छुट्टियॉं चल रही हैं तथा अवसर है यात्राओं पर होने का। हम भी अभी एक यात्रा से लौटे हैं और आकर देखा तो पाया कि अलग अलग लोग यात्राओं पर हैं तो मुफीद जान पड़ा कि सबको इस चर्चा में भी यात्रा पर ही लिए चला जाए। तो चर्चायात्रा की शुरुआत में सवाल ये कि किस माध्यम से की जाए। अगर रेलगाड़ी को यात्रा के लिए चुना जाए तो पहले तो रेल में मारपीट बहुत हो रही है। मंत्री बदल गए हैं और अफसर लोग प्रतियोगियों यानि ट्रकवालों की तरफ प्रशंसा भरी निगाह डाल रहे हैं।
इतने इण्टरस्टेट बैरियर हैं, इतने थाने वाले उनको दुहते हैं। आर.टी.ओ. का भ्रष्ट महकमा उनकी खली में से भी तेल निकालता है। फिर भी वे थ्राइव कर रहे हैं – यह मेरे लिये आश्चर्य से कम नहीं। बहुत से दबंग लोग ट्रकर्स बिजनेस में हैं। उनके पास अपने ट्रक की रीयल-टाइम मॉनीटरिंग के गैजेट्स भी नहीं हैं। मोबाइल फोन ही शायद सबसे प्रभावशाली गैजेट होगा। पर वे सब उत्तरोत्तर धनवान हुये जा रहे हैं।
ज्ञानदत्तजी कुछ अलग कारण से ट्रकों की एक दिन की यात्रा करना चाहते थे पर ट्रक की यात्रा अपना भी सपना रहा है जो ढंग से अभी तक पूरा नही हुआ पर उम्मीद है कभी तो होगा...या शायद न हो क्योंकि उस लेवल का डिस्कंफर्ट सहने लायक शायद हम भी नही रहे।
अगर आप यात्रा की बात को हल्के में ले रहे हैं तो आपको जानना चाहिए कि सुविज्ञों की नजर में यात्रा का समय ही जीवन का निचोड़ है डेबिट क्रेडिट में संजय की थीसिस है कि हर रोज यही 100 मिनट की ट्रेन है जिसमें आप आप होते हैं।
हर दिन ट्रेन के वह १०० मिनट. मैं कोई ट्रेन की सबारी या फिर उस से जुडी किसी घटना को तरफ अपने इस पहली लेखनी को इंगित नहीं कर रहा हूँ बल्कि यह बतना चाह रहा हूँ कि यह हर दिन के वह १०० मिनट पूर्ण रूप से पूरी एक जिंदगी का निचोड़ हैं, और हर ब्यक्ति जो हर रोज अपने कर्म क्षेत्र के लिए इसका या इस तरह के किसी वाहन का प्रयोग करता हैं , रोज मात्र १०० मिनट में पूरी एक जिंदगी जी लेता हैं
हम संजय की बात से पूरी पूरी सहमति दर्ज करना चाहते हैं। पूरी पूरी बल्कि कहें पूरी पूरी से भी ज्यादा पर दिक्कत ये है कि अभिषेक का गणित ऐसा करने नहीं दे रहा। उन्होंने कोई मल्टीबेरिएबल समीकरण तो नहीं दिया पर कुछ कुछ भाषावालों की तरह बता दिया कि प्रोबेबिलिटी 1 से ज्यादा या 0 से कम नहीं हो सकती।
आज बारिश होने की सम्भावना ० है मतलब आज बारिश होना असंभव है. अब कोई कहता है कि कल बारिश होने की सम्भावना ० से भी कम है. (बोलचाल की भाषा में हम कह सकते हैं इसका मतलब ये है कि कल बारिश होने की सम्भावना आज से कम है.) पर गणित ये नहीं मानता अगर कल बारिश होने की संभावना आज से कम है तो आज बारिश होने की सम्भावना ० हो ही नहीं सकती ! क्योंकि असंभव से कठिन भला क्या हो सकता है?! पूर्ण से अधिक पूर्ण भला क्या हो सकता है और शून्य से अधिक शून्य !
चिटठों की यात्रा के दौरान ही सोचा कि भला इंसान यात्रा करता क्यों है...एक वजह ये होती है कि वो जहॉं होता है वहॉं से खुश नहीं होता इसलिए वो कुछ बेहतर जगह पहुँचना चाहता है और यात्रा करता है...ये अपने विद्यमान से विद्रोह है... स्थूलत: भी और जीवन में भी। पर शायद एक तरीका ये भी हो सकता है कि जहॉं हम हैं वहीं से कुछ और तकलीफदेह जगहों को देख लें । हम दिल्ली के तिरयालीस डिग्री के पारे में कोसानी-मनाली की ओर निहार सकते हैं या अल्पना वर्माजी के शहर के मौसम को देखकर सुकून महसूस कर सकते हैं
गरमी इस बार भी अपनी हदों को पार किये जा रही है.कल भी पारा ५० से ऊपर ही था.धूल भरी गरम खुश्क हवाएं दिन भर कहर ढाती हैं.सुबह ९ बजे के बाद नलों में आते पानी को हाथ लगा नहीं सकते. इतना गरम हो जाता है!हर साल अलऐन शहर यू.ऐ.ई का सब से गरम शहर होता है इस बार भी अपना रिकॉर्ड बनाये रखेगा! मई तो गुजरने वाला है,जल्दी से जून और जुलाई भी गुज़र जाएँ तब ही इस मौसम से निजात मिलेगी
यात्राक्रम में बिना तीरथ की बात किए बात न बनेगी इस लिहाज से दो चिट्ठों की चर्चा करना चाहेंगे। हिन्दयुग्म के साथी तपन गंगासागर के केकड़ों से मिलकर आ रहे हैं। इसी तरह विनीता नैनीताल से हरिद्वार तथा ऋषिकेश की यात्रा को साझा कर रही हैं आप भी घूम आएं।
उसने दुकान के आगे बड़ी सी घंटी लगाई थी और जोर से घंटी को झटका देते हुए आवाज लगा रहा था - आइये प्रभु ! सेवा का अवसर दीजिये। हमने सोचा की चलो भक्त को अवसर दे ही देते हैं सो हम अंदर आ गये और सबने एक-एक प्लेट गुलाब जामुन का ऑर्डर भक्त को दे दिया। कुछ देर बाद वो दोनों में रख के गुलाब जामुन ले आया। उसके गुलाब जामुन भी बहुत स्वादिष्ट थे और पत्तल के दोनों में परोस के देना भी बहुत अच्छा लगा। कम से कम कहीं तो कुछ बचा हुआ है और इसी खुशी के चक्कर में एक-एक प्लेट गुलाब जामुन और साफ किया गया।
(एकदम साफ बता दें कि ऊपर का उद्धरण हमने टाईप नहीं किया है जब भी कोई तालेवाला चिट्ठा सामने आता है हमारे पास दो ही विकल्प होते हैं या तो ओपेरा में खोलकर सीधा कापी पेस्ट करें या मटिया दें, रखो अपना कंटेट संभालकर...अचार डालो, यहॉं कापी पेस्ट किया है)
तो यह हुई यात्रा वाले चिट्ठों की चर्चा। इस क्रम में चलते चलते हंस के आवरणपृष्ठ का आनंद लें-
अद्भुत चिठ्ठा चर्चा रही इस बार...बहुत रोचक...और ये हंस के मुख पृष्ठ पर जो काम ये सज्जन अब कर रहे हैं हमने चौतीस साल पहले ही अपनी शादी पर कर दिया था...इसे कहते हैं दूर दृष्टि...और लाभ...पूछिए मत...पाँचों उँगलियाँ घी और सर कड़ाई में रहा है तब से...याने खाना बनाते रहे हैं....:))
जवाब देंहटाएंनीरज
छुट्टियों में कहीं की भी यात्रा करना बहुर दुरूह कार्य है, पर मजबूरी भी है...
जवाब देंहटाएंचलते रहो! चलते रहो! काई न जमने पाये!
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया.
जवाब देंहटाएंरामराम.
यात्रा चर्चा में आपके साथ यात्रा करना बड़ा सुखकर रहा. बेहतरीन घुमवाया. आभार.
जवाब देंहटाएंरोचक चर्चा.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मेरे शहर के मौसम का जिक्र करने के लिए..
हाँ ,यहाँ की गरमी का अंदाजा लगाईये और खुश हो जाईये कि सिर्फ वहां ४३ डिग्री ही है..दुबई में आज ४६ है और यहाँ al ain mein ५३ डिग्री..
सोच रहे हैं इस हिसाब से दुबई में ही ठंडक होगी..फिलहाल तो हमारे लिए वही मनाली है...
अनिल पुसुद्कर जी भी बहुत खुश हुए यहाँ का तापमान जानकर..चलिए..यह भी सही!
यह तो हाल अब है अगले महीने की राम जाने!
[Feed ke zareeye bhi aap post ka matter copy kar saktey hain..
I.E mein orange rang ka tab hai..bas click kar den..yun to sare lock bekaar hain]
उम्दा चर्चा .
जवाब देंहटाएंSundar charcha..
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा ! केकड़ों के दर्शन करे आते हैं अभी तो.
जवाब देंहटाएं@ जी अल्पनाजी आप एकदम बजा फरमाती हैं हम चारेक साल से इस तालेबाजी से असहमति जताते आ रहे हैं.. फीड से, ओपेरा से, ब्राउजर में स्क्रिप्ट डिएक्टिवेट कर ... और भी कई तरीके हैं... चोर तो इनसे रुकता नहीं हॉं कोई जेन्उअनली कापीपेस्ट कर उद्धरण देना चाहे तो वो जरूर चिढ़ बैठता है।
जवाब देंहटाएंचाहता तो न था, पर ग्यारहवीं शुभाँक टिप्पणी का श्रेय लेने का लोभ !
जवाब देंहटाएंखिचड़ी के चार यार,
दही पापड़ घी अचार
ज़ाहिर है, अचार सादगी के साथ सिर जोड़े बैठा है..
तो हम अचार का आनन्द लेने का बुरा नहीं माना करते ।
चर्चा करने की हुड़क ( ! ) के साथ साथ, अचार से परहेज का आभिजात्य पचता नहीं दिक्खै ।
मना होने पर अचार छूने में अहम भी आड़े होगा, शायद ?
दिल्ली नवभारत टाइम्स पर दी गयी सामग्री लोकसभा चुनाव के उम्मीदवारों के लिए फॉर्म " ..
1. उम्मीदवार का नाम
2. वर्तमान पता
a. जेल का नाम
b. कोठरी नंबर
3. राजनीतिक पार्टी (पिछली पांच पार्टियों का नाम लिखें)
4. लिंग
a. पुरुष
b. महिला
c. इनमें से कोई नहीं
5. राष्ट्रीयता
a. इटैलियन
b. भारतीय
6. पिछली पार्टी छोड़ने का कारण (एक या उससे ज्यादा ऑप्शन चुन सकते हैं)
a. दलबदल किया ... इत्यादि "
वहाँ से उड़ कर कई ब्लाग्स पर " शोभायमान, " या कहिये कि" विराजमान " ही नहीं,
बल्कि
" चर्चायमान " तक हो चुकी है ।
" चिट्ठाचर्चा पर भी " यह उल्लिखित है ।
मज़े की बात यह कि, ओपेन सोर्स डिमोज़ पर भी मुँह चिढ़ा रही है !
चाहता तो न था, पर..
"ज्ञानदत्तजी कुछ अलग कारण से ट्रकों की एक दिन की यात्रा करना चाहते थे .." यह तो वही बात हुई कि होटल का मालिक पडोस के होटल में खाने गया है। रेल के सरदार और ट्रक के सवार????:)
जवाब देंहटाएंJust now,
जवाब देंहटाएंएक फोन आया, " आपकी टिप्पणी में अचार कहाँ से आया जी ? "
शायद वह जल्दबाजी में " रखो अपना कंटेट संभालकर...अचार डालो, " देखना भूल गये होंगे ।
लेकिन, यह तो तेरहवीं टीप है, ख़ुदा ख़ैर करे !
उम्दा चर्चा .
जवाब देंहटाएंमसिजीवि जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक चर्चा हुई, डेस्कटॉप पर ही धार्मिक यात्राओं का वर्णन प्राप्तकर कुछ पुण्यलाभ प्राप्त किया।
एक बार में संपूर्ण ब्लॉग दर्शन भी हुये।
जय हो,
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
Apne to ek sath hi kai aur jagho ki bahi yatra karwa di...achhi lagi apki ye yatrao se bhari post...
जवाब देंहटाएंचर्चा तो चर्चा फोटो तो और भी कमाल जी
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