स्वर्णविजेता ने सुबह ही यह सन्देश मुझे दे डाला
कहा कि लिखना मिली बधाई पूरी छप्पन उन्हें विजय की
इतना बड़ा टोकरा, देखें कैसे कैसे गया संभाला
फिर लिख कर भेजा इक चिड़िया उनके गीत सदा गाती है
नहीं चाहती है दिमाग से लेकिन दिल से कह जाती है
यायावर बन सुबह निकलती और शाम तक शब्द बीनती
उन्हें पिरो कर फूलों की गंधों में गीत बना जाती है
बिना शीर्षक चित्र दिख रहे अक्षरधाम तीर्थ के सबको
टूलबाक्स अपना खोले, हैं सागरजी कर रहे मरम्मत
अमित देखते हैं हिन्दी को दुनिया भर की आवाज़ों में
दीपकजी के प्रकॄति द्वंद को रचनाकार लाये हैं झटपट
तरकश से ले तीर चलाते आये है सब युद्धबांकुरे
पर अनुराग चलाते देखो तरकश पर ही तीर साध कर
जोगलिखी पत्री बतलाती लोहे को लोहे से काटो
मैडमजी से मदद मांगते रहा आईना झांक झांक कर
लोकतेज फिर लगे सुनाने वही पुरानी एक कहानी
क्या करते बिग बास और हैं उनके संग में कितनी रानी
इससे बेहतर लोककथा में जो लाये हैं सजा धजा कर
पांडे जी विक्रमादित्य की भोजपुरी यह अमर कहानी
जो लिखते हैं फुरसतियाजी , अब उसके बारे में क्या कहना
दशकों से जिन व्यक्तित्वों का भाषा ने पहना है गहना
उन्हें आज फिर याद दिलाने लिये लेख में सन्मुख आये
पंथ सफ़लता का दिखलाता इसी रंग में रँग कर रहना
चित्र आज का -विजय खुमारी ऐसा भी करवा जाती है
ध्यान कहीं होता है,राहें कहीं और ही ले जाती हैं
मैं चित्र पर ध्यान दे रहा हूँ, राकेश भाई. :)
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