शनिवार, मई 23, 2009

किन अर्थों में भिन्न है गीत संगीत से जुड़ी ब्लागिंग ?

संगीत पेश करने वाले चिट्ठे तरह तरह के हैं। कहीं गीत सिर्फ सुना दिये जाते हैं, कभी साथ में गीत के बोल भी दिये जाते हैं, तो कहीं दिलचस्प जानकारियाँ भी होती हैं। पर ये सारी बातें तो किसी संगीत से जुड़ी वेब साइट पर भी मिल जाती हैं। तो फिर क्या नए आयाम तलाशती है संगीत से जुड़ी चिट्ठाकारी?

मेरे ख्याल से गीत संगीत पर आधारित चिट्ठे की असली पहचान ये है कि संगीत को पेश करने वाला कैसे उनसे अपने जुड़ाव को स्थापित करता है। ये जुड़ाव उस गीत से जुड़े उसके निजी अनुभव हो सकते हैं या फिर इससे भी अच्छा तो तब होता है जब ब्लॉगर खुद अपनी आवाज़ में गुनगुना देता है। खैर ये तो मेरे अपने विचार हैं आप क्या सोचते हैं इस बारे में ये भी बताइएगा. तो इस बार की संगीत चर्चा की शुरुआत ऍसी ही कुछ पोस्ट्स से... ......

झारखंड का आकाश मेघों से आच्छादित है। दोपहर इससे पहले अपने शबाब पर आए उससे पहले ही मेघों की सेना सूरज की किरणों को परे ढकेल देती है और उनके गर्जन और कौंधती बिजली के बीच मौसम ठंडा हो जाता है। ऍसी हालत कवि मन पर क्या असर करती है ये पारुल की इन पंक्तियों में देखिए

इस बरसती साँझ में सावलि निशा का आगमन
रोक लो ये पल विकल मन, बावरे से हैं नयन

उन ढ़लानो से उतरना, बूँद में बूँदों का घुलना
लख रहे हम दूर बैठे,एक धारा का जनम

कविता की गेयता एक गीत की तुलना में काफी कठिन होती है पर पारुल ने अपने मधुर स्वर में अच्छी तरह निभाया है इसे इस पॉडकॉस्ट में।

दिलीप कवठेकर तलत महमूद के बहुत बड़े प्रशंसक हैं और अपनी हाल की पोस्ट में उनकी याद करते हुए कहते हैं


जब भी तलत मेहमूद ये नाम हमारे ज़ेहन में आता है, तो हमारे यादों की खिडकियों पर दस्तक देती हैं उनकी मखमली आवाज़ के मोरपंखी एहसासात । हमारा प्यासा मन खुद ब खुद, सुरों की इन हसीन वादियों से टकरा कर गूंजते हुए दर्द भरे नगमों के समंदर में डूब जाता है।
और इस बार दिलीप ऍसे डूबे हैं कि खुद उन्होंने अपनी आवाज़ में एक गीत सुनाया है तेरे आँख के आँसू पी जाऊँ.. जिसे सुनना मेरे लिए एक सुखद अनुभव रहा
यक़ीनन आपके लिए भी रहेगा...।

दरअसल हर संगीत प्रेमी के पीछे एक गायक छुपा होता है। ऍसी हालत में जब कोई गीत दिल से छूता है तो आप उसे घंटों गुनगुनाते हैं और मन एकदम से खुशनुमा हो जाता है।

पुरानी ग़ज़लों की रिकार्डिंग से गुजरते हुए मुझे कई पुराने ग़ज़ल गायकों की वो अनमोल कृतियाँ मिलीं जो एक समय इतनी मशहूर हुईं थीं कि हर जगह वही सुनाई देती थीं। इसलिए काफी खोज बीन के बाद मुझे जब नेट पर मुझे राजेंद्र मेहता और नीना मेहता का गाया गीत तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना.. मिला था तो वो आपको सुनाया था। पिछले हफ्ते क़तील शिफ़ाई की एक बड़ी प्यारी ग़ज़ल हाथ लगी जिसे महदी हसन के शागिर्द रहे राज कुमार रिज़वी ने अपनी मखमली आवाज़ में इस तरह से इसे अपना स्वर दिया है कि एक बार सुनने के बाद कुछ दिनों तक जुबां से ये ग़ज़ल जाती नहीं
सुनने के पहले क़तील के इन अशआरों की बानगी लीजिए

तूने ये फूल जो जुल्फ़ों में सजा रखा है
इक दीया है जो अँधेरों में जला रखा है

इम्तिहान और मेरे ज़ब्त का तुम क्या लोगे
मैंने धड़कन को भी सीने में छुपा रखा है।


इस प्यारी ग़ज़ल को यहाँ सुन सकते हैं।

क़तील के बाद बात चचा ग़ालिब की। जिन्हें ग़ालिब बहुत भाते हैं उन्होंने जगजीत की आवाज़ और गुलज़ार की कमेंट्री वाली मिर्जा ग़ालिब की कैसेट जरूर याद होगी। इसी एलबम से एक मोती चुन कर लाए हैं यूनुस भाई। कोई दिनगर जिंदगानी और है... विनोद सहगल की दिलकश आवाज़ में। विनोद ऍसे कलाकारों में हैं जिन्हें अपनी क्षमता के अनुरूप काम नहीं मिला। यूनुस ने अपनी पोस्ट में इस ग़जल के साथ में गुलज़ार की आवाज़ में ग़ालिब के इस परिचय को भी पेश किया है।

बल्‍लीमारान के मुहल्‍ले की वो पेचीदा दलीलों की सी गलियां
सामने टाल के नुक्‍कड़ पे बटेरों के वो क़शीदे
गुड़गुड़ाती हुई पान की पीकों में वो दाद वो वाह वाह
चंद दरवाज़ों पे लटके हुए बोसीदा से कुछ टाट के परदे
एक बकरी के मिमियाने की आवाज़
और धुंधलाई हुई शाम के बेनूर अंधेरे,
ऐसे दीवारों से मुंह जोड़के चलते हैं यहां
चूड़ीवालान के कटरे की बड़ी बी जैसे,
अपनी बुझती हुई आंखों से दरवाज़े टटोलें
इसी बेनूर अंधेरी सी गली-क़ासिम से
एक तरतीब चराग़ों की शुरू होती है
एक क़ुराने सुख़न का सफा खुलता है
असद उल्‍ला ख़ां ग़ालिब का पता मिलता है


हिन्द युग्म पर इस हफ्ते पुराने गानों की श्रृंखला तो है ही और ग़ज़लों के साथ गोपाल दास नीरज का लिखा और अब्बास रज़ा अल्वी का स्वरब्द्ध गीत भी है जो बचपन की याद दिला रहा है।

फिर मिलेंगे चलते चलते : इन्हें भी एक बार देखना ना भूलिए
ग़ज़ल सुनीं, गीत सुने तो अब ये कव्वाली भी सुन लीजिए
किन हालातों में इकबाल बानो ने गाया था हम देखेंगे...?
अपने अधूरे सपनों का अर्थ ढूँढिए यहाँ !
नुसरत तो उनकी धुन में जी रहे हैं और आप ?
जब ली इंदीवर ने दार्शनिकता की अद्भुत उड़ान !
देशभक्ति का जज़्बा बना रहे !

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9 टिप्‍पणियां:

  1. तलत महमूद मेरे भी प्रिय गायकों में एक हैं । दिलीप जी की आवाज में ’तेरी आंख के आंसू पी जाऊं’ सुनना सुखद लगा । शायद आज की चर्चा न होती तो दिलीप जी की आवाज में यह गीत सुनने से वंचित रह जाता । आभार ।

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  2. तलत के गीत एक शुकून तो देते ही हैं,
    पर जगमोहन के गाये गीत अक्सर याद आया करते हैं,
    मैंने नेट पर प्रयास भी किया था, ब्लागर पर भी..
    जिसने भी सुना हो, भला कैसे भूल सकता है ऎसे अनमोल गीत..

    " ये चाँद नहीं तेरी आरसी है.. " या

    " मत कर साज सिंगार
    आज सजन तुम..
    मत कर साज सिंगार " या

    " मुझको है तुमसे है प्यार क्यूँ
    ये न बता सकूँगा मैं,
    ये न बता सकूँगा मैं..
    पहली मिलन की छाँव
    तुमसे तुम्हारे गाँव में
    आँखें हुई थीं चार क्यों
    ये न बता सकूँगा मैं..
    रूप की कुछ कमी नहीं
    दुनिया में एक तुम्हीं नहीं
    फिर मैं तुम्हारी याद में
    रहता हूँ क्यों बेकरार मैं
    ये न बता सकूँगा मैं.. "

    पर इस प्रकार की चर्चा एक अच्छी शुरुआत है,
    साथ ही आशा है, कि उर्दू मौशिकी के परचम में अपने गायन से खम व ठहराव पैदा करने वाले स्व० जगमोहन भी यहाँ याद किये जायेंगे ।
    आज चर्चाकार से साधुवाद कहने का मन बन रहा है ।

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  3. प्रिय मनीष .......
    अभिव्यक्ति को उकेरना ....कित्ता आसान है न ब्लोगिंग की परिभाषा ....पर क्या सच मुच जो हम महसूस करते है वो लिखते है ?या सिर्फ वो लिखते है जो दूसरो को अच्छा लगे ....तो फिर अभिव्यक्ति कहाँ गयी.?
    जहाँ आप रात में किसी फिल्म को देखकर अभिभूत हो जाते है ओर सुबह अपने दोस्तों के साथ बांटना चाहते है...ठीक वैसे ही किसी गीत से जुड़े कुछ अनुभव..किसी कलाकार को नजदीक से देखने का अनुभव आप बांटना चाहते है ....ठीक वैसे ही है संगीत की ब्लोगिंग.......अमूमन दुनिया के विरले ही इन्सान होगे जो संगीत को पसंद न करे ...यानी जो शायद रोजमर्रा के जीवन पर लिखता है वो भी शौकीन होता है .भले ही संगीत पर ब्लॉग न लिखे ...जाहिर है ब्लॉग दरअसल कई कलाओं का एक जमावडा है...या अपने जैसी वेवलेंथ ढूँढने का जरिया.भी...एक विधा ही है संगीत की ब्लोगिंग ....एक आवश्यक अभिव्यक्ति ....
    दूरदर्शन के दो सीरियल हुए है .जिनकी केसेट खूब बिकी ओर आज भी जिनकी सी डी डिमांड पे रहती है .गालिब ओर कहकशां ..दोनों के ही दो दो पार्ट थे .एच एम् वी से रिलीज़ ....बेमिसाल ....ग़ालिब के तो पुरे विडियो यू ट्यूब पे भी है....चाहने वाले वहां से डाउनलोड कर सकते है.....

    @दिलीप जी को मै सर्वश्रेठ टिप्पणीकारो में से एक मानता हूँ ...जिनके भीतर एक मानवीय दृष्टिकोण की गहरी बूझ भी है .....ओर संगीत के प्रति जनूनी दीवानगी.....

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  4. अनुरागजी की बात से हम पूरी तरह से सहमत है..
    हम ने गूगल रीडर में "संगीत के मधुर सुर" का एक अलग फोल्डर बना रखा है..संगीत संजीवनी बूटी है..चिट्ठाचर्चा में संगीत की चर्चा वही काम करती है...आज की चर्चा ने वही काम किया... शुक्रिया....

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  5. अनुराग भाई आपकी बात से सहमत हूँ। अनुराग भाई आपकी बात से सहमत हूँ। सिर्फ ये जोड़ना चाहूँगा कोई बात को दूसरो को अच्छा लगने के पहले ये बेहद जरूरी है कि आपके द्वारा कही गई बातों ने खुद को भी उतना ही आनंदित किया हो अन्यथा मात्र शब्द जाल का मिथक फैलाने से पाठक पर बार बार असर नहीं पड़ने वाला।

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  6. बिललुल सही विश्लेषण। और मैं समझता हूँ कि बहुत से आयाम तलाशेगी पॉडकास्ट चिट्ठाकारी। यह थोड़ी मुश्किल ज़रूर है, लेकिन सबको खूब पसंद आ रही है। बॉडबैंड के गाँवों तक पहुँचने पर इसकी लोकप्रियता और बढ़ेगी।

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  7. अमर जी जगमोहन के गाए इन दुर्लभ गीतों की चर्चा करके आपने इस पोस्ट का वज़न बढ़ा दिया। मुझे ये न बता सकूँगा मैं.. " गीत पढ़ने में ही बड़ा प्यारा लगा। इसे सुनने के लिए खोज बीन करनी पड़ेगी।

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  8. मनीष तुम्‍हारी बातों में दम है । लेकिन कुछ और चीज़ें जोड़ना चाहता हूं । ये तो तय है कि बहुधा म्‍यूजिक ब्‍लॉंगिंग में हम वही चीज़ें सुनवाते हैं जो हमें पसंद हैं या हमारी जिंदगी से जुड़ी हैं--पर कई बार इस दायरे से बाहर जाकर जनरूचि से जुड़ी संश्लिष्‍ट चीज़ों का समावेश भी करते हैं । इसके अलावा म्‍यूजिक--ब्लॉगिंग सुनने वालों को एक नया नज़रिया देती है । जिसे हम 'सुनने की कला' कह सकते हैं । दरअसल एक ही गाने को आप अलग अलग नज़रिये से सुन सकते हैं । ऐसे में म्‍यूजिक ब्‍लॉगिंग अच्‍छे श्रोता भी तैयार कर रही है ।

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