कोई चिट्ठाकार (मुझे भी शामिल समझें!) जब कोई पोस्ट लिख लेता है (भले ही वो टुन्नी सी क्यों न हो,) तो वो सोचता है कि उसने बड़ा नायाब किस्म का पीस लिख कर दे मारा है, जो दुनिया ब्रह्मांड में आजतक किसी ने नहीं लिखा. वो चाहता है कि तमाम दुनिया के लोग उसका वो पीस पढ़ें, गुनें, उस पर टीका-टिप्पणी करें, क्रिया-प्रतिक्रिया दें.
फ़िर वो अपने पीस की मार्केटिंग करने लग जाता है. सैकड़ों लोगों को ईमेल के जरिए, टिप्पणियों में लिंक के जरिए, और तो और, एक ही पीस को कई कई (1 , 2, 3, 4 ) जगह, और कुछेक अतिरेकी मामलों में आधा-दर्जन चिट्ठों (1, 2, 3, 4, 5, ... ) में पोस्ट कर के.
पर, क्या वाकई ये जरूरी है? शायद नहीं.
लगता है कि हम हिन्दी चिट्ठाकारों को आदर्श चिट्ठाकारी के नियमों के पाठ पढ़ने होंगे. अंग्रेज़ी में तो ढेर सामग्री है, और लोगों ने बहुत सा लिखा है कि ये करो, वो करो, ये न करो वो न करो. हिन्दी में भी बहुत से लोगों ने (मुझे मिलाकर,) इस बारे में अपनी लेखनी चलाई है – ये जुदा बात है कि हमीं इसमें से कितना अपनाते हैं!
फिर भी, आइए, अपनी चिट्ठाकारी को आदर्श बनाने के लिए कुछ सीखने की कोशिश करते हैं. आपके लिए हैं कुछ लिंक:
- न्यूटन का ब्लॉग सिद्धांत
- चिट्ठों को हिट कराने के 10 प्रमुख नुस्ख़े
- चिट्ठा हिट कराने के चंद आजमाए हुए फ़ॉर्मूले
- ब्लॉगिंग के स्वर्णिम सूत्र
- ब्लॉग लिखते समय सामान्य शिष्टाचार
- ब्लॉग लिखने के कुछ नियम
- सुभाषित वचन – ब्लॉग – ब्लॉगर - ब्लॉगिंग
- 7 टिप्स टू बिकमिंग हाईली इफ़ेक्टिव पत्रकार-ब्लॉगर
बहुत हो गई सीखने-सिखाने की बातें? वैसे भी अगर ब्लॉग को नियमों में आबद्ध कर दिया जाए, तब तो हो गई ब्लॉगिंग.
ब्लॉगिंग का अर्थ ही है – मनमर्जी चाहे जैसे जितना जहां लिखो छापो
कोई बंधन नहीं. हर बंधन से आजाद. यही शुद्ध और आदर्श ब्लॉगिंग है. इसीलिए, आप अपने नियम और शिष्टाचार अपने पास रक्खो, हम तो मनमर्जी पोस्ट और टिप्पणी लिखेंगे और छापेंगे. आपको लगता है कि चिट्ठाकारी की वाट लग रही है, तो अपनी बला से!
हमें लगा कि आप कुछ ज्यादा बोल रहे हैं पर आप तो चर्चा पूरी होते होते ही लाइन पर आ गये :)
जवाब देंहटाएंहमें बड़ी आत्मग्लानि हुई यह देखकर कि 469 लोगों को मेल मिला पर हमें नहीं मिला,
क्या हम इतने गये गुजरे हैं ?
एक बेहद जरूरी चर्चा।
जवाब देंहटाएंएक ही लेख कई जगह प्रकाशित करने से गूगल भी दंडित करता है। डुप्लिकेट लेख सर्च इंडेक्सिंग में नहीं आते।
इमेल से अपने लिंक भेजने वालों को अपन स्पैम का बटन दबा कर दंडित कर देते हैं।
संग्रहणीय चर्चा। हम न सिर्फ़ आभारी हैं बल्कि यह भी वादा करते हैं कि पढ़कर ही टिप्पणी करेंगे:)
जवाब देंहटाएंधांसू...
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिखा
जवाब देंहटाएंAchha lkha hai aapne........
जवाब देंहटाएंआजादी के असल मायने अब समझ आये हैं।
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा!!
जवाब देंहटाएंचिट्ठा चर्चा अच्छी रही।
जवाब देंहटाएंमगर वो जबरदस्ती टिप्पणियाँ प्राप्त करने की मनुहार ?
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा |
जवाब देंहटाएंखूबसूरत चर्चा । उपयोगी बात ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया एवं सार्थक चर्चा....लेख अच्छा होगा तो टिप्पणियां तो स्वंय बरसेंगी |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
नायाब किस्म की चिठ्ठाचर्चा लिख कर दे मारी है, जो दुनिया/ ब्रह्मांड में आजतक किसी ने नहीं लिखी। ई-मेल से ठेलनी बाकी रह गई! :-)
जवाब देंहटाएंपुन: हमारे ब्लॉग पर आइयेगा। आते क्योँ नहीं?
जवाब देंहटाएंरवि जी , पहली बार आपकी किसी पोस्ट पर टिप्पणी कर रहा हूँ . आपने जिस मुद्दे को उठाया उसका हश्र तो यहाँ मौजूद टिप्पणियों से ही जाहिर हो जाता है . ब्लॉगर बंधू कितना समय बहस में देना चाहते हैं देख लीजिये . आज कल ब्लॉग जगत में टिप्पणियों और पोस्ट को लेकर जगह-जगह बहस छिडी हुई है पर कहीं भी कोई निष्कर्ष नहीं निकल पा रहा है . ब्लॉग जगत की हालत दिनों दिन चिंतनीय होती जा रही है . कुकुरमुत्ते की तरह रोज ब्लॉग खुल रहे हैं . आम इमली कुछ भी लिखे चले जा रहे हैं . हर मंच पर टिप्पणी देने वालों की सूचि देखें तो स्पष्ट हो जायेगा : १ . अपने ब्लॉग पर सबसे ज्यादा टिप्पणी खुद लेखक यानि चिट्ठाकार की है ,. २. हर जगह अपनी-अपनी लॉबी है जो आपस में टिप्पणियों का लेन-देन करते हैं .
जवाब देंहटाएंआज जब ब्लॉग्गिंग को वैकल्पिक मीडिया के रूप में देखा जा रहा है तब हमारी इन हरकतों से क्या ऐसा सोचने वालों को निराश नहीं होना चाहिए ?
या ये भी हो सकता है उन्हें ऐसा मानना नहीं चाहिए !
क्या ब्लॉग अपनी छपास की भूख मिटने का साधन मात्र है ?
अगर ऐसा नहीं है तो क्या उपाय किया जा सकता है ? और कौन करेगा ?
क्या सामान विचारों / वादों के समर्थों के एक मंच पर होने के बाद अब विभिन्न विचारों वाले लोगों को आपस में संवाद करने की जरुरत नहीं है . ?
मेरे ख्याल में है और सामुदायिक ब्लॉग की अवधारणा इसी लिए बनायीं गयी होगी न कि एक हीं राग अलापने वालों के लिए .
अभी लाइट चली गयी है . इसलिए इतना ही जय हिंद !
हाँ , अगर विभिन्न विचार वाले लोगों का संवाद देखना चाहें तो पधारें और देखें कि टिप्पणियाँ पोस्ट भी ज्यादा लम्बी हैं .
link :- http://janokti.blogspot.com/2009/06/blog-post_05.html
सार्थक चर्चा ..!! ब्लॉग लिखने में दी गयी आपकी टिप्स के लिए आभार ...!!
जवाब देंहटाएंaapke diye sare links jaa ke padhe...samjhe aur fir bade bade font size me likhi aapki baat se sahmat ho gaye :)
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग का अर्थ ही है – मनमर्जी चाहे जैसे जितना जहां लिखो छापो
sach mein jabardast charcha..kya research ki hai aapne..wah wah..aur aapne achha end karke controversy create hone se bacha liya hai..
जवाब देंहटाएंहम जैसे हैं वैसे ही रहेंगे।
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