देबाशीष भी नारद की अनुपस्थिति में नये चिट्ठे पढ़ने का जुगाड़ बताते हैं । यह भी कि:-
नये ब्लॉगर या सूची से चूक गये ब्लॉगर मुझे संपर्क कर सकते हैं।
उधर विनय भी चर्चा गूगल समूह फ़िर से शुरु कर दिया है। मेरा फिर से सुझाव है कि आप जो पोस्ट लिखें उसकी कड़ी चिट्ठाचर्चा में टिप्पणी के रूप में बता दें या फिर
मुझे मेल(anupkidak@gmail.com)कर दें तकि उसका जिक्र किया जा सके और दूसरे साथी आपके लिखे को बांच सकें।
वैसे अगर आप मेहनत से जी नहीं चुराते हैं और समय इफरात है तो सारे हिंदी ब्लाग की सूची देखिये और नयी पोस्ट पढिये।
इसका फ़ायदा यह भी होगा कि आपको तमाम मजेदार ब्लाग दिखेंगे जहां उदघाटनिया फ़ीता काटकर दुकान बंद कर दी गयी।
राकेश खंडेलवाल अपने गीतकलश के साथ आपको ले चलते हैं वॄन्दावन जहां का वर्णन करते हुये अपना भी हाल कहते हैं:-
सुबह की पहली अंगड़ाई, ले साथ वेदना को आई
दिन की पादानों ने रह रह मेरे प्राणों को दंश दिये
सन्ध्याकी झोली में सिमटे पतझड़ के फूल और कीकर
बस नीलकंठ बन कर मैने अपने जीवन के अंश जिये
आगे वे लिखते हैं:-
सम्बन्ध टूटते रहे और पल पल पर बढ़ी दूरियां भी
अपनापन हुआ अजनबीपन हर रिश्ते की परिभाषा में
है रहा भीड़ से घिरा हुआ, अस्तित्व मेरा अदॄश्य हुआ
पनघट की देहरी पर बैठा हर बार रहा हूँ प्यासा मैं
वंदेमातरम में फिर से एक नया सवाल पूछा गया आप भी अपने दिमाग के घोड़े दौडा़इये और हल बताइये। उधर सागर चंद नाहर पांच दिन पहले पूछी चित्र पहली का हल बता रहे हैं।हजारों वर्ष की उमर वाले इस पेड़ के हजारों उपयोग हैं।इसे गुजरात में गोरखाआंबली भी कहते हैं ।बेऑबॉब नाम से जाने जाने वाले इस पेड़ के बारे में जानकारी देते हुये सागर बताते हैं:-
बेऑबॉब के इस रूप के बारे में किवंदती है कि पहले यह पेड़ सीधा था परन्तु फ़लते फ़ूलते इसने दूसरे पौधों और पेड़ों को मिलने वाले हवा और सूर्य प्रकाश को रोक दिया । परमात्मा को गुस्सा आया और उन्होने इस पेड़ को जड़ से उखाड़ कर उल्टा लगा दिया, बेऑबॉब के बहुत मिन्न्तें करने पर भगवान ने इस पेड़ को एक छूट दी कि साल के ६ महीने इस पर पत्ते लग सकते हैं बाकी के समय में यह पेड़ एक ठूंठ की भाँति दिखेगा। यह तो एक किवंदती है परन्तु आज भी इस पेड़ पर पत्ते साल में सिर्फ़ ६ महीने के लिये ही लगते हैं, बाकी समय में यह एक दम सूखा दिखता है।
रामचन्द्र मिश्र कुछ लजीज व्यंजनों के चित्र दिखा रहे हैं जरा ध्यान से देखियेगा कहीं मन न ललचा जाये खाने को ।
बधाई:- आज बकौल रवि रतलामी ,हिंदी चिट्ठा जगत के दो पितामहों में एक देबाशीषका जन्मदिन है।देबाशीष को हमारी तरफ से अनेकानेक मंगलकामनायें। देबू को आप यहां या उनके ब्लागपर बधाई दे सकते हैं। देबाशीष के बारे में लिखा लेख और उनका शब्दांजली के लिये लिया गया साक्षात्कार आपयहां पढ़ सकते हैं।
आज की टिप्पणी:-
1.Narad jaldi lout aye - yahi tamanna hai - iske liye kuch bhi madad hoske hum zinda hain - bila jhajak banda khidmat ke liye hazir hai.
शुएब
2.बहुत रोचक जानकारी है यह। सागर जी, धन्यवाद! वास्तव में इस वृक्ष के बारे में जानकर आश्चर्य हुआ और इसके उपयोगों के बारे में भी। इस बात से क्षोभ भी हुआ कि अपने देश में ऐसा दुर्लभ, बहुउपयोगी और पुरातन वृक्ष होते हुए भी स्थानीय प्रशासन, व सरकार को इसके बारे में सम्यक ज्ञान नहीं है और यह अमूल्य धरोहर उपेक्षा का पात्र बनी हुई है।
राजीव
आज की फोटो:-
आज की फोटो आज ही अपनी पोस्ट का सैकडा पूरा करने वाले आशीष की पोस्ट से:-
खाली-पीली में
देबाशीष को जन्म दिन की बहुत बहुत बधाईयाँ!
जवाब देंहटाएंदेबाशीष जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई । क्या बात है , सारे धुरंधर लगता है सितम्बर में ही अवतरित हुये हैं ।
जवाब देंहटाएंअनूप, रवि, प्रत्यक्षाः बहुत बहुत शुक्रिया!
जवाब देंहटाएं