धृतराष्ट्र : कहो संजय योद्धाओं का क्या हाल है?
संजय : मैंने पहले से ही नारदजी का आह्वान कर दिया था. सबसे पहले तो यहाँ वँहा उड रही उडनतश्तरी नजर आ रही है, लगता है कुछ तकनीकि समस्या आ गई है. हर एक को तरकश सलाम कर रही है.
धृतराष्ट्र : चालक भयग्रस्त लग रहा है. हमसे टक्कराए इससे पहले दुसरी ओर नजर घुमाओ.
संजय : पूँजी बनाने का युलिप-मंत्र भाटिया-महाराज द्वारा आईने में दिया जा रहा है. याचक लाभ ले. वहीं बात पूंजी की हो रही है तो..
फ्रेडरिक ऑगस्ट हायेक जो प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और चिंतक थे, की पुस्तक के बारे में बताते हुए हितेन्द्र तिरछी नजर से आगाह कर रहे हैं उन्हे जो दासत्व की ओर जा रहे.
धृतराष्ट्र : और यह कराहट किसकी सुनाई दे रही है?
संजय : ओह! ये सुनिलजी हैं, जिनके कुल्हे में अचानक दर्द उठा तो किसी अनजाने भय से काँप उठे और डॉक्टरों को इन्हे आश्वस्त करना पड़ा.
धृतराष्ट्र : क्या बात है, कवि आज शांत दिख रहे हैं!
संजय : नहीं महाराज, रचनाजी बेटी की समाज में जो स्थीति है उस पर एक सुन्दर शब्दो में पिरोई हुई कविता सुना रही है. एक तस्वीर छायाचित्रकार भी लेकर आए हैं, देखिये गुयाना की बेटियों को.
धृतराष्ट्र : और यह घर होते हुए भी बेघर-सा कौन घूम रहा है.
संजय : महाराज ये अकेले-कविराज है, अपने नए घर को सजाने का तरीका खोजने में परेशानी का अनुभव कर रहे है. इन्हे लगता है ये चौबेजी थे, अब दुबैजी हो गए है.
फिलहाल तो सुखसागर में नृसिंह अवतार की कथा सुन रहे है.
आपभी सत्संग का आनन्द ले. मैं लोग-आउट होता हूँ.
(मित्रो यह मध्यान्हचर्चा है जो अल्पाहार की तरह हल्की-फुल्की है. इसमे आज लिखे गए चिट्ठे जो यह लिखे जाने तक ‘धृतराष्ट्र वाले संजय’ की दृष्टि में आए है, केवल उन्हे ही समाहित किया जा सका हैं. अगर आपका चिट्ठा छुट गया है तो उसे चिट्ठाचर्चा में जरूर शामिल किया जाएगा.)
बहुत खुशी हुयी आज की दोपहर चर्चा देखकर.
जवाब देंहटाएंदोपहरिया चर्चा के लेखक और पढ़नेवालों को भी हमारा तरकश सलाम पहुँचे.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका. एक पंक्ति की टिप्पणी भी बहुत प्रेरणादायी होती है.
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा है। काफी रोचक अंदाज में पिरोया है आज के चिट्ठों को आपने।
जवाब देंहटाएंराजेश
चिट्ठों की श्रृंखला रोचक है ।
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