गुज्जु काका : शुं छे? मजा मां?
मैं: अरे काका, किधर चले गए थे आप?
गुज्जु काका : यु.एस. और कहाँ! गुजराती नो एक पग यहाँ ने दुसरा पग ...... सी.....धा....... यु.एस.।
मैं: ह्म्म.. बराबर है। समझ गया। हो आए।
गुज्जु काका : तो पछी शुं! मज्जा नी लाइफ छे।
मैं : ठीक है भाई, हम तो यहीं अच्छे।
गुज्जु काका : कुछ चर्चा वर्चा करी क्या?
मैं: मूड नहीं था।
गुज्जु काका : ओये.... वल्गर बात।
मैं: क्या वल्गर?
गुज्जु काका : मूड्स...
मैं: मैने... यह एक्स्ट्रा स्स्स्स नहीं लगाया ओके! उमर का लियाज करो ना काका।
गुज्जु काका : उर्मीबेन ने कुछ लिखा क्या?
मैं: क्यों, बहुत याद आ रही है?
गुज्जु काका : ही ही ही ही।
मैं: बेशर्म होते जा रहे हो आप। चलो देखते हैं... कुछ तो होगा ही... वही एक सक्रीय है।
लो देख लो है ना...अरे बाप रे इस बार तो मुक्तक लेकर आई हैं:
રે થાક્યું મન,
અટક હવે!
લે, લઇ લે ચરણ
મારા, દઉં છું
હું દાન તને!
*
બોલાઇ ગયુ
કૈંક, પણ શેં
પાછું ખેંચી શકું હું?!
લાવ, બીજો
કો’શબ્દ ઉમેરું!
रे थके मन,
रूक अब
ले ले ले इसे
मैरे, देती हुँ
दान
तुझे
कह दिया
कुछ, पर क्या
ले सकती हुँ फिर से
ला कुछ
और
शब्द मिलाऊँ
गुज्जु काका : खाश पता नहीं चला।
मै: काका वो तो समझ समझ का फेर है।
गुज्जु काका : एम? छोड बीजु क्या है?
मै: उर्मीजी, प्रेम के विषय में भी बता रही हैं।
गुज्जु काका: मन्ने उसमें इंटरेस्ट छे।
मैं : पता है मुझे, देखिए वो एक दोहा पोस्ट करते हुए कहती हैं
નેહ નિભાવન હય કઠન,સબસે નીભવત નાહ,ચઢવો મોમ તુરંગ પે,ચલવો પાવક માંહ.नेह निभावन है कठनसबसे निभवत नाहचढवो मोम तुरंग पेचलवो पावक माहंअर्थात प्रित निभानी कठीन है और हर कोई इसे निभा नही सकता। यह ऐसा ही है जैसेगुज्जु काका: ऐसी बात है?
मोम के घोडे पर बैठकर आग से निकलना हो।
मै: बिल्कुल ऐसी ही बात है, पर आप क्यों उदास हो गए?
गुज्जु काका: रेवा दे। आगे चल।
मै: मोरपिच्छ में दलपत चौहान की बडी प्यारी कविता है:
સોનાની સેરોથી સૂરજને લીંપો ને
કાજળની દાબડી અમારી.
આપ્યાં રે ગીત રીત ફાગણનાં તમને,
પાનખરની પ્રીતડી અમારી
सोने के रेशों से सुरज को मढ लो,
काजल की शीशी हमारी,
दिए रे गीत तुझे फागुन के मैने,
पतझड की प्रित हमारी
गुज्जु काका: बहुत प्यार व्यार नी वात थई गई, कुछ और नही है।
मै: ह्म्म्म, चलिए देखते हैं, वाह... देखिए तो...अमीझरणुं में भीखुभाई "नादान" की क्या मस्त कविता है:
કહો આ આપણા સંબંધની ના કઇ રીતે કહેશો ?કે મારે ત્યાંથી નીકળી આપને ત્યાં જાય
છે રસ્તો.
જતો’તો એમને ત્યાં, એ રીતે સામા મળ્યાં તેઓ,પૂછીપૂછીને પુછાયું કે આ
ક્યાં જાય છે રસ્તો.
कहो तो अपने संबन्ध की ना कैसे कहोगे
कि मेरे यहाँ से निकलकर आपके पास जाता है रास्ता
जा रहा था उनके यहाँ, कि वो युँ सामने मिले,
रह रह कर भी पूछ ही लिया कि कहाँ जाता है यह रास्ता।
गुज्जु काका: पंकज!!!!
मै: जी, काका।
गुज्जु काका: प्यार मोहब्बत प्यार मोहब्बत प्यार मोहब्बत। कुछ और नहीं है क्या...?
मै: अब मैं क्या करुं काका? चलो देखते हैं.... वैसे आपको हुआ क्या है?
गुज्जु काका: अपना काम करो ना....
मै: ह्म्म... भई ठीक है.. देखते हैं.... अंतर नी वाणी में रामकृष्ण परमहंस के द्वारा रचित एक भजन है।
गुज्जु काका: तो लिखो ना...
मै: ना.. जाकर ही पढ लो..
गुज्जु काका: ऐसा क्या है?
मै: वो... प्या...मोह... वही है!
गुज्जु काका: नह्ह्ह्ही.. नहीं... आगे चल दिकरा आगे चल।
मै: कार्तिक भाई गुजराती ब्लोगर मीट करवाना चाहते हैं हिन्दी ब्लोगर मीट की तरह।
गुज्जु काका: यह तो सारुं आइडिया छे। क्यारे करे छे।
मैं: अभी डिसायड नही है।
गुज्जु काका: हम्म... हो तो अच्छा है।
मै: चलो छोडो, काका वैसे आज हुआ क्या है?
गुज्जु काका: काकी की याद आवे छे। एने यु.एस. मुकी आव्यो छुं (उसे यु.एस. छोडकर आया हुँ)
मै: अरे रे। चलो यह कहो अमेरीका से मैरे लिए क्या लाए?
गुज्जु काका: छे ने! आ जो खमण ने ढोकळा। (है ना.. यह देखो खमण ढोकळा)
मै: वाह अमेरीका में यह भी मिलता है?
गुज्जु काका: तो क्या, चाखी ने जो।(चख कर देख)
मैने एक टुकडा मुँह में लिया।
गुज्जु काका: केवु छे? (कैसा है)
मै: अच्छा है काका पर.........
गुज्जु काका: पर क्या?
मै: देश की मिट्टी की खुश्बु तो कहाँ से आएगी
How do you get time to write so much ? Really great !
जवाब देंहटाएंPankajbhai, bahot khub.... tamara kaka ekdam majana maanas laage chhe!
जवाब देंहटाएंसुरेशजी,
जवाब देंहटाएंयह निजी शौख की बात है। निकालिए तो आपके पास समय निकल आता है पर ना निकालें तो आप अतिव्यस्त हैं। यह सही है कि ऐसी चर्चा करने में मुझे बहुत समय लगाना पडता है, पर मै तो कुछ भी नही करता। अन्य चर्चाकार तो मुझसे भी लम्बा लिखते हैं और मुझसे कई गुना अच्छा लिखते हैं, वो भी नियमित। मुझमें इतना सामर्थ्य नहीं है।
उर्मीजी, आपका बहुत धन्यवाद
सुंदर वार्तालाप !
जवाब देंहटाएंबढिया है !
पंकजभाइ , आपके गुज्जु काका तो भै लाजवाब है ! बहोत खुब ! भै हमारी और से उनको प्रणाम कहीये गा !
गुज्जु काका सही मिलें हैं आपको-लगे रहो, बढ़ियां जोड़ी जमीं हैं. थोड़ा सम्भालना उनको, हल्के से फिसलू नजर आते हैं.:)
जवाब देंहटाएं-वैसे गुजराती चिट्ठों की चर्चा के उतकृष्ट कार्य के लिये आप बधाई के पात्र हैं.
धन्यवाद अमितभाई,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद लालाजी,
हाँ मैरे काका मेरी तरफ थोडे फिसलु टाइप के हैं। क्या करें निभाना तो पडेगा
Your Gujju Kaka reminds me 'Tarak Mehta's Champak kaka'.
जवाब देंहटाएंReally enjoying this reading...
Thank you Pankajbhai..!!