रविवार, मई 10, 2009

मुझे तो, बस मेरी मां चाहिए...

“आम जनता को यह सूचित किया जाता है की यह पेज किसी को भी खुश करने की गारंटी के बिना बनाया गया है. यहाँ जो कुछ भी लिखा गया है अथवा दर्शाया गया है, वोह पेज के मालिक की पसंद या नापसंद को नही दर्शाता, ना ही किसी को हानि या लाभ पहुँचने की मंशा से है. यदि आप इस पेज पर गलती से आ पहुंचे हैं या फ़िर अभी भी बोर हो रहे हैं तो फोरन अपने लैपटॉप या कंप्यूटर पर मिटटी का तेल छिड़क कर आग लगा दें. यह पेज बिन बुलाये मेहमानों के लिए नही है आपकी यहाँ न कोई आवश्यकता है ना ही आपका यहाँ स्वागत है.”
ये टैगलाइन है इस ब्लॉग का – Coz..I...Said...So...!!
इतने खतरनाक टैगलाइन को पढ़ने के बाद क्या आप अब भी ऊपर दी गई कड़ी पर जाकर उक्त ब्लॉग पर जाने की इच्छा रखते हैं?
यदि नहीं, तो फिर पढ़ें -
प्यार का टेक्नीकल अनालिसिस
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(अर्चना पंडा)
क्यों चलती है पवन
Because of evaporation .

क्यों झूमे है गगन
Because of earth's rotation.

क्यों मचलता है मन
Because of disorder in digestion.

ना तुम जानो ना हम !!!

क्यों गुम है हर दिशा
Because u have poor sense of direction

क्यों होता है नशा
Because of drug addiction.

क्यों आता है मजा
Because u enjoy the situation.

ना तुम जानो ना हम !!!

क्यों आती है बहार
Because of change in season.

क्यों होता है करार
Because of taking tension

क्यों होता है प्यार
Because of opposite attraction.

ना तुम जानो ना हम
----.
एनालिसिस से भले कुछ न निकला हो, पर अपने हिस्से की धूप जरूर बरकरार है:
अपने हिस्से की धूप-2
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(अलबेला खत्री)
कहीं कील गड़े हैं कदम-कदम, कहीं पग-पग है अंगार
कहीं खड़ी है शीतल छाया, कर सोलह सिंगार
कहीं जीत के गीत सजे हैं, कहीं रो रही है हार
सुख और दुःख के धागों से ही बुना गया संसार
ये जीवन क्या है?
इक ताश की बाज़ी
घर-ऑंगन क्या है?
इक ताश की बाज़ी
किसी के हाथ में राजा-इक्का, किसी के हाथ तुरूप
हर कोई यहॉं सेंक रहा अपने हिस्से की धूप
अपने हिस्से की धूप
अपने हिस्से की धूप
----.
धूप इधर काफी सख्त हो गई है. क्यों न चलें वहां जहाँ झमाझम बारिश का अहसास हो?
गुद-गुदी है बूंद-बूंदी !!!
धीरे धीरे हवा चली, मौसम सुहाना बन पड़ी
हवा संग नाचने, काली बादल निकल पड़ी
नदी चली तरंग में, संगीत उमंग की निकल पड़ी
हरी पतियों पर बूंद गिरी, मोतियों सी निखर पड़ी
हरी बालियों को बूंद चूमी, खेत-खलिआन झूम पड़ी
पंछीओ की चुच से, चु-चु निकल पड़ी
चुन्नी-मुन्नी कूदे आँगन में, कागजी-नाऊ निकल पड़ी
धुप संग रंग मिली, इन्द्रधनुष निकल पड़ी
हात पर बूंद लिया, मन को हुई गुद-गुदी
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अब, क्या इसे - http://mp3sansar.blogspot.com/ ब्लॉग की उपयोगिता की रिवर्स पराकाष्ठा का उदाहरण न कहें? हिसाब तो दपायरेटबे या गूगल जैसा ही है – एमपी3 डाउनलोड कड़ियों को आम जनता के लिए उपलब्ध करवाना. अब ये गाने कॉपीराइट भले हों अपनी बला से!
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शलभ गुप्ता राज का प्रोफ़ाइले-बयाँ है:
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गुम्बद में नहीं लगना है मुझे, नींव का पत्थर बनना है मुझे। सब अगर गुम्बद में ही लगेंगे, नींव में फिर कौन से पत्थर लगेंगे? आसमान नही छूना है मुझे, धरती में ही बस रहना है मुझे। ख़ुद खामोश रहकर सबको मुस्कराते हुए देखना है मुझे। नींव का पत्थर बनना है मुझे। देवता के चरणों में नही अर्पित होना है मुझे। फूलों की माला नहीं बनानी है मुझे। शूल बनकर फूलों की हिफाज़त करनी है मुझे। नींव का पत्थर बनना है मुझे। कहीं दूर नहीं जाना है मुझे, कश्ती में ही रहना है मुझे। मांझी बनकर , सबको पार ले जाना है मुझे। नींव का पत्थर बनना है मुझे।
इनकी एक ताजा पोस्ट है:
मुल्कराज आनंद जी की एक कहानी ( Happy Mother's Day - 10 May 2009)
आज मैं आपको मुल्कराज आनंद जी की एक कहानी सुनाना चाहता हूँ। यह एक अत्यन्त भावनात्मक कहानी है। मेरा विश्वास है कि आपके दिल को छू जायेगी ।
एक बच्चा अपनी माँ की उंगली पकड़कर मेले में जाता है। वहां सुंदर गुब्बारे , लाल-हरी ज़री की टोपियाँ , बर्फी- जलेबी मिठाई की दुकानें देखकर बच्चा एक के बाद एक चीज मांगता है।
माँ के पास पैसे नहीं थे। इसलिए वह बच्चे को कुछ नहीं दिला पाती है। बच्चे को गुस्सा आता है, उसे अपनी माँ बुरी लगने लगती है। भीड़ में माँ की उंगली छूट जाती है।
बच्चा खो जाता है। मारे डर के जब वह रोने लगता है तब गुब्बारेवाला, टोपीवाला, मिठाईवाला उसे अपनी-अपनी चीजें देकर शांत करने की कोशिश करते हैं। बच्चा हर चीज लेने से इनकार कर देता है। उसे सिर्फ़ अपनी माँ चाहिये।
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अंत में,

इस मि. यूनिवर्स को तो आप भी देखना चाहेंगे-


आज की चर्चा बस इतनी. मजा नहीं आया? इस पोस्ट का प्रथम पैराग्राफ, लगता है आपने ठीक से पढ़ा नहीं.

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17 टिप्‍पणियां:

  1. मस्त चर्चा.. सुबह सुबह मजा आ गया... हाहाहा

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  2. माँ जब पास न हो तभी माँ की अहमियत का अहसास होता है

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  3. इस पोस्ट का प्रथम पैराग्राफ, लगता है आपने ठीक से पढ़ा नहीं.

    पूरा क्यों नही पढा? बल्कि प्रथम पैरेग्राफ़ की सिर्फ़ और सिर्फ़ ४ लाईने ही पढी. और आपके आदेश को मानते हुये अपने लेपटोप को उपर से फ़ेंक दिया (क्योंकि मिट्टी का तेल आऊट आफ़ स्टाक था) यह सोचकर कि जब रतलामी जी फ़िंकवा रहे हैं तो कोई अच्छी सलाह ही होगी. शायद नया भिजवायेंगे आप.:)

    रामराम.

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  4. अनोखी चर्चा । अर्चना पंडा जी ने सारा कुछ तो साफ कर दिया है फिर इस पंक्ति का क्या मतलब - "न तुम जानो न हम"।

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  5. मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं.

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  6. आज तो आपके जरिए हमें प्‍यार के बारे में तकनीकी जानकारी भी हो गयी :)

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  7. रविजी, आपने हंस की तरह ब्लाग-मोती चुन-चुन कर चुगे है :) साधुवाद॥

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  8. आपको मातृ-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ, अच्छी चर्चा

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  9. मातृ दिवस पर शुभकामनाएँ ... नन्हा सा बॉडी बिल्डर तो बहुत खूब लग रहा है...

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  10. चर्चा तो घणी चँगी है..
    पर (प्यार का टेक्नीकल) अनालिसिस तो सौ साल पहले का निट्ठल्ला बेहतर कर ही चुका है ! अलबत्ता बच्ची यहाँ यदि प्रोत्साहन पाने के लिये आयी है, तो मुक्त हृदय से स्वागत है !
    इब राम राम !

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  11. ताऊ रामपुरिया (चाकू नहीं) के तरफ से हमारी खालिस गुजारिश :-

    मिट्टी के तेल के अभाव का
    इतना तो हुआ फायदा
    नहीं अब कोई लैपटाप जलेगा
    क्‍योंकि
    मिट्टी का तेल लाईन में मिलेगा
    और जलाने के लिए कौन
    लाईन में घंटों इंतजार करेगा ?

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  12. बड़ी लटपटी और अटपटी चर्चा है।

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  13. "पर (प्यार का टेक्नीकल) अनालिसिस तो सौ साल पहले का निट्ठल्ला बेहतर कर ही चुका है ! अलबत्ता बच्ची यहाँ यदि प्रोत्साहन पाने के लिये आयी है, तो मुक्त हृदय से स्वागत है !"

    >>>डॉ. अमर कुमार जी, सही कहा आपने, एनालिसिस पहले ही और ज्यादा बेहतर तरीके से हो चुका है.
    ज्ञानचक्षु खोलने के लिए आपको धन्यवाद.

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