संजय : महाराज आज उडनतश्तरी बस्ती से दूर उड़ते हुए शैतान तथा भगवान के क्रियाकलाप देख रही है.
धृतराष्ट्र : बजाओ ताली..
संजय ने उखड़े हुए धृतराष्ट्र की बात को अनदेखा कर दुसरी ओर नजर दौड़ाई.
धृतराष्ट्र : ये भीड़ क्यों जमा है यहाँ?
संजय : महाराज ये ई-पंडित हैं, जो सब को अपने नाम ‘श्रीश’ की वर्तनी, अर्थ आदी चुटकुले के साथ-साथ सुना-समझा रहें हैं. और बार बार कह रहे हैं कि आप कुछ भी लिख देते हैं, मेरा नाम श्रीश है, श्रीश है, श्रीश है.
धृतराष्ट्र : बात तो ‘शिरिष’ सही कह रहा है. सुनते काहे नहीं. साथ में और भी है जो कुछ सिखा रहा है, कौन है?
संजय : महाराज ये प्रभाकरजी हैं जो सबको भोजपुरी कहावते सुना रहे हैं. पास में ही ‘फाइनमेन ने कहा था’ कहते हुए उन्मुक्तजी कहते हैं कि किसी बात को तब स्वीकार करो जब वह तर्क पर खरी उतरे.
चर्चा के असर से धृतराष्ट्र का मूड सही हो रहा था, कोफी भी अब मजे ले कर पीने लगे थे. इधर नियमीत चर्चाकार भी दरबार में देर से ही सही, लौट आए थे.
संजय : महाराज सुखसागर से एक और कथा सुना रहे हैं अवधियाजी. सुनिये प्रद्युमन के जन्म की कथा.
और महाराज जन्मदिन तो आज तीरंदाज पंकजजी का भी है. दस्तक देते हुए सागरचन्दजी सबको केक खिलाने में व्यस्त है. वहीं रविकामदार आज मौका देख अपना हथोड़ा चलाते हुए पंकजभाई की खिंचाई कर रहे हैं, लेकिन पंकज तो खोया-पाया का हिसाब ही लेकर बैठ गये हैं.
धृतराष्ट्र : और यह सुन्दरीयों के कक्ष में आज कौन घुसा चला आ रहा है?
संजय : महाराज आज यहाँ समय नष्ट करने कोई सुन्दरी नहीं आई है. आज आया है भारत का कोमन-मेन.
महाराज आप इसका हाल-चाल पुछें, और मैं होता हूँ लोग-आउट.
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