लमस्कार, चिट्टू चर्चु में आपका स्वागत हैं.. वड्डे दिनों बाद आज इधर की ड्यूटी लगी है.. तो सोचा दो चार ब्लोग्स बांच ही ले जाए.. वैसे आजकल पोस्ट भी दो चार ही लिखी जा रही है.. वैसे उन लोगो को चिटठा पुलिस ढूंढ रही है जो ये अफवाहे फैला रहे है कि हिंदी चिट्ठो की संख्या दस लाख पार कर गयी.. इधर अपनी नज़र कल की पोस्ट्स पर पढ़ी तो कुछ चुनिन्दा पोस्ट्स नज़र आई.. आइये देखे किसने क्या लिखेला है ..
पंद्रह अगस्त के करीब आते ही आजादी की बाते ब्लोग्स में होने लग गयी.. पर एक अलग तरह की आजादी का एहसास कराता ये लेख क्या कहता है-
आजादी के क्या मायने रह गयें हैं हमारे लिये। भारत माँ को डायन कहने बाले आजाद हैं भारत माँ की नंगी तस्विर बनाने बाले आजाद है। ओसामा के हम शक्ल क साथ में लेकर घुमने बाले आजाद हैं। संसद भवन में आक्रमण करने बाले आजाद है। अफजल और कसाब आजाद है। देशद्रोहियों की फौज आजाद हैं और उनके सर्मथक आजाद है। भष्टाचारी आजाद है। चोर, उच्चके आजाद है। बालात्कारी आजाद है। हमारे देश के सैनिकों को गाली देने बाले आजाद है। समाजिक सदभावना के नाम पद देश को बाटने बाले आजाद है। दंगाई आजाद है। लोकतंत्र के नाम पर इस देश को लुटने बाले नेता आजाद है। आजमगढ़ में माथा टेकने बाले आजाद हैं। बाटला हाउस को धार्मिक स्थल बनाने बाले आजाद है। क्या है हमारे आजादी के जरा सोचिये।
इसी तरह की कुछ बाते ब्लॉग ज्ञानवानी पर भी नज़र आई..
दो बच्चे आपस में धींगा मस्ती कर रहे थे। देखते ही देखते उनकी मस्ती झगडे में बदल गयी।रमेश दुबला पतला था तो क्या हुआ ...तैश में आते हुए बोला ..." करूँगा ..बोल क्या कर लेगा."
"देख मेरे भाई ..तुझे इतने प्यार से कह रहा हूँ...तू नही करेगा शिकायत ...समझा।"
"हाँ.. हाँ... समझ गया ...नही...बोल ..तू क्या कर लेगा।"
अब तक तो रोहित को गुस्सा आ गया ..." तू ऐसे नही मानेगा" बोलते हुए दो थप्पड़ जड़ दिए।
रमेश ने उसका हाथ पकड़कर रोकना चाह मगर कामयाब नही हो पाया। गाल सहलाते हुए फिर से बोला ..." देख... अभी तो तुने मुझ पर हाथ उठा दिया ...मैं कुछ नही कह रहा...मगर अबकी तुने ऐसा किया तो अच्छा नही होगा।"
रोहित का गुस्सा और भड़क उठा...''क्या कहा ..क्या अच्छा नही होगा..."कहते हुए उसने एक चांटा और जड़ दिया।
बेबस सा रमेश थप्पड़ से तो नही बच सका मगर फिर भी बोला " देख मैं तुझे कह रहा हूँ.. मान जा ...
इसे पढ़कर आप ये सोचते है कि इन छोटे बच्चो की लडाई में भला क्या खास बात है.. पर यही कहानी में ट्विस्ट है.. आगे लिखा है..
क्या हमारे देश की ... नागरिकों की यही हालत नही है... हर आतंकवादी घटना के बाद देश के कर्णधारों का यह बयान ..." आतंकवाद बर्दाश्त नही किया जाएगा ..." वे फिर-फिर कर आते हैं ...चोट पह्नुचाते हैं ...जान माल का नुक्सान होता है....अपने घावों को सहलाते हम फिर से यही नारा सुनते है ..."आतंकवाद बर्दाश्त नही किया जाएगा ...हम मुँहतोड़ जवाब देंगे..." वे फिर आते हैं ...कभी संसद भवन पर ....कभी ताज होटल ...कभी कोई रेल ...कभी कोई बस ....कभी किसी शहर में ....कभी किसी शहर में..
देश की हालत पर तरस खाते हुए.. बेरोजगार साहब भी कहने लगे..भाड़ में जाए देश.. ऐसा क्यों कहा.. ? इनकी पोस्ट में मिलेंगे आपको ऐसे लोग जिनका शायद यही सोचना हो कि देश जाए भाड़ में..
इनका कहना है..
कोई अपने मरे हुए या जीवित "बाप" की तस्वीर को तो नहीं लतियाता, जलाता या फाड़ता है? राष्ट्र हमारी माता और पिता है। इससे हम पोषण और सुरक्षा पाते हैं। जो एक परिवार में हम पाते हैं वही राष्ट्र और देश हमें देता है। इसका सम्मान और रक्षा करना हमारा दायित्व ही नहीं मजबूरी भी है। नहीं तो जो स्वतंत्रता हमने अपने पुरखों के संघर्ष से पाई है उसे खो देंगे।
वही रचना जी तिरंगे का सम्मान करते हुए उसे अपनी ब्लॉग पर लगाने की विधि बता रही है.. आशीष जी ने भी अपनी ब्लॉग पर ऐसा ही सुझाव दिया है.. वैसे रचना जी ने बिलकुल सुलभता से खुद एच टी एम् एल बनाने का सुझाव भी दिया है..जिसे आप उनके ब्लॉग पर देख सकते है..
आज का ब्लॉग
आज का ब्लॉग में शुमार है अपनी किस्म का अनूठा ब्लॉग जिसके सृजक है डा. अमर कुमार जी, ब्लॉग का नाम है 'वेब लोग' ब्लॉग का परिचय देते हुए अमर कुमार जी लिखते है..बहुत सी ऎसी रचनायें हैं जो ( मेरी दृष्टि में ) बेहतरीन तो हैं, पर किन्हीं कारणों से अनदेखी उपेक्षित सी रह गयी हैं । एक वर्ष या इससे पुरानी ऎसी रचनाओं को एक स्थान पर सहेज रहा हूँ । इनमें से किसी भी कृतित्व पर मेरा कोई योगदान नहीं हैं । - डा० अमर कुमार
आप यहाँ पर क्लिक करके इस ब्लॉग पर पहुँच सकते है..
अनुराग शर्मा जी ने शहीद खुदीराम बासु जी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद किया..
कल की बात भी आज याद रह जाए, वही बड़ी बात है। फ़िर एक सौ एक साल पहले की घटना भला किसे याद रहेगी। मात्र उन्नीस वर्ष का एक किशोर आज से ठीक १०१ साल पहले अपने ही देश में अपनों की आज़ादी के लिए हँसते हुए फांसी चढ़ गया था।
इस पोस्ट को पढ़कर पारुल जी को लता दी की आवाज़ में गया गीत याद आ गया.. आप उनके ब्लॉग पर जाकर इसे सुन सकते है.. गीत के बारे में पारुल जी कहती है..
सुबह-सुबह अनुराग शर्मा की पोस्ट ने अनायास ही बहुत पुराना गीत याद दिला दिया । लता दी के स्वर में,जयदेव का संगीत बद्ध आदरणीय पं नरेन्द्र शर्मा रचित -जो समर मे हो गए अमर । ये गीत मुझे सदा ही मौन कर जाता है । और अकेले मै ही क्यों …मुझे याद है कालेज के एन सी सी कैम्प के दौरान शाम को जब सारे कैडिट शरारत और हंगामे के मूड मे होते …… हमारे टीचर हम सबको ये गीत गाने के लिये कहते, और फिर जो माहौल बदलता कि क्या मजाल एक भी कैडिट को शांत कराना पड़े …सुनने वाले,गाने वाले सब के सब ठगे से दिखते -आँखे गीली ,सर झुका हुआ… सब अपने में लीन ……लता दी ने इस गीत की एक-एक पंक्ति जिस श्रद्धा से गाई है वो बेमिसाल है … संग फूल-पान के,रंग हैं निशान के शूर वीर आन के... सुनते ही मन कृतज्ञता से भर जाता है ……लौट कर न आएँगे विजय दिलाने वाले वीर ,वो गए कि रह सके स्वतंत्रता स्वदेश कीइतनी सादगी है गीत के बोलों मे …… पर असर ………मेरे लिए व्यक्त कर पाना बेहद मुश्किल है ।
देश प्रेम से औत प्रोत जयंत चौधरी के नाटक भगत सिंह के कुछ हिस्से आप उनके ब्लॉग पर देख सकते है.. नाटक के अंत का वीडियो आप यहाँ देख सकते है..
वही अजीत जी के सार्थक प्रयास 'बकलमखुद' में ब्लॉग अनवरत और तीसरा खम्बा वाले दिनेश राय द्विवेदी जी अपनी पुरानी यादो से आपको रु ब रु करवा रहे है..
वह सन् 1971 था। हिन्दी फिल्मों में राजेश खन्ना और किशोर कुमार की धूम थी। अब तक साल में चार-पाँच फिल्में बहुत होती थीं। यहाँ दो माह में सरदार ने दोस्तों के साथ सोलह देख डालीं। आखिर पहले साल का परीक्षा परिणाम घोषित हुआ। सरदार फेल हो गया था।
बकलमखुद पे अपने जीवन के संस्मरण सुनाने के बाद दिनेश जी अपने निजी ब्लॉग अनवरत पर दिवंगत श्रद्धेय यादवचंद्र जी की एक कविता "सुनामी बच्ची" पढ़वा रहे है.. यकीन मानिए कविता आपको निराश नहीं करेगी..
जब गर्भ में थी-
भूडोल के पालने पर डोलती रही
जब जानलेवा दरारों ने उगला....
तो दूध के लिए
ज्वार की छातियाँ टटोलती रही
भाई तस्करों के साथ रावलपिंडी के दौरे पर था
बाप डिस्टीलरी से
वापस नहीं लौटा था
बहन होटलों में
पर्यटकों के साथ लिपटी पड़ी थी
और नंगी लाशों पर सुनामी लहरें
मुहँ बाए खड़ी थीं
शेष कोई न था वहाँ
बची थी सिर्फ-
सुनामी बच्ची
रोज़ सुबह अखबार तो आप पढ़ते ही होंगे.. पर क्या आपने कभी उस व्यक्ति के बारे में जाना है जो रोज़ सुबह सर्दी गर्मी बरसात में आपके घर तक अखबार पहुचाने आता है.. धर्मेद्र जी का ये लेख समर्पित है ऐसे ही लोगो को जो सुबह सुबह अखबार डालने का काम करते है..
भोले भैया एक दशक से अख़बार बांटने का काम कर रहे हैं। सर्दी हो या गर्मी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता वे बस अपना काम करते हैं। मैं भी ख़बरें बनाने का काम करता हूं। कभी बारिश होती है तो मैं फोन कर अपने संपादक को बता देता हूं, थोड़ी देर से दफ्तर पहुंचूंगा, लेकिन अपने भोले भैया तो वक्त के इतने पक्के हैं कि छह से सात के बीच अख़बार डाल जाते हैं। भले बारिश मूसलधार हो रही हो या सावन की झड़ी लग रही हो।हमारे भोले भैया का निशाना इतना अचूक है कि आप दूसरी मंजिल पर रहो या पांचवीं अख़बार सीधा आपकी गैलेरी में ही जाएगा। हम तो सिर्फ अख़बार बनाते हैं कि संपादकजी अख़बार चेक करते हैं, कंप्यूटर ऑपरेटर पेज बनाता है, उपसंपादक ख़बर संपादित करता है,मशीन वाले अख़बार छापते हैं लेकिन असली हीरो तो भोले भैया हैं जो इन सब की मेहनत को सार्थक कर अख़बार पाठक तक पहुंचाते हैं।
असली हीरो से मिलने के बाद आइये चलते है.. शेफाली पांडे जी के ब्लॉग कुमाउँनी चेली की तरफ जहाँ शेफाली जी हीरो
के हार की तुलना अरहर के हार से कर रही है.. ऐसा क्यों? अजी उनके ब्लॉग पर खुद ही पढ़ लीजिये.. और हाँ पढ़ते पढ़ते अगर आपका मन गुदगुदा जाए तो उनके लेखन के लिए एक टिपण्णी अवश्यदेवे..
कल ही मेरी पडोसन अपने पति से बहुत बुरी तरह लड़ रही थी -पत्नी, "देखो जी, बहुत हो गया| आप मेरे लिए इस जन्म में अरहर का मंगलसूत्र बनवाएंगे या नहीं| कई सालों से आप यूँ ही टरकाते आ रहे हैं| अब तो आपको छटा वेतनमान भी मिल गया है| मेरी सारी सहेलियों के पास अरहर की मोटी-मोटी चेनें हैं और मेरे पास एक मंगलसूत्र तक नहीं|"पति, "आरी भागवान, तू चिंता मत कर| मैंने विश्व बैंक में लोन की अर्जी दे रखी है| जैसे ही वह पास हो जाएगा में तुझे सर से लेकर पैर तक अरहर से लाद दूंगा|"पत्नी, "तुम ऐसे ही झूठे दिलासे देते रहोगे और एक दिन मैं यह मसूर की माला पहने-पहने ही मर जाउंगी| मेरे मरने के बाद तुम मुझे अरहर के खेत में दफना देना (वह जार-जार अरहर के आंसू रोने लगती है)|"
ब्लॉग जो जारी है पर जब नज़र पड़ी तो देखा पूजा प्रसाद जी ने एक उम्दा पोस्ट लिखी है.. शब्दों की गहराईयो में आप डूब से जायेंगे.. उम्मीद को एक फुदकती चिडिया की संज्ञा देते हुए वे..भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी की बात करती है.. और कहती है.. कौन साला इन्तेज़ार करे.. देखिये उनकी कलम क्या कहती है..
उम्मीद, एक फुदकती चिड़िया
कौन साला इंतजार करे
कि वक्त आएगा और सब सुधर जाएगा
एक दिन वह बिना पिए घर जरुर आएगा
अपने सोते हुए बच्चों के सिर पर स्नेह से हाथ फिरा पाएगा
कहेगा, खाने को दो भूख लगी है
बिना उल्टी किए बिस्तर पर पसरेगा
और जूते उतार कर टीवी ऑन कर पाएगा
कि वक्त आएगा और सब सुधर जाएगा।
एक दिन नई वाली पड़ोसन भूल जाएगी पूछना
कि कौन कास्ट हो
वो आएगी, बैठेगी, और बतियाएगी
चीनी की कटोरी लेते में
यह नहीं भांपना चाहेगी
कि कौन कास्ट हो
वह जान जाएगी कौन कास्ट हूं
और फिर चीनी ले जाएगी
कि एक दिन चीनी की मिठास मेरी कास्ट पर भारी पड़ जाएगी
पर कौन साला इंतजार करे.................
मीनू खरे जी लड़की को घर का कूड़ा बता रही है.. इस संवेदनशील कविता को जरुर पढिये..
लड्की-
घर के दरवाज़े पर पडा कूडा...
जो
यदि ज़्यादा दिन तक पडा रह गया
तो
सड कर बीमार कर देगा
घर भर को.
वही गौरव सोलंकी कुछ यु लिखते है..
गली के जिस मोड़ पर
मैं मुड़ना चाहता था,
वहाँ दो हथियारबन्द सिपाही
दो वेश्याओं को सुना रहे थे अपनी फ़ैंटेसियाँ
और जज साहब,
मैं कोई महापुरुष नहीं था,
कई बार भूख लगती थी मुझे दिन में
और बार बार बीमार पड़ता था।
सुबह सुबह ये भी पता चला है कि ताऊ की भैंस रामप्यारी ने स्कूल में स्वाइन फ्लू फैलने के डर से सभी बच्चो की छुट्टी कर दी है और समीर लाल समीर जी के साथ मिलकर अपने प्रोडक्शन हाउस में एक फिल्म का निर्माण भी कर रही है.. फिल्म का नाम है "ताऊ की शोले"
अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करिए
हैल्थ टिप्स
डा. प्रवीण चोपडा अपने ब्लॉग पर बता रहे है .. किस तरह से स्वाइन फ्लू से बचा जा सकता है..
वर्ल्ड हैल्थ आर्गेनाइज़ेशन ने स्वाईन-फ्लू से बचने के लिये जो दिशा-निर्देश जारी किये हैं उन में से कुछ इस प्रकार हैं --
---भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जितना हो सके कम समय व्यतीत करें।
----घर दफ्तर की खिड़की वगैरा खोल कर रखें।
----अपने नाक और मुंह को छूने के बाद अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोएं।
----अगर आप स्वाईन-फ्लू से ग्रस्त किसी मरीज़ की देखभाल कर रहे हैं तो मास्क पहनें।
और कुछ बातें ना करने के लिये भी कहा गया है जैसे कि ---
---जिस व्यक्ति में इंफ्लूऐंजा जैसे लक्षण दिखें उस से कम से कम एक मीटर की दूरी अवश्य बनायें।
---बिना डाक्टरी सलाह के कोई भी वायरस-नाशक दवा जैसे कि टैमीफ्लू आदि लेनी शुरू न कर दें।
---अगर आप बीमार नहीं हैं तो मास्क मत पहनें।
---मास्क के गलत प्रयोग से बीमारी के फैलने में किसी तरह की सहायता मिलने की बजाये इस के और भी फैलने की आशंका बढ़ जाती है।
एक लाईना
नहीं नहीं यहाँ पर आप को अनूप जी का जुल्म नहीं सहना पड़ेगा :) हम यहाँ पर कोट करेंगे कुछ अच्छी पंक्तिया जो ब्लॉग पोस्ट में लिखी गयी है..
लेआउट मे सबसे ऊपर रखे तिरंगा क्युकी तिरंगा हमारी शान हैं। देश से ऊपर कुछ नहीं हम भी नहीं। - हिंदी ब्लोगिंग की देन
पंद्रह अगस्त के दिन "क्रांतिवीर" फिल्म देख लेने भर से देश के प्रति हमारे फर्ज पूरे नही हो जाते।
- बेरोजगार की डायरी
अमूमन हर इंसान के दस बीस दोस्त होते है ओर एक दो दुश्मन. दुश्मनी हमने किसी से कभी रखी नही अलबत्ता दोस्त हमारे दस –बीस से कही ज़्यादा है.
-दिल की बात
आज की तस्वीर पारुल जी के ब्लॉग से
चलते चलते
अभी खिसकने का वक़्त आ गया है.. चिटठा चर्चा को प्यार से बुलाने का नाम है चिट्टू चर्चु.. और हमने भी आज प्यार से ही लिखा है.. वैसे अंतिम पंक्तिया लिखते लिखते घर से खबर मिली है कि हमारे भाई साहब और भाभी जी को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई है..तो ख़ुशी डबल है.. हालाँकि भाभी जी अभी अहमदाबाद में है और घर वाले सब जोधपुर में तो हम यही आप सबसे अपनी ख़ुशी बाँट लेते है.. आफ्टर ऑल आप भी तो अपने ही आदमी है.. आईला रचना जी डांट पिला देगी औरत नही लिखा, पर अपनी इच औरत तो लिख नहीं सकता ना.. :)
अभी खिसकते है.. फिर मिलेंगे तब तक के लिए.. दसविदानिया
और सब तो ठीक है ही .. चाचा बनने की बधाई स्वीकारें !!
जवाब देंहटाएंझकास चर्चा है। चाचा बनने की बधाई! किधर है जी मिठाई!
जवाब देंहटाएंकुशजी
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर विवेचना ब्लोगेरियो की.
भाई जल्दी ही फ़िर से आपको यहा पढना चाहेगे.
चाचा बनने की बधाई! मिठाई ? ?
शेष कुशल......
आभार/ शुभमगल
जय हिन्द!!!!!
हे प्रभू यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर
नमस्कार को लमस्कार कहने से लगता है कि चर्चाकार की कलम जुकाम से पीड़ित है,
जवाब देंहटाएंपर चूँकि इसे लबस्कार नहीं कहा गया इसलिए इसे फ़्लू की बजाय साधारण दर्जे का जुकाम माना जाय !
चर्चाकार को चाचा बनने की बधाई !
" चाचू चर्चाकार की चर्चा" में अनुप्रास अलंकार की झलक मिलती है . यही कारण है कि आज की चर्चा को 'अलंकृत' ऐसे नाम से पुकारा गया है .
चिट्ठा-चर्चा में वह बात नहीं रही बस कुछ लोगों तक सीमित होकर रह गयी है। काफ़ी नये और पुराने ब्लॉगों पर अच्छा लिखा जा रहा है लेकिन यहाँ वही सब थका-थका-सा है।
जवाब देंहटाएंनमस्ते
"संसद भवन में आक्रमण करने बाले आजाद है। अफजल और कसाब आजाद है।"
जवाब देंहटाएंहां जी, ये सब ही आज़ाद हिंद फ़ौज हैं:)
चाचा को प्यार से चाचू कहा जा सकता है तो चर्चा को चर्चू क्यों नहीं?:)
चाचू बनने की बधाई॥
एक सधी हुयी निष्पक्ष चर्चा के लिए आपका आभार
जवाब देंहटाएंbadhaii ghar mae naanhe mehmaan ki
जवाब देंहटाएंआईला रचना जी डांट पिला देगी औरत नही लिखा
aadmi bhi naa likhtey
"sab apnae hi haen" mae bhi wahii baat haen
kyaa kehto ho !!!!!
चर्चु तो मस्त है कुश जी !
जवाब देंहटाएंएक शंका पैदा हो गयी अभी तक तो मै हमेशा रामप्यारी को बिल्ली के गेटअप में ही देखा आज पता चला की राम प्यारी ताऊ की भैस है :)
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंऔर हां चाचा बनने की बधाई
जवाब देंहटाएंआज तो हम भी दिख गए ...चिटठा चर्चा में ...बढ़िया
जवाब देंहटाएंब्लॉग का नाम अज्ञात कारणों से बदल दिया गया क्या ?
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह..चाचा बन गये और मिठाई दिखी नही..जरा जल्दी से पर्टी का इंतजाम कर्वाओ भाई. आपके पूरे परिवार को नये मेहमान का आगमन सुखद हो. बालक पर ईश क्रुपा बनी रहे.
जवाब देंहटाएंरामराम.
पूजा प्रसाद ओर गौरव सोलंकी की कविता देखकर ख़ुशी हुई....वे वाकई अद्भुत कविताये है ...ऐसे मौलिक लेखन की ब्लॉग जगत में हमेशा दरकार रहेगी ....शेफाली पांडे जी भी अपने स्टाइल में मस्त लिखती है ....
जवाब देंहटाएंअभी अभी विश्व दीपक तनहा की एक उल्लेखनीय कविता पढ़ी ..,,,,डॉ महेश परिमल का आज का लेख भी कई प्रशन खड़े करता है ..
पहले तो बधाई.. चाचा जी को..
जवाब देंहटाएंबाकि चर्चा शानदार है.. उमंदा..
पूरे मन और मौज के साथ की गई चर्चा के लिए और चाचा बनने के लिए बहुत बहुत बधाई! बहुत दिनों में ऐसी रसभरी चर्चा देखने को मिली।
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जवाब देंहटाएंचोखी चिठियों की चौंचक चर्चा,
वेबलाग पर का आइडिया इसी चर्चा मँच से चुराया है,
कुश ने इसे मान दिया, धन्यवाद कुश !
पर.. रचना जी से क्षमायाचना सहित मैं एक स्पष्टीकरण चाहूँगा ।
" .. पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई है..तो ख़ुशी डबल है.. " आखिर ऎसा क्यों ?
घणी पिच्चरों वाली चर्चा..
चर्चा नैं कितणै सटाईल राख्यै सै, कुछ भईय्ये ?
चाचा बने
जवाब देंहटाएंबन कर ठने
मिठाई का चित्र
लगा देते हम तो
उसे देखकर भी खुश हो लेते
चाचा चर्चु।
चलो करो खर्चु।
बधाई हो।
जवाब देंहटाएंबधाई चाचा बनने की.
जवाब देंहटाएंbadhiya hai !
जवाब देंहटाएंबधाई हो!
जवाब देंहटाएंबिड़ू च्चा बन लिए॥ मुबारक हो मुबारक हो…।
जवाब देंहटाएंचाचा बन जाने की बहुत बधाई.!!
जवाब देंहटाएंचिट्ठाचर्चा में ब्लॉग को शामिल करने के लिए आभार.
स्वतंत्रता दिवस की बहुत शुभकामनायें..!!
दिनों बाद कुश की चरचा....वाह!
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