लेकिन यह वाकई चिंता का विषय है कि क्या भारत मे व्यापार का तरीका ऐसा निकृष्ट ,अमानवीय और घृणित हो गया है कि दो चार रुपए के फायदे के लिए शवों के नीचे रखी बर्फ को कोई हमें चुस्की मे या नीम्बू पानी मे घोल कर पिला सकता है? हम दो तीन दिन सोचेंगे, दो चार साल अवॉइड करेंगे, फिर भूल जाएंगे!!इतनी ही याददाश्त बची है मासेज़ में!
या सिर्फ इसलिए हम बचते फिर रहे हैं इसलिए कि कोई पिता अपनी संतान का यौन शोषण कर सकता है ऐसी बातों से "मूड खराब हो जाता है " और फिर आप धीरे धीरे डिप्रेशन की उस स्थिति मे पहुँच जाएंगे कि व्यर्थता बोध आ घेरेगा! आप क्यों जी रहे हैं इस दुनिया में ? या फिर हिस्टेरिकली चिल्लाने लगेंगे और बॉस दो लात मार कर ऑफिस से बाहर कर देगा, घर वाले मेंटल असायलम मे जमा करवा देंगे !!
मुझे बार बार महसूस होता है कि शायद पागल हो जाना ही इस समय की सबसे बड़ी ज़रूरत है , कम से कम अपनी अभिव्यक्तियों पर दिन रात पहरा देते रहने और अपनी सम्वेदनाओं को ट्रैश मे डालते रहने और मन को खाली करते रहकर हँसते रहने से निजात मिलेगी।
हँसो वर्ना मारे जाओगे ........
इसलिए अपनी ज़मीन चुपचाप पुरुषों के हवाले कर दो और फिर भी हँसो वर्ना मारी जाओगी।
गुरूजी ने मुझे ब्रम्हवाक्य दिया है कि लोककल्याण करने की बजाय ब्लागिंग में अपना आत्मकल्याण करने की सोचो मै भी आज उस ब्रम्ह वाक्य पर अमल कर रहा हूँ .
लेकिन जब बन्द कमरे मे भी सुरक्षित रह पाना सम्भव न रह गया हो? चारों ओर से गरीब -असहायो पर मार पड़ रही हो और कोई भी नेता उसे धर्म से ज़्यादा अहमियत नही देता हो तो वही असहाय लोग डाकुओं की भी पीट पीट कर जान ले सकते हैं
स्त्री विमर्श
एक सशक्त नारी - मैडम क्यूरी की कहानी-लवली लुमारी
उनसे कैसे कहूँ - प्रेमलता पान्डे
आज का कार्टून - इरफान के ब्लॉग से
बस यही एक अच्छी बात है :)
और बरसात का यह नया बिम्ब
बारिश की बूंदे जब किसी शाम को भिगोती है .. विंडस्क्रीन पर एक तलब उभरती है .. ... माजी की गलियों की इक तस्वीर.... ... कितने रंग है उसमे ..गिनने की कोशिश ... .. .. वाइपर खामोश रहता है...जैसे किसी की आमद का इंतज़ार हो... ......सिगरेट के धुंये की चादर में धुंधले से कुछ अक्स उभरते है ...ओर गुम हो जाते है....-
अनुराग आर्या
_____________
देखा था मिट्टी में पानी की धार
भीगते शब्द थरथराते काँपते
निचोड़ते थे अर्थ
छोड़ते थे अपनी जगह
कुछ शर्मिन्दगी से
बियाबान मैदान पर
विचरती जैसे कोई अकेली नीलगाय
पुरानी पोथियों में छुपी किसी
गोपन कथा के संकेत चिन्ह _
-
प्रत्यक्षा
_______
एक बेहद प्रभावी कविता कबाड़खाना से
अनुरोध
मुझे एक झाड़ू दो - मैं शहर के चौराहे की सफ़ाई करूंगा
या दो एक औरत, मैं उसे प्यार करूंगा और गर्भवान बना दूंगा
मुझे एक पितृभूमि दो, मैं उसके दृश्यों का
महिमागान करूंगा या उसकी सत्ता का अपमान
या करूंगा उसकी सरकार की प्रशंसा
मेरे सामने एक आदमी लाओ मैं उसकी महानता को पहचानूंगा
या उसके दुःख को
रोचक शब्दों में करूंगा मैं उनका वर्णन
मुझे प्रेमीजन दिखाओ और मैं भावनाओं में बह जाऊंगा
मुझे किसी अस्पताल में भेजो
या किसी सम्प्रदाय के कब्रिस्तान में
मेरे वास्ते सर्कस या थियेटर की व्यवस्था करो
किसी फ़सल में किसी युद्ध की - शहर में किसी उत्सव की
या मुझे गाड़ी चलाना या टाइप करना सिखलाओ
मुझे भाषाएं सीखने पर मजबूर करो
या अख़बार पढ़ने पर
और आख़ीर में दो मुझे वोदका
- मैं उसे पियूंगा
और फिर कै करूंगा
क्योंकि कवियों का इस्तेमाल होना ही चाहिये.
एक बेहद प्रभावी कविता कबाड़खाना से
अनुरोध
मुझे एक झाड़ू दो - मैं शहर के चौराहे की सफ़ाई करूंगा
या दो एक औरत, मैं उसे प्यार करूंगा और गर्भवान बना दूंगा
मुझे एक पितृभूमि दो, मैं उसके दृश्यों का
महिमागान करूंगा या उसकी सत्ता का अपमान
या करूंगा उसकी सरकार की प्रशंसा
मेरे सामने एक आदमी लाओ मैं उसकी महानता को पहचानूंगा
या उसके दुःख को
रोचक शब्दों में करूंगा मैं उनका वर्णन
मुझे प्रेमीजन दिखाओ और मैं भावनाओं में बह जाऊंगा
मुझे किसी अस्पताल में भेजो
या किसी सम्प्रदाय के कब्रिस्तान में
मेरे वास्ते सर्कस या थियेटर की व्यवस्था करो
किसी फ़सल में किसी युद्ध की - शहर में किसी उत्सव की
या मुझे गाड़ी चलाना या टाइप करना सिखलाओ
मुझे भाषाएं सीखने पर मजबूर करो
या अख़बार पढ़ने पर
और आख़ीर में दो मुझे वोदका
- मैं उसे पियूंगा
और फिर कै करूंगा
क्योंकि कवियों का इस्तेमाल होना ही चाहिये.
अब जाती हूँ , छुट्टी का इस्तेमाल भी तो कुछ होना ही चाहिए न (आज हमारी छुट्टी है , आप को जलन तो नही हो रही न)
ज़मीनी मुद्दों पर केन्द्रित।
जवाब देंहटाएंकविता जी ने बिलकुल सही कहा
जवाब देंहटाएं"और बरसात का यह नया बिम्ब"
जवाब देंहटाएंये बेमौसम बिन बादल बरसात कहां से हुई:)
अनुरोध आपका बहुत ही सुन्दर लगा । अच्छी पोस्ट लगी सामाजिक घटनाओं पर केन्द्रित ।
जवाब देंहटाएंसमीक्षित posts में ज़रूर कुछ तो बात हैं...चर्चा पढ़ कर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंडॉ मंजुलता सिंह जी का आलेख हैं "श्रीमती अबला बसु जैसे चरित्र आज उदाहरण बन सकते हैं" नारी ब्लॉग पर
जवाब देंहटाएंमेरा नाम गलती से दिया गया है और मेरे नाम के नीचे लिंक लवली के ब्लॉग का हैं . सुधार दे आभार होगा
कुछ अलग सी और अच्छी चर्चा ।
जवाब देंहटाएं" uppr likhi kuch batao ko pdh kr dil vythith hua hai.....ant tk aate aapne saamany krne ke bhrpur koshish ki hai....abhar"
जवाब देंहटाएंRegards
दीप्ति जी पोस्ट छूट गयी थी ओर कबाड़खाना की कविता भी .....शुक्रिया ...छुट्टिया मुबारक
जवाब देंहटाएंविविध विषयों को आप ने बहुत अच्छी तरह इस चर्चा-माल में पिरोया है.
जवाब देंहटाएंकार्टून-चुनाव बहुत सुंदर !!
कुछ एक-लाईना जोडने की कोशिश करें!
सस्नेह -- शास्त्री
सुन्दर निराली चर्चा के लिये आभार ।
जवाब देंहटाएंआज की चिठ्ठा चर्चा नोट पेड के नाम से लिखी गई है में ब्लागर्स की पोस्टो के साथ में निम्नाकित शब्दों को जोड़कर शुरुआत की गई है .
जवाब देंहटाएं" जैसे मार दी जाती हैं " "मरने से बचने के लिए सबसे उपयुक्त है," " हँसो वर्ना मारे जाओगे "...चिठ्ठा चर्चा में प्रयोग किये गए है क्या ये शब्द उचित है विचार करे. क्या इन शब्दों का प्रयोग करना ब्लागर्स की गरिमा को कम करना तो नहीं है या चर्चा कर ब्लॉगर साथियो को कम आंकने का प्रयास करना तो नहीं है यह विचारणीय है . कृपया भविष्य में अच्चे उपायुक्त शब्दों का प्रयोग किया जाये तो चिठ्ठा चर्चा सार्थक होगी और चिठ्ठा चर्चा को निसंदेह चार चाँद लग जायेंगे मै यह कामना करता हूँ .
अच्छा पोस्ट संचयन! आमतौर पर सुजाताजी संक्षिप्त चर्चा करती हैं! आज की चर्चा काम भर की लगी और कुछ ज्यादा ही अच्छी लगी। :)
जवाब देंहटाएंमहेन्द्र मिश्र जी ज्ञानी हैं। चर्चा पर उनकी टिप्पणी पर बेहतर टिप्पणी तो शायद सुजाताजी ही कर सकती हैं!
लेकिन उनके सुझाव का आदर करते हुये यह अर्ज करना चाहूंगा कि मेरी समझ में लिंक पोस्ट देने के पहले अपने भाव लिखे हैं। इससे किसी ब्लागर की गरिमा कम कैसे हो रही हैं कृपया समझा दें तो अच्छा लगेगा। शुभकामनाओं के लिये धन्यवाद!
अनूप जी
जवाब देंहटाएंसादर अभिवादन
मै आपसे बढ़कर ज्ञानी तो हो नहीं सकता है और हूँ भी नहीं पर किसी ब्लॉगर के शीषक के साथ ऐसे शब्दों के प्रयोग कुछ अटपटे जरुर लगते है फिर ऐसा लगता है कि जो मैंने पहली टीप में लिखा दिया है . बेशक सुजाताजी की यह चिठ्ठा चर्चा बहुत अच्छी लगी और वे साधुवाद की पात्र है . मैंने तो मात्र सुझाव दिया है कि यदि अच्छे शब्दों का प्रयोग किया जाये तो यह चर्चा ब्लॉगर के साथ साथ अन्य को पढ़कर बहुत अच्छा लगेगा .....
मित्र महेन्द्र मिश्रा जी की बात में दम है. मैं उनका समर्थन करता हूँ और समर्थन सिर्फ मुद्दे पर ही नहीं बल्कि इस बत पर भी कि मैं भी अनूप जी बढ़कर ज्ञानी तो नहीं हो सकता और हूँ भी नहीं. वैसे भी उन्होंने तो मात्र सुझाव दिया है.
जवाब देंहटाएंमहेन्द्रजी,संजय तिवारीजी,
जवाब देंहटाएंआपने/अनूप जी से बढ़कर ज्ञानी नहीं हो सकता से असहमति व्यक्त करते हुये सुझाव के लिये चिट्ठाचर्चा की तरफ़ से धन्यवाद देता हूं!
...रघुवीर सहाय की कविता है यह "हँसो हँसो जल्दी हँसो/.....हँसो वर्ना मारे जाओगे वही से लिया है।
जवाब देंहटाएंयूँ यह मेरी सोच है कि मै इन पोस्टस मे एक कड़ी देख पा रही हूँ।निजी सोच चर्चा मे झलकती ही है।
हाँ आइंदा के लिए आपके सुझाव का अवश्य ध्यान रखूंगी कि चर्चा अधिक से अधिक वस्तुनिष्ठ बन सके।
धुंध की रोगन पुती आकाश में
जवाब देंहटाएंऔर मन है चाँदनी की आस में
no action has been taken on the requested correction in my previous comment
जवाब देंहटाएंHANSNA MAJBURI HAI
जवाब देंहटाएंKYOKI DUKHO ME BHI JEENA JARURI HAI