क्या कह रहे हैं, फ़िलम कैसी थी - एकदम झकास। मुंबई के वडापाव की याद आ गई। विशाल भारद्वाज ने बिल्कुल हॉलीवुड स्टाइल में बनाई है। देखना ही माँगता। वडा पाव खाने का मन कर रहा है देखने के बाद तो। देखना ज़रूर। बात करते करते कमीने की कमीनगी की बात भी होती रहेगी।
चवन्नी बाबू बता रहे हैं सिकंदर जीतेगा कि नहीं। बेटा माधवन है इसमें, देख ही लेंगे इसे भी।
साला हिंदुस्तान हिंदुस्तान है कि दिल्लिस्तान। इंद्रप्रस्थ नगरी में दुर्योधन एक छींक भी मार दे तो पूरे आर्यावर्त में खबर फैल जाती है इस बार तो बारिश हुई है। है न अनहोनी?
अपन भी सिंगापुर जाएँगे और वापस आते समय टैक्स वैक्स वापस लेंगे। सुना है वहाँ शेर पानी उगलता है। तभी तो उसका नाम सिंहपुर था। मैं यही सोच रहा था सालों से कि पुर तो ठीक है पर सिंगा - आज चमका है।
फ़ौरन फ़ॉरन जाना है तो जाना पर इधर मत जइओ - पाँच लाख हों तब भी नहीं। अपनी कंट्री की साली है ही ऐसी फटी हुई कि पब्लिक कुछ भी करके निकलना ही चाहती है।
अपने कुन्नू महोदय ने एक और डोमेन खरीद लिया। अच्छी बात है, बस किसी झाँसे में न आ जाएँ, इतना याद रखें कि अगर कुछ भी फोकट में है तो भारी पड़ेगा।
मीडिया के खौफ़नाक दस्ते - अरे भई अतिशयोक्ति अलंकार क्यों - मीडिया के दस्ते कह लेते या खौफ़नाक दस्ते कह लेते बात तो एक ही है। आज के नागरिक के सामने चिंता का विषय यह है कि किससे ज़्यादा डरे - पुल्सिये से, नेता से या पत्रकार से इसलिए बस चुटकुले सुन सुन के अपना टाइम खोटी करते रहता है।
मनोहर कहानियाँ, सत्यकथा जैसी पत्रिकाएँ बचपन में अपने घर में प्रतिबंधित थीं। आज सोचता हूँ अच्छा ही है। वरना इंसान इन्हीं में डूब के रह जाता है। पर आपको अगर शौक हो तो ज़रूर फ़रमाएँ।
जबसे ये जिन्ना-जसवंत कांड हुआ है तबसे हिंदुस्तान के इतिहास के बारे में काफ़ी कुछ पढ़ रहा हूँ। इसी सिलसिले में हितेंद्र पटेल का लेख भी पढ़ा। यूँ तो ईस्ट इंडिया कंपनी वालों ने ऐसे चुपचाप ज़मीनें जब्त कीं कि किसी को कानोकान अहसास नहीं हुआ कि आखिर चल क्या रहा है। राजे महाराजे देखते ही रह गया और उनके पैरों तले ज़मीन निकलती गई। लेकिन क्या आम जनता को वास्तव में अंग्रेज़ों से बहुत ज़्यादा तकलीफ़ हुई? मतलब राजों महाराजों के मुकाबले? शायद नहीं। वैसे भी अपने बंदों की ऐसी फटी हुई थी और अकल घास चरने गई हुई थी कि किसी को यह न समझ आया कि चल क्या रहा है और देखते ही देखते बरतानिया कि विस्तुइया ने झंडा फहरा दिया। फिर पछताए क्या होत। जो रही सही कसर थी वह बेंटिक और मेकाले ने पूर कर दी। अब चाहे उज्ज्वला रावत गोरे से शादी करके तलाक दें या लोग कांबली के कुत्ते से परेशान हों, हिंदुस्तान अब एक दोयम दर्ज़े का बरतानिया या शायद अमरीका बनने की ललक में ही है। चलता रहेगा ज़हर का व्यापार।
और बात सही भी है, भारतीयता का जिन चीज़ों को हम प्रतीक मानते हैं - जैसे कि हिन्दी को - वह शायद अब सही प्रतीक नहीं हैं। बल्कि, आज का भारत अंग्रेज़ों के असर से पीड़ित - या पोषित - जैसा भी समझ लें - भारत है। भारत का कोई भी बड़ा शहर - बॉम्बे, कैलकटा, डैल्ली, मैड्रास - अंग्रेज़ों के असर से प्रभावित हो के ही शहर बना है। हाँ वाकई अगर कोई पूर्णतः भारतीय पर फिर भी आधुनिक शहर होगा तो अपना चंडीगढ़ ही जो एक भारतीय प्रधानमंत्री ने आज़ादी के बाद पेड़ काट के बनवाया था। हाँ रचनाकार फ़्रांसीसी थी पर पैसे पूरे दिए थे उसे हिंदुस्तान ने जी!
तो कमीने की बात करते हैं - प्रियंका चोपड़ा इसमें मराठी मुलगी बनी है लगता है पिताश्री फौज में जब थे तो महाराष्ट्र में काफ़ी समय रहे थे। एक दम प्रियंका चोपडे की तरह मराठी बोली है इस मुली ने तो। लेकिन जो भी हो लोग राखी सावंत से जल रहे हैं। अपन को तो कोई जलन नहीं है भाई।
अपने चिट्ठे में जादुई प्रभाव डालने हों तो डाल लें। वैसे आपको इस चिट्ठे पर कई जानवर, कीड़े मकौड़े, रंगबिरंगे बिल्ले, दौड़ते बच्चे भी नज़र आएँगे।
लोगों को समझा समझा के थक गया कि ५०० करोड़ कुछ नहीं होता है, कहना ही हो तो ५ अरब कहो। समझ नहीं आता है फ़र्ज़ीवाड़ा वालों को।
आर्यपुत्र को विदुर जी ने समझाया - मछली चारे की वजह से फँस जाती है - शिक्षा यह नहीं है कि सही चारा दे के मछलियों को फँसाओ, बल्कि यह है कि देख भाल के खाना पीना करो।
मानसरोवर यात्रा मुझे भी जाना है - तिब्बत के वीज़ा आदि के लिए क्या जुगाड़ होता है - शायद रायपुर वाले डीपी तिवारी जी बता पाएँ।
अब आर्यपुत्र जी कमीने पर चिंतन मनन और चर्चा करने अपने शयनकक्ष में जा रहे हैं। एकांत।
सैन फ़्रैंसिस्को में अभी प्रातःकाल के पाँच बजे होंगे। उठ जाओ पाताल लोकियों। जबसे भारत छोड़ा है सारी भारतीयता भी लगता है छोड़ दी है।
पाताल लोकिये वहाँ टिप्पणी कर रहे हैं,
जवाब देंहटाएंजबकि फ्रेश चर्चा यहाँ बनी पड़ी है !
मजेदार चर्चा बोले तो एक दम झकास...भिडू वाह.
जवाब देंहटाएंनीरज
एक व्यापक चर्चा, विशिष्ठ शैली में
जवाब देंहटाएंहे आर्यपुत्र, जब मानसरोवर जाओ तो हमें भी बताना. हम भी चल पड़ेंगे अगर संभव हुआ तो!! :)
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा!!
जवाब देंहटाएंहे चर्चाकारों के आदिगुरु, आज की चर्चा ज्ञानचक्षुओं को शीतलता प्रदान करती हुई सी प्रतीत होती है ।
पाताल लोकवासियों का शोक न करें, जँबूद्वीपे भारतखँडे निशाचरों से आलोकित है ।
चहुँओर आमोद प्रमोद की छटा विराजमान है, निरुपाय प्रजा ब्लागपटल से सम्मुख बैठ अश्रुपात करने करने को है,
खलपुरुष अपने कर में मदिरा का प्याला ले, अर्थव्यवस्था सँचालित करने की कुटिल योजनायें बनाने में सँलग्न हैं ।
कतिपय बलपुरुष सता को हस्तगत करने में चिंतायमान हो व्याकुल हैं ।
धन्य धन्य पाताललोक, जहाँ शुभरात्रि बोलने के अवसर विद्यमान हैं ।
हम अकिंचन भी आपको इस त्रिशँकुवेला का अभिवादन भेजते हैं ।
जवाब देंहटाएं@ उड़नतश्तरी जी, आप उपरोक्त यात्रा के लिये चिकित्सकीय दृष्टि से अक्षम सिद्ध होंगें ।
उच्चरक्तचाप, अनपेक्षित श्रमकार्य एवँ वातावरण में प्राणवायु की क्षीणता आपके प्रयोजन में बाधक हैं ।
अतएव इस अपेक्षा को तज, इस ब्लागसरोवर के हँसों की टिप्पणीसेवा कर, अपना जीवन धन्य करें !