क्योंकि देखा है कि कोई अपना टेम्पलेट बदलने तक की सूचना देता है तो टिप्पणियों के ढेर लग जाते हैं। कोई ब्लाग पढ़ने की सूची देता है तो भी लोग लग जाते हैं टिप्पणी देने में। कोई तो अपने पूरे परिवार के नाम पर ब्लाग बनाये है, कोई दे या न दे वे खुद ही दर्जनों के भाव से टिप्पणी लगा देते हैं।
आगे वे कहती हैं:
अरे यारों, अब तो कर दो एक दो टिप्पणीं यहाँ भी। वैसे टिप्पणियों का शौक नहीं क्योंकि अपने मीडिया के शौक में वैसे भी बहुत टिप्पणी खाने को मिलतीं हैं।
हाँ, यदि हमारी फोटो के डर से टिप्पणी न करते हो कि कहीं कोई देख न ले कि नंगी लड़की वाली फोटो वाले ब्लाग को पढ़, देख रहे हैं या उस पर टिप्पणी की दी है तो कोई बात नहीं।
ओस की बूंद ब्लाग मैंने कल ही देखा। अपनी पोस्ट पर मैंने लिखा था-
इसी क्रम में हम कुश से पूछना चाहते हैं कि हमने और भी तमाम चीजों को देखने की बात कही लेकिन कुश ने लड़कियों को देखने की बात पर ही क्यों सवाल उठाया?
इस पर ओस की बूंद की प्रतिक्रिया थी-
sahi hai, LADKIYAN cheez (SAMAJH RAHE HAI NA CHEEEEZ) hi to hain abhi tak. सही है लड़कियां चीज (समझ रहे हैं न चीज) ही तो हैं अभी तक!
उनके इस संकेत के बाद मैंने अपनी पोस्ट में सुधार किया और उस वाक्य को लिखा-
इसी क्रम में हम कुश से पूछना चाहते हैं कि हमने और भी तमाम लोगों/चीजों/ घटनाओं को देखने की बात कही लेकिन कुश ने लड़कियों को देखने की बात पर ही क्यों सवाल उठाया?
लड़कियों/स्त्रियों/महिलाओं को चीज (सामान) समझने की दृष्टि पुरुषवादी/सामंतवादी/वर्चश्ववादी होती है। इस बात पर अक्सर बात होती रहती है और एतराज होते रहते हैं। कल सुजाता ने भी अपनी चर्चा में रवींद्र व्यास के लेख की चर्चा की।
रवीन्द्र व्यास ने अपने लेख में स्त्री को रहस्यात्मक बताते हुये की तुलना पुस्तक से की। इस पर सुजाता का कहना है-
जब जब हम स्त्रीके साथ इस रहस्य को जोड़ते हैं तो हमारे किशोर इस मूल्य के साथ बड़े होते हैं कि स्त्री रहस्य है इसलिए उससे डील करना आसान नही है। इसलिए वे उसके पास जाने से पहले अपने अस्त्र शस्त्र और योजनाएँ बना कर जाते हैं।मुक्त हो कर सहज भाव से नही।यदि आपको बताया जाए कि आप किसी तिलिस्म के दरवाज़े पर खड़े हैं तो स्वाभाविक ही होगा कि आपकी मन:स्थिति जूझने , लड़ने, विजयी होने , जीतने या भय के कारण उतपन्न असुरक्षा और अभिमान की होगी।एक ग्रंथि ! एक ऐसी ग्रंथि जो इस दुनिया मे स्त्री को कभी पुरुष के लिए और पुरुष को स्त्री के लिए सहज नही होने देती।
रवीन्द्र व्यास से अपनी अपनी विनम्र असहमति व्यक्त करते हुये सुजाता ने लिखा:
पुस्तक प्रेम बढाने के लिए आप पुस्तक मे स्त्री देह का उपमान दें यह मौलिक भले ही हो लेकिन मासूम नही है।एकतरफा है।एकांगी है।स्त्री की नज़र से भी इसे देखें!
शायद रवीन्द्र व्यास इस पर अपने कुछ विचार व्यक्त करें।
मेरी समझ में अपनी बात को नये अंदाज में कहने का लेखकीय लोभ भी इस तरह लेख लिखवाता है।
रवीन्द्र व्यास जी ने अपने लेख में कुछ लाइने ऊपर/नीचे इस तरह लिखीं जिसे लिखने के अन्दाज से कविता ही माना जायेगा:
किताब एक स्त्री की आत्मा का घर है
जिसमें देह का रोना सुनाई देता है
रोना एक स्वप्न है
जिसमें बहुत सारी हिचकियां रहती हैं
हिचकियां एक चादर है
जिसके रेशों में दुःख का रंग है
दुःख एक आईना है
आईने में दुनिया के अक्स हैं।
इस तरह की कड़ी से कड़ी जुड़े नुमा वाक्य शानदार कविता के रूप में जाने जाते हैं। किसी विदेशी कवि का नाम अगर
इससे जुड़ जाये तो यही कविता कालजयी भी मानी जा सकती है। लेकिन क्या सच में यह शब्द समुच्चय कविता है। अगर है तो ऐसी कविताओं का तो मास प्रोडक्शन हो सकता है। छोटे-छोटे वाक्य जोड़कर असेम्बली कर ली जाये।
आजकल बिजली के बुरे हाल हैं। दामोदर अग्रवाल जी मनचली बिजली की निन्दा करते कहते हैं:
बड़ी शरम की बात है बिजली, बड़ी शरम की बात।
जब देखो गुल हो जाती हो, ओढ़ के कंबल सो जाती हो,
नहीं देखती हो यह यह दिन है, या यह काली रात है बिजली,
बड़ी शरम की बात,
बड़ी शरम की बात है बिजली, बड़ी शरम की बात।।
इस मसले पर चंद्रशेखर हाडा के व्यंग्य चित्र देखिये:
और अंत में
आज की चर्चा का दिन तरुण का बनता है। सुबह देखा तो उस समय तक कुछ दिखा नहीं सो यह चर्चा कड्डाली। कुछ कल की चर्चा का दोहराव भी है। लेकिन लगा कि लिखना चाहिये सो लिख दिया।
बाकी चकाचक। कल देखिये रविरतलामीजी क्या दिखाते हैं अपने खजाने में से। कविताजी परसों चर्चा करने के लिये हैदराबाद पहुंच गयीं हैं। बहुत दिन बाद मिलेगी देखने को उनकी चर्चा। बजरंगबली भक्त विवेक के दर्शन तो जो है जून के
बादैं होइहैं।
तब तक आप आराम करें। सप्ताहांत मौज-मस्ती से बितायें। ठीक हैं न!
Lo kuch khas tu chor hi diya aapne anup ji.
जवाब देंहटाएंIrshad
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंओस की बून्द का कटाक्ष तो ठीक है लेकिन यह कहकर वे महान तो नही हो जातीं!नंगी तस्वीर उन्होने ध्यानाकर्षण के लिए लगाई , फिर भी ध्यान नही मिला , और इसी बात की खीझ है यह पोस्ट।
जवाब देंहटाएंकोई कहीं उमंगित हो रहा है अपने आप में तो हो ही जाने दो. कहाँ कहाँ भाग के देखोगे.
जवाब देंहटाएंतुलसी इस संसार में, भाँति भाँति के लोग..
कुछ तो................
अनूप जी एक बार फिर से मेरे कार्टूनों को 'चर्चा' में शामिल किया.....बहुत-बहुत धन्यवाद्,आभार.
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
या इलाही ये माज़रा क्या है,
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति का यह भी कोई तरीका ही होगा ?
मशालची लोग चिंता व्यक्त कर रहे हैं,
विवेचना कर रहे हैं, आलोचना कर रहे हैं,
या गवेषणा ही चल रही है ?
इट इज़ क्लीयरे नाट टू मी कि,
इस मशाल में तेल काहे का डाला जा रहा है.. ..
या इलाही ये माज़रा क्या है ?
अक्सर सोचता हूँ, कि पुरुष का स्त्री को केवल लार टपकाने या लार न टपकाने की ही दृष्टि से देखना कितना ढकोसले भरा है.
जवाब देंहटाएंरविन्द्र व्यास जी के लेख पर टिपण्णी तो मै चिटठा चर्चा के दूसरे अंक पर अभी कर चूका हूँ.......यहाँ मै प्रवीण पाण्डेय जी द्वारा दिए गए इन सुझावों को जरूर प्रसांगिक ...ओर अच्छे मानता हूँ....
जवाब देंहटाएं1. ब्लागरों को अपनी ब्लागों का मोबाइल वर्ज़न भी उतारना चाहिये
2. ब्लागरों को अधिक से अधिक ऐसे मोबाइल का उपयोग करना चाहिये जिसमें आप इन्टरनेट देख सकें और हिन्दी पढ़, लिख सकें । विन्डो मोबाइल में यह सुविधा है
3. ईमेल के माध्यम से ब्लाग व टिप्पणी पोस्ट करने की व्यवस्था से मोबाइल का उपयोग इस क्षेत्र में बढ़ेगा(यदि हो तो बतायें)
4. टिप्पणी बाक्स में हिन्दी टाइप करने की सुविधा हो मोबाइल में (डेक्सटाप में है)।
वैसे ब्लॉग पोस्ट में कुछ सुविधा है .पर शायद रतलामी जी ,तरुण या दूसरे ज्ञानी लोग अगर विस्तार से इस विषय पर रौशनी डाले तो ओर बेहतर होगा ....
and yes cartoon are good...they make this plateform ....more attractive......
आज की यह चर्चा तो नये आयाम खोलने वाली है। कल औरत की तुलना किताब से हुई और आज ओस की बूँद औरत बनकर उसके प्राकृतिक रूप में हाजिर हो गईं। सब कुछ अनावृत्त।
जवाब देंहटाएंहमारे मन का घोड़ा कहाँ-कहाँ तक कुलाँचे मार सकता है यह कह नहीं सकते। लगता है कि इस राजसूय यज्ञ का विस्तार होता ही जाएगा। भगवान करे इन रूमानी कलमकारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आनन्द मिलता रहे, कहीं कोई लव-कुश इस घोड़े को रोककर युद्ध न शुरू कर दें, कहीं किसी दुर्योधन को किसी द्रौपदी का कटाक्ष इतना न बुरा लग जाय कि महाभारत की दागबेल पड़ जाय। सब कुछ अच्छा और मर्यादित ही हो, यही शुभकामनाएं।
चर्चा अच्छी है। यह तो सही है कि जब तक स्त्री पहेली बनी रहेगी, तब तक लोग उसे बूझते रहेंगे।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर चर्चा..कार्टून चर्चा का निमैतिकरण बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
धीरे-धीरे रे मना! धीरे सब कुछ होय।
जवाब देंहटाएंमाली सींचे सौ घड़ा ऋतु आए फल होय॥
-देह की लकीर
जवाब देंहटाएंटूटता जुड़ता हुआ
इसका आयाम,
कभी सिहरन भरा दर्द,
कभी घृणा का अहसास.
फिर भी ऐसी यह लकीर,
जिस पर मानव चलने को
आतुर,
रोज वही सज-धज
वही सुवह व शाम
बाकी सब धुआँ धुआँ.
arun kumar jha
ये क्या ? सबसे ऊपर की फ़ोटो तो उल्टी लग गयी !
जवाब देंहटाएंऔर कोई इस गलती पर ध्यान ही नहीं दे रहा है :)
लिंक देखा । प्रोफाइल का नाम ’ओस की बूँद’ और ब्लॉग का नाम ’पल भर’ । दोनों एक दूसरे को व्याख्यायित करते हुए ।
जवाब देंहटाएंचर्चा अच्छी लगी । धन्यवाद ।
ओस की बूंद ब्लाग में नंगी तस्वीर डालने का मसकद था चर्चा में आना और यह काम आपने कर दिया है और उन जनाब (हमें लगता है यह ब्लाग किसी महिला ने नहीं बल्कि पुरुष ने बनाया है) का मकसद पूरा हो गया। ऐसी ओछी हरकत करने वालों की हरकतों पर ध्यान ही नहीं देना चाहिए। लोग ऐसी हरकतें ही इसलिए करते हैं कि कोई उन पर ध्यान दे और वे भी चर्चा में आ जाए।
जवाब देंहटाएंmeri charcha ke liye AABHAR. tippni paane ke liye nahin aap logon se mukhatib hone ke liye aisa likha tha.
जवाब देंहटाएंfir-fir aabhar
समझ में नहीं आया कई पलों तक....हमेशा फुरसतिया देव के शब्दों और लेखनी से आकर्षित होता रहा मन, आज ये एकदम से कैसे भटक सा रहा है...
जवाब देंहटाएंआहsssss!!!!
बड़िया कार्टून्।
जवाब देंहटाएंthat is very good yar
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