मैं हारी नही !
बस थकी हूं थोड़ी ...........
वैसे ...... आज कुछ भी भूमिका बाँधने की न तो इच्छा है और न ही जरुरत!!
सीधे पढ़िये मनोभाव, बड़े अजीब से हैं: मेरे नहीं उड़नतश्तरी के मालिक के.....
इरशाद अली शबाना आज़मी की डायरी के कुछ पन्ने खोलते हैं वहाँ भी पिता की यादों का ज़िक्र है......... दुनिया में कम लोग ऐसे होते हैं जिनकी कथनी और करनी एक होती है। अब्बा ऐसे इंसान हैं-उनके कहने और करने में कोई अंतर नहीं है। मैंने उनसे ये ही सीखा है कि सिर्फ सही सोचना और सही करना ही काफ़ी नहीं, सही कर्म भी होने चाहिए.....
पिता के बारे में पढ़कर माँ की याद आ जाती है मुझे.....
मेरे पिता नहीं रहे
मेरी माँ
शून्यहीन सी
इस जग में होकर भी
नहीं थी....
न ही रहना चाहती थी॥
लेकिन
अपने बच्चों को देखती
उनकी ममता में डूबती उतरती
अपने आँचल की
शीतल छाया देती...
और सुख पाती.....
अपने अकेलेपन के
दुख को भुला देती.....है !
माँ की याद आते ही अपनी भारत माता की याद आने लगी.....
जो भरा नहीं है भावों से
जिसमें बहती रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।' नीशू ही नहीं हम सभी मैथिलीशरण गुप्त जी को खड़ी बोली को नया आयाम देने वालेकवि के रूप में मानते हैं....
देश को आज़ादी दिलाने वाले क्रांतिकारी देशभक्तों को भी हमेशा याद किया जाता है..... कई बार उनसे जुड़े कई सवाल जो आज भी मांगते हैं जवाब.... कि भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को सुबह के बजाय रात में ही क्यों दी गई फांसी??
आज नेहरूजी की पुण्य तिथि है। उनका जन्म १४ नवम्बर १८८९ और मृत्यु २७ मई १९६४ को हुई थी। बच्चों से प्रेम करने वाले चाचा नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे। बच्चों के चाचा नेहरू को हम सभी फूलों सी महकती श्रद्धाजंलि देते हैं....
लावण्याजी की यादों के अनमोल खजाने में और भी बहुत कुछ देखने और सुनने को मिलता है ....
होश सम्हालो , रूक जाओ न , और सुन लो ,
रागिनी मधुर सी , बजती है जो फिजाओं में !
जरा सा व्यंग द्रौपदी का रच जाता है महाभारत सा इतिहास ताऊजी और सीमाजी की इस कविता ने प्रभावित किया ही .... लेकिन एक टिप्पणी ने भी दिल मोह लिया.... संजय बैंगनी ---- एक नन्ही सी टिप्पणी जन्म देती है होनहार ब्लॉगर को ... छोटे को छोटा न समझे...
डॉ रूपचन्द मयंक की नई पोस्ट के शीर्षक ने ध्यान आकर्षित किया.....और रेखा छोटी हो गई....
"किसी को मिटा कर उसका वजूद छोटा नही किया जा सकता है, अपितु उससे बड़ा बन कर ही छोटे बड़े के अन्तर को समझाया जा सकता है।"
दिल्ली को इन चरसियों से मुक्त करवाने के लिए 'कल्पतरु' ब्लाग पढ़कर कोई बंधु जो यह अधिकार रखता हो या मीडिया में हो तो कृप्या सहयोग करें और दिल्ली को सुँदर बनाने में योगदान दें।
हमने भी दिल्ली की जे।एन.यू.रोड पर एक चरसी को फुटपाथ पर पड़े देखा..... एक तरफ चरसी है...देश की चिंता... दूसरी तरफ होनहार युवा शक्ति भी है....दोनों के लिए समाज की चिंता स्वाभाविक है...
आखिर आइआइटी के ख्वाब तले पसरा अंधेरा कब रौशनी से जगमगायेगा।.......? प्रभात गोपाल की गपशप एक गम्भीर मुद्दे पर सोचने पर विवश करती है --- एजुकेशन इंफ्रास्ट्रक्टचर के नाम पर झारखंड और बिहार जैसे राज्य में कुछ नहीं है। साठ सालों से जनता को लुभावने नारों के साथ धोखा देने का काम किया जाता रहा है। इंटर के बाद हायर एजुकेशन के नाम पर इन दोनों राज्यों में संस्थानों की ऐसी कड़ी नहीं है कि जो लाखों छात्रों के बोझ को संभाल सके।
कुछ दुलर्भ और रोचक जानकारी --- शास्त्री जी का कहना है ....चंदन के जंगल खतम होते जा रहे हैं। आज चंदन का सिर्फ नाम चल रहा है, तेल किसी ने नहीं देखा, कल नाम से भी कोई इनको नहीं जानेगा।
अरविन्दजी की चित्र पहेली का समाधान अंतर सोहिल ने दिया जिसमें एक दुर्लभ फूल का ज़िक्र है .... इस फूल के बारे में हमने पहली बार जाना.... कार्प्स फ्लावर जिसे सूरन कहते हैं, यह ५-६ वर्षों में एक बार ही फूलता है ! दुनिया के बड़े फूलों के परिवार से नाता है इसका यानि रफ्लेसिया कुल का है यह ! खिलते ही मरे जानवर की दुर्गन्ध फैलता है जो कीटों को आकर्षित करने और परागण के लिए एक उपाय है ! पूरी तरह खिल जाने के बाद दुर्गन्ध मिट जाती है !
राजकुमार ग्वालानी का राजतंत्र भी एक रोचक जानकारी देता है॥ .....एक शोध में यह बात सामने आई है कि चीटियों में एक प्रजाति ऐसी है जो बिना नर के न सिर्फ बच्चे पैदा करने की क्षमता रखती है, बल्कि इस प्रजाति को नरों से ही परहेज है।
व्यंग्य जो जानने समझने और पचाने का विषय है .....आलोक पुराणिक - चुनाव सारे मजे जीतने वाले के ही नहीं होते हैं, हारने के भी कई फायदे हैं।
डॉ अमरकुमार कहते हैं -- अपनी प्रतिष्ठा के प्रतिकूल एक मिन्नी सी, सौम्य.. लजायी हुई पोस्ट देकर अपने जीवित होने की गवाही देनी पड़ी ।
हरकीरत हक़ीर को उनकी पुस्तक ' इक दर्द ' के लिए सम्मान-पत्र , कुछ राशि और शाल से सम्मानित किया गया । उन्हें बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ ....
शब्दों के सफ़र के अजितजी के सुपुत्र अबीर को दसवीं कक्षा में अच्छे अंकों में उत्तीर्ण होने पर बहुत बहुत बधाई... भविष्य उज्ज्वल और मंगलमय हो....
बेखर्चा इतनी सुंदर
जवाब देंहटाएंमानस मोहक चर्चा।
चर्चा में सभी महत्त्वपूर्ण बिंदु शामिल हैं ,बढ़िया रही चर्चा .
जवाब देंहटाएंखूबसूरत चर्चा। अच्छा संकलन।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
उन्मुक्त चरचा
जवाब देंहटाएंसुंदर संक्षिप्त चर्चा!
जवाब देंहटाएंसुन्दर। नेहरूजी को विनम्र श्रद्धांजलि। अजितजी को बधाई। उनके बच्चे को मंगलकामनायें। हरकीरतजी को सम्मानित होने के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंसंजय बेंगाणी की पोस्ट छोटी है लेकिन सार गर्भित है। मटकी छोड़ मशीन की तरफ़ भाग रहे हैं हम।
अनसिक्यूर्ड नेटवर्क से उम्दापन सिक्यूर किये हुए एक बेहतरीन चर्चा. आप तो अनसिक्यूर्ड नेटवर्क वाल कनेक्शन ही ले लो परमानेन्टली.
जवाब देंहटाएंनेहरु जी की याद को नमन.
मटकी तो मात्र बिम्ब है संजय की पोस्ट में..यह पश्चिमिकरण पर गहरा तमाचा है उनकी कलम से. संजय आदतानुसार कभी सीधा बोलते ही नहीं.
बहुत लाजवाब और सुंदर चर्चा..नेहरुजी की आपने याद दिलाई..उनको नमन.
जवाब देंहटाएंहमारी पोस्ट की लिंक हो सके तो ठीक करवा दिजियेगा.:)
रामराम.
अनसेक्युर्ड नेटवर्क से निकली एक सेक्युर्ड चर्चा !!
जवाब देंहटाएंमैं उडन तश्तरी का समर्थन करता हूँ: आप तो अनसिक्यूर्ड नेटवर्क वाल कनेक्शन ही ले लो परमानेन्टली.
नेहरू जी की याद दिलाने के लिये आभार्!
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
खूबसूरत चर्चा।
जवाब देंहटाएंअभी जिन ब्लोगों की चर्चा की गयी है उनका आनंद ले रहा हूँ.. बहुत ही उम्दा चर्चा है
जवाब देंहटाएंbahut achchhi charcha rahi
जवाब देंहटाएंjai ho sadar sweekaary
जवाब देंहटाएंइस चर्चा के बहाने आपने गागर में सागर भर दिया।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
"आज चंदन का सिर्फ नाम चल रहा है, तेल किसी ने नहीं देखा,.." तभी तो अब चंदन को पेड़ से नहीं न जाना जाता...चंदन सा बदन...:)
जवाब देंहटाएं>आपकी यात्रा मंगलमय हो
अच्छी चर्चा !
जवाब देंहटाएंदुबई में ऑफिस के काम के चलते आपसे मुलाक़ात न हो सकी इसका अफ़सोस है...........अगली बार जब भी आप दुबई में हों तो जरूर बताइयेगा ...................... आप ने बहुत ही संवेदनशील ब्लोगेर्स तो इकट्ठा किया है इस बार......... अच्छी जानकारी है ...... शुक्रिया
जवाब देंहटाएंSundar charcha...
जवाब देंहटाएंदेरी से लिंक सही करने के लिए क्षमा करिएगा.... "जरा सा व्यंग द्रौपदी का रच जाता है महाभारत सा इतिहास" ताऊजी का लिंक अब पढा जा सकता है...
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा रही मीनाक्षी दी। अनसिक्योर्ड से सिक्योर्ड तक:)
जवाब देंहटाएंहिंदी चिट्ठाकारों का आर्थिक सर्वेक्षण में अपना सहयोग दें
जवाब देंहटाएंअच्छा है आप बहुत ज्यादा थकी नहीँ हैँ मीनाक्षी जी
जवाब देंहटाएं- सभी को समेट लिया आपने आज - शुक्रिया !
- लावण्या
यूँ थका न करें, मीनाक्षी
जवाब देंहटाएंपर, यदि थके मन से यदि इतनी उत्तम चर्चा है,
फिर तो आप थकी ही भलीं !
मुझे आशा थी कि कविता जी
" ऎसी कोई कविता " का लिंक अवश्य देंगी,
जो यह पुकार रही हो कि,
" क़ाश... मैं ऐसी कोई कविता लिख पाता,
कि पढ़ने वाला अपनी थकन को खूंटी पर उतार टांगता,
और पसीने से लथ-पथ बदन को हवाओं में लिपटा पाता,
क़ाश... मैं ऐसी कोई कविता लिख पाता,
कि पढ़ने वाला देख पाता अपना अक्स उसमें,
और टूटे ख्वाबों की किरचों को फ़िर से जोड़ पाता,"
ब्लॉगों का संगम होता है
जवाब देंहटाएंयहां ना ध्यान जंगम होता है
मिनाक्षी जी बड़िया चिठ्ठाचर्चा के लिए बधाई, अबीर को भी बधाई
जवाब देंहटाएं