प्रातकाल उठि के फुरसतिया । खोल लिहिन्ह आपनि चौपतिया।।
चिट्ठन-चिट्ठ्न नजर घुमाई । स्वाचन लाग लिखौं का भाई ।।
उड़न तस्तरी गति सबका भाई। तारीफ़ करिन सब कहिन बधाई।
कल संजय बढिया हाथ बटाइन। आधा काम दुपहरियै निपटाइन।।
सब जन ऐसेइ लगे रहत हैं। काम विकट सब सरल करत हैं।
पढ़ि-पढ़ि सबजन मुदित-मगन हैं। या ये हमरे मन के भरम हैं।।
यहिका नहिं कछु उत्तर पावा। जितना सोचा मन उतना भरमाया।।
अब आगे की बातैं करिबे। सब ब्लागन की कथा सुनैबे।।
जितने आये उनकी चर्चा। यहिमा कौन लगत है खर्चा।।
सब जन ब्लाग लिखौ अब भाई। आगे चर्चा फिर अतुल से कराई।।
इधर-उधर सब घूमि के देख लिया हम आज,
चर्चा अब शुरू कर रहा लाज रखो गिरिराज।
आज का खास आकर्षण है रविरतलामी द्वारा हिंदी में रूपांतरित जगदीप डांगी इंटरव्यू। जगदीप डांगी मध्यप्रदेश के एक छोटे से कस्बे गंजबासौदा में रहकर हिन्दी सॉफ़्टवेयर विकास में महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। जगदीश डांगी ने अपने बारे में जानकारी देते हुये बताया:-
बी.ई. करने के बाद मैं अपने स्वयं के प्रोजेक्ट 'भाषा-सेतु' पर कार्य करने में जुट गया और लगभग चार वर्षों के अथक परिश्रम से इसे पूर्ण करने में काफी हद तक सफलता भी प्राप्त की। 'भाषा-सेतु' प्रोजेक्ट एक बहुभाषी प्रोजेक्ट है इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य विभिन्न भाषाओं को कम्प्यूटर पर एक दूसरे से जोड़ना है, यह प्रोजेक्ट हमारे देश में सॉफ़्टवेयर के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान देने के साथ साथ हमारे देश का काफी रुपया भी बचा सकता है जो कि हमारी सरकार दूसरे देशों से सॉफ़्टवेयर/तकनीकी खरीदने में खर्च करती है।यह प्रोजेक्ट ग्रामीण भारत में कम्प्यूटर व इंटरनेट के इस्तेमाल व सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कार्य साबित हो सकता है जहाँ पर लोग कम्प्यूटर का उपयोग अपनी स्वयं की ही भाषा में सहजता से करना चाहते हैं। इस प्रोजेक्ट के तहत निम्नलिखित हिंदी सॉफ़्टवेयर हैं:-
1- हिंदी एक्सप्लोरर :: आई-ब्राउज़र++
2- अंग्रेज़ी से हिंदी व हिंदी से अंग्रेज़ी :: शब्दकोश
3- ग्लोबल वर्ड ट्राँसलेटर ( अंग्रेज़ी से हिंदी ) :: अनुवादक
यशोदा एरन की तैलरंगों से बनी कलाकृति
अपने महत्वाकांक्षी काम भाषा सेतु में अभी तक हुये काम और प्रगति की जानकारी देते हुये जगदीश डांगी कहते हैं:-
'भाषा-सेतु' प्रोजेक्ट के तहत हिंदी सॉफ़्टवेयर का निर्माण कार्य लगभग पूरा किया जा चुका है। अब मैं इन हिंदी सॉफ़्टवेयर को लॉन्च करने हेतु एक उचित प्लेटफार्म की तलाश में हूँ। जहाँ से यह हमारे देश के प्रत्येक हिंदी प्रेमी कम्प्यूटर उपयोक्ता तक पहुँच सके। इसी सिलसिले में पिछले साल अपने हिंदी सॉफ़्टवेयर का प्रदर्शन भारत सरकार के सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय नई दिल्ली में किया था। वहाँ पर मौजूद विभिन्न वैज्ञानिकों व इंजीनियरों ने मेरे कार्य की प्रशंसा करते हुए इन सॉफ़्टवेयर के परीक्षण संस्करणों को टीडीआइएल वेबसाइट पर जारी किये। इससे मुझे देश व विदेश से कई लोगों से अच्छी प्रतिक्रियाएँ व सुझाव मिले और आगे अपने कार्य को जारी रखते हुए और आगे बढ़ाया। और अब यह लॉन्च होने के इंतजार में है। आज हमारा देश दुनिया की सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र व सॉफ़्टवेयर के विकास में अग्रणी भूमिका में है। मेरी अपनी पूरी कोशिश यही है कि यह हिंदी सॉफ़्टवेयर जल्द से जल्द हमारे देश के ग्रामीण लोगों तक पहुँच कर उन्हें इस सूचना प्रौद्योगिकी के क्रांतिकारी दौर में इसका लाभ पहुँचा सके। वर्तमान में 'भाषा-सेतु' प्रोजेक्ट के तहत फिलहाल संपूर्ण पृष्ठ अनुवाद हेतु प्रोग्राम को बनाने में लगा हुआ हूँ। और इस कार्य में कुछ हद तक सफल भी हुआ हूँ। बस अंग्रेज़ी व्याकरण दृष्टि से जटिल वाक्यों का अनुवाद करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। पर उम्मीद है इसे आने वाले समय में पूरा करने में सफल रहूँगा। आगे मैं अपने उक्त हिंदी सॉफ़्टवेयर को अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में विकसित करने की योजना में हूँ। पर इसके लिए मुझे उक्त क्षेत्रीय भाषाओं के जानकार व्यक्तियों की आवश्यकता है, अगर इस सिलसिले में कोई भी व्यक्ति मेरी सहायता करना चाहें तो मैं उनका आभारी रहूँगा।
इंटरव्यू के साथ-साथ रचनाकार पर रविरतलामी ने डॉ. कान्ति प्रकाश त्यागी की मजाहिया बीबी(कविता) को पेश किया है इसमें आत्महत्या के इरादे से खिड़की पर बैठी पत्नी के लिये उसका बहुत प्यार करने वाला पति कहता है:-
बस आपकी जरा थोड़ी सी मदद चाहिए
वह बहुत देर से प्रयत्न कर रही है ,
उस से खिड़की नहीं खुल रही है
कृपया आप, खिड़की खोल दीजिये ,
इस पुण्य कार्य में उसकी मदद कीजिये
एक तरफ़ मजाक की बातें हो रही हैं वहीं दूसरी तरफ़ से डा. रमाद्विवेदी अपनी पीड़ा बयान कर रही हैं:-
गीली-सुलगती लकडी सी यह रात भी जल गई,
रात से सुबह हुई फिर शाम में वो ढल गई।
जल रहा है तन-बदन प्रिय को जरा बतलाओ तुम॥
इस विरह की अग्नि में देखो दिवाकर जल गया,
चांद झुलसा,श्वेत बादल आज काला पड गया।
कर रहा पीऊ-पीऊ पपीहा स्वाति-घन बरसाओ तुम॥
नागफनी
वेदना की बात सुनकर कम्प्यूटर कद्दू में घुस गया और कठपुतलियां कहने लगीं:-
मोमबत्ती नहीं
जलूँ...
पिघलूँ....
खोना हस्ती मुझे....
गँवारा नही
इधर जीतेंद्र का जुगाड़ चल रहा है उधर अवधिया जी ने आगे महाभारत कथा कहना जारी रखा और आज बताया कि किस तरह बैकुण्ठ के द्वार पर जय और विजय नाम के दो द्वारपाल को सनकादिक ऋषियों ने क्रुद्ध शाप दिया:-
इससे ये लगता है कि पुराने जमाने में ऋषि-मुनि कितने गुस्सैल होते थे कि जरा-जरा सी बात पर शाप दे दिया करते थे।
"भगवान विष्णु के समीप रहने के बाद भी तुम लोगों में अहंकार आ गया है और अहंकारी का वास बैकुण्ठ में नहीं हो सकता। इसलिये हम तुम्हें शाप देते हैं कि तुम लोग पापयोनि में जाओ और अपने पाप का फल भुगतो।"
हम इतनी चर्चा करके अपनी दुकान पर ताला लगाने ही वाले थे कि मनीष बोले चलो जरा पचमढ़ी तक घुमा लायें तो भैया पचमढ़ी यात्रा भी हो गयी। वहां एक तरफ़ ऊबड़-खाबड़ सड़कें दिखीं तो भवानी प्रसाद मिश्र की कविता भी याद आई :-
झाड़ ऊँचे और नीचे
चुप खड़े हैं आँख मींचे
घास चुप है, काश चुप है
मूक साल, पलाश चुप है
बन सके तो धँसों इनमें
धँस ना पाती हवा जिनमें
सतपुड़ा के घने जंगल
नींद में डूबे हुए से
डूबते अनमने जंगल
आज की टिप्पणी:-
१. अट्टालिका पर एक रमणी अनमनी सी है अहो
किस वेदना के भार से संतप्त हो देवी कहो
धीरज धरो स्म्सार मेम किसके नहीं दुर्दिन फिरे
हे राम अब रक्षा करो, अबला न खिड़की से गिर
राकेश खंडेलवाल
2.लालाजी,
इन खादीधारीयों और खाकीधारीयों के उपर ना जाने कितने व्यंग्य और लेख लिखे जा चुके हैं और लिखे जा रहें हैं।
कईओं ने तो नेताओं और खाकी योद्धाओं के विषय में पी.एच.डी. भी कर रखी है। पर वस्तुतः हम यह भूलने लग जाते हैं कि आखिर हम खुद अपने कर्तव्यों का कितना पालन करते हैं?
राह चलते समय सामने पडे पत्थर को उठाकर किनारे कर देने की जहमत कितने उठाते हैं?
पंकज बेंगाणी
३.दुई पाटन के बीच में
बाकी बचा न कोय
घुन सारे तो अब बच निकले
गेहूँ पिस चटनी होय
गेहूँ पिस चटनी होय
यही है व्यथा हमारी
आम इक भारतवासी की
कुल कथा यह सारी।
रत्ना
आज की फोटो:-
आज की फोटो तरुण की अंखियों के झरोखे से
हैवोलीन
लगता है अब चौपाई मास्टर आ रहे हैं, बहुत बेहतरीन है.
जवाब देंहटाएंउडन तश्तरी से फैला पद्य रोग महामारी का रूप लेता जा रहा है.
जवाब देंहटाएंब्लागचरितमानस अच्छा है।
जवाब देंहटाएंइससे ये लगता है कि पुराने जमाने में ऋषि-मुनि कितने गुस्सैल होते थे कि जरा-जरा सी बात पर शाप दे दिया करते थे।
जवाब देंहटाएंयह तो कुछ भी नहीं, महर्षि दुर्वासा के बारे में नहीं पढ़ा/सुना? वो तो इससे भी अधिक गुस्सैल थे, बात बात पर भयंकर शाप देते थे!! ;)
ऐसन रुत चर्चा की आई! सब कविता में बोलें भाई
जवाब देंहटाएंकुण्डली हुईं,हुई चौपाई ! हम अब भुट्टे भूनें भाई