar us post me koi chhoti noti galati nahi thi...poora vision hi galat ho gaya tha...! dobara koshish karungi ki aisa na ho..! kshama..!
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