चर्चा करने का दिन हमारे लिए बुधवार का था लेकिन कुछ अटके अधूरे काम करने बैठे तो दिन बीत गया ... फिर कुछ अतिथि... अतिथि देवो भव.... जानकर उनकी खातिरदारी में व्यस्त हुए तो समय रेत से फिसल गया हाथ से ..सोचा चर्चा करने का सही समय तो निकल गया इसलिए हमेशा की तरह लिखना भूल कर पढ़ने बैठे तो एक के बाद एक पोस्ट हमारे मन की बात कहती से दिखाई देने लगी..... पढिए हमारे मन की बात किसी ओर की लेखनी के माध्यम से.........
ब्लॉगजगत के अनेकों मित्र कहते कहते थक गए लेकिन अपने ब्लॉग पर एक भी पोस्ट न लिख पाए... हम जो सोच रहे थे वही अज़दक ने लिख डाला......
कुछ नहीं लिखने का मन कर रहा है. दरअसल मन ठहरा-अटका हुआ है (भटका नहीं है, भटका तो समय है, और उसके मन को बहुत सारे खटके हैं, लेकिन फिर वह अलग कहानी है). अभी जो स्थिति है वह कुछ नहीं लिखने की है. कुछ. नहीं. लिखने. की.
सोचती हूँ ब्रेक लेना एक अच्छा तरीका है मेरे जैसे लोगों के लिए! जिससे बोर हो गए हो, उसे हमेशा के लिए बाय बाय कह देने से अच्छा है कुछ दिनों के लिए उससे दूर हो जाना! एक अन्तराल के बाद दोबारा शुरू करना भी नयापन ला देता है! मेरी एक कुलीग ने मुझे बताया था की उसके अपने पति से झगडे बढ़ने लगे थे! दोनों को एक दूसरे का चेहरा देखकर खीज आती थी! उकताकर उसने अपना ट्रांसफर किसी दूसरी जगह करवा लिया ! अब दोनों हफ्ते में एक बार मिल पाते थे! एक साल बाद उसी कुलीग ने सारा जोर लगाकर अपना ट्रांसफर वापस पति के शहर में करा लिया! अब दोनों बहुत खुश थे! तो ब्रेक ने यहाँ भी अपना काम बखूबी किया! खैर मैं भी हाज़िर हूँ ब्रेक के बाद....अगले ब्रेक तक के लिए!
ब्रेक के बाद पल्लवी आपका स्वागत है .... बड़ी सहजता और रोचक तरीके से आपने हमारे मन की बात कह दी....
इलाहाबाद में एक गलत बात दीखती है – सड़कों के दोनो ओर फुटपाथ का अस्तित्व ही मरता जा रहा है।
..... शहर ऐसे बनने चाहियें जहां लोगों को पैदल चलना पड़े और चलने की सहूलियत भी हो। क्या सोच है आपकी?
काश इस सोच पर लोग सोचना शुरु करें तो बहुत कुछ बदल जाए... सबसे पहले तो हमें अपने आप से ही शुरुआत करनी होगी....अपने घर के आगे की जगह को घेरना बन्द करके.......
जिसमे इंसान को इंसान बनाया जाए ….. नीरजजी की कविता उनकी ज़ुबानी मनीषजी के ब्लॉग पर सुनिए...
प्रत्यक्षाजी के अनुसार -------
बिल्ली भीगते दीवार पर कदम जमाये चलती , चौंक कर पीछे पेड़ों पर कुछ देखती । उसकी पूँछ तन जाती , उसके रोंये खड़े हो जाते , उसका बदन अकड़ जाता । पेड़ों के झुरमुट के पीछे ट्रेंचकोट वाला शख्स लम्बे डग भरता , पानी के बौछार के आगे ज़रा सा झुकता , तेज़ी से जाता अचानक मुड़ कर बिल्ली को देखता है ।
द स्टेज इज़ सेट फॉर द क्राइम ...कुश की हलकट दुनिया का सिपाही अजब सा बर्ताव कर रहा है..........
वो घबराया.. उसने जमीन पर पड़ा पत्थर उठाया और सामने की तरफ उछाल दिया.. पत्थर मेट्रो की खिड़की को तोड़ता हुआ आसमान की तरफ चला गया.. पत्थर हवा में उड़ता ही जा रहा है.. वो देखता रहा.. पत्थर और ऊपर चला गया.. अचानक आसमान में से जोर की आवाज़ आई.. शायद उसने आसमान फाड़ दिया था.. आसमान से मोम जैसा कुछ पिघलकर नीचे गिर रहा था.. जैसे ही वो उसके ऊपर गिरता मेट्रो उसके करीब आ गयी.. वो फटाफट उसमे चढ़ गया..
हिमांशु जी का कहना कुछ ऐसे है......
दिनों दिन सहेजता रहा बहुत कुछ
जो अपना था, अपना नहीं भी था,
मुट्ठी बाँधे आश्वस्त होता रहा
कि इस में सारा आसमान है;
आने वाले दिन तरह व्यस्त होंगे। हर नए दिन एक नया पर्व होगा। ऋषिपंचमी हो चुकी है। फिर सूर्य षष्ठी, दूबड़ी सप्तमी और गौरी का आव्हान, और गौरी पूजन, राधाष्टमी और गौरी विसर्जन, नवमी व्रत, और दशावतार व्रत और राजस्थान में रामदेव जी और तेजाजी के मेले होंगे, जल झूलनी एकादशी होगी। फिर वामन जयन्ती और प्रदोष व्रत होगा और अनंत चतुर्दशी इस दिन गणपति बप्पा को विदा किया जाएगा। अगले दिन से ही पितृपक्ष प्रारंभ हो जाएगा जो पूरे सोलह दिन चलेगा। तदुपरांत नवरात्र जो दशहरे तक चलेंगे। फिर चार दिन बाद शरद पूर्णिमा, कार्तिक आरंभ होगा और दीपावली आ दस्तक देगी। दीपावली की व्यस्तता के बाद उस की थकान उतरते उतरते देव जाग्रत हो उठेंगे और फिर शादी ब्याह तथा दूसरे मंगल कार्य करने का वक्त आ धमकेगा।
अपने देश की यही तो खूबसूरती है...हर दिन किसी न किसी पर्व के कारण पवित्र हो जाता है.... आने वाले सभी पर्व सबके लिए मंगलमय हो ...यही कामना है..... !!
अनूपजी के आग्रह पर चर्चा के लिए बस आज इतना ही पढ़ पाए....! शेष फिर .... !
व्यस्तता के बाद भी खूब रही
जवाब देंहटाएंजो पढ़ा
जवाब देंहटाएंअच्छा पढ़ा
खूब पढ़ा
अच्छा लगा
सबसे बढ़कर
व्यस्तता-ए-हाल
सच्चा लगा।
अच्छा संचयन ,अच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंबेहतरीन..बिना मन हुए भी!!
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंचर्चा तो चोखी बन पड़ी है ।
अच्छे लिंक भी सहेजें हैं, आपने । सबकुछ तो बहुत ठीक है फिर,
" अनूपजी के आग्रह पर चर्चा के लिए बस आज इतना ही पढ़ पाए " का डिसक्लेमर क्यों नत्थी कर दिया ?
अपनी चर्चा के लिये चिट्ठों से प्रस्तुत उद्धरण उपयोगी हैं । कुछ ही चिट्ठों की चर्चा की है आपने पर मौलिक लेखन सी ताजगी है इसमें । आभार ।
जवाब देंहटाएंइतेफाकन हम अमर कुमार जी से इतेफाक रखते है.. चर्चा में लिंक बढ़िया संजोये है आपने.. हमारा जो है उसमे :)
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपका चर्चा का ए वाला अन्दाज। जित्ता पढ़ा उत्ता चर्चा कर दिया। सब पोस्ट हमने पढ़ डाले। शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंडॉ अमर और कुश...अपने ब्लॉग पर तो लिख नही पाते तो यहाँ कैसे लिख पाए ...आप समझ सकते हैं...
जवाब देंहटाएंवैसे आज 27 अगस्त को हमारा ब्लॉग बालक 2 साल का हो गया है...एक छोटी सी पोस्ट रूपी मिठाई से ब्लॉग बालक का मुँह मीठा कर आए हैं....रस्म निभाने के लिए ..
"अभी जो स्थिति है वह कुछ नहीं लिखने की है. कुछ. नहीं. लिखने. की.." फिर भी एक ब्लाग ठेल ही डाला...एक चर्चा भी ठेली गई:)
जवाब देंहटाएंमिनाक्षीजी को उनके ब्लाग बालक के दूसरे जन्म दिन की बधाई। वैसे दो वर्ष का गैप काफ़ी होता है अगले सृजन के लिए...ज़रा इस ओर भी ध्यान दें:)