हमारी तरह महको
तो चर्चा की शुरुआत चटपटी पोस्ट से। अतीत जीतेंद्र के पीछे उसी तरह पड़ा हुआ है जैसे अमेरिका के पीछे ओसामा बिन लादेन। बार-बार वे अपने अतीत को दोहराते हैं किसी न किसी बहाने। आज एक बार फिर वे न जाने किन कुंवारे-कुंवारियों की मांग के नाम पर अपने अनुभव सुनाने के लिये फिर कमर कस के बता रहे हैं कि लड़कियां लड़कों से क्या चाहती हैं। अपने अनुभव बताते हुये वे लिखते हैं:-
१.आपने मंहगे कपड़े पहने हो या ना पहने है, सलीके के कपड़े है कि नही।
२.आपका आत्मविश्वास का स्तर ऊँचा होना चाहिए, ऐसा ना हो कि आप लड़की से मिलने जा रहे है और शर्म से नीचे गड़ा जा रहा हो।
३.लड़कियों की एक खराब आदत होती है, वो मौजूदा प्रेमी/दोस्त की तुलना पिछले वाले से जरुर करती है, बार बार, लगातार करती है।
४.वो आपसे यह बात उगलवाने के लिए तैयार रहती है कि पिछली वाली गर्लफ़्रेन्ड मे क्या अच्छाई थी या क्या बुराई थी।
५.लड़कियाँ यह चीज जरुर चैक करती है कि आपमे उनको सुनने की कितनी क्षमता है, मतलब कितना झेल सकते हो।
६.विनम्रता का साथ नही छोड़ने का भीड़ू!
७.एक और अझेल चीज, लड़किया चाहती है कि आप सिर्फ़ उनकी सुनो।
८.आपकी रिलेशनशिप की मजबूती और जीवनकाल आपकी तारीफ़ करने की क्षमता पर भी बहुत कुछ निर्भर करती है।
९.लड़किया यह देखना चाहती है कि ये बन्दा कितना मोल्ड हो सकता है।
१०.अव्वल तो आप वादे ही मत करो, कि ये ला दूंगा, वो ला दूंगा। लेकिन करो तो निभाओ भी।
११.ये एक और पंगे की चीज होती है, केयरिंग।
ताज्जुब होता है कि इतना बड़ा प्रेम विशेषज्ञ होने के बावजूद बेचारे के साथ ऐसा नहीं हुआ कि कोई भी प्रेम का ड्राफ़्ट फाइनल होके अपलोड हुआ हो। अपनी प्रेमकथा का नारियल वे इस धमकी के साथ फोड़ते हैं:-
ख़बरदार जो किसी ने यह लेख मेरी पत्नी को फारवर्ड किया। समझ लेना, जिसने फारवर्ड किया उसको इन्डीब्लॉगीज मे जितवा दूंगा, फिर आजीवन ब्लॉग ना लिख पाओगे।
अब ये इंडीब्लागीस क्या चीज है यह जानने के लिये चलना पड़ेगा रतलाम जहां ऐसा सुना जाता है कि जीतेंद्र की बचपन की कोई संक्षिप्त प्रेमिका निवास करती है। रविरतलामी बताते हैं:-
दोस्तों, प्रतिष्ठित चिट्ठा पुरस्कार इंडीब्लॉगीज़ 2006 के लिए सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है. आप बहुत से मामलों में मदद कर सकते हैं, और इस पुरस्कार से सम्बद्ध हो सकते हैं, जैसे-
-आप अपने आप को निर्णायक के रूप में पंजीकृत कर सकते हैं,
-कोई पुरस्कार प्रायोजित कर सकते हैं, या फिर कोई चिट्ठा ही नामांकित कर सकते हैं.
-आप यह भी सुझा सकते हैं कि इस वर्ष किन किन वर्गों में पुरस्कार होने चाहिएँ और किनमें नहीं!
इतना सब सुनते ही शुएब को खुदा याद आ गया और वे अरुणाचल में चीनी उपद्रव के बारे में खुदा से गुफ़्तगू करने लगे। दूसरी तरफ़ राजेश इन्टरनेट एक्सप्लोरर ७.० की खूबियां बताते पाये गये लेकिन रास्ते में आशीष स्पीडब्रेकर की तरह खड़े हो गये और बोले अभी तमाम कमियां हैं इसमें। इसी अफरा-तफरी में रविरतलामी ने रचनाकार के पोडियम पर खड़े होकर कुसुम लता त्यागी की कविता सुना दी:-
:-
फूलों पर भौंरे गूंजे हैं ,
गुन गुन गुन ओहो गुन गुन गुन
ओंकार की सुन्दर की गूंजें हैं ,
सुन सुन सुन ओहो तू भी तो सुन
यह उल्लासपूर्ण कविता सुनकर बेजी ने अपनी कठपुतलियों को बहकने से बचाने के लिये नियंत्रण में रहने का संदेश देते लिखा:-
नियमों के हिसाब से निरिक्षण होगा......
खुदा तेरे असर को कुछ कम करना होगा......!!
स्पर्श को मन छूने की अनुमति न होगी...
आँसू में दिल पिघला सकने की गर्मी ना होगी....
स्नेह की अलग कोई अनूभूति न होगी......
प्रेम को अरमानों की संगती न होगी....
तारों को भी कतारों में चमकना होगा...
नादानियों को भी सब समझना होगा...
नीरज दीवान के विचारोत्तेजक लेख को पढ़ने के बाद पंकज बेंगानी कन्फ्यूज हो गये और बोले ये तो बताऒ कि हम क्या करें! लेकिन नहीं वे कुछ और कह रहे हैं भाई:-
सिर्फ विरोध करने से बात नही बनती। हम खुद क्या नेताओं से कम हैं जो सिर्फ भाषण देना जानते हैं। हम करते क्या हैं, समाज के लिए? कुछ नहीं।
पहले खुद तो कुछ करें। पूंजीपतियों की कारस्तानीयों, सरकार की नाकामीयों, वामपंथियों की नितियों, दक्षिणपंथीयों की फुलझडियों से निबट सकते हैं, पर क्यों ना हम यह सोचें की सार्थक क्या कर सकते हैं?
एक अनपढ को पढा नहीं सकते क्या हम? कम से कम अपनी सोसाइटी में पानी के अपव्यय को रोक नहीं सकते क्या हम? मार्ग में थुकने वाले को, कचरा फैलाने वाले को रोक नहीं सकते हम? पत्थर हटा नहीं सकते हम?
पहले खुद तो कुछ करें........
इस बीच अमित ने एक कथा सुनाकर पूछा है कि बूझो तो जाने दोषी कौन है! कुछ लोग अटकलें लगा चुके हैं लेकिन अभी तक पहेली परिणाम बताया नहीं गया है। उधर अवधिया जी में आज सूर्य देव की महिमा का वर्णन कर रहे हैं।
बेंगाणी बंधुओं और तमाम मित्रों द्वारा संचालित तरकश के आजके मुख्य आकर्षण हैं:- संजय बेंगाणी की लघुकथा बस नहीं आएगी
-रवि कामदार द्वारा की गयी नयी फिल्म की समीक्षाअपना सपना Money Money
-क्या घरेलु हिंसा विरोधी कानून से महिलाओं को सुरक्षा मिलेगी? एक सर्वेक्षण
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इसके अलावा संजय बेंगाणी ने स्पाइडर्मैन के बदले मिजाज और पोशाक के बारे में बताया है।
इधर जब हम तरकश के बारे में बता रहे थे कि इसी बीच हमें नितिन कोठारी ने ऐसे कम्प्यूटर के बारे में बताया जो अपने आप चलता है:-
यह केवल तीन चरणों का कार्य है, रिकार्ड करों, सेव करो, और प्ले करो। इस तरह आप अपने कम्प्यूटर पर करने वाले नियमित कार्यों को स्वचालित करवा सकते है बस उन्हें एक बार रिकार्ड करना होता है, चाहे जितनी बार फिर उसे प्ले किया जा सकता है।
इसके द्वारा आप उन कार्यों को रिकार्ड कर सकते हैं जो आपको अपने पीसी पर बार - बार करने पड़ते है जो समय बर्बाद करते है तथा अधिक स्टेप वाले होते है.
Easy Macro Recorder आपके कम्प्यूटर के की बोर्ड एवं माउस के क्रियाकलापों को एक मेक्रों फाइल में सेव करके रखता है, तथा आवश्यकता पड़ने पर उसे कितनी ही बार और किसी भी समय प्ले कर सकता है।
इधर हम कंप्यूटर में आगे जा रहे हैं और उधर सर्कस जैसे पुराने मनोरंजन के साधन लुप्त होते जा रहे हैं यह चिंता है दिल्ली वालों की:-
सूचना क्रांति के इस दौर ने भले ही विकास के नए आयाम दिखाए हैं लेकिन सर्कस उद्योग पर इसकी गहरी मार पड़ी है और मनोरंजन के इस बरसों पुराने आकर्षण का भविष्य अंधकारमय है.
एक समय था जब सर्कस का दल किसी शहर में पहुंचता था तो शहर में धूम मच जाती थी. आज यह सब सपने जैसा लगता है क्योंकि अब तो सर्कस का मेला कब लग कर चला जाता है किसी को पता ही नहीं चलता.
क्षितिज भारत और जर्मन के सांस्कृतिक मतभेद के बारे में कुछ जानकारी देते हुये कहते हैं:-
भारत और अन्य देशों के बीच कई सांस्कृतिक मतभेद हैं। ऐसे कई मतभेद तब सामने आते हैं जब दो अलग देशों के लोग आपस में मिल कर समय बिताते हैं। पर इन मतभेदों को आपसी सहयोग से दूर किया जा सकता है या कम से कम एक दूसरे के विचार आपस मेैं बता कर कोई साझा समझौते पर पहुंचा जा सकता है।
यह सब तो हो चुका था और हम चिट्ठाचर्चा को नमस्ते करने वाले थे कि उड़नतश्तरी पर सवार समीरलाल अपनी समस्या लेकर हाजिर हो गये बोले इसे भी लिखो। मधुमेह समस्या के बारे में बताते हुये वे लिखते हैं:-
“ आजकल तो मधुमेह का फैशन है, यहाँ पर। मुझे तो जब नहीं था, तब ही मैने क्लब में बता रखा था कि मुझे है, ताकि मैं कहीं ऑड-मेन-आऊट न हो जाऊँ। मैं तो तभी से लो-केलोरी डाइट और शूगर फ्री चाय अपने लिये आर्डर करती थी।“
“इसके कई फायदे हैं-आप किसी के घर जायें तो भी आपकी अलग से खातिर की जाती है। चाय अलग से बन कर आती है। आपको यह राजसी रोग है, यही आपको सोसाईटी में ऊँचा स्थान दिलाता है और साथ ही अगर रक्तचाप भी हो, तो क्या कहने, सोने में सुहागा” उन्होंने अपनी बात आगे जारी रखते हुए, एक आँख हल्की सी दबाते हुए, कहा, “ आप अभी भारत से नये आये हैं, थोड़ा समय लगेगा फिर यहाँ पर भारतीय समाज के भी चाल चलन समझ जायेंगे।“
इतना सब तो हंसी-खुशी निपटा लेकिन चलते-चलते उन्होंने अपना रोना भी रो दिया:-
यह कैसा भारत के भारतियों से ज्यादा भारतीय समाज है, जो १४ नवम्बर को विश्व मधुमेह दिवस तो मनाता है, मगर नेहरु जी के जन्म दिन-बाल दिवस भूल जाता है।
इसके पहले नितिन बागला भी मधुमेह के बारे में बता चुके हैं:-
ज्यादा चिन्ता की बात ये है, कि शिकार होने वाला एक बडा हिस्सा बच्चों/किशोरों का है, वो तबका जो आज भारत की सबसे बडी पूंजी है, जिसके दम पर हम महाशक्ति बनने का सपना देख रहे हैं, क्योंकि २०२५ तक हमारे पास दुनिया के सबसे ज्यादा जवान लोग होंगे, पर अगर ये जवान मोटापा और मधुमेह जैसी बीमारियों के शिकार हुए तो ?
२-३ साल पहले , कोचिंग इंस्टिट्यूट में हमारे गुरूजी ने एक बात कही थी, सार कुछ इस तरह से था…आने वाले १० साल में भारत की युवा पीढी के लिये तीन चीजें सबसे बडा खतरा होंगी एड्स, मधुमेह और गुटखा/तम्बाकू । आप क्या सोंचते हैं इस बारे में?
लेकिन इन सब खबरों से आप परेशान न हों आप अपना दिन राकेश खंडेलवाल जी की इस कविता को गुनगुनाती हुये शुरु करें:-
झाड़ियों से उगी जुगनुओं की चमक
मुट्ठियों से गगन की पिघलता धनक
थे अजन्ता के सपने लिये साथ में
चित्र धुन्धला भी लेकिन उभर न सका
शंख का नाद भागीरथी तीर से
गूँज कर बांसुरी को बुलाता रहा
कुंज वॄन्दावनी रास की आस में
पथ पे नजरें बिछा कसमसाता रहा
तार वीणा के सारंगियों से रहे
पूछते, रागिनी की कहां है दिशा
भैरवी के सुरों की प्रतीक्षित रही
अपने पहले प्रहर में खड़ी हो निशा
आज की टिप्पणी:-
१.आधा किलो जलेबी खायें फिर मधुमेह दिवस मन जाये
क्या हासिल हो पाता है यदि बाल दिवस को कोई मनाये
केक पेस्ट्री, चाकलेट या हलवाई की सजी दुकानें
इसी बहाने एक बार फिर कोइ तो त्यौहार मनायें
राकेश खंडेलवाल
आज की फोटो
आज की फोटो जीतेंन्द्र के ब्लाग फोटो दर्पण से
हाथी का बच्चा
मोर्निंग टी समान चर्चा पढ़ संतुष्टि हुई. कल व्यस्तता की वजह से एक भी चिट्ठा पढ़ने का अवसर नहीं मिला, आज सबका सार पढ़ कर उसकी कमी पुरी करने की कोशिश की है.
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