गुरुवार, अगस्त 20, 2009

"Bilkul sahi kaha aapne"

मानसून कम आया. बरसात नहीं हुई. किसान हलकान हैं. प्रधानमंत्री परेशान हैं. वित्तमंत्री हैरान हैं. अर्थ-व्यवस्था की मेगा-वाट लगने वाली है. ऐसे में कृतिम बारिश करवा कर प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री वगैरह से हलकानी च परेशानी से बचाया जा सकता है.

अगर आपके मन में सवाल उठ रहा है कि कृतिम बारिश क्या होती है तो फिर डॉक्टर महेश परिमल के ब्लॉग पर जाकर यह पोस्ट पढ़िये. लेखक हैं आशीष आगाशे. कृतिम बारिश के बारे में जानकारी देने वाली बढ़िया पोस्ट है. जानकारी देते हुए आशीष बताते हैं;

"इसे कहते हैं तबीयत से पत्थर उछालना और आसमान में सुराख कर देना। मानसून की बारिश कम होने की चिंताओं को अवसर में बदलते हुए कुछ लोग बादलों से कह रहे हैं, रुको, हमारी जमीन पर बारिश करो। सॉफ्टवेयर क्षेत्र से जुड़े 27 साल के कारोबारी निशांत रेड्डी बादलों से कृत्रिम तरीके से बारिश करवाने के कारोबार में लग गए हैं। बादलों से कृत्रिम तरीके से बारिश करवाने का चलन 40 देशों में है। बारिश कराने का फलता-फूलता कारोबार..."

दुष्यंत कुमार जी के शेर को बिजनेसमैन टाइप लोग समझ पाए वरना इससे पहले तो साहित्यप्रेमी लोग पढ़कर दूसरों को सुनाने का काम करते थे. अ-साहित्यकार टाइप लोगों पर रौब जमाने का काम हो जाता सो अलग.

आशीष जी की इस पोस्ट को पढ़कर अर्शिया अली जी ने टिप्पणी करते हुए लिखा;

"Bilkul sahi kaha aapne"

अर्शिया जी की टिप्पणी पढ़कर लगा जैसे टिप्पणी नहीं बल्कि पोस्ट का रिजल्ट सुना रही हैं.

जहाँ अर्शिया जी की टिप्पणी प्रमाणपत्र या फिर अंकपत्र टाइप लगी वहीँ Ram जी ने अपनी टिप्पणी में लिखा;

"Just install Add-Hindi widget button on your blog. Then u can easily submit your pages to all top Hindi Social bookmarking and networking sites.

Hindi bookmarking and social networking sites gives more visitors and great traffic to your blog."

विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि Ram जी की टिप्पणी पढ़कर आशीष जी ने दोबारा पोस्ट न लिखने की शपथ ले ली है. वैसे आशीष जी की तरफ से अभी तक कोई आधिकारिक वक्तव्य नहीं आया है.

बैतुल्लाह महसूद कैसे मारे गए? क्या कहा आपने? बैतुल्लाह महसूद कौन थे?

ये मुंह छुपाकर हथियार चलाने वाले वीर थे. खैर, छोडिये. ये जानिए कि वे कैसे मारे गए? यह जानने के लिए विस्फोट पर लाहौर से संजीव पाण्डेय की पोस्ट पढ़िये.

नीरज बधवार जी के नाम को हिंदी भाषा आचार्य की वृहद् मानद उपाधि के लिए विचाराधीन है. इस बाबत एक पोस्टकार्ड उन्हें प्राप्त हुआ है. इसके बारे में बताते हुए नीरज जी लिखते हैं;

"पहली बात जो पोस्टकार्ड पढ़ मेरे ज़हन में आई वो ये कि ‘हिंदी भाषा आचार्य’ पुरस्कार की बात अगर मेरी दसवीं की हिंदी टीचर को पता लग जाए तो वो संस्था पर राष्ट्रभाषा के अपमान का केस कर दे। मेरी हिंदी का स्थिति तो ऐसी है कि शुरूआती रचनाएं इस खेद के साथ वापिस लौटा दी गई कि हम केवल हिंदी में रचनाएं छापते हैं!"

आप उनकी पोस्ट पढ़िये. पूरा मामला क्या है, पता चल जाएगा.

बहुत दिनों बाद आज अनिल रघुराज जी ने लिखा. चिंतन किया है उन्होंने. बदलाव को लेकर. चिंतन की शुरुआत करते हुए वे लिखते हैं;

"सामाजिक बदलाव, व्यवस्था परिवर्तन। सिस्टम बदलना होगा। बीस-पच्चीस साल पहले नौजवानों में यह बातें खूब होती थीं। अब भी होती हैं, लेकिन कम होती हैं। कितनी कम, नहीं पता क्योंकि बड़े शर्म की बात है कि हम अब बुजुर्ग होने लगे हैं।"


आप अनिल जी की पोस्ट पढ़िये. वे ज्यादा नहीं लिखते लेकिन जब भी लिखते हैं, वह कुछ अलग सा लगता है. इसीलिए विनय 'नज़र' जी ने उनकी पोस्ट पढ़कर अपनी टिप्पणी में लिखा;

"बड़ी सच्चाई से आपने सब कुछ कह दिया
---
मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव"

अनिल जी की सच्चाई का पता विनय 'नज़र' जी को क्या इसलिए चला कि वे मानव मस्तिष्क पढ़ सकते हैं? खैर शायद विनय ही बेहतर बता सकते हैं.

रेखा श्रीवास्तव जी की कविता पढ़िये. वे लिखती हैं;

माँ मुझको बतलाओ
क्यों मुझको सौपा तुमने
इन हत्यारों को?
........................
.......................
मैंने भी देखा था
माँ तुमको
ओंठ भींच कर सहते सब कुछ
कभी बैठ कमरे में,
कभी छिपा कर मुंह तकिये में,
फूट-फूट कर रोते,
कभी बैठ पूजाघर में
ईश्वर से कुछ कहते,
...........................
...........................

अर्शिया जी ने इस कविता पर भी टिप्पणी करते हुए कहा;

"Sahi kahaa aapne."


अशोक पाण्डेय जी की पोस्ट पढ़िये. उन्होंने बिंदेश्वर पाठक के बारे में जानकारी देते हुए अशोक जी लिखते हैं;

"भारत में अनेक बड़े राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक व आर्थिक परिवर्तनों का सूत्रपात बिहार से हुआ है। लेकिन मौजूदा बिहार में वैसे नवाचारों की कल्‍पना नहीं की जाती। इसलिए बिहारी मिट्टी से जन्‍मा कोई शख्‍स शौचालय जैसी तुच्‍छ चीज के जरिए संभावनाओं का सूर्योदय करा डाले तो बात गौर करने की जरूर है। जी हां, हम बात कर रहे हैं बिन्‍देश्‍वर पाठक की, जिन्‍होंने भारत में सुलभ शौचालय के जरिए एक ऐसी क्रांति लायी, जिसने बहुतों की जिंदगी बदल दी। उनके बनाए सुलभ शौचालयों में जहां भंगियों को रोजगार मिला और सिर पर मैला ढोने के अमानवीय यंत्रणा से उन्‍हें मुक्ति मिली, वहीं ये शौचालय स्‍वच्‍छता के साथ गैर पारंपरिक उर्जा उत्‍पादन के भी स्रोत बने।"


अनूप शुक्ल जी ने ब्लॉग-मैदान में आज पांच साल पूरे कर लिए. उन्होंने लिखा;

".....और मजाक-मजाक में पांच साल निकल लिये! पांच साल ऐसे ही नहीं निकले किसी को धकिया के। पूरी शराफ़त से निकले एक , दो ,तीन , और चार को रास्ता देकर।"

अभी तक तो हम यही समझ रहे थे कि ब्लॉग-जगत में इतने साल गुजार लेना मजाक की बात नहीं है. लेकिन आज पता चला कि असाधारण काम मजाक-मजाक में होते हैं. आप अनूप जी की पोस्ट पढ़िये. बधाई दीजिये. हम
तो कामना कर आये हैं कि वे ऐसे ही सात...आठ...दस वगैरह भी पूरा करें. मजाक-मजाक में.


कश्मीर में राजनीतिक हालात चिंताजनक हैं. इसके बारे में बता रहे हैं अनिल जो महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में मीडिया के छात्र हैं.

स्वप्निल की त्रैमासिक परीक्षाएं चल रही हैं लेकिन उनका भाई सोनू पढाई के नाम से इधर-उधर भागते रहता है. स्वप्निल ने सोनू की फोटो लगाते हुए पोस्ट लिखा लेकिन हर फोटो में बेचारा सोनू पढाई करते हुए दिखाई दे रहा है....:-)

रंगनाथ सिंह जी का लेख पढ़िये. वे लिखते हैं;

"आउटलुक पत्रिका ने एक बार फिर पुराना तमाशा आयोजित किया है। इस तमाशे को देख मुझे जूता भिगो कर मारने वाली कहावत याद आ गई। पाठकों यह जूता असली जूता नहीं है। यह साहित्यिक जुता है। इस साहित्यिक जुते यानि आउटलुक टाप तीन सर्वे को बाल्टी में भिगो दिया गया है। इस सर्वे का परिणाम ही इस जूते की मार होगी। जिस मार से हिन्दी के आउटलुक टाप तीन को छोड़ बाकि बचे सभी कथाकार कराह उठेंगे।

ठीक इसी नाप और माप की जूती कवियों को भी मारी जाएगी। मैं कथाकारों के हवाले से अपना पक्ष रखुंगा। कथाकारों के माध्यम से जो बात रखुंगा वही बात कवियों पर सौ फीसद फिट बैठती है। उम्मीद है पाठक इस बाकी बची बात को खुद बैठा लेंगे।"

पूरा लेख आप पढ़िये और बाकी बची हुई बात को बैठाइए.

आज के लिए बस इतना ही. चर्चा करने में देर हुई, उसके लिए क्षमा करें.

Post Comment

Post Comment

7 टिप्‍पणियां:

  1. "Bilkul sahi kaha aapne"

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
  2. कहा तो खैर बिल्कुल सही मगर हमारी पोस्ट गुम... :( फिर भी कहे देते हैं बिल्कुल सही कहा!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. आप तो कभी गलत कह ही नहीं सकते:)

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर और रोचक चिट्ठा चर्चा। चर्चा के लिए धन्‍यवाद।

    जवाब देंहटाएं

चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

Google Analytics Alternative