.........आदमी होने का कोई फायदा ना था.....चुपचाप मर गया....भूत बन गया.........मगर यहाँ भी पाया कि जितना निकृष्ट मैं आदमी था....उतना ही निकृष्ट भूत भी.....!!........अब सोच रहा हूँ कि अब क्या करूँ....दुबारा कैसे मरुँ........??
उसके बाद जो भी ब्लॉग पढ़ते गए उनके परिचय पर नज़र पहले जाती ......
दिगम्बर जी भी दुबई में हैं , पिछली पोस्ट पर टिप्पणी पाकर जाना.... पहली बार उनके ब्लॉग पर उनका परिचय कुछ इस तरह से मिला ----
जागती आँखों से स्वप्न देखना मेरी फितरत है .........
हरकिरत हक़ीर अपना परिचय कुछ इस तरह से देती हैं।
क्या कहूँ अपने बारे में...? ऐसा कुछ बताने लायक है ही नहीं बस - इक-दर्द था सीने में,जिसे लफ्जों में पिरोती रही दिल में दहकते अंगारे लिए, मैं जिंदगी की सीढि़याँ चढती रही कुछ माजियों की कतरने थीं, कुछ रातों की बेकसी जख्मो के टांके मैं रातों को सीती रही। ('इक-दर्द' से संकलित)
रंजना भाटिया के लिए प्रेम ही सत्य है, काश सारी दुनिया इसी प्रेम रूपी नूर की बूँद पीले तो दुनिया स्वर्ग हो जाए ....
प्यार के एक पल ने जन्नत को दिखा दिया प्यार के उसी पल ने मुझे ता -उमर रुला दिया एक नूर की बूँद की तरह पिया हमने उस पल को एक उसी पल ने हमे खुदा के क़रीब ला दिया !!
प्रत्यक्षा जी का परिचय एक खूबसूरत सपने जैसा है
कई बार कल्पनायें पँख पसारती हैं.....शब्द जो टँगे हैं हवाओं में, आ जाते हैं गिरफ्त में....कोई आकार, कोई रंग ले लेते हैं खुद बखुद.... और ॥कोई रेशमी सपना फिसल जाता है आँखों के भीतर....अचानक , ऐसे ही...
जयपुर के कुश का परिचय एक खूबसूरत ख्याल सा है....
इक रोज़ अचानक कुछ शब्द जमी पर गिर पड़े॥ मैने उठाकर उन्हे जेब में रख लिया और चलता रहा.. सोचा किसी ज़रूरतमंद को दे दूँगा। . और दिए भी पर देखिए ना जितने दिए बढ़ते ही गये.. अब भी बढ़ते जा रहे है.. जब भी जेब से कुछ निकालता हू ये शब्द भी साथ आ जाते है.. कभी ग़ज़ल बन जाते है कभी नज़्म कभी कविता और कभी ना जाने क्या.. मैं क्या कहु अपने बारे में.. ये शब्द कभी मिलकर कुछ कह दे तो यहा लिख दूँगा.. तब तक के लिए इतना जान लीजिए की मैं कुश हू...बस एक खूबसूरत ख्याल .....
अजदक अपनी पहचान की चाहत कुछ इस तरह से करते हैं....
फ़िल्म बनाना, नज़र नचाना चाहता हूं, अंतर्लोक की लहरीली नदी पर सवार सुदूर कैसी तो अपहचानी एक दुनिया है उसका ओर-छोर दुलराना चाहता हूं. किताबें सूंघना और कुछ फूल गूंथना चाहता हूँ, हंसते हुए उदासी में लबरेज़ ओह, कैसा तो सुरीला गीत हो जाना चाहता हूं. सड़क पर बिछलती साइकिल सा बहका एक घर होना चाहता हूं. और हां, पता नहीं क्यों तुम्हारे सपनों की सबसे लज़ीज मिठाई होना चाहता हूं...
यह परिचय है मधुर मुस्कान लिए कंचन का
मैं........... एक बहुत ही साधारण सी भारतीय लड़की..... एक आम सी सोच रखने वाली..! कुछ भी ऐसा नही जिसका विशेष उल्लेख किया जाए! हाँ अब जब गवाक्ष खुल ही गए हैं तो अच्छा बुरा सब आपके सामने ही आएगा...!
आज कुछ अलग अन्दाज़ में बात कर रही हैं.... कुछ कुछ निदा फाज़ली के अन्दाज़ में
घर की तामीर चाहे जैसी हो,
इसमें रोने की एक जगह रखना।
उन पहाड़ों को देखिये, कितना विशाल लगता है उनका अस्तित्व। यूँ तो पत्थर उनमे भी है, मगर उनमें बर्फ की शीतलता भी है, पेड़ों की हरीतिमा भी है, और पत्थरों की स्थिरता भी। जैसे लगता है कि कभी वे हँस रहे है...लोगो को सुख दे रहे है और कभी बस गंभीर से हो जाते हैं। उनके अंदर झाँक के देखो तो एक नदी होती है उनके अंदर... भावनाओं की॥संवेदनाओं की...! वो अपनी कहानी स्वयं कहते हैं, बिना कुछ कहे ही। वे लोगो को ऊँचाइयाँ देते हैं, वे हमेशा हँसते रहते हैं और अंदर से आँसुओं की नदी से भीगे रहते हैं। मुझे पहाड़ बहुत अच्छे लगते है...! बहुत अच्छे॥!
नारी नर से दो मात्राओं से हमेशा आगे रहेगी...चोखेरबाली की इस पोस्ट ने प्रमाणित कर दिया ....
समाज बदल रहा है, सोच बदल रही है और इसी के साथ महिलाओं का दायरा बढ़ रहा है। अभी तक लोग कहते थे कि राजनीति, प्रशासन और बिजनेस में महिलायें शीर्ष स्थानों पर मुकाम बना रही हैं। पर इस बार के आई0ए0एस0 रिजल्ट ने साबित कर दिया है कि महिलायें वाकई अब शीर्ष पर हैं।
इस सफलता पर सभी को बधाई और शुभकामनाएँ
आवारा बंजारा संजीत जी ने भी युवा शक्ति से बने स्वर्ग के दर्शन करा दिए। युवा वर्ग अगर अपनी शक्ति को पहचान ले तो पूरी दुनिया को स्वर्ग बना सकता है...
2007 में आईटी इंजीनियरों ने समाज सेवा करते हुए जिस स्वर्ग को बनाया....उसकी एक झलक आप भी देखिए..... "सामाजिक कार्यों में सहयोग करने के लिए 350 प्रशिक्षु सॉफ्टवेयर इंजीनियरों ने आपस में 50,000 रूपए संग्रहित कर लिए। इसी बीच दुर्भाग्य से एक महिला प्रशिक्षु सॉफ्टवेयर इंजीनियर का भाई, जो कि एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखता था, बहुत ही गंभीर स्वास्थ्य समस्या से पीड़ित हो गया और उसे तत्काल 35,000 रूपए की जरूरत थी। इन युवाओं ने उसे 34,000 रूपए दे दिए और शेष बचे 16,000 रूपए से अनाथालय में रहने वाले गरीब बच्चों के लिए चावल और अन्य जरूरत के सामान खरीदर उन्हें दे दिए। और इस तरह इन युवाओं ने गरीब बच्चों के साथ मिलकर अपनी दीवाली मनाई और खुशियों भरे पल उनके साथ बांटे। "
हमारी तरफ से युवा वर्ग को ढेरों बधाई और शुभकामनाएँ
कुछ चिट्ठाकारों के चिट्ठों की एक ही लाइन से उनका परिचय मिल जाता है , पहचानिए ज़रा...
"ग़ैरपेशेवर थोड़ा सा इंसान, कब तक रहूँगा कह नहीं सकता ? "
"हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै"
"ठेठ हिंदीवाला पढ़ने पढ़ाने लिखने और सोचने के अलावा कुछ सोचता तक नहीं"
"टेढ़ी दुनिया पर तिरछी नज़र "
"ख्यालों की बेलगाम उड़ान , कभी लेख कभी विचार कभी वार्तालाप और कभी कविता के माध्यम से"
"हम बतलाएँ दुनिया वालों, क्या क्या देखा है हमने"
"मुक्त विचारो का संगम , कभी खुशी कभी गम"
"मन में बहुत कुछ चलता है। मन है तो मैं हूँ। मेरे होने का दस्तावेज़ी प्रमाण बन रहा है यह ब्लॉग़ "
"फिलहाल इसे प्रार्थना पत्र न समझें, और चाहे जो कुछ समझ सकते हैं"
चलते चलते कुछ खास बातें -------
महेन्द्र मिश्रा जी का कहते है मेरी समझ से अच्छे स्वास्थ्य के लिए और जान है तो जहान है की तर्ज पर डिस्पोजल बोतलों और खाली प्लास्टिक कंटेनरों का उपयोग न करें और इनका बहिष्कार करे अन्यथा आप अपने जीवन को खतरे में डाल सकते है और लाखो रुपयों से हाथ धो सकते है इसीलिए समय रहते सचेत जरुर हो जाए.
दिल्ली के यातायात को सुधारने के लिए अविनाश वाचस्पति जी ने अपील की है , अगर एकजुट होकर उस मुहिम में जुट जाएँ तो अवश्य कुछ सुधार आएगा।
दलित बच्चों को आज भी अलग बिठाकर अलग बर्तनों में खाना दिया जाता है, रचनाजी द्वारा दी गई इस जानकारी को पढ़कर यही कहना होगा कि इस पिछड़ेपन को दूर करने के लिए हमें ही पहला कदम उठाना होगा.
समीरजी का आवाजाही गणक १००००० दिखा रहा है। इस उपलब्धि पर उन्हें कई लाख बधाई !
लू से बचके
पानी पिओ पिलाओ
राहत पाओ
मीनाक्षी जी,
जवाब देंहटाएंखूब बांचै है आपने ब्लॉगर्स के परिचय। एक बेहद रोचक पहलू से परिचय कराने और यह परिचय से ब्लॉगर्स को पहचानना एक नया ही अनुभव था।
कुलमिला कर मजा आया, और यही किसी चर्चा की सफलता भी है कि चर्चाकार से लगाकर श्रोता सभी आंनादित हो।
मुकेश कुमार तिवारी
चिट्ठाकारों का परिचय एक जगह.. बहुत खुब..
जवाब देंहटाएंबहुत सुखद लगा सभी के बारे मे यह जानना कि कौन क्या है?
जवाब देंहटाएंरामराम.
मैंने तो सोचा ही नहीं था ये ...'परिचय ' भी विषय बन जायेगा लेखन का ....यूँ ही भटकते भटकते इधर आ गई ....देखा मीनाक्षी जी की कलम कहाँ कहाँ चल सकती है ....!!
जवाब देंहटाएंचर्चा की प्रस्तुति का एक और अभिनव स्वरूप । परिचय के बहाने कई सारे अच्छे चिटठों का पुनर्परिचय । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंचर्चा का ये अन्दाज बहुत अच्छा रहा.....आपके जरिए बहुत से चिट्ठाकारों का परिचय एक जगह ही मिल गया.
जवाब देंहटाएंवाह खूब नया अंदाज है यह तो परिचय करवाने का ..बहुत पसंद आया ..सच में लिखे लफ्ज़ परिचय का नया अंदाज़ पेश कर देते हैं ..शुक्रिया खुद को भी यहाँ देखने का :)
जवाब देंहटाएंपरिचय=कवितायेँ.
जवाब देंहटाएंएक आयाम यह भी रहा बाकी था
जवाब देंहटाएंमतलब इसका सोपान अभी और हैं
aap ka andaz nirala hai...!
जवाब देंहटाएंबढिया अंदाज रहा चिट्ठा चर्चा का .. चिट्ठाकारों का परिचय एक जगह रख देने का।
जवाब देंहटाएंपरिचय होते रहना चाहिये वर्ना सब अपनी दुनिया मे ही मस्त रहेंगे।
जवाब देंहटाएंपरिचय के अलग अलग अंदाज... बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंताऊ जी का प्रोफ़ाइल अब तक आपकी पैनी नज़र से बचा है ? आश्चर्यम आश्चर्यम !
जवाब देंहटाएंयह भी मस्त रहा-रोचक चर्चा. लोगों के अपना परिचय देने का अपना अंदाज जुदा जुदा ...अच्छा संक्लन!!
जवाब देंहटाएंपरिचय का परिचय, क्या बात है।
जवाब देंहटाएं-----------
SBAI TSALIIM
रोचक! अजदक ने पटखनी आसन करना बन्द कर दिया क्या? बहुत दिनों से उनका ब्लॉग देखा नहीं। प्रोफाइल तो बदला लगता है।
जवाब देंहटाएंसच में, हर इंसान के लिए यह एक काफी कठिन सवाल है, अपने बारे में कुछ बताना, और उसके लिए तो और भी मुश्किल हो जाता है जिसके पास बताने के लिए कुछ भी न हो !
जवाब देंहटाएंगुरुवर अमर कुमार जी का शुक्रिया ...जो प्रमोद जी ये शानदार पोस्ट पढने को मिली......आज की चर्चा का नया विविध अंदाज ..मीनाक्षी जी को ढेरो बधाई ,अपनी पसंदीदा ब्लोगर नीरा जी एक पोस्ट का लिंक दे रहा हूँ ...
जवाब देंहटाएंकोई तीसरा भी है जो उनका राज जानता है
"फिलहाल इसे प्रार्थना पत्र न समझें, और चाहे जो कुछ समझ सकते हैं" http://vinay-patrika.blogspot.com/
जवाब देंहटाएं"ग़ैरपेशेवर थोड़ा सा इंसान, कब तक रहूँगा कह नहीं सकता ? "
http://anuragarya.blogspot.com/
"हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै"
http://hindini.com/fursatiya/
"ठेठ हिंदीवाला पढ़ने पढ़ाने लिखने और सोचने के अलावा कुछ सोचता तक नहीं"
http://masijeevi.blogspot.com/
आज लग रहा हैं कि चिट्ठा चर्चा मंच पर मंच के नाम अनुसार चिट्ठो कि चर्चा हो रही हैं . हर चर्चा कार कुछ नया लाता हैं पर निर्लिप्त भावः से बहुत कम चर्चाकार चर्चा कर पाते हैं . मीनाक्षी को बधाई
जवाब देंहटाएंwaah ..naya andaj sundar.rachana ji se sahmat hun
जवाब देंहटाएंयह चर्चा पढ़ी, पर टिप्पणी करने से बचता रहा..
जवाब देंहटाएंआजकल बचना पड़ता है, भाई
पर लग रहा कि अपने संग बहुतेरे राही हैं, जो अलग थलग हैं
" आजा ज़िन्दगी आज फिर तुझे पुकारता हूँ मैं, कि राही फिर अकेला है " तुम पूछ रहे हो परिचय क्या ,
मैं ख्वाब हूँ कोई तथ्य नही ,
मैं आशा हूँ ,अभिलाषा हूँ ,
कोई जीवन का सत्य नही ,
मैं हिस्सा नही हकीक़त का,
एक मीठी सी अंगडाई हूँ ,
मैं नव बसंत की कोंपल हूँ,
और पतझड़ की रुसवाई भी ,
मैं इस दुनिया के साथ भी हूँ ,
और अंजुम की तन्हाई भी
इस चर्चा में कम ब कम एक नाम तो ऎसा जोड़ा ही जा सकता था,
जो कि परिचय का मोहताज़ हो, या परिचय की मोहताज़ी ओढ़ रखी हो !
मेरे दिये लिंक का मान रखने के लिये..धन्यवाद डा. अनुराग,
तुम्हारा भरी महफ़िल यूँ गुरुवर कहना शोभा नहीं देता..
सब लोग क्या कहेगे
काहे कि, सभी तो यहाँ अपने आपमें गुरुघँटाल हैं..
हा हा हा.. स्माइलियाँ ! मज़ा आया ?
एक समय मे जितने चिट्ठे नज़र में आएँ उनका उल्लेख ही सम्भव हो पाता है..
जवाब देंहटाएं@विवेकजी...ताऊजी का परिचय कैसे भूल सकता है जिसमे पान की दूकान में टंगी तख्ती पर लिखा सन्देश खूब याद है. :)
@डॉ अनुरागजी और डॉ. अमर , नए लिंक देने का बहुत बहुत शुक्रिया. डॉ अमर गुरु की पदवी मिले तो अपने को धन्य कहिए ... और शिष्य को आशीष दीजिए.. हमे तो बहुत अच्छा लगा जानकर...
@रचनाजी,,आपने नौ मे से चार का जवाब दिया... लेकिन फिर भी आपको नौ मे से नौ अंक... इसलिए कि सिर्फ आपने ही जवाब दिए...शुक्रिया...
महामंत्री तस्लीम की टिप्पणी मेरी भी टिप्पणी समझी जाय।
जवाब देंहटाएंसुन्दर! एक और ब्लाग का परिचय है-नारी मन के प्रतिपल बदलते भाव जिसमें जीवन के सभी रस हैं।
जवाब देंहटाएंकोअहम कोअहम !
जवाब देंहटाएंबहोत ही khubsurat अंदाज है परिचय का ....
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