किसी ने कहा नहीं चिठ्ठा चर्चा करने को पर नारद पर किसी वजह से रात से चिठ्ठे नहीं दिख पा रहे थे सो चिठ्ठा चर्चा में अनूप जी उनकी चर्चा नहीं कर पाए तो मैने सोचा क्यों ना आज मैं भी एक बार सबके गले पड़ लूं, ज्यादा सर चढ़ाया ना अब भुगतो
अब अपने लायक तो कुछ बचा नही है चर्चा करने को।
अतः आज के लिये नमस्कार!
अनौपचारिक जबरिया चिठ्ठा के बाद चर्चाकार को मिलने वाली आकस्मिक छुट्टी कुछ वैसी ही अनुभूत हुयी होगी जैसी कि प्राविधिक शिक्षण संस्थान के दिनों में अनायास ही होने वाली जबरिया और आकस्मिक सामूहिक छुट्टी - जब छात्र-गण सामूहिक रूप से कक्षाओं का बहिष्कार कर देते थे और जिन छात्रों को इसका पूर्वानुमान नहीं होता था (विशेषकर स्थानीय छात्रों को) तो उन्हें तो इसका संज्ञान और आनन्द संस्थान में आने के बाद ही होता था। (अब मोबाइल के प्रचलन से सम्भवत: यह आकस्मिक आनन्दानुभूति न होती हो)
जवाब देंहटाएंसंयोगवश ऐसा अतुल के लिये नियत दिन हुआ और मैं यह समझता हूँ कि अतुल को ऐसी छुट्टी (संस्थान में प्रचलित कूट शब्द GF) का पूर्वानुभव भी अवश्य हुआ होगा!
धन्यवाद नाहर भाई!
अगर ऐसी बात हैं तो मध्यान्ह चर्चा पर भी पुनर्विचार करना होगा, हालाकि यह नियमीत नहीं है.
जवाब देंहटाएंसबकी अपनी स्टाइल है, इसलिए 'छटक' जाने की कोशीष मत किजीये और लिखीये.