क्यों भई ??
दन्न से हमारा जवाब है कि क्यों नहीं??
माना की फाग सर चढ़ने लगा है रंगो को बनाने की तैयारी हो रही है। गुंझिया सम्मेलन हो रहे हैं, और भी सब इसी कोटि के करम हो रहे हैं मतलब बाकी सब मदमाए हुए हैं पर हमारा कहना है कि इसी लिए हम भुनभुनाई चर्चा कर रहे हैं। आप ही सोचिए कि जब सारे अच्छे अच्छे भाव इठलाते घूम रहे हैं... आनंद, मस्ती, खुशी... ऐसे में 'बेचारे' भुनभुनाहट जैसे भाव किसी कोने में पड़े रूठे रहें...कहीं अच्छा लगता है? अगले का भी तो मन करता होगा कि वो भी देखे की होली कैसी होती है। आखिर भूनभूनाहट भी तो मानवीय भाव ही है न। तो भैया हम भुनभुनाए हुए हैं... इसलिए भुनभुनाई चर्चा कर रहे हैं। वैसे हमारी तरह ही भुनभुनाए अनिल पुसादकर भी हुए हैं.. उनकी आपत्ति है कि बाकी तो सब ठीक है पर ये पानीविद...पर्यावरणगिद्ध अपनी गिद्ध नजर भारतीय त्यौहारों पर क्यों डाल रहे हैं। हमारी होली आते ही इन्हें पानी की कमी क्योंकर याद आने लगती है-
होली पर कहते है रंग मत खेलो पानी बचाओ।दिवाली पर कह्ते है कि पटाखे मत फ़ोड़ो प्रदूषण से बचाओ।तो क्या करे?वैलिंटाईन डे, मनायें,न्यू ईयर मनाये?समझ मे नही आता सारी सीख देशी त्योहारो के लिये,सारी छेडछाड़ देसी त्योहारो के साथ?ऐसा लगता है सोची-समझी साजिश के तहत हमारे देशी त्योहारो को धीरे-धीरे मारा जा रहा है?पतंग उड़ाना,लट्टू चलाना,बाटी खेलना तो भूल ही चुके हैं।वैसे भी इन त्योहारो पर सरकारी सखती का असर साफ़ दिखता है। होली पर पुलिस तंग करती है और शाम तक़ चलने वाले रंगो के त्योहार को दोपहर के पहले-पहले निपटा देती है।
वैसे भुनभुनाहट केवल सांस्कृतिक नहीं होती वो शुद्ध राजनैतिक भी हो सकती है...मसलन आप भुनभुना सकते हैं कि हमारे जंग खाए लौहपुरुष पाकिस्तानी साइटों पर क्यों विराजमान है... मामला दरअसल जियो-टारगेटिंग का है...पर भुनभुनाहट भी जियो लोकेटिड हो सकती है-
लोगों में लॉजिक की कमी होती है, इसलिए कहा जाता है कि कॉमन सेन्स इज़ नॉट सो कॉमन!!तकनीकी दृष्टि से न भी देखें, आम दृष्टि से देखें, तो श्री अडवाणी पाकिस्तानी वेबसाइटों पर दिखाई दे रहे हैं इससे श्री अडवाणी का पाकिस्तान प्रेम कैसे ज़ाहिर होता है? श्री अडवाणी की वेबसाइट पर तो पाकिस्तान नज़र नहीं आ रहा न!! बल्कि इससे यह ज़ाहिर होता है कि पाकिस्तानियों को भी श्री अडवाणी पसंद हैं!
पाकिस्तान पर भुनभुनाने के लिए गद्य ही नहीं कविता भी एकदम मुफीद है रवीन्द्र पूछते हैं कि क्या ये ही पाकिस्तान है-
हिंसा हीं अपना है धर्म
न लज्जा नही कोई शर्म
तमंचों से मिल जाती रोटी
तो क्यूंकर करें कोई कर्म?
एच फॉर हिंसा टी फॉर तकरार
कर रहे लोग असलहों से प्यार
तमाशबीन हैं हुक्मरान
इसी का नाम है पाकिस्तान .....!
जेटलेग से थके बालक पर पिता ने हाथ चला दिए, बालक हिन्दुस्तानी...बाप भी हिन्दुस्तानी इसलिए इसे चाइल्ड एब्यूज तो माना नहीं जा सकता पर भुनभुनाया तो जा सकता है।
कविता हैरान हैं कि इसे हल्के क्यों लिया जा रहा है-
माता-पिता द्वारा अमूमन की जाने वाली पिटाई और इस पिटाई में यह बड़ा अन्तर है। इसकी निन्दा व भर्त्स्ना की जानी चाहिए। बालमजदूरी के लिए विवश करना ही तो है यह। आप लोग कैसे निर्दयी हैं जो यह भी नहीं देखते! और पश्चिम को कोसने का अवसर मिलने पर झट से अपनी हर चीज को जायज व उनकी हर बात को नाजायज सिद्ध करने लगते हैं!!
कमाल है!!!
पहले ब्लॉग की दुनिया में सोचने वाली औरतों को भिन्नाट की संज्ञा दी जा चुकी है इसलिए समझा जा सकता है कि क्यों स्त्री पैदा होना दोष ही है
जब मैं पैदा हुई तो मुझमें दोष था
क्योंकि मैं लड़की थी
जब थोड़ी बड़ी हुई तब भी दोषी रही
क्योंकि मेरी बुद्धि लड़कों से ज़्यादा थी
थोड़ी और बड़ी हुई तो दोष भी बड़ा हुआ
क्योंकि मैं सुन्दर थी और लोग मुझे सराहते थे
और बड़ी होने पर मेरे दोष अलग थे
क्योंकि मैंने ग़लत का विरोध किया
बूढ़ी होने पर भी मैं दोषी रही
क्योंकि मेरी इच्छाएं ख़त्म नहीं हुई थीं
मरने पर भी मैं दोषी रही
क्योंकि इन सबके कारण असंभव थी मेरी मुक्ति.
ठसक भरी महिला पत्रकार होना भी कम 'दोषपूर्ण' नहीं जब सबकी अच्छी भली होलियाई पोस्टों हमने भुनभुनाहट के तत्व खोज लिए तो स्वाभाविक है कि अपनी खुद की पोस्ट तो खांटी भुनभुनाती पोस्ट होनी ही थी, हम बमके हुए हैं कि हमारे चाहने भर से ज्योतिष गायब क्यों नही हो जाता... पर नही जी वो तो अब सब जगह है।
तरुण भी कम भुनभुनाए हुए नहीं है कि देश में पहचान इतनी बँटीं क्यों हुई है। हमें तो उनके ब्लॉग से लिए चित्र तक में ध्वजवाहक प्रसन्न कम ही दिख रहा है।
इस भुनभुनाए चर्चाकार को अब इजाजत दें।
पर्यावरणगिद्ध पागल हैं...मत सुनो...होली दिवाली रोज़ नहीं होतीं...--:)
जवाब देंहटाएंभुन-भुन
जवाब देंहटाएंआपकी बात सुनकर हमें पूरा यकीन हो गया है की होली पर सब भुनभुनाये हुए हैं...इस मुई भुनभुनाहट को एक बाल्टी रंग में गोते लगवा देना जरूरी है...वरना ये और फैलेगी और सारे ब्लॉग संक्रमित हो जायेंगे और ये सारा दोष आपका होगा...लोग किसी भी माहौल में भुनभुनाहट देख लेते हैं, भला ये भी कोई वक़्त है...होलियाईये हुड़दंग कीजिये...बुरा न मानो होली है :D
जवाब देंहटाएंभुनभुनाई चरचा।
जवाब देंहटाएंVajib hai bhunbhunahat.
जवाब देंहटाएंढ़ेर सारे भुनगे..ढ़ेर सारी भुन भुन :-)
जवाब देंहटाएंशॉर्ट एंड स्वीट चर्चा... भुनभुनाती हुई
जवाब देंहटाएंगजब भुनभुनाये भाई.
जवाब देंहटाएंओह, पहली बार किसी की नज़र बालसभा पर गई, वरना बालदिवस के प्रसंग तक में उसे वर्जित ही देखती आई हूँ।
जवाब देंहटाएंमंगलमय हो होली।
भई भुनभुनाते रहिए!......वैसे अच्छा भुनभुना लेते हैं ..))
जवाब देंहटाएंहोली के समय भुनभुनाहट?!!! जिस जीवी ने भी की उसके चेहरे पर मसि मल दो:)
जवाब देंहटाएंहोली की शुभ भुनभुनायें.
जवाब देंहटाएंभाई भुनभनाहट .....क्या बात है
जवाब देंहटाएंअच्छी रही चर्चा
भिनभिनाये नहीं यही गनीमत रही !
जवाब देंहटाएं"इस भुनभुनाए चर्चाकार को अब इजाजत दें।
जवाब देंहटाएंइजाजत दे दी जाती है, बशर्ते अगली बार चर्चा अच्छी भी हो सही लम्बाई की भी हो. इस बार सिर्फ पहला गुण दिख रहा है.
सस्नेह -- शास्त्री
-- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.
महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)
जवाब देंहटाएंश्री मसिजीवी सर जी,
हमको तो भुनभुनाने का मौकाइच नईकूँ मिला ।
आप यह सही बाइट लाया है, कि देश के झँडे का टी.एम.टी. टेस्ट हो रैला है..
मुलुक साठ से ऊप्पर कूँ जा रिया है,
सो इस माफ़िक का स्ट्रेस टेस्ट एक बार फिर से होयेंगा ।
फिर, बुढ़वे फिटनेस ले आवेंगे.. अउर पब्लिक रोयेंगा :)
पण अपुन तो चर्चा तो पढ़ाइच नेंई, बस टीप मार दिया है..
ईहाँ पब्लिक लोग बोलते कि, येइच दुनिया की रीत है..सब तो यही कर रैला है, तो तूब्बी कर दे :)
!!!
बढ़िया चर्चा के बाद भुनभुनाने की क्या जरूरत है जी!
जवाब देंहटाएंहम तो भुनभुनाने के साथ होलियाने भी लग गये हैं। होली की रंग-बिरंगी बधाई,आज से क्या अभी से। होली है।
जवाब देंहटाएं