सबसे पहले तो पंकज बेंगानी को जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं। पंकज तोहरे जन्मदिन पर आधा बिहार तुम्हारे नाम,रंगदारों से वसूल सको तो वसूल लो।
तारीख: २५ नवम्बर, दिन शनिवार, मौसम : ठन्डा हवाए: मध्यम, तापमान :.....
अरे..इ तो हमऊं, मौसम वाला चैनल जैसा बोल दिया, सॉरी...गलती से मिस्टेक हो गया। पहला चिट्ठा रहा, उन्मुक्त का, पूछे रहे, कुछ लेते काहे नही, अरे उन्मुक्तवा, बहुत कुछ लिए रहे, लेकिन इ बिल्लुवा की खिड़की से झांकने की लत लग गई है रे.. उन्मुक्त कुछ गिटिर पिटिर कर रहे है:
क्या आप कंप्यूटर वायरस से परेशान हैं? हाँ
क्या आप विन्डोस़ के बढ़ते दाम से से परेशान हैं? हाँ
क्या आप चोरी किया गया सॉफ्टवेर नहीं प्रयोग करना चाहते? हाँ भई हाँ
तो कुछ करते क्यों नहीं। : ‘क्या करूं’ :-(
कंप्यूटर पर लिनेक्स का प्रयोग क्यों नहीं करते :-)
साथ ही एक दूसरे लेख मे बहुत सुन्दर बात कह गए है:
बड़े व्यक्तियों का पहला गुण – यदि वे गलत हैं, तो स्वीकार करने में कभी नहीं हिचकते।
उधर अफ़्रीका से भावना बहन जी, एक सुन्दर कविता कह रही है:
फुरसत से घर में आना तुम
और आके फिर ना जाना तुम
मन तितली बनकर डोल रहा
बन फूल वहीं बस जाना तुम ।
इ का बहन जी, इ कविता मेहमानों को मत सुनाना, बे-वजह आएंगें और लम्बा टिक जाएंगे। हम इन्डिया मे बहुत झेल चुका हूँ। तभंई तो कुवैत मे हूँ, इयाँह सबको बुलाते है, कौनो नही आता लेकिन ऊ दिल्ली मे हमरा घर तो बिहार हाउस की तरह हुई गवा रहा।
आज की सबसे बिन्दास पोस्ट है ईस्वामी की अमरीकी आभार दिवस (Thanksgivingday) पर। ईस्वामी लिखते है:
इतिहास गवाह है की गोरे बडे ही विनम्र और एहसानमंद टाईप के लोग होते हैं - पहले स्वागत करने पर आभार जताते हैं फ़िर जिसके प्रति आभारी होते हैं उसकी जान लेकर एहसान चुकता कर देते हैं.
अमरीका के मूल निवासियों की वाट सबसे पहले स्पेन के निवासियों ने लगाई. भारत में गोरा बोले तो अंग्रेज होता है लेकिन मैं यहां यूरोप के सभी सफ़ेद नस्ल के लोगों की बात कर रहा हूं. १४९२ से १५५० के बीच गोरों नें दसियों लाख मूल अमरीकी निवासियों जिन्हें अंग्रेज और अब देसी भी “रेड इंडियन्स” के नाम से जानते हैं, का तकरीबन समूल विनाश ही कर दिया.
पूरा लेख पढिए, काफ़ी विचारोत्तेजक लेख है, फिर स्वामी की बेलगाम लेखनी ने इस लेख को अमर बना दिया है।
पंकज बेंगानी के जन्मदिन पर उड़नतश्तरी वाले समीर लाल ने पंकज का इन्टरव्यू ले डाला, आप भी पढिए।
रवि रतलामी जीरो बेस्ड सिस्टम के बारे मे बतला रहे है, इ तो अपने लालू बहुत दिनो से कह रहे थे। मनीष अपने ब्लॉग पर बात कर रहे है, नए गज़ल एलबम "कोई बात चले" की। जरुर पढिएगा। देबाशीष इस हफ़्ते के जुगाड बता रहे है। प्रतीक बता रहे है कि फायरफाक्स ब्राउजर पर पासवर्ड मत संचित करो। प्रभाकर भोजपुरी कहावते सुना रहे है। उधर मिसिर विन्डोज लाइव का परीक्षण कर रहे है। साथ ही दुकान लगाए हुए है, पूछ रहे है बोलो जी तुम क्या क्या खरीदोगे? देसी टून्स देखिए। जिया कुरैशी से छत्तीसगढ के समाचार सुनिए।
उधर भुवनेश परेशान है पूछते है क्या लिखें? शुकुल से उन्होने यही सवाल किया तो सुकुल उनको बोले, यही लिखो कि क्या लिखें। सुकुल तो आइडिया बता कर टरक लिए, अब आप ही इन्ही समस्या का समाधान करो। नितिन हिन्दी चिट्ठाकारों के लिए कोई स्कीम लाने वाले है, देखिएगा जरुर। रमा जी की बाल श्रमिकों के शोषण का यथार्थ चित्रित करती हुई कविता 'पत्थर से गम सहते है। देखना मत भूलिएगा।
जगदीश भाटिया जी विरह के सुल्तान "शिव कुमार बटालवी" के बारे मे बता रहे है,एक कलाम नोश फरमाएं:
की पुछदे ओ हाल फकीरां दा
साडा नदियों विछड़े नीरां दा
साडा हंज दी जूने आयां दा
साडा दिल जलयां दिल्गीरां दा.
आज का फोटो : पंकज बेंगानी की फोटो, समीर लाल के ब्लॉग से, ऊपर देखिए।
आज की टिप्पणी: श्रीश द्वारा, मिसिर के ब्लॉग पर
अगर ऊपर दिखाया सब कुछ खरीद लिए हो तो थोड़ा इधर भी भिजवा देना।
पिछले वर्ष इसी सप्ताह : चुटकुलों की बहार, इच्छा मन मे है और पुस्तकें।
अच्छा तो अब चलता हूँ, कोई कमी बेसी रह गयी हो तो चिठिया, पत्र, तार द्वारा सूचित किया जाए। ईमेल द्वारा ना गिटपिटाया जाए।
भैये चिट्ठाचर्चा में जो है तुम्हारा भी स्वागत करते है. हमका अच्छा लगा तोहार इसटाइल.
जवाब देंहटाएंसाबास.
पप्पू की चर्चा देख के यही बात सच लग रही है कि चौधरी के अखाडे़ का लतमरुआ भी पहलवान होता है।
जवाब देंहटाएंपप्पू भी चौधरी साहब की ट्रेनिंग में अच्छा बतियाना सीख लिये हैं, बाह भाई बाह!!
जवाब देंहटाएंवाह भैया पप्पू, बिढया लिखे हो़।
जवाब देंहटाएंलगे रहो