हमारा मानना रहा है कि भारतीय राजनीति और कला का बहुत गहरा नाता है ! जब जब राजनीति में सरगर्मियां और हलचल बढती है कला की सभी विधाओं में रचनात्मक उर्जा बढी हुई दिखाई देने लगती है ! खासकर ब्लॉग लेखन जो कि आजकल का सबसे आधुनिक कला- रूप है में मात्रात्मक और गुणात्मक विकास होता है ! राजनीति , राजनीतिक व्यक्तियों , संस्थाओं की निंदा , आलोचना , उपहास , व्यंग्य न हो करने को तो ब्लॉग में क्या खाक लिखा जाएगा ? चुनाव वो भी लोकसभा के आ गए तो ब्लॉग लेखन में भी रचनाओं की बहार - सी आ गई है ! कविता , किस्सा , कहानी , कार्टून हर स्टाइल में मौसम के अनुरूप पोस्टें आईं ! चुनाव के प्रंग से लदे फदे ऎसे माल से तंग आकर शेफाली पांडे जी को लिखना पडा कि बस आज से कोई चुनावी व्यंग्य नहीं आज से खालिस गंभीर कविता लिखूंगी ~! बामुलाहिज़ा के ब्लॉग पर कसाबी आतंकवाद पर कार्टून देखने लायक है ,साथ ही मायावती की मासूमियत भी ! भई जो तंज़ कार्टून में है वो किसी विधा में नहीं है ! खैर ! मेरी आप सबसे गुज़ारिश है कि पूरा देश मिलकर जो चुनाव आयोग को कंफ्यूज़िया रहा है वो न करें ! कोई कहता है कि चुनाव आयोग ध्यान दे , तो कोई कहता है चुनाव - आयोग ध्यान न दे ! अब अंशू जी के ब्लॉग को पढकर चुनाव आयोग के कान ( अगर वो हैं तो ) पर जूं रेंगेगी क्या ?
मेरी गली और देश के सारे के सारे पप्पूओं के साथ जो अन्याय हो रहा है मेरे हिसाब से उसपर मानवाधिकार आयोग को जल्द ध्यान देने की ज़रूरत है ! उनके नाम को खामख्वाह बदनाम किया जा रहा है ! जो जन्म से पप्पू नाम के साथ बड़ी हुए हैं वो जी कैसे रहे होंगे इसपर संवेदनशीलता से विचार करना चाहिए ब्लॉगरों को ! एक ब्लॉगर ही हैं जिनसे ऎसी बातों से मुद्दा निकालने की उम्मीद की जा सकती है ! अब जो पप्पू भी नहीं बने वोट भी नहीं डाला उनका ऎक्स्पीरियेंस भी पढ डालिए हो सकता है आगे काम आए ! टेंशन –प्वाइंट पर जाकर मुंह छिपाए घूम रहे पप्पू थोडा रिलीव्ड महसूस कर सकते हैं ! पर आपको बताए दूं यहां पोस्ट नहीं पोस्ट की बच्चा ही मिलेगा ! :) भई लिख ही रहे हैं तो थोडी टेंशन आप भी ले ही लो हाथ खोलो की बोर्ड पर ताकि पढने वाला भी समझ पाए कि आप लिखना ही चाहते थे ब्लॉग वाणी की लिस्ट में आ जाना भर इरादा नहीं था आपका ! चुनावी काउंट डाउन शो जल्द ही शुरू होने वाला है अब गिनना बाकी है जो कि सबसे आसान काम है भारतीयों के लिए ! आखिर इतनी बढी आबादी की जनगणना से गिनने की प्रेक्टिस करते आए हैं हम ! मंसूर मतदान के बाद के समय सोलह मई की गिनती के लिए तैयार कर रहे हैं-
बोल घड़े में डाल चुके अब गिनती करना है ,
पोल खुलेगी जल्दी ही, अब गिनती करना है.
सब ही सर वाले तो सरदार बनेगा कौन?
दार पे चढ़ने वालो की अब गिनती करना है.
गूंगे बहरे शेर के पकडे जाने की कहानी का रहस्य जानने के लिए पल्लवी त्रिवेदी जी के ब्लॉग पर जाइए ! पढकर मुस्कुराए बिना नहीं रहेंगे ! इलेक्शन के दिन एक तत्पर और ज़िम्मेदार वोटर को पप्पू बनाया जाने के लिए विवश करते सरकारी तंत्र पर व्यंग्य अवश्य पढिए चाय - चिंतन में ! वैसे शर्मिंदगी केवल पप्पूपन की ही नहीं है, मसलन पीएम साहब क्वात्रोची की वजह से शर्मिंदा हैं। शर्मिंदगी की वजहें और भी हैं मसलन औरत औरत होना जो रोजाना मरती है या फिर अल्पवयस्क पत्नी की होना जिसे कानून भी पटकता फटकता है।
क्या हम दुनिया के किसी भी भाग से ऐसे समाचार नहीं सुनते हैं कि दो या पाँच या सात वर्ष की बालिका के साथ बलात्कार किया गया। किसी भी अवस्था में इस तरह के अपराध के होने की संभावना तो बनी ही रहती है। इसी तरह से बाल विवाह पूरी तरह से प्रतिबंधित हो जाने पर भी यह स्थिति तो बनी ही रहेगी कि कानून से निगाह बचा कर कोई बाल विवाह हो ही जाए और उस अवस्था में कोई पति अपनी 15 वर्ष से कम आयु की पत्नी के साथ बलात्कार कर दे। ऐसी अवस्था में उस कृत्य को अपराध घोषित किया जाना क्या आवश्यक नहीं है?
और अंत में आमने-सामने :
अच्छा रहा आमने सामने.. चर्चा के साथ..
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सामयिक चर्चा!
जवाब देंहटाएंजय हो पप्पू भइया की........
जवाब देंहटाएंआमने सामने का बहुत अच्छा विचार है ...
जवाब देंहटाएंआमने-सामने तो वाकई मजेदार है। अच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएं"मेरी गली और देश के सारे के सारे पप्पूओं के साथ जो अन्याय हो रहा है...." और पप्पियों का क्या होगा????????? वो तो खैर, संजय दत्त देख लेगा :)
जवाब देंहटाएंये आमने-सामने वाली स्टाईल जमीं. यूँ तो पूरी चर्चा बहुत अच्छी की है.
जवाब देंहटाएंपप्पू बेचारा तो " नानी जी का चुनावी आमना सामना " देख कर ही लौट आया,
जवाब देंहटाएं" ..... ... .. भई ज़्यादा नहीं चला जाता, हर बार रिक्शा पुलिस वाले थोड़ा अंदर तक जाने देते हैं जहाँ से मतदान कक्ष आठ-दस कदम दूर होता है, और वैसे भी उस समय भीड़ बिलकुल नहीं थी मतदान केन्द्र में इक्के दुक्के मतदाता ही थे जो सब मतदान कक्षों में थे। लेकिन इस पर उस ठुल्ले ने फबती कसी - “जब चला फिरा नहीं जाता है तो आई क्यों हो ” !! "
अब क्या करे, पप्पू ?
वह हमेशा से बेचारा तो है ही !
चुनाव पर लिख लिख कर और पड़ पड़ कर भले ही बोर हो गयी हूँ ...लेकिन नेताओं पर लिखने पर कभी बोरीअत नहीं होती ...उन पर सदाबहार कलम चल सकती है ....वैसे नेताओं की तरह में भी अपना बयान बदल सकती हूँ ...
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