जेम्स कैमरॉन की याद है आपको? टाइटैनिक के फ़िल्मकार. कैमरॉन जल्द ही नई फ़िल्म अवतार (ये तो हिन्डी में शीर्षक लगता है जी!) लेकर आ रहे हैं जो तकनीक के मामले में आज तक की सभी फ़िल्मों को मात करने की कूवत रखती है. यदि आपको यकीन नहीं है तो यू-ट्यूब पर जरा अवतार कैमरॉन ट्रेलर की खोज कर देख लें! इस फ़िल्म के बारे में कुछ और विवरण दे रहे हैं इंडियन बाइस्कोप में दिनेश -
"कैमरॉन बताया कि फिल्म निर्माण में देरी की एक वजह यह भी थी कि 1990 के दशक में उन्हें अपनी परियोजना के लिए ज्यादा उन्नत तकनीक का इंतजार था। मोशन कैप्चर एनीमेशन टेक्नोलॉजी की मदद से फोटो रियलिस्टिक कंप्यूटर जेनरेटेड चरित्रों को तैयार करने में उन्हें करीब 14 महीनों का वक्त लग गया। अभी तक यह होता था कि अभिनेताओं की वास्तविक गतिविधियों में डिजिटल एनवायरमेंट जोड़ा जाता था। कैमरॉन के वर्चुअल कैमरे की मदद से अब यह संभव था कि डिजिटल चरित्र तथा वातावरण के बीच अभिनेताओं की गतिविधियों को देखा जा सके। लिहाजा निर्देशक पूरे काल्पनिक दृश्य को संभव होते हुए देख सकेगा और उसके मुताबिक दृश्यों को निर्देशित किया जा सकेगा। इस नई तकनीकी का परिक्षण निर्देशक स्टीवन स्पीलबर्ग ने भी किया और इस दौरान स्टार वार्स के निर्देशक जॉर्ज लुकास भी मौजूद रहे।"
अब जरा सोचिए, कि जिस तकनीक को स्टीवन स्पीलबर्ग ने हरी झंडी दी हो, और जॉर्ज लुकास की देखरेख में परीक्षण हुआ हो, वो किस तरह की तकनीक होगी. अवतार का तो हमें भी बेसब्री से इंतजार रहेगा.
कलाकार-चित्रकार विजेंद्र एस. विज बता रहे हैं कि जर्मनी की कलाकार-साहित्यकार क्लौदिया द्वारा जर्मनी में अनूदित व चित्रित बच्चन लिखित मधुशाला अंतत: प्रकाशित हो गई है.
किताब द्विभाषी - यानी जर्मनी-हिन्दी में है. विजेंद्र बताते हैं -
"लम्बे अरसे बाद क्लौदिया की किताब पब्लिश हो ही गयी॥ २ साल पहले उन्होंने मधुशाला की रूबाइयों काअनुवाद अपनी जर्मन भाषा में लिखा और हर रूबाइयों पर चित्र भी बनायें॥ हिन्दी के प्रति उनका यह प्रेम अनूठा है वह हिन्दी सीखती हैं और पढ़ती भी हैं.. बच्चन साहब की मधुशाला उन्होंने खुद पढी। उनका जिक्र मैं पहले भी यहाँ कर चुका हूँ..वह एचिंग की मास्टर (कुशल चित्रकार) हैं.. ३ साल पहले हम एक अमेरिकन साईट आर्ट वांटेड डॉटकाम से संपर्क में आये.. फिर तो बातों का जो सिलसिला शुरू हुआ वोह बेहद रोचक था..उन्होंने काफी जानकारी हिन्दी के महाकवि डा. हरिवंश राय बच्चन के बारे में ली..और अपनी इच्छा जाहिर की की वह मधुशाला का जर्मनमें अनुवाद करेंगी और एचिंग बनायेंगी.. उनका यह प्रोजेक्ट पूरे २ वर्ष तक चला.. वह लगातार लिखती रहीं..चित्र बनातीं रहीं.. "
मधुशाला तो वैसे भी कालजयी कृति है, और उसे एक बार फिर किसी विदेशी चित्रकार के हाथों एचिंग तकनीक से चित्रित पढ़ने का आनंद कुछ अलग ही होगा.
अगर आपको लोककथा पढ़ना अच्छा लगता होगा तो जल्द ही हारानो सुर पर माउस किलकाएँ. भाषाई कलाकारी के जादूगर प्रमोद सिंह की इस लोक-कथा का एक अनुच्छेद आपके संदर्भ के लिए -
"लंबे इंतज़ार और बीसियों मनौतियों के बाद हुआ फुआ का इकलौता बेटा सतेंदर छुटपन में अपनी मांग के पूरी न होने पर इसी तरह सबसे छूटकर पीछे घिसट-घिसटकर चला करता. फुआ हारकर खौलती चिल्लातीं, ‘तू नीमन से आवतारS कि तहरा के उठा के हियें नाला में दहा दीं?’ नाले में बहाये जाने की धमकी में जाने भय के कैसे गांठ छिपे होते कि छह साल का सतेंदर बोकार फाड़कर रोता एकदम घबराया हुआ फुआ की ओर भागा आता और फिर चुन-चुनकर, उसी रुदनभरे फुत्कार में, ऐसी-ऐसी गालियों से फुआ को नवाजता कि अम्मां तक के कान गर्म हो जाते, फुआ की ओर थककर देखती साहा आंटी नि:श्वास छोड़तीं, ‘आच्छा प्रोभु तुमको बोरदान दिया किन्तु, ना की?’"
ललित शर्मा वैसे तो अपने चिट्ठे पर खासे सक्रिय नहीं हैं, मगर हाल ही में लिखी उनकी कुछ पंक्तियाँ ध्यान आकर्षित करती हैं -
पत्थर ढोना ही मेरी किस्मत में लिखा था
पहाड़ तोड़ना ही मेरी किस्मत में लिखा था
शाहकार बनने पर वे कटवा देंगे मेरे दोनों हाथ
उनका यही इनाम मेरी किस्मत में लिखा था
हिन्दी फ़िल्मी संगीतकार पश्चिमी धुनों को चुराने के लिए बदनाम रहे हैं. एक बेहद लोकप्रिय अंग्रेज़ी गीत से जस का तस उतार लिया गया हिन्दी गीत को तो लोकप्रिय होना ही था! मुनीश याद दिला रहे हैं -
"दोस्तो १९६१ की रिलीज़ , फिल्म 'कम सेप्टेम्बर' अंग्रेज़ी और इटालियन दोनों भाषाओँ की क्लास्सिक्स में शुमार होती है . ये एक रोमांटिक -कॉमेडी है और अपनी मस्त धुन के लिए ख़ास तौर पे जानी जाती है . हिंदी फिल्मों में भी ये धुन चुराई गयी है मगर आइये मज़ा लें ओरिजनल का "
तो दोस्तों, चिट्ठा चर्चा से एक ब्रेक लें, और ये धुन जरूर सूनें. धुन सुनकर मूड हो तो वापस यहाँ बाकी की पोस्ट पढ़ने आ जाएं, और नहीं तो ज्यादा नोस्टलिया जाएं तो मुनीश को फोनियाएं - वे आपकी सुबह-दोपहर-शाम संगीतमय बनाने को आतुर हैं!
ब्रेक के बाद आपको अनिल पुसदकर बता रहे हैं एक लोकल, मगर ब्रेकिंग न्यूज -
" क्यों नही बनी ये नेशनल या बड़ी खबर?एक ने फ़िर पूछा।मैने हथियार डालना ही अच्छा समझा और कहा कि तुम लोग जो कहना चाह रहे हो वो मै समझ रहा हूं लेकिन क्या किया जा सकता है?उनकी भी अपनी विवशता है,प्राथमिकतायें है,प्रतिस्पर्धा है।और मंदी के इस कठिन दौर मे बाज़ार मे टिके रहने की चुनौती भी है।यंहा से ढाई सौ किलोमीटर दुर कोंडागांव थाने मे पदस्थ सीएएफ़ के हवलदार ने किन परिस्थियों मे अपने प्लाटून को और एक और जवान को गोली मार कर मौत के घाट उतारा और खुद फ़ांसी पर लटक गया,ये घट्ना उन लोगो के हिसाब से शायद एक टीवी आर्टिस्ट द्वारा एक बच्ची को पीटने की खबर से कम भीड़ खींचने वाली होगी।वैसे एक बात मै बता दूं जंहा-जंहा देश के इन नये ठेकेदार न्यूज़ चैनल वालों का प्रतिनिधि तैनात है वंहा की सड़ी से सड़ी खबर भी नेशनल है और जंहा इनका प्रतिनिधि नहो वहा की बड़ी से बड़ी खबर भी लोकल है।"
और, अंत में -
चलिए, सब मिल कर सोहर गाते हैं. अफलातून दादा बन गए हैं. बधाई!
---
(कड़ियाँ – साभार चिट्ठाजगत.इन)
वाह! अवतार का रहेगा इंतज़ार हमें भी।
जवाब देंहटाएंलोकल न्यूज़ की ब्रेकिंग पर सिर धुनने से कोई फायदा नहीं, अनिल जी की बात सही है।
अफ़लातूनजी को दादागिरी के लिए बधाई:)
जवाब देंहटाएं‘कम सेप्टेम्बर’ की वो धुन क्या उससे पहले बनी हिंदी फ़िल्म ‘आह’ के गीत से नहीं मिलती- सुनते थे नाम हम जिनका बहार में...
चलिए, सब मिल कर सोहर गाते हैं. अफलातून दादा बन गए हैं. बधाई!
जवाब देंहटाएंwaah hamaari bhi pahuchae badhaii
जवाब देंहटाएंयहाँ पहले से ही बहुत सारे दादा हैं, जो कि अफ़लातून भी हैं ।
अब अफ़लातून जी दादा बन गये हैं, तो बधाई भी ले लें ।
It looks like SF
जवाब देंहटाएंदादागिरी अच्छी है भाईगिरी नहीं
जवाब देंहटाएंब्लॉगगिरी अच्छी है गोलागिरी भी सही