सर्वश्री क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को २४ मार्च 1931 को दी जाने वाली फाँसी को एक दिन पहले कर देने के परिणाम स्वरूप क्रांतिकारियों के बलिदान को आज ७८ वर्ष पूर्ण हो गए हैं। लगभग ८ दशक का यह समय आज तक कई प्रश्नों को सुलझा नहीं पाया है। यथा, क्या इन वीर बलिदानियों की फाँसी को टाला जा सकता था? क्या फाँसी अनिवार्य थी? क्या कोई ऐसा व्यक्तित्व/ व्यक्ति था जो फाँसी की इस घटना पर स्टैंड ले सकता था किंतु ऐसा करने को अनिवार्यता नहीं दी गयी ...आदि। पुनश्च इनके कारणों की मीमांसा भी .....|
आज का दिन भारतीय इतिहास का स्वर्णाक्षरों में अंकित किए जाने वाले क्रांतिकारियों से बिदाई का दिन है। प्राण न्यौछावर कर देने का दिन। आज के दिन उस कथा के अतिरिक्त किसी भारतीय मानस में कुछ भी और कहने -सुनने की ऊहा भला होती कहाँ है। चर्चा के मंच पर यदि हम उन्हें सामूहिक प्रणाम तक निवेदित न कर पाए, उस कथा की बारम्बारता में अपने को १५ मिनट भी डुबा न पाए तो अवश्य उस बलिदान की अवमानना के भागी हैं.
क्रांतिकारी बलिदानी <--सुखदेव/राजगुरु -->
बलिदानी सुखदेव का गांधी को लिखा पत्र बहुत चर्चा का विषय बना था!
उस राष्ट्रीय- सामाजिक क्षति ने ऐसा इतिहास बदला कि देश की सभ्यता, संस्कृति,भूगोल, इतिहास, राजनीति, आचार, मूल्य, समाज और जाने क्या चौथे, सब क्षत-विक्षत होने का क्रम तब से चल निकला। भारतेतिहास का भविष्य तक इस त्रयी का सर्वदा ऋणी रहेगा। २३ मार्च के क्षण- क्षण को दंडवत प्रणाम जो साक्षी रहा उस दारुण किंतु वीरता व ओज के साक्षात् रूप की हँसते हँसते फंदों को चूमने जाती पद ताल, उसकी अनुगूँज और फिर २४ मार्च को `भारतमाता' विद्यावती की हवा में बिखरी सिसकियों की भीगी चीत्कारों का.....
किंतु क्यों कोई भी रोक नहीं पाया फाँसी...
बिपिन चंद्र द्वारा लिखी गई भगत सिंह की जीवनी 'मैं नास्तिक क्यों हूँ' में इस घटना पर तत्कालीन नेताओं और अखबारों द्वारा व्यक्त की गई तीखी टिप्पणियाँ सिलसिलेवार ढंग से दर्ज हैं:
'..यह काफी दुखद और आश्चर्यजनक घटना है कि भगत सिंह और उसके साथियों को समय से एक दिन पूर्व ही फांसी दे दी गई। 24 मार्च को कलकत्ता से कराची जाते हुए रास्ते में हमें यह दुखद समाचार मिला। भगत सिंह युवाओं में नई जागरूकता का प्रतीक बन गया है।' [सुभाष चंद्र बोस]
'मैंने भगत सिंह को कई बार लाहौर में एक विद्यार्थी के रूप में देखा। मैं उसकी विशेषताओं को शब्दों में बयां नहीं कर सकता। उसकी देशभक्ति और भारत के लिए उसका अगाध प्रेम अतुलनीय है। लेकिन इस युवक ने अपने असाधारण साहस का दुरुपयोग किया। मैं भगत और उसके साथी देशभक्तों को पूरा सम्मान देता हूं। साथ ही देश के युवाओं को आगाह करता हूं कि वे उसके मार्ग पर न चलें।' [महात्मा गांधी]
'हम सबके लाड़ले भगत सिंह को नहीं बचा सके। उसका साहस और बलिदान भारत के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है।' [जवाहर लाल नेहरू]
'अंग्रेजी कानून के अनुसार भगत सिंह को सांडर्स हत्याकांड में दोषी नहीं ठहराया जा सकता था। फिर भी उसे फांसी दे दी गई।' [वल्लभ भाई पटेल]
'भगत सिंह ऐसे किसी अपराध का आरोपी नहीं था जिसके लिए उसे फांसी दे दी जाती।n हम इस घटना की कड़ी निंदा करते हैं।' [प्रसिद्ध वकील और केंद्रीय विधानसभा सदस्य डीबी रंगाचेरियार]
'भगत सिंह एक किंवदंती बन गया है। देश के सबसे अच्छे फूल के चले जाने से हर कोई दुखी है। हालांकि भगत सिंह नहीं रहा लेकिन 'क्रांति अमर रहे' और 'भगत सिंह अमर रहे' जैसे नारे अब भी हर कहीं सुनाई देते हैं।' [अंग्रेजी अखबार द पीपुल]
'पूरे देश के दिल में हमेशा भगत सिंह की मौत का दर्द रहेगा।' [उर्दू अखबार रियासत]
'राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह की मौत से पूरे देश पर दुख का काला साया छा गया है।' [आनंद बाजार पत्रिका]
'जिस व्यक्ति ने वायसराय को इन नौजवानों को फांसी पर लटकाने की सलाह दी, वह देश का गद्दार और शैतान था।' [पंजाब केसरी]
लालाजी द्वारा असहयोग आंदोलन से जुड़े विद्यार्थियों केलिए स्थापित नैशनल कोंलेज, लाहौर के छात्रों व स्टाफ का एक दुर्लभ ऐतिहासिक चित्र/ दाहिने से चौथे (खड़े ) ------->>
जेल में लिया गया चित्र नीचे
Malwinderjit Singh Waraich with Bhagat Singh’smother at Khatkarkalan------>
पठनीय
रुचि अनुसार चुन कर पढ़ने व एकत्र कर सहेजने के लिए निम्न लेखों को देखा जा सकता है
- क्रांतिकारी बलिदानी भगत सिंह : परिचय
- मैं नास्तिक क्यों हूँ
- भगत सिंह का पुश्तैनी घरः चिराग ७८ अंधेरा
- वामपंथियों का भगत सिंह पर दावा खोखला
- भगत का अनछुआ जगत
- क्रांतिकारी बलिदानी सुखदेव : परिचय
- सुखदेव
- क्रांतिकारी बलिदानी राजगुरु : परिचय
- राजगुरु की याद में..
- पाकिस्तान का आज भगतसिंह को खोज रहा है
- क्रांतिवीर भगत सिंह
<----- भगतसिंह के दादाश्री अर्जुन सिंह जी
इन्हीं को पढ़ने पर भगत सिंह के पैतृक गाँव के आज का विवरण कुछ इस प्रकार मिलता है -
इस गाँव में आने से पहले जितने काल्पनिक बिंब बन रहे थे, यहाँ आने के बाद सब ध्वस्त होते चले गए. गाँव की तरक्की और समृद्धि की चमक भी शायद इसी वजह से फीकी लगने लगी.
खट्करकलाँ भगत सिंह के विचारों और प्रभाव से परे यह गाँव आम भारतीय गाँवों का ही चेहरा है
यह शायद भगत सिंह का गाँव नहीं है. यह वही गाँव है जो पंजाब का गाँव है, भारत का गाँव है. जिसके लिए विकास के मायने सामाजिक बदलाव नहीं, कंकरीट और स्टील है.
यहाँ के युवा भगत सिंह की नहीं पंजाब के उसी युवा की बानगी हैं जो आज नशे का शिकार है, गाड़ियों पर सवार है और बदलते भारत की चकाचौंध में आगे बढ़ रहा है. उसके पास आज तरह-तरह के साधन, संसाधन हैं पर इनसे वो भारत की तस्वीर बदलने के सपने पता नहीं देखता भी है या नहीं पर हाँ, ज़िंदगी का मज़ा ज़रूर लेना चाहता है.
यहाँ अमीर-ग़रीब, जाति-मज़हब, छोटा-बड़ा, समता-सम्मान.. इतिहास कई विशेषण आज भी विशेषण ही हैं, यहाँ की सच्चाई नहीं बन सके हैं.
यहाँ सरकार को दोष नहीं, श्रेय देना चाहिए. देर से ही सही, भगत सिंह का कुछ तो इस गाँव में संजोया जा चुका है. ईंट-पत्थरों और लोहे-पीतल के सही, भगत सिंह कुछ दिखाई तो दे रहे हैं।
भगतसिंह सुखदेव व राजगुरु के वालपेपर को प्राप्त कर अपना डेस्कटॉप सँवारें।
कविता का मन
युनेस्को द्वारा विश्व कविता - दिवस के रूप में घोषित तिथि भी अभी अभी गई है। इस अवसर पर चाहें तो बाबा नागार्जुन का एक संस्मरण यहाँ पढ़ सकते हैं-
बाबा ने कहा-‘‘तिवारी जी अब इस रचना को बिना गाये फिर पढ़कर सुनाओ।’’
तिवारी जी ने अपनी रचना पढ़ी। अब बाबा कहाँ चूकने वाले थे। बस डाँटना शुरू कर दिया और कहा- ‘‘तिवारी जी आपकी रचना को स्वर्ग में बैठे आपके अम्माँ-बाबू ठीक करने के लिए आयेंगे क्या? खड़ी बोली की कविता में पूर्वांचल-भोजपुरी के शब्दों की क्या जरूरत है।’’
इसके आद बाबा ने विस्तार से व्याख्या करके अपनी सुप्रसिद्ध रचना-‘‘अमल-धवल गिरि के शिखरों पर, बादल को घिरते देखा है।’’ को सुनाया। उस दिन के बाद तिवारी जी इतने शर्मिन्दा हुए कि बाबा को मिलने के लिए ही नही आये।
पदार्पण
लोकसभा चुनावों की तिथियाँ घोषित हो चुकी है, आचारसंहिता लागू हो चुकी है और दल अपनी दलदल में खूब लोटमलोट हो रहे हैं। लोकतंत्र की असली स्वामी बेचारी जनता रँगे सियारों के असली चेहरे नहीं पहचानती, न उसके पास स्रोत हैं, न संसाधन, न समय है, न ऊर्जा। जो जितना है वह जीवन के जूए को गर्दन पर ढोने में लगा हुआ है। दूसरी ओर,वैसे भी इस देश के लोगों को अपने अतिरिक्त सभी मसले बेमानी लगते हैं। देश - वेश उसके एजेन्डे में कहीं है नहीं। इस देश में चुनाव, वर्चस्व के लिए होने वाले युद्ध का रूपानतरण-भर हैं, नवीकृत व्यूहरचना, नवीन अदृश्य मारक हथियार, नई नई गोपन रणनीतियों के अमोघ प्रयोग..... बस और क्या...!! फिर भी चुनाव लड़े जाते और जीते जाते हैं, एक ऐसे युद्ध की भाँति जिसे आयोजन पूर्वक व्यूहरचना से समन्वित किया जाता हो।
जन जागृति के नितान्त अभाव, नेताओं व जनता के अधिकांश वर्ग का आत्मकेन्द्रित होना आदि कारणों से चुनावों द्वारा किसी बड़े परिवर्तन की आशा करना ठीक वैसा ही है, मानो वर्षा की बौछारों में आँगन के सूखा बचे रहने की कल्पना करना या दुष्काल में धरती से अँखुए फूटने का स्वप्न देखना।
पुनरपि यत्न करने में जुटे लोगों को हार नहीं माननी है, व नित नए आते संसाधनों का सदुपयोग करते हुए उन्हें ऐसे विषयकेन्द्रित सामयिक उपयोग में लगाना प्रशंसनीय है। हिन्दी ब्लॊग जगत् में यद्यपि २% भी ऐसे विविध विषय केन्द्रित चिट्ठे नहीं है,पुनरपि जो हैं, उनमें लोकसभा चुनावों पर केन्द्रित सामयिक महत्व के मुद्दे पर हिन्दी में एक ब्लॊग सामने आया है - भारत का फ़ैसला -चुनाव २००९नाम से. नेट पर हिन्दी में इस घोषित विषय पर अद्यतन रहने की अपेक्षा सहित इसके लेखक के प्रति शुभकामनाएँ।
आशा की जानी चाहिए कि कोई दिन ऐसा आएगा कि हिन्दी को केवल साहित्य और ह्यूमैनिटीज़् वाले बक्से से बाहर निकाल कर उसका प्रयोग ज्ञान-विज्ञान व सभी विद्याशाखाओं की भाषा के रूप में किया जाएगा।
समकालीन दल - दलगत राजनीति पर केंद्रित एक सार्थक व्यंग्य पढने के लिए यहाँ चटका लगाइए तो आप पहुँच जाएंगे-कछु हमरी सुनि लीजै
गांधी की गंध में सना हुआ देश है हमारा भारतवर्ष। करीब करीब पिछली एक सदी से यह गांधीमय है। गांधी इसकी पहचान है और गांधी ही इसकी जान है। बिना गांधी के यह देश तो नहीं, हां, देश की कुछ संस्थाएं मरी मरी सी लगती हैं। अब अपनी कांग्रेस को ही लो। जबसे है तबसे गांधी की धोती पकड़े है। धोती मर्दानी से जनानी हो गई पर कांग्रेस ने गांधी की धोती नहीं छोड़ी। धोती पाजामें में तब्दील हो गई तो कांग्रेस ने पाजामे का पांवचा पकड़ लिया। गांधी के प्रति सर्वथा समर्पित है कांग्रेस।
और सिर्फ कांग्रेस ही क्यों, आजकल तो भाजपा भी गांधी को गोद में लिए घूम रही है। सत्ता में आई तो गांधीपूजन शुरू कर दिया। मक़तूल की तस्वीर पर हारफूल चढ़ाकर कातिलों की पीढि़यों ने श्रद्धांजलि दी और पाक़साफ हो गए। संतमना गांधी ने अपना क़त्ल भी माफ़ कर दिया और हिन्दुत्व के ठेकेदारों के मजे़ हो गए।
भाजपावाले भी यह तथ्य मान चुके है कि गांधी इस देश का प्रतिपल-चर्चित-व्यक्तित्व है। गांधी के बगैर और कुछ भले हो जाए पर इस देश में राजनीति नहीं हो सकती है। देश की आधी राजनीति गांधी के पक्ष में है और आधी उसके विरोध में। हर बात गांधी से शुरू होकर गांधी पर ही समाप्त होती है। गांधीचर्चा और गांधी देश के लिये अपरिहार्य हैं।
आधी आबादी
इस खंड में भी आज एक ऐसी महिला और उनके ब्लॊग की चर्चा करने जा रही हूँ, जो उदयपुर, राजस्थान की भूतपूर्व एम.पी., राजसमन्द की एम. एल. ए. व भाजपा की महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं- श्रीमती किरण माहेश्वरी
प्रशासन, समान नागरिक संहिता, राजस्थान की वर्तमान दशा, गाँधी जी क वस्तुओं की नीलामी आदि विषयों पर उनके लेख उनके स्वनाम ब्लॊग पर पढ़े जा सकते हैं। १७ जनवरी की पहली प्रविष्टि के रूप में पाकिस्तानी नीति अकर्मण्यता एवं दिशाहीनता की शिकार शीर्षक से है.
एक झलक देखें:
महात्मा गांधी नें अपना चश्मा, जेब घड़ी, एक जोड़ी चमड़े की चप्पलें, एक पीतल की थाली और कटोरी जैसी कुछ वस्तुएं अपने एक अमेरिकी प्रशंसक को उपहार में दे दी थी। उस प्रशंसक के उत्तराधिकारी जेम्स ओटिस ने इन वस्तुओ को नीलामी के द्वारा विक्रय करने का निर्णय किया। नीलामी की अंतिम बोली भारत के मदिरा उद्योगपति विजय माल्या के नाम पर 9 करोड़ रुपयों पर छूटी।
कांग्रेस की प्रमुख नेता और पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री अंबिका सोनी ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहाकि इन अमूल्य वस्तुओं को एक भारतीय विजय माल्या की सेवाओं के माध्यम से लगभग दस करोड़ रूपए में क्रय किया गया है। उनके प्रतिनिधि न्यूयार्क में भारतीय वाणिज्य दूतावास के माध्यम से हमारे साथ संपर्क में थे। वहीं इस बात पर विजय माल्या ने कहा है कि सरकार गलत तर्क दे रही है। माल्या का कहना है कि सरकार और उनके बीच नीलामी को लेकर कोई ऐसी बात नहीं हुई।
यह अति लज्जास्पद है कि केन्द्र सरकार गांधी स्मृति वस्तुओं को क्रय किए जाने का झूठा श्रेय लेने का प्रयास कर रही है। केन्द्र सरकार ने इस असत्य को सदा ही रहस्य बने रहने का भ्रम कैसे पाला? गांधी के नाम पर देश को भ्रमित करने यह एक घृणित दुःसाहस है। इसकी जितनी भी निंदा की जाए, वो कम होगी। सरकार के इस असत्य के शीघ्र सामने आने से देश एक भ्रम पूर्ण विश्वास से बच गया। नहीं तो जन साधारण यही समझता रहता कि केन्द्र सरकार गांधी स्मृतियों को प्राप्त करने और देश में लाने के लिए गम्भीर थी।
अनंतिम
२२ मार्च को अपने आवास पर जेड गुडी का सर्वाइकल कैंसर से हार कर देहांत हो गया| ईश्वर दिवंगतात्मा को सद्गति प्रदान करे।
कीमोथेरेपी और सर्जरी के बावजूद जेड का कैंसर उनके जिगर, आँत और कमर तक फैल गया था।
और यह है वह अमर गीत जिसने नए प्राण फूँके
इस रंग में रंग के शिवा ने माँ का बन्धन खोला ।
यही रंग हल्दीघाटी में खुल कर के था खेला ।
नव बसन्त में भारत के हित वीरों का यह मेला ।
मेरा रंग दे बसन्ती चोला ।
हमेशा की तरह डॊ. कविता वाचक्नवी जी की यह चर्चा गम्भीर, सार्थक और खोजपूर्ण रही। आज का दिन भी उस गम्भीरता की गरिमा को संजोये रखना का ही है।
जवाब देंहटाएं*"आज का दिन भारतीय इतिहास का स्वर्णाक्षरों में अंकित किए जाने वाले क्रांतिकारियों से बिदाई का दिन है।"* इसकी विदाई के साथ ही कल से नेता चुनावी जोड़-तोड़ में लग ही जाएंगे॥
शहीद दिवस पर
जवाब देंहटाएंअत्यंत रोमांचकारी तथा शोधपूर्ण चर्चा के लिए
चर्चाकार कविता वाचक्नवी की
जितनी प्रशंसा की जाए ,
कम ही रहेगी.
इसमें संदेह नहीं कि
महात्मा गाँधी के तनिक से हस्तक्षेप से
भगत सिंह की फाँसी टाली जा सकती थी.
लेकिन
महात्माओं की आत्मा भी
कभी-कभी सो जाती है.
भगत सिंह से शायद
उतना खतरा ब्रिटिश हुकूमत को न लगा हो ,
जितना परमपूज्य बापू को.
तभी तो
उन्होंने सारे देश को चेतावनी दे डाली कि
भगत सिंह के मार्ग पर न चले.
शहीदों को प्रणाम सहित
ऋ.
दूसरे भाग की प्रतीक्षा है.
जवाब देंहटाएंअरे! आ गया शेषांश भी!
जवाब देंहटाएंकमलकांत बुधकर को पढ़कर अच्छा लगा.
धन्यवाद!
बेहतरीन चर्चा। एतिहासिक चर्चा। आपकी मेहनत देखकर ताज्जुब भी होता है।
जवाब देंहटाएंसाथियों,
जवाब देंहटाएंहम लोगों की तकनीकी क्षमताओं के कारण यह पोस्ट सुबह प्रकाशित होकर फ़िर मिट गयी। पुन: प्रकाशित करते-करते शाम क्या रात हो चली है। कविता जी बिना खाये-पिये कल रात दस बजे से इसको लिखने-सजाने संवारने में लगी रहीं। अब जाकर यह जैसे-तैसे प्रकाशित हो सकी है। पाठकों को इंतजार करना पड़ा।
अब अगली चर्चा कल शाम को प्रकाशित होगी। तब तक आप आराम से इस चर्चा के सभी लिंक देखकर आनंदित हों!
हमेशा की तरह सुन्दर चर्चा .
जवाब देंहटाएंडा.मनोज मिश्र
बहुत ही सटीख और साम्यिक चर्चा. इस चर्चा के ज्यादातर बयान आज अनेक लोगों ने पहले बार पढे होंगे. आपने आज के दिन के लिये इस तरह के हीरे मोती छांटने का काम बडी ही मेहनत पुर्वक किया है. आपके इस होसले को सलाम. बहुत बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
फ़ुरसतिया जी हमको तो समझ ही नही आरहा है दो दो पोस्ट दिख रही हैं. मेरा एक निवेदन है कि यह पोस्ट बहुत ही ऐतिहासिक है. इसमे मान.कविता जी का बहुत कीमती समय लगा है. पर उनको नही मालूम होगा कि इस पोस्ट के जरिये उन्होने लोगों को कितने कीमती हीरे मोती दे दिये.
जवाब देंहटाएंये आलेख हमको हमारी जडॊ तक लेजाता है. मेरा निवेदन है कि इस पोस्ट को कमसे कम और एक दिन रहने दिया जाये जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग इसका लाभ ले सकें.
रामराम.
MANVINDER BHIMBER has left a new comment on your post "बलिदान : बलिदानी : भारतमाता की जय !!! ":
जवाब देंहटाएंकविता दी ......
आज चर्चा नहीं है .....आज तो रोंगटे खड़े हो रहे है इसे पड़ कर ......सच इन शहीदों का बलिदान इतना बड़ा है किहमारे पास शब्द नहीं है उसे चुकाने के लिए ....और फिर वो बलिदान चुकाया भी नहीं जा सकता है .....
अच्चा तो ये होगा कि हम आने वाली पीड़ी को बार बार याद दिलाये कि वो जज्बा नई पीड़ी भी अपने भीतर पैदा करें जो अब दिखाई नहीं दे रहा है .....लेकिन बहुत जरुरी है देश पर मर mitne का जज्बा .......
मैं आपको शुक्रिया या दन्यवाद जैसे शब्द नहीं कहूँगी ...... वो bone पड़ रहे हैं ......नमन करती हूँ शहीदों को
Posted by MANVINDER BHIMBER to चिट्ठा चर्चा at March 23, 2009 9:02 AM
Shastri has left a new comment on your post "बलिदान : बलिदानी : भारतमाता की जय !!! ":
जवाब देंहटाएंकविता जी,
आज का आलेख मुझे एकदम बचपन एवं ग्वालियर वापस ले गया.
1. बचपन में मेरे इष्ट गुरुओं में से एक थे केप्टन जी एम सिंह गिल. ये आजाद हिन्द फौज के कफ्तान, गजब के अद्यापक, एवं सशक्त शायर थे. मेरे गिर्जाघर के मुखिया भी थे. अत: हर हफ्ते इन से क्रातिकारी संदेश सुनता था (यादगार के रूप में).
2. डा कमल वशिष्ठ विद्यालय में मेरे "मेन्टर" थे. ये आजाद हिन्द फौज के नेशनल डिसिप्लिन स्कीम के वक्ता थे.
कुल मिला कर एक "क्रांतिकारी" विचारधारा से प्रभावित बचपन!
भगत सिंह सहित सब क्रांतिकारियों को मेरा नमन!
आज की चर्चा के लिये मेरा आभार !!
सस्नेह -- शास्त्री
Posted by Shastri to चिट्ठा चर्चा at March 23, 2009 11:01 AM
aaj ki bhaav bhari chittha charcha ke liye dhanywaad
जवाब देंहटाएं- vijay
बहुत सुन्दर और भावुक करने वाली चर्चा है यह। अमर शहीद भगत सिंह को याद करने पर गांधी सहित सभी कांग्रेसियों पर क्षोभ होने लगता है। इनकी कायर नीति ने असंख्य देशभक्तों को बलिदान देने पर मजबूर कर दिया। आजभी अनेक देशवासी इनकी लिजलिजी सोच और भीरुता के कारण मर रहे हैं। देश को स्वयं सरकार द्वार असुरक्षित मान लिया जा रहा है। जैसे हम पाकिस्तान होते जा रहे हैं। ऐसे में फिर हम उन अमर शहीदॊं की आत्मा की शान्ति के लिए कैसे दुआ मांगे।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंऎतिहासिक चित्रों से सजी बेहतरीन चर्चा..
इनका बलिदान याद कर लिये जाना ही एक बेहतर एहसास दे रहा है..
इस कृतघ्न देश के वासियों के लिये,
बिस्मिल ने शायद यूँ ही न कहा होगा,
" वह फूल चढ़ाते है तुरबत भी दबी जाती है ।
माशूक के थोड़े से भी एहसान बहुत है ।। "
मुझे तो इन लाइनों में उनका संयत क्षोभ स्पष्ट दिख रहा है
हालात और मानसिकता अभी भी जस की तस है, अतएव
इनका बलिदान याद कर लिये जाना ही एक बेहतर एहसास दे रहा है..
ऎतिहासिक चित्रों से सजी बेहतरीन चर्चा..
धन्यवाद
भगत सिंह
जवाब देंहटाएंजिन्होंने अपनी सिंहनाद से
की अंग्रेज सरकार की दुर्गत।
हमेशा की तरह कविता जी की यह चर्चा गम्भीर, सार्थक और खोजपूर्ण रही!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार चर्चा. एक ही जगह इतने सारे चित्र, लिंक्स, और लेखन....चिट्ठाचर्चा की सबसे अच्छी प्रविष्टियों में एक.
जवाब देंहटाएंभारतमाता की जय
शानदार चर्चा।
जवाब देंहटाएंमेरा पैतृक निवास भी उसी क्षेत्र में है।
पिछले वर्ष ही जिले का नाम 'नवांशहर' से बदल कर 'शहीद भगत सिंह नगर' किया गया है।
कविता जी की हिंदी भारत पर 24 मार्च वाली पोस्ट खोलने और टिप्पणी करने में, मेरा एक घंटा लग गया। कुछ तो गड़बड़ है। मुझे लगता है चित्र लगाने में कदाचित कुछ … हो रहा है।