व्यंज़लमय चिट्ठाचर्चा...
क्यूं इलेक्ट्रॉनिकी कम बेशरम के फूल ज्यादा है
क्या यही कश्मीर के डल झील का वो नजारा है
पता है जिसकी है लाठी भैंस उसी की, फिर भी
क्या किसी का अब भी दिल्ली जाने का इरादा है
पृथ्वी के विषुव अयन को समझे नहीं भले मगर
मुक्तकों को जीवन में विप्लव करने का वादा है
दुनिया देख ली हो अंखियों के झरोखों से बहुत
रसखान के सवैये पढ़े बगैर ज्ञान अधूरा आधा है
निकारागुआ का हो या हो पंचमढ़ी का पहला दिन
राग दरबारियों ने आपेक्षिक घनत्व से तो बांधा है
एक रात से बात तो कर लिया पर क्या पता था
कजरारे-कजरारे कारे कारे आँखों का वार करारा है
बहुत खुब. शीर्षकों के साथ शब्दो को बहुत अच्छी तरह से गुंथा है. सुन्दर.
जवाब देंहटाएंरवि जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही creative और सफल प्रयास है, प्रविष्टियों को काव्य में बाँधने का।
बढ़ियां शब्दों का ताना बाना व्यंजल पेश कर रहा है, बधाई.
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