थानेदार जी चल दिये, फिर छुट्टी पर आज
डंडा लेकर घुमते, साईकिल पर कविराज.
साईकिल पर कविराज कि पाया नही सुकुन
बिन नारद के लग रहा, जैसे सब कुछ सुन.
कहे ‘समीर’ कि नारद, वापस आ जा यार
वरना रोज सतायेगा, ये जालिम थानेदार.
--समीर लाल ‘समीर’
जी हां, चिठ्ठा चर्चा के थानेदार फ़ुरसतिया जी आज छुट्टी पर हैं और हमारी फिर से ड्यूटी लगी है. शायद भारत सरकार की तरह ही आज हिन्दी दिवस पर समस्त कार्य हिन्दी मे करने की प्रतिबध्ता व्यक्त करने गये होंगे और सारे कार्य इसके चलते बंद. लेकिन प्रतिबध्ता व्यक्त करने को लगाया गया हुजूम तो सरकारी काम की श्रेणी मे आता है, इसमे छुट्टी कैसी? शायद कहीं और गये होंगे. खैर, हमे इससे क्या, हम तो हाजिर है आज की ताजा चिठ्ठा चर्चा लेकर:
रवि रतलामी जी बहुत ज्ञानवर्धक जानकारी ले कर आये हैं कि यूनिकोड हिन्दी फ़ाइलों को पीडीएफ़ फ़ाइलों में कैसे परिवर्तित करें?
रचनाकार पर रवि जी मृणाल पांडे की रचना हमारे किशोर किस ओर पेश कर रहे हैं :
अब ये छात्र मार्गदर्शन और न्याय की उम्मीद किससे करें? उन मध्यवर्गीय अभिभावकों से जिन्हें ऊँची तनख्वाह की नौकरी (और परिप्रेक्ष्य में मिलने वाले ऊँचे दहेज) का इतना लालच है कि वे बच्चों को कोड़ामार साइसों की तरह दिन-रात दौड़ा रहे हैं?
चिठ्ठाकार असम्मेलन मे हिन्दी पर बात कर रहे हैं कुछ बून्दें कुछ बिन्दु पर राजेश जी:
छोटे में इतना ही ..... मै ये तो नहीं कहता की मैं हिन्दी चिट्ठाकारी का डंका बजा के आया हूँ , पर हाँ, कहीं ना कहीं बात जरुर रख दी।
प्रत्यक्षा जी चाय पुराण मे चाय की प्याली ..जुगलबन्दी मे तरह तरह की बेहतरीन चाय परोस रही है जिसे राकेश खंडेलवाल जी, अनूप भार्गव जी, घनश्याम गुप्ता जी, मनोशी जी और स्वयं प्रत्यक्षा जी जैसे दिग्गजों ने मिल कर बनाया है. आप भी लुत्फ उठायें. राकेश जी तो चाय के संग पकोडे की उम्मीद भी लगा बैठे:
है यकीन चाय के संग अब हमें पकोड़े मिल जायेंगे
और आप निश्चिन्त रहें हम धैर्य साथ लेकर आयेंगे
हम न थकेंगे कविता सुनते,
शायद आप सुनाते थक लें
चाय समोसे मिलें
स्वयं ही श्रोता वहाँ चले आयेंगे
(राकेश )
भारतीय सिनेमा पर देखें कि कैसे बातों ही बातों मे इस चिरअमर गीत का सृजन हुआ:
कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हरेक बात पे रोना आया
रितेश जी अपनी भावनाऎं प्रकट करते हुये कह रहे है: कि क्यों मै आन्नद से भरता नहीं हूँ .
रचना बजाज जी मुझे भी कुछ कहना है… कहते हुये असमंजस मे पड गयीं:
ज्ञानी होने का ढोँग करे,
वो पढा-लिखा इठलाया-सा,
अनपढ है जो, वो भी बस यूँही,
है पडा हुआ अलसाया-सा.
रत्ना की रसोई से धीरे से झांका बला की बाला ने:
झीनी सी चूनर ओढ़े
लाज हया घर पर छोड़े
मुक्त हवा सी बल खाती
सुघड़ बनावट दिखलाती………
संजय बेगाणी जी इस बाला से प्रभावित हो इसे उत्तम व्यंजन का प्रमाण पत्र दे आये.
कविता सागर मे गोता लगाकर देखें महादेवी वर्मा जी की रचना मैं प्रिय पहचानी नहीं
मेरी हिन्दी पर सिंह जी चिन्तित नजर आये इस उहापोह मे कि एम सी ए करें या एम बी ए ?
शादी के पोर्टल्स पर दुल्हे भी दुल्हनें भी इन्ही विधाओं में कार्यरत चाहियें. तन्ख्वाह नहीं पैकैज कितना मिलता है पूछा जाने लगा है. कम्पनी कौन सी है विदेशी .... कितनी विदेशी ... शादी दो लोगों की है या कम्पनियों के बीच. अभी तक कुल या परिवार देखते थे अब कम्पनी और पैकैज.
फुरसतिया जी मजाक मजाक मे हिन्दी दिवस मनाते पाये गये :
हां तो हम खडे़ थे वहाँ जहाँ पर नारद जी बैठे थे। नारद जी तो बैठ गये लेकिन अभी तक किसी संगठन ने इसकी जिम्मेदारी ली नहीं। लेकिन कोई बात नहीं,हम हैं न बताने के लिये। जैसे कि भारत में हुई हर खुराफात के लिये पाकिस्तान जिम्मेदार होता है वैसे ही चिट्ठाजगत में जो भी लफड़ा होता है उसके लिये जीतेंदर बाई डिफाल्ट जिम्मेदार होते हैं। तो जीतेंदर ही जिम्मेदार हैं नारदजी की इस दशा ,दुर्दशा के लिये।
लम्बे लेखन की आदतन अपनी बात आगे जारी रखते हुये कह रहे हैं:
अक्सर लोग अपने ब्लाग को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की बात करते हैं। कुछ लोग तो इतने आशावादी हैं कि इधर विज्ञापन लगाया उधर लाकर लेने के लिये दौड़ पड़े। मुझे इस बारे में कोई अंदाजा नहीं लेकिन रवि रतलामी जी बताते हैं कि जहां ब्लाग पर द्स हजार हिट्स रोज हुई नहीं कि बस डालर गिनना शुरू हो जायेगा।
सागर चन्द्र नाहर जी जहां सुलझाई जा चुकी पहेली का खुलासा कर रहे है, वही वो महादेवी वर्मा जी की पुण्य तिथी पर श्रृध्दांजल अर्पित कर रहे हैं. हम सब की तरफ से भी महादेवी वर्मा जी की पुण्य तिथी पर श्रृध्दांजली.
अब बस करते हैं, साईकिल चलाते चलाते थक गया. अंत मे जिनका जिक्र रह गया है, कृप्या अपने आपको टि[[णी के माध्यम से जोड़ लें…मैने तो भरसक साईकिल चलायी:
साईकिल भी पंचर भई, तब घर लौटे कविराज
कितने चिठ्ठे छूट गये और, कितने लोग नाराज.
कितने लोग नाराज कि जरा ईमेल तो करना
अपने चिठ्ठे पर जब भी कुछ नया सा लिखना
कहे ‘समीर’ नारद सा कोई दिखे ना काबिल
कहां कहां तक दौडेंगे हम लेकर यह साईकिल
अपील: नारद पर अक्षरग्राम कोष की स्थापना कर दी गई है. आपके अपने नारद को जल्द वापस लाने के लिये कृप्या अपना योगदान करें.
बधाई:
आज यानि कि १४ सितंबर को हमारे साथी चिठ्ठाकार अनूप भार्गव जी को लखनऊ में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव द्वारा विदेशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिये हिंदी साहित्य अकादमी की तरफ से सम्मानित किया जायेगा। अनूप जी को बहुत बहुत बधाई.
आज की टिप्पणी:
कुछ बून्दें कुछ बिन्दु से:
रवि रतलामी जी:
यह बात सही है. लोगों को पता ही नहीं है कि हिन्दी में भी चिट्ठा लिख सकते हैं! हिन्दी लिखने वालों को लोग आश्चर्य से देखते भी हैं! आखिर कम्प्यूटर तंत्र में यह कॉम्प्लैक्स लैंगुएज भी जो कहलाता है!
आज का चित्र:
लगता है थानेदार साहब की तरह सभी चित्र भी छुट्टी मना रहे हैं. आज एक भी तस्वीर नही दिखी किसी ब्लाग पर. इसलिये पेश है, हवा का चित्र, बताईये कैसा लगा, मैने बनाया है J :
समीर जी, मेरी नयी प्रविष्टी यहां है
जवाब देंहटाएंhttp://aaina2.wordpress.com/2006/09/13/maya-raam/
वाह समीरजी,आप तो बहुतै बढ़िया कमेंटरी कर रहे हैं ,एकदम धांसू. अब न छूट पायेंगे यहां से .नियमित लिखना पडे़गा.
जवाब देंहटाएंइसे कहते हैं,"आ बैल मुझे मार". किसने कहा था इतनी अच्छी समिक्षा करने को. अब हमें आपकी 'इस्टाइल' भा गई हैं. चिट्ठाचर्चा करते रहें..
जवाब देंहटाएंएक बात कानमें फुसफुसाता हूँ, "जोगलिखी पर आज हिन्दी-डे पेसल लिखा हैं".
दो-दो धांसू कुंडलियों के लिए धन्यवाद. चिट्ठा चर्चा में और रस आया.
जवाब देंहटाएंपर, यह जी जी क्या लगा रखा है. बन्द कीजिए जी, यह जी जी!
बहुत अच्छा लिखाहै।
जवाब देंहटाएंमेरी प्रविष्टी-'जय-भारती'
http/:man ki baat.blogspot.com
-प्रेमलता पांडे
साीइकिल बढ़िया चलाते है आप।
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