शनिवार, अगस्त 15, 2009

आज़ादी

वतन पे जो फ़िदा होगा, अमर वो नौजवान होगा! के रफ़ी-गान से शुरुआत करते हुए भारत की आज़ादी (किससे?) के ६२वें वर्ष में प्रवेश को १६वें वर्ष में प्रवेश के समान का दर्ज़ा देते हुए पढ़ते हैं कुछ भैय्यागिरी के बारे में -

पंकज उपाध्याय लड़का लड़की के अनौपचारिक मिलान का वाकया बता रहे हैं -

लडकी ने मित्र जी से नमस्ते किया और बोली “नमस्ते भैया"!


अब नाम थोड़ी लेती?

टीवी नहीं देखता हूँ, अतः कैम्पस वॉच के जरिए ही पता चला कि दूरदर्शन वालों ने एक व्यास चैनल खोला हुआ है जो कि

ईएमआरसी केन्द्र में एक सौ से भी ज्यादा कड़ियों वाला टेलीविजन कार्यक्रम तैयार किया जा रहा है जो जल्द ही दूरदर्शन के व्यास चैनल पर दिखाया जाएगा।


अइउण्, ऋलृक्। उम्मीद है कि अष्टाध्यायी के सूत्र भी उतनी ही लोकप्रियता पाएँगे जितना रामदेव जी के पतले होने के नुस्खे। संभावना क्षीण लगती है वैसे।

राजतंत्र वाले शहीदों का अहसान मान रहे हैं।

खाकर गोलियां जिन्होंने देश को आजाद कराया
याद रखना उन शहीदों का सदा अहसान


खासतौर पर उन बेनामों का जिनका नाम किसी तारीख की किताब में दर्ज नहीं है।
अप्रवासी उवाच -

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हुन्दुभुमे सुखं वर्धितोहम
महामंगले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते


और अलबेला खत्री -

तैन्कां, तोपां अग्गे खड़के , जलियाँ वाले बाग़ च सड़के
शामीं-रात, सवेरे-तड़के, सेहरे वंग कफ़न नूं फड़के
माँ-प्यो-तींवीं-न्याणे छडके ,नाल-हौसले-हिम्मत लड़के
फाँसी दे फन्दे ते चढ़के, कुर्बानी दित्ती वाढ -चढ़के
भिड़े असां तोपां दे मुखालफ़ , करद अते किरपानां फड़के


बना रहे बनारस के ज़रिए फ़ैज़ साहब फ़रमा रहे हैं -


ये दाग़ दाग़ उजाला, ये शबगज़ीदा सहर
वो इन्तज़ार था जिस का, ये वो सहर तो नहीं

ये वो सहर तो नहीं जिस की आरज़ू लेकर
चले थे यार कि मिल जायेगी कहीं न कहीं


सत्य वचन महाराज!

अब आते हैं असली भारत की असली असलियत पर। आलोक पुराणिक जी फ़रमा रहे हैं,

अगर आप टीवी रिपोर्टर हैं, तो सुबह से शाम तक आपको दहशत फैलानी है। स्वाइन का कहर, स्वाइन अजगर, स्वाइन का तूफान, सब मर जायेंगे स्वाइन, प्रलय आफ स्वाइन, कोई नहीं बचेगा टाइप के शीर्षकों को सोचें।


जिस देश में गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे पत्रकार थे, वहाँ अब दवाई कंपनियों के भड़वे अब पत्रकार हैं।


मैं अपने कम्प्यूटर के मॉनीटर में मानो घुसा पड़ा था...
और वो जाने कब से चुपचाप...
सहमा हुआ सा...
मेरी कुर्सी के पास खड़ा था...
आंख उठा कर मैने देखा...
क्या बात है भाई...
धीरे से उससे पूछा...


अबूझ जी सुना रहे हैं अपने कंप्यूटर के साथ उनकी प्रेम कहानी।

सैयद अकबर जी को जन्मदिन की बधाई।

बताओ तो ये कौन है?

अजित जी बता रहे हैं कि पुलिस वालों को हम क्या क्या बुलाते हैं।

हिन्दी से कोतवाल शब्द तो लुप्त हुआ ही इसकी एवज में बना पुलिस अधीक्षक शब्द सिर्फ उल्लेख भर के लिए प्रयुक्त होता है। बोलचाल में इसका इस्तेमाल नहीं के बराबर है। इसी तरह सुपरिन्टेन्डेन्ट ऑफ पुलिस शब्द का इस्तेमाल भी बहुत कम होता है। इसकी जगह अंग्रेजी के संक्षिप्त रूप एसपी का प्रचलन सर्वाधिक है


वैसे एक बात है पुलिस वालों का काम सबसे ज़्यादा त्रस्त कारी होगा। ऐसे में आश्चर्य नहीं कि वे आम जनता की व्यथा के प्रति उदासीन लगते हों। अपने जैसे "आम" लोग - मैंगो पीपील - उनकी तरह एक दिन बताएँ तो हमें भी ऐसे कवच की ज़रूरत पड़ेगी।

कविता जी सुना रही हैं झाँकी हिन्दुस्तान की

मूल बात यह है कि इस फ़िल्म का रंग कभी उतरा ही नहीं


और उस ज़माने में रोज़ ब्रह्मास्त्र फोड़ने को तैयार ७० टीवी चैनल भी तो नहीं होते थे! देखेंगे आज चलता है क्या हम लोग।

बाकी ६३वें पर।

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10 टिप्‍पणियां:

  1. जय भारत
    हुए सारे बाशिन्‍दे
    ब्‍लॉगिंग में रत।

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  2. आजादी की चर्चा करने का आभार .. स्‍वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं !!

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  3. ""आम" लोग - मैंगो पीपील"....


    मैंगो पीपील या आम पिलपिले:)
    स्वतंत्रता दिवस कि शुभकामनाएं॥

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  4. बहुत संक्षिप्त चर्चा है। कम से कम चौबीस घंटे पहले तक की प्रतिनिधि पोस्टों को सम्मिलित करने का प्रयास हो तो सुंदर रहे।
    स्वतंत्रता दिवस पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  5. क्षमा करें आलोक जी, आज चर्चा प्राँगण बटेरों से अटी पड़ी है,
    और.. मेरे शिथिल नेत्र एक भी लज़ीज़ बटेर निरख न पा रहे.. ..

    मेरी नज़रें जो न पा सकीं, तो ज़रूर ही होगा मेरे नज़रों का कसूर
    वरना यहाँ तो दिव्य आलोक है, आलोक जी !

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  6. आप की प्रतिबद्धता प्रेरणादायी है।
    जय हिन्द।

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  7. 16 और 62 का आँकड़ा तो आदि से अन्त जैसे लगता है।
    वैसे ईश्वर करे किसी की नज़र तक भी न लगे इस सोन चिरैया (?) को।

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  8. Sorry miss ho gaya tha. BTW wo ek ladka aur ladki ka milan nahin, ek hone wali pati-patni ka milan tha :P

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