कुमायूं की शेफ़ाली पाण्डे पेशे से अध्यापिका हैं। उनके क्लास के बच्चे बड़ी मौज करते होंगे। कठिन-कठिन पाठ वे मजे-मजे में वे हंसते-हंसाते खिलखिलाते पढ़ा देती हैं। आज उन्होंने ग्रामर की वो भी अंग्रेजी ग्रामर की क्लास ले डाली!
अरविन्द मिश्र अपने पुराने साथी और अपने से भी बड़े अधिकारी अरुण प्रकाश का परिचय देते हैं। उनके परिचय के बहाने वे अपनी नारी नख शिख सौन्दर्य गाथा की वाहवाही न करने वालों से हिसाब भी बराबर करते चल रहे हैं। कुछ-कुछ ऐसाइच कि बाजार अगर आलू-टमाटर लेने जा रहे हो तो दो रुपये की धनिया भी लेते आना।
अरविन्दजी अपने से बड़े अधिकारी ( से कोई हिसाब बराबर करने की मंशा से शायद ) के बारे में बताते हैं:मैं गारंटी के साथ कहता हूँ कि उनका व्यंग बाण श्रेणी का लेखन उत्कृष्ट किस्म का है -पर वे पूरी प्रत्यक्ष विनम्रता के साथ इससे इनकार कर देते हैं और यह जुमला जोड़ते हैं कि अगर यह उत्कृष्ट श्रेणी का होता तो कैसी इतनी कम टिप्पणियाँ मिलती !
अरविन्दजी की गारंटी वाली बात से सहमति जताते हुये अरुणप्रकाश जी की विनम्रता में दो से गुणा करते हुये मैं यही कहना चाहता हूं कि टिप्पणियां की उत्कृष्टता से कोई रिश्तेदारी नहीं है। उत्कृष्टता और टिप्पणियां कहीं साथ-साथ दिख भले ही जायें लेकिन दोनों का आपस में कोई संबंध नहीं।
ब्लागरी अफसरी से ज्यादा अच्छी तरह कर सकते हैं जैसी दावेदार पक्के राग बातें अरविन्द मिश्रजी ही कर सकते हैं। मुझे तो लगता है कि एक काम अच्छा करने के लिये जरूरी थोड़ी है कि दूसरे काम को खराब ही किया जाये। मेरी समझ में अरुणप्रकाश जी दोनों काम शानदार तरीके से कर सकते हैं।
ताऊ के शोले अब शुक्रवार की जगह मंगलवार को सुलगेंगे। आज मौसी से बतिया रही है राधा! देखिये।:
अब मौसी, अपने मुंह अपनी भतीजी की तारीफ़ करते तो अच्छा नहीं लगता न, पर सुन्दर ऐसी कि उस पर नजर नहीं ठहरे ( फ़िसल कर पास खड़ी लड़की पर ठहरे), शर्मीली इतनी कि आप सारा दिन उनके घर पर रह लिजीए आप को उसकी शक्ल तक न दिखाई देगी।
आज द्विवेदीजी की अपनी कहानी आगे पढ़िये- अंग्रेजी से मुक्ति वैद्यकी से नाता :
सरदार को लगने लगा था कि ईश्वर यदि हुआ भी तो उस ने सृष्टि को रच दिया और कुछ नियम बना दिए। सृष्टि के छोटे से छोटे कण और बड़े से बड़े पिण्ड को इन नियमों का पालन करना होता है। ईश्वर केवल दृष्टा है, या फिर यह कि यह प्रकृति ही स्वयंभू ईश्वर है। हमें तो बस यह समझना है कि वे नियम क्या हैं।पढ़कर यही लगता है जिसको मौका मिलता है वो ईश्वर को अपनी पाल्टी का मानद सदस्य जरूर बना लेता है ताकि विचार दर्शकों में हनक बनी रहे।
अपने साड़ी पहनने के अनुभव बता रही हैं मुजफ़्फ़रनगर की मधु चौरसिया:
ये घटना मुझे याद थी इसलिए मैंने लाल और नीले रंग के वर्क वाली साड़ी पसंद की...पहली बार मैं साड़ी पहनकर ऑफिस आई थी हालांकि इसे संभालना थोड़ा मुश्किल हो रहा था...लेकिन मैंने एक चीज़ पर ग़ौर किया...ऑफिस के सब लोगों ने मेरी काफी तारीफें की...लड़कों ने ही नहीं सीनियर...जूनियर...हेड से लेकर लड़कियों ने भी मुझे प्रोत्साहित किया...मेरे कुछ ऐसे साथियों ने मेरी तारीफ की जिनसे मेरा ऑफिशियल टशन चल रहा था
कबाड़ी किंग अशोक पाण्डे लिखते हैं:
दादी कहा करती थीं कि जब भी तुम्हें कोई अच्छी चीज़ प्राप्त हो, तुम्हें पहला काम यह करना चाहिये कि जो भी मिले उस के साथ उसे साझा करो. यही तरीका है कि अच्छी चीज़ें वहां भी पहुंचेंगी जहां वे वरना नहीं पहुंच पातीं. जो कि सही बात है.
अपनी दादी की बात मानते हुये वे एक अच्छी चीज साझा करते हैं- जब आपने कुछ खो दिया हो तो बेहतर है थक के चूर हो जाया जाए उनकी इस पोस्ट पर रंगनाथ सिंह हमारी बात कहते हैं: धन्य हैं आप प्रभु! अनुवाद जैसे दुष्कर कार्य को इतनी रुचि और सरसता से करते हैं! तिस पर से इतनी विविधता के साथ!
शायद यही वजह है कि आप इतना सुन्दर अनुवाद कर पाते हैं!
मानसी कुछ पु्रानी यादें साझा कर रहीं हैं। इनमें गायन भी है और अखबार की कतरन भी।
पूजा मैडम के पास कुछ काम नहीं होता तो वे शानदार टाइप कवितायें लिखने लगती हैं। ठसकेदार!साजो सामान देखकर लगता है कि क्या जलवे हैं अगले के देखिये:
बादलों का ब्रश उठाऊं
रंग दूँ आसमान...
सिन्दूरी, गुलाबी, आसमानी नीला,
तोतई हरा और थोड़ा सा सुनहला भी...
टांक दूँ एक इन्द्रधनुष का मुकुट
उगते सूरज के माथे पर
कंचन के बारे में अर्श ने सच बताने की बहादुरी की:
अब इनके बारे में मैं क्या कहूँ.. कुछ भी तो नहीं कह सकता ऐसी असाधारण शक्सियत के बारे में कुछ कहना अपने बस की बात तो नहीं है ,…मगर इस बात से जरुर इतफाक रखता हूँ के ये बहोत हड़कायू हैं ये तो मैं भली भाँती जानता हूँ…आज ये हड़काऊ बालिका अपनी एक हिम्मती कविता पेश कर रही है:
दस्तक हुई द्वार खोला तो देखा द्वार खुशी आई,
किंतु हाय मजबूरी मेरी, बंद किवाड़े कर आई।
बार बार उस खुशी ने फिर भी द्वार हमारा खटकाया,
किंतु हमारी मजबूरी से कोई ना उत्तर पाया।
नये चिट्ठाकार
- मानसमुक्ता : M P Burdak की शुरुआतै वोटिंग से हुई! लोकतांत्रिक मामला लगता है
- महेश चन्द्र कौशिक की डुगडुगी : की वापसी हो गयी है- निस्वार्थ भाव से मानव मात्र के कल्याण के उद्देश्य से!
- अम्बिकापुर ख़बर :में छ्त्तीसगढ़ के अम्बिकापुर की खबर छपेंगी। ब्लागर के प्रोफ़ाइल से लगता है कि यह ब्लाग किसी कार के द्वारा लिखा जाता है!
- जुर्रत : की है दिल्ली के शाहनवाज ने ब्लाग बनाने की!
- दायित्वबोध उन बुद्धिजीवियों की पत्रिका है जिन्होंने जनता का पक्ष चुना है
- सुनिये मेरी भी.... : कहते हैं प्रवीणशाह! कविता किस्तों में पेश करेंगे!
- लोक संघर्ष :में भतेरी फ़ोटॊ हैं और कविता भी है!
- सनातनसंस्कृत: में लेख अंग्रेजी में हैं एवं किंचित ’लेंग्दी’ भी! किम पठिष्यति?
- रिंकू का ब्लाग :भैयाजी ने अपनी ई मेल आईडी को ही ब्लागिया दिया जय हो!
- गांधीवादी :ब्लाग है ये जी! एक लेख राजीव गांधी पर भी है!
- OCEAN 4 ENVIRONMENT : में प्रकृति और पर्यावरण के बारे में अच्छी-अच्छी बातें हैं!
- आर्यावर्त :विचारमंच को अनुरंजन दिल्ली से चलाते हैं!
- डा.अजय :परिस्थितियों के चलते कवि बन गये! जो जहां जैसा भी है उसे उसी आधार पर स्वीकार करते हुये। प्रशंसको ने अपने अपने ब्लाग के लिंक ठेल दिये कमेंट में -स्वीकार करिये!
- परिचर्चा एक हिन्दी-मैथिली ब्लॉग :की अभी टेस्ट पोस्ट आई है!
उसकी सारी बातें बिलकुल झूटी हैं
पर कमबख्त ये दिल मान जाये हैशाहनवाज़
पर कमबख्त ये दिल मान जाये हैशाहनवाज़
खुश्बु का क्या, वोह तो बिखर जायेगी
असली मुद्दा फूल का हैं , वोह किधर जाएगा डा.अजय
असली मुद्दा फूल का हैं , वोह किधर जाएगा डा.अजय
एक लाईना
- एक दिन की देशभक्ति – हिमांशु डबराल:यूज एंड थ्रो टाइप होगी
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- बाउ मण्डली और बारात एक हजार - प्रसंगांत : सच में आलसी का चिट्ठा है वर्ना एक ्हजार में एक और जोड़ के एक हजार एक कर डालता
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- राधा और मौसी की मुलाकात : ताऊ की शोले : ओले-ओले! पिक्चर बनने के चलते बेचारे शोले को भी लिंग परिवर्तन कराना पड़ा के की जगह की हो गये।
- क्या मनुष्य न जीवित रहते किसी से काम आता है न मरकर? : एक ही अनुभव (जीने ) के आधार पर दोनों के बारे में बयान नेता दे सकते हैं मनुष्य नहीं
- ६२ वर्ष में हिन्दुओ ने क्या खोया : ६२ वर्ष
- माई नेम इज खान : त का करें जी। हमको फ़ालतू समझे हो अमेरिका की तरह जो दू घंटा अपने पास बैठायें!
- आप लोग ब्लाग जगत की वाट क्यों लगा रहे हैं? :सबसे आसान काम सबसे पहले किया जाता है
- अलबेला खत्री जी का ढेर सारा आभार! :बाकी के लिये आभार उधार
- ग्रामर के आगे तो बड़े-बड़े भूत भाग जाते हैं: और अपने ब्लाग में छा जाते हैं
- आ...स्वाइन मुझे मार! : अरे अभी टाइम कहां है यार!
- मैं बकरा तुम कसाई : बता झटके से मरना है या हलाल से भाई!
- दीपिका पादुकोण को देख मन कुढ़ता है :अब कुछ अलग सा होने का इन्तजार है
- कहाँ है हमारा स्वाभिमान? :खोजो कहीं रखा होगा गठरी सा मुड़ा-तुड़ा
मेरी पसन्द
गौरैए का बच्चा गौरैए को दाना नहीं चुगाताचूजा मुर्गी को चुग्गा नहीं कराता
बिल्ली का बच्चा बिल्ली के लिए चूहे नहीं मारता
यह महानता तो सिर्फ मनुष्य को नसीब है।
हम सबसे बुद्धिमान, सबसे बलवान नस्ल हैं
हम काबिले तारीफ हैं।
एकमात्र जिन्दा प्राणी
जो जीता है अपने बच्चों की मेहनत पर।
- शार्लोट पर्किन्स गिलमैन
रंगनाथ सिंह के ब्लाग बना रहे बनारस से साभार
और अंत में
आज की चर्चा का दिन विवेक का था। उन्होंने ने यह मौका बड़ी उदारता पूर्वक मुझे प्रदान कर दिया। हम खुशी-खुशी लपक लिये। ऐसे सौभाग्य रोज-रोज कहां मिलते हैं। हफ़्ते में दो-तीन दिन ही हो पाता है ऐसा। लेकिन बजरंगबली भक्त विवेक का कोई भरोसा नहीं कि कहो खुद भी अपने को मौका दे दें।
थोड़ा कुछ चर्चा कर डाली। बहुत कुछ छूट गयी। लेकिन अब दफ़्तर बुला रहा है सो जा रहे हैं। एक अच्छे ब्लागर बनने के लिये खराब नौकर कहलाने में कोई फ़ायदा नहीं है इसलिये हम निकल रहे हैं।
आप इधरिच रहें तो देख लीजियेगा हिसाब-किताब! लेकिन मौज से रहियेगा। रोने-धोने और झोला जैसे मुंह लटकाने में कोई बरक्कत नहीं जी आजकल!
मस्त रहिये, व्यस्त रहिये।
जो होगा देखा जायेगा।
ठीक है न! ओके ! चलते हैं!
पोस्टिंग विवरण:लिखना शुरू किये सुबह छह बजे! लिख के टांग दिये साढ़े आठ बजे सुबह! दो कप चाय पिये और पानी एक गिलास! अभी निकल रहे हैं दफ़्तर। आठ चालीस पर पहुंच जायेंगे झकास!
शेफाली जी की ग्रामर ने दिल जीत लिया
जवाब देंहटाएंताऊ की शोले का इंतजार है
चिट्ठा चर्चा क्या कहूं एक
टाटा करते जाओ इसे
बन गई ऐसी कार है।
जवाब देंहटाएंचर्चा तो मज़े की किहौ है, भाई !
अब तनिक लिंक टटोलि आई, तबै कछु बताई !
आज तो हमें सभी कविताएं अच्छी लगीं…शेफ़ाली जी की ग्रामर कविता, हड़काऊ जी की और आप की पसंद की भी
जवाब देंहटाएंआपने ढाई घंटे मे ऐसी लाजवाब चर्चा कर डाली कि हम आफ़िस मे बैठे बैठे काम धाम छोड कर इसे पढ रहे हैं. रोज रोज करते रहिये आप तो.
जवाब देंहटाएंरामराम.
उम्दा चर्चा
जवाब देंहटाएंvo to sab theek hai magar ye bataaiye ki aap ki pasand itni pasanda kyo aati hai hame....????
जवाब देंहटाएं"दादी कहा करती थीं कि जब भी तुम्हें कोई अच्छी चीज़ प्राप्त हो, तुम्हें पहला काम यह करना चाहिये कि जो भी मिले उस के साथ उसे साझा करो. "
जवाब देंहटाएंई तो बढ़ा खतरनाक है भैया! इसी डिसिशन से द्रौपदी बट गई थी:)
आपके धैर्य और कन्सिस्टेन्सी की दाद देनी पड़ेगी। इतनी विस्तृत चर्चा के लिये धन्यवाद।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंनिश्चय ही बड़े सटीक और ( केवल एक अपवाद को छोड़ ) सकारात्मक लिंक !
कविता तो ख़ैर अच्छी होते हुये भी एक निरुपाय द्वँद का प्रतीक भर है !
अंग्रेजी से तो हम भी भयभीत रहते थे जी !
जवाब देंहटाएंनये चिट्ठाकार वाला स्तंभ नियमित रहे तो मजा आ जायेगा!
जवाब देंहटाएंआज के पोस्ट का शीर्षक हमें बहुत भाया... हम तो यही देख भागे आये.
जवाब देंहटाएंआपकी पसंद मुझे भी पसंद आई
जवाब देंहटाएंअनूप जी,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा रही, जल्दी सी कोई बात नज़र नही आई रोचकता बनी रही अंत तक।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी