देश में चुनावों के बाद आए परिणामों की मीमांसा का वातावरण है। सभी के अपने अपने अनुमान, तर्क व चिंताएँ या आह्लाद हैं। भारतीय लोकतंत्र की अपनी सीमाएँ, अपनी शक्तियाँ हैं। अपने चमत्कार हैं। इसे सतही तौर पर विवेचित नहीं किया जा सकता। कई मित्रों ने आधुनिक मैसेंजिंग सुविधाओं का लाभ लेते हुए इन परिणामों पर अपनी राय देने के सन्देश भेजे हैं। परन्तु अपनी १ महीने की यात्राओं, अस्वस्थताओं व थका देने कार्यक्रमों, मेल-जोल, मीटिंग्स आदि के सार्थक बीते लंबे समय के बाद घर आकर अभी थकान भी नहीं उतरी है। ऊपर से पहाड़-सा बैक लॉक। किंतु अनूप जी पहले ही चर्चा से मई १७ तक की छूट का वचन ले चुके थे. महीने -भर के चिट्ठे ठीक से पढ़े भी नहीं जा सके, पुनरपि जितना देखा पढा जा सका है, उसी को आपके समक्ष रखने व निरंतरता की दृष्टि से आज लिखना तय किया.
१)
इस बीच ज्ञान जी नाना भए , वाणी बिटिया का वात्सल्य से लबालब मुखड़ा निरख कर जो आनंद मिला वह अकथनीय है। मुझे ज्ञान जी व रीता भाभी से शिकायत करने का जी चाहता है कि इसी दिन (८ मई सायं) तो हम सब मिले थे, कैसे इतनी बड़ी ख़बर पचा गए वे? उनकी जगह मैं होती तो हर किसी को केवल यही ख़बर सुनाती जाती। बधाइयों के ढेर के बाद `हमें शिकायत है' में दर्ज किया जाए । मिठाई बकाया| अब अगर फुरसतिया चाय के ठेले पर ब्लॉग -चर्चा के उद्देश्य से इलाहाबाद पहुँच गए तो वे तो अपने हिस्से की बराबर चख लेंगे, चाय - पान के साथ।
फुरसतिया जी फुरसत से इलाहाबाद की यात्रा पर निकले । सुबह रिक्शा वाले के साहस आदि से रूबरू होते विज्ञान परिषद् की और गम्यमान हो साक्षात भए. और शाम को ब्लोगिंग का इतिहास भावी ब्लोगरों के लिए सुनाया।
जिसके विषय में चर्चा पढ़ते हुए . पुष्ट होता है कि वे अंतर्द्वंद्वों से अधिक अंतर्संबंधों में यकीन रखते थे
वे इलाहाबाद से यह शिकायत लेकर लौटे हैं कि डॉ. अरविंद मिश्र और मेरे बीच रत्त्ती भर भी झगड़ा न होने के कारण मौज लेने का कोई अवसर मुहैया नहीं कराया गया, आधी शिकायत मैंने अपने जिम्मे ले ली है, शेष आधी मिश्रा जी के खाते में।
३)
इस बीच हिन्दुस्तानी पत्रिका का पं. विद्यानिवास मिश्र पर केंद्रित एक संग्रहणीय विशेषांक आया है।
३)
इस बीच हिन्दुस्तानी पत्रिका का पं. विद्यानिवास मिश्र पर केंद्रित एक संग्रहणीय विशेषांक आया है।
जिसके विषय में चर्चा पढ़ते हुए . पुष्ट होता है कि वे अंतर्द्वंद्वों से अधिक अंतर्संबंधों में यकीन रखते थे
विशेषांक में विदेश से प्रयाग के सुप्रसिद्ध भाषा विज्ञानी डॉ. उदय नारायण तिवारी के नाम भेजे गए मिश्र जी के चार पत्र भी शामिल हैं | इनमें से ४ दिसम्बर १९६७ को सिएटल से लिखे पत्र में उन्होंने यह बहुत महत्त्वपूर्ण सुझाव दिया था कि क्योंकि भाषा विज्ञान के क्षेत्र में इस समय सबसे ज्यादा हलचल युरोप में है इसलिए कुछ लोगों को भारत से वहां भेजना चाहिए तथा कुछ लोगों को भारत आमंत्रित करना चाहिए | इस पत्र में उन्होंने यह इच्छा भी प्रकट की थी कि उत्तर भारत में भाषा विज्ञान का अच्छा केंद्र स्थापित होना चाहिए | इसी प्रकार २७ फ़रवरी १९६८ के पत्र में उन्होंने दो काम करने की चाह जताई थी - एक तो पाणिनीय पद्धति के प्रयोग का काम भारतीय भाषाओँ के भाषांतर व्याकरण पर किया जाए और दुसरे हिंदी का जनपदीय कोष प्रस्तुत किया जाए | निश्चय ही, यदि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और हिंदी जगत उनके इन दो सपनों को पूरा करने की दिशा में कुछ करके दिखाए, तब तो लगेगा कि हाँ इन्होनें पंडित जी की इच्छाओं का मान रखा है।
४)
चुनाव से पूर्व स्विस खातों में बंद भारतीय धन की वापिसी के कयास लगाने की मानसिकता लोक में पनपने लगी थी। अब वह तो भारत के राजतंत्र में संभव नहीं.इसी लिए २०१४ में तत्सम्बन्धी अगली पोस्ट की घोषणा के साथ
स्विस बैंक में खाता खोलने की प्रक्रिया की जानकारी दी गयी है. इस से आप कयास के पेंच को समझने में आगे बढ़ सकते हैं।
यदि आप साँस की दुर्गन्ध से ग्रस्त हैं तो अहमदाबाद के जी के पास इसका अर्थ निदान है. यह अत्यन्त सुखद है कि चिकित्सकीय सहायता पर प्रवीण चोपडा जी के अतिरिक्त अन्य लोग भी सार्थक लिखने लगे हैं। आयुर्वेदिक सहायता में तो और भी कुछ लोग हैं जो ज्ञान व सहायता की दृष्टि से बहुत समृद्ध हैं ,विशेषतः आयुषवेद
शास्त्री जी इस बार चिट्ठा-कुंठासुर का भूत घडे से निकाल कर लाए है और आप इसके ३ प्रकारों से परिचित भी हो सकते हैं, परख सकते हैं .
शीर्षक में दी पंक्ति कल मैंने किसी के ब्लॉग पर सुविचार के अर्न्तगत पढ़ी थी, बड़ी प्रेरणा व जीवन की सूझ देने वाली है. आप भी मूल पढ़ें -
कुत्ते का स्नेहअपने कुत्ते के स्नेह को इस बात का अकाट्य प्रमाण मान कर मत चलो कि आप वास्तव में विलक्षण हो!
--- एन लेण्डर्स।
कल वर्ष -२००८ के केदार सम्मान का निर्णय संपन्न हुआ। सम्मानित होने जा रहे प्रतिष्ठित कवि के विषय में जानकारी के लिए वहाँ जा कर पढ़ें।
अभी अभी विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि उत्तर प्रदेश की ब्लोगिंग कार्यशाला के पश्चात आए ब्लॉग -तूफ़ान के परिणाम स्वरूप नगर को ब्लोगेरिया ने अपनी चपेट में ले लिया है । साथी ब्लोगर पूरे चश्मे आदि के साथ अपनी आँखों और याददाश्त की सुरक्षा करें ।
आज इतना ही। अगले सप्ताह शायद अपने सुरूर में आए चर्चा. तब तक के लिए विदा ।
किंवा ज्ञान जी की मँशा चिरयुवा छवि को कुछेक वर्ष और जी लेने की रही हो..
जवाब देंहटाएंया उस समय मिठाई खिलाना न चाहते रहे हों ।
इस ख़बर की आधिकरिक पुष्टि होने तक बधाई सँदेश रोका जा सकता है..
चाहें तो .. लें ही लें ! मैं कब तक रखूँगा । ज्ञान जी, रीता जी एवँ वाणी को नवागत के नूतन उपलब्धि की बधाईयाँ ।
" ब्लागेरिया बहन से तो यही कहूँगा कि, " " भुल्लकड़ पति होने के कई फ़ायदे भी तो हैं,
सकारात्मक नज़रिया तो यही कहता है,
ईश्वर ऎसा भुल्लकड़ पति सबको दे । "
अरे, लिंकवा तो मेरे ही पास रह गया था,
जवाब देंहटाएं" भैंसटाप से लैपटाप तक.. एन्ड बैक "
पढ़ा क्या ?
reeta and gyan congrats
जवाब देंहटाएंएन लेण्डर्स को ये बात कुत्ते से पूछनी चाहिए.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया चर्चा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ज्ञान परिवार को एक बार फिर नन्हे मुन्ने चुनमुन के आने पर बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएं"शास्त्री जी इस बार चिट्ठा-कुंठासुर का भूत घडे से निकाल कर लाए है और आप इसके ३ प्रकारों से परिचित भी हो सकते हैं, परख सकते हैं ."
जवाब देंहटाएंवाक्य का आखिरी हिस्सा लोगों को मुसीबत में डाल सकता है!! "परखने" के चक्कर में कई बात उस बंदर जैसी हालत हो जाती है जिसने तंग मूँह के घडे में पडे चने को मुट्ठी मे दाब लिया था.
चर्चा में पुन: आपको देख कर खुशी हुई. हिन्दुस्तानी त्रैमासिक का पता मिल जाये तो मंगा लेंगे. कोच्चि में हिन्दी पत्रिकायें आसानी से नहीं मिलती हैं.
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
कई बात = कई बार !!
जवाब देंहटाएंआपकी जीवंत उपस्थिति पुनः महसूस हो रही है यहाँ । आभार इस चर्चा के लिये ।
जवाब देंहटाएंvilakshanta ka praman hai gar "Kutte ka Chatna"
जवाब देंहटाएंto kya mayne rakhta hoga usko mujhko kaatna?
-Darpan Sah
Kuchh adhori adhoori si rahi charcha.
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
@ शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएं१) चक्कर में पड़ गए न आप भी। बन्धु! परखना उन तीन प्रकारों को नहीं, बल्कि उस विभाजन पर खुद को है।
२) "हिन्दुस्तानी" के अंक के लिए दोनों लिंक पर पूरा पता विद्यमान है, आप लिंक को क्लिकाइये तो एक बार, सामने हाज़िर मिलेगा। वैसे आगामी कुछ ही दिनों में विद्यानिवास जी मिश्र पर एकेडेमी का एक पूरा स्मृ्तिग्रन्थ भी आने को तैयार है। विलक्षण है।
हम तो बहुत पहले ही ब्लगेरिया के चपेट में आ चुके हैं. अब बचना भी क्या?
जवाब देंहटाएंरोचक, उपयोगी और ज्ञानवर्धक प्रविष्टि के लिए चर्चाकार को धन्यवाद! इतनी व्यस्तताओं के बीच यह समय निकालना प्रतिबद्धता का द्योतक है आपकी. > ऋ.
जवाब देंहटाएंआठ को क्या बताते? बालक आईसीयू में था। थोड़ा टेंशनात्मक मामला!
जवाब देंहटाएंओह,..........समझी!
जवाब देंहटाएं@ Gyandutt Pandey
जवाब देंहटाएंSorry Sir, for my inadvertent comment !
ek dam zordaar charcha
जवाब देंहटाएंज्ञान जी {नाना}nav shishu ko aasheesh
teekaakaran kaa dhyaan rakhaa jaawe, vazan teen saal tak har maheene liyaa jaawe
badhaiyaan
चर्चा चौकस रही।
जवाब देंहटाएंऔर आपने जो लिखा न कि हम इलाहाबाद से यह शिकायत लेकर लौटे हैं कि डॉ. अरविंद मिश्र और मेरे बीच रत्त्ती भर भी झगड़ा न होने के कारण मौज लेने का कोई अवसर मुहैया नहीं कराया गया, आधी शिकायत मैंने अपने जिम्मे ले ली है, शेष आधी मिश्रा जी के खाते में।
तो भैया हम मौज लेने के लिये किसी के बीच झगड़े के मोहताज नहीं हैं। दोस्ती में भी मौज के अवसर कम नहीं होते बल्कि ज्यादा ही होते हैं। लेकिन थोड़ा बहुत हो जाता सोने में सुहागा रहता। अब इत्ता समझदार भी बने रहने से क्या फ़ायदा! :)
ज्ञानदत्त पाण्डेय जी का घर ननिहाल बना और एक नौनिहाल का पदार्पण हुआ, इसके लिए नानाजी को बधाई।जच्चा और बच्चा स्वस्थ रहें, यही प्रार्थना है।
जवाब देंहटाएं>हिन्दुस्तानी’ में पंडितजी से कविताजी की ली गई बातचीत भी प्रकाशित है। यह बात शायद संकोचवश कविताजी ने नहीं बताई। इस अंक की समीक्षा rishabhuvach.blogspot.com में देखी है। कविताजी को बधाई। एक और तथ्य के लिए भी वे बधाई के पात्र हैं कि वे केदार समिति की सचीव भी रही जहां २००८ के लिए कवि का चयन हुआ। तो बधाई पर बधाई...:)
@ चन्द्र मौलेश्वर जी,
जवाब देंहटाएंमैं कभी केदार समिति की सचिव नहीं रही। न समिति का कभी कोई सचिव रहा, न कभी होता है। आपने सम्भवत: ध्यान से नहीं पढ़ा। वहाँ २ नाम हैं, एक केदार शोध पीठ न्यास व दूसरा केदार सम्मान समिति। न्यास के सचिव श्री नरेन्द्र पुंडरीक हैं। केदारसम्मान की घोषणा गत २ वर्ष से यद्यपि औपचारिकत: मैं ही करती आ रही हूँ, केदार सम्मान समिति की कार्यकारिणी की सदस्य होने के नाते। इसमें आपने तथ्यों में बड़ा गम्भीर गड़बड़झाला कर दिया है,जो मेरे अपयश का कारण बन सकता है। इसलिए इसका त्वरित निवारण करना अत्यावश्यक है। कॄपया ध्यान दीजिएगा।
@कविता वाचकनवीजी,
जवाब देंहटाएंक्षमा करें, मैं सदस्य की बजाय आपको सचिव लिख दिया। आपके अपयश का कारण बना, इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
मुझे अफसोस है कि आजकल व्यक्तिगत झमेले में ऐसा उलझ गया हूँ कि इतनी अच्छी चर्चा मिस कर गया। आज खराब स्वास्थ्य के कारण ऑफिस छोड़कर आना पड़ा तो यहाँ यहसब देखकर बड़ा आनन्द आया। चश्मा-काण्ड पर मेरी फजीहत यहाँ भी है:)
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