डा बृजेन्द्र अवस्थी
आज जब चर्चा शुरु की जा रही है तो देख रहा हूँ कि बहुत ज्यादा चिट्ठे नहीं है जिन पर चर्चा करनी है. आज सबसे पहले पंकज भाई आये और बताये अरिन्दम भैया की किताबों के बारे में. बड़े परेशान हैं कि बंदा पैसे कहाँ से लाता है इतनी किताबें निकालने को. अब जहाँ से भी लाता हो, हमसे तो मांगे नहीं कि हम हिसाब रखें. हमारे सागर भाई एक दुर्घटना स्थली से बिना पूरी मदद पहुँचाये घर चले आये और अपराध बोध हल्का करने के लिये आपसे सलाह मांग रहे हैं. अति संवेदनशीलता इस तरह के कृत्य करवाती है और इतिहास इसका गवाह है.
राकेश भाई ने आज दो-दो बेहतरीन गीत सुनाये:
पहला तो अपरिचित से परिचय बढ़ाने का प्रयास:
तो अपरिचित ! आओ हम तुम शब्द से परिचय बढ़ायें
कुछ कहो तुम, कुछ कहूँ मैं, साथ मिल कर गीत गायें
और फिर उन्हीं शब्दों को जिनसे परिचय बढ़ा रहे थे, कहते हैं कि शब्द हैं अजनबी. एक ही दिन में सब. अब जाकर फिर ध्यान से पढूंगा कि मसला क्या है.
नारायन जी ने बताया कि मिडिया के लोगों पर आम जनता की धारणा क्या है तो मिडिया युग कहते है कि क्यों है टीवी विश्लेषण की जरुरत.
तो आज के चिट्ठों में इतना ही था. आज सिर्फ़ नारद महाराज उपलब्ध थे तो हिन्दी ब्लाग पर अगर कुछ और हों तो कह नहीं सकता, कुछ तकनिकी दिक्कतों की वजह से वह काम नहीं कर रहा है.भला हो संजय भाई का जो दुपहर में चर्चा कर हमारे नाजुक कंधों से काफी वजन कम कर गये और हमें कुछ और बात करने की जगह मिल गई.
तो चलिये, आज मौका है तो लगे हाथों कुछ मन की बात कर लें:
बहुतेरे चिट्ठों पर देखा है कि लोगों ने किन्हीं वजहों से टिप्पणियाँ करना बंद कर दी या शुरु ही नहीं की, और चिट्ठाकार हतोत्साहित होकर दुकान में ताला टांगकर बैठ गया.
कितनी जरुरी है यह दाद और टिप्पणियाँ..यह हर चिट्ठाकार में उत्साह लाती हैं आगे और बेहतर लिखने का और बेहतर पेश करने का. मै तो मानता हूँ बड़ा से बड़ा चिट्ठाकार भी इंतजार करता है कि किसने क्या कहा उसकी लेखनी पर.
तो क्या यही सच लागू नहीं होता चिट्ठा चर्चा पर भी. कोई जरुरी नहीं कि टिप्पणी में तारीफ ही की जाये. आप अपनी राय रख सकते हैं, सुधार के उपाय बता सकते है, पसंद आये तो वाह वाही कर सकते हैं, कोई बात बुरी लगे तो उस ओर ध्यान इंगित करा सकते हैं.
अभी पिछले हफ्ते यही बात जीतू भाई ने टिप्पणी के माध्य्म से कही थी:
"चिट्ठा चर्चा पर "जबरन टिप्पणी (अ)सुविधा" शुरु की जानी चाहिए, इसके अनुसार:
चिट्ठा चर्चा की प्रत्येक चर्चा पर कम से कम दस टिप्पणी तो होनी ही चाहिए,ये देखना सभी चिट्ठाकारों की ड्यूटी हो। जो बन्दा टिप्पणी ना करे, उसके ब्लॉग की चर्चा महीन अक्षरो मे की जाए।
तो भई इसे कब से शुरु कर रहे हो।"
आज जहाँ तक मैं समझता हूँ चिट्ठाचर्चा पर आने वालों की संख्या किसी भी अन्य हिन्दी के चिट्ठे से ज्यादा है और यदि औसत लगाया जाये तो यहाँ आने वाली टिप्पणियों की संख्या सबसे कम. क्या वजह है इसकी.
कई बार तो आवाजाही गणक की गणना पर ही प्रश्न चिन्ह सा लगाने का मन करता है और एक भी टिप्पणी न देखकर क़ैफ भोपाली का एक शेर याद आ जाता है:
कौन आएगा यहां कोई न आया होगा
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा.
शायद हवाओं के आने जाने को ही गणक लोगों का आना जाना मान गिनती बढ़ा रहा है वरना क्या वजह हो सकती है कि दिन भर में इतने लोग आये और सब मौन, कोई तो मुखर होता. कोई शोक सभा तो चल नहीं रही है कि आओ, दो मिनट मौन धरो, और आत्मा की शांति की दुआ मन ही मन करते निकल लो, कहीं और शादी की पार्टी में.
एक दिन तो राना अकबराबादी का शेर याद आया:
सुनते हैं कि मिल जाती है हर चीज़ दुआ से
एक रोज तुझे मांग के देखेंगे खुदा से.
तो चर्चा करने के पहले नहाये, पूजा पाठ किये, दो मंहगे वाले फूल कम्प्यूटर पर धरे और दुआ की कि आज २० टिप्पणी आयें, और शुरु हो गये लिखना. मगर हासिल, वही शुन्य की संख्या. तीन दिन तक रोज आ आकर देखते रहे, मगर न!! न तो आना था न आई!!
फुरसतिया जी की बात याद आती है:
१.टिप्पणी विहीन ब्लाग विधवा की मांग की तरह सूना दिखता है।
२.अगर आपके ब्लाग पर लोग टिप्पणियां नहीं करते हैं तो यह मानने में कोई बुराई नहीं है कि जनता की समझ का स्तर अभी आपकी समझ के स्तर तक नहीं पहुंचा है। अक्सर समझ के स्तर को उठने या गिरने में लगने वाला समय स्तर के अंतर के समानुपाती होता है।
३.जब आप कोई टिप्पणी करते समय उसे बेवकूफी की बात मानकर ‘करूं न करूं’ की दुविधा जनक हालत में ‘सरल आवर्त गति’ (Simple Hormonic Motion) कर रहेहोते हैं उसी समयावधि में हजारों उससे ज्यादा बेवकूफी की टिप्पणियां दुनिया की तमाम पोस्टों पर चस्पाँ हो जाती हैं।
चलो, हम तो उनकी नं. २ को ही अपना सहारा बना लेंगे लेकिन बकौल अटल बिहारी जी- यह अच्छी बात नहीं!!
अब कोई इन सब बातों का अच्छा बुरा मत मानना. यह बहस का मुद्दा नहीं है बल्कि स्वामी समीरानन्द के ज्ञानसागर से फूटा एक छोटा सा नाला है. मन करे तो डुबकी लगाओ नहीं तो...नहीं तो क्या!! भगवान सबका भला कर ही रहे हैं. :) :)
दो दो स्माईली, अन्यथा न लेने के लिये.
खरी बात कही लालाजी,
जवाब देंहटाएंटिप्पणीयों के अकाल के बीच चिट्ठाचर्चा की हालत तो दरारों वाली बंजर भूमि सी हो रखी है।
फिर भी यह फलद्रुप बनी हुई है तो यह चर्चाकारों का ही कमाल है। चलिए अब इसे टिप्पणीयों से सिंचा जाए।
वाह! महाराज, जब यही बात हमने कही तब आपने कहा था की हमें अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए. सो हम मन मार कर सप्ताह में कम से कम तीन चर्चा तो लिखते ही रहे. और टिप्पणी के नाम पर शुन्य, कभी कभी एक-दो से ही संतुष्ट हो लिए. जबकी अन्य लोगो को चार से पाँच टिप्पणीयाँ मिलती रही. हद तो तब हुई जब किसी ने कहा आज नहीं फिर कभी लिखेंगे और वाह वाह करती टिप्पणीयाँ भर दी गई, उसी दिन धृतराष्ट्र की महेनत को किसी ने देखा तक नहीं.
जवाब देंहटाएंयह बहस का मुद्दा नहीं है बल्कि स्वामी समीरानन्द के ज्ञानसागर से फूटा एक छोटा सा नाला है. मन करे तो डुबकी लगाओ नहीं तो...
जवाब देंहटाएंऔर कोई लगाये ना लगाये, हम तो जरूर डुबकी लगायेंगे :)
चिट्ठा चर्चा पर टिप्पणी ना करना, चिट्ठाकार का अधिकार है, ठीक उसी तरह (किसी चिट्ठे की) चर्चा करना या ना करना, हमारा अधिकार है।
जवाब देंहटाएंमै तो अपने आइडिया को रविवार से लागू कर रहा हूँ, जो हमारी चर्चा पर टिप्पणी नही करेगा, पछताएगा।
(ये हाथ जोड़कर धमकी है, नेताओं वाली)
२ बाते हो सकती है
जवाब देंहटाएं१. जिनके चिठ्ठो चरचा हो वे तो कम से कम तिप्प्णी कज ही सकते है!
२.चुकि चि० चर्चा सयुक्त ब्लोग है इस लिये इसके लिये पहले इसके सभी सदस्यो कि टिप्पणी अनिवार्य होनी चाहिये। जैसा कि हिन्दी युग्म भी सयुक्त ब्लोग है पर इस्के सभी सदस्य कभी तिप्प्णी न्ही करते है! अगर ऐसा किया जये तो आप्ने आप ही तिप्प्णी आने लगेगी
हम भी चिट्ठाचर्चा पढनें के बाद टिप्पणी न करनें के अपराधी हैं,
जवाब देंहटाएंउजाले अपनी टिप्पणियों के हमारे साथ रहने दो,
उसी की रोशनी में तो अगली पोस्ट लिखेंगें |
ये मैनें स्वयं भी अनुभव किया है, जब मैं लोगों को ई-पत्र लिखना बन्द कर देता हूं तो पत्र आने भी बन्द हो जाते हैं.
बोये पेड बबूल का आम कहां से खाय.
तो मेहरबान, साहेबान, कदरदान दिल थाम कर बैठिये क्योंकि मेरे भी मन में विचारों का ज्वार भाटा फूट रहा है. जल्दी ही अपने नियमित ब्लाग के साथ उपस्थित होऊंगा.
हम हाजीरी लगा रहा हूं ! मतलब की टिप्पणी के समर्थन के लिये टिप्पणी कर रहा हूं
जवाब देंहटाएंहम भी क्यू में लग जाते हैं :-)
जवाब देंहटाएंRaviratlami ,Tarun ,उडन तश्तरी jitendra Chaudhary ,राकेश खंडेलवाल
जवाब देंहटाएंगिरिराज जोशी "कविराज" ,Debashish ,
अनूप शुक्ला ,अतुल अरोरा, Tushar Joshi,
Raman Kaul ,संजय बेंगाणी
आप सभी को प्रणाम
चिट्ठा चर्चा अखबार की तरह है। चर्चित है, आवश्यक है, और पसंदीदा भी.... हर महफिल की जान वाहवाहिय़ाँ करने से ही है...पर क्या शाबाशी देने वालों को भी उत्साहित करने की जरूरत है ??
वैसे आप सभी का तरीका अलग और अनोखा है...चर्चा पढ़ना शुरु करते ही चिट्ठाकार का परिचय मिल जाता है...व्यक्तिगत रूप से अनूप शुक्ला जी की चर्चा खास पसंद करती हूँ...चर्चा पढ़कर चिट्ठों की झलक साफ नज़र आती है ।
पत्रकारिता हमेशा से ही जिम्मेदारी का कार्य रहा है...आप सभी परीपक्व और सक्षम है ...इसीलिए मानती हूँ की हिन्दी चिट्ठाकारी का आईना यहीं मिलता रहेगा...।
हम अपना अपराध स्वीकार करते हैं।
जवाब देंहटाएंआईंदा कोशिश रहेगी कि ज्यादा से ज्यादा सिंदूर भरा जाये ओह! मतलब टिप्पणी की जाये। ;)
मैने कई बार टिप्पणी करने की कोशिश की पर Moderation और Word verification के चलते टिप्पणी पास नहीं हुई, सो फ़िर टिप्पनी करना छूट गया। आज देखते हैं कि यह टिप्पनी होती है या नहीं :)
जवाब देंहटाएंबात तो सही है। आगे से ध्यान रखना होगा।
जवाब देंहटाएं-प्रेमलता
वाह ये भी खूब रही! तालीपुराण लिखते-लिखते टिप्पणी पुराण भी लिख मारे! बेजीजी और दूसरे साथियों को शुक्रिया। सच तो यह है कि सबके साझे प्रयास से और पाठ्कों के सहयोग से चिट्ठाचर्चा सफल है। नित नये अंदाज में इसे देखने का मजा ही और है।
जवाब देंहटाएंवाह ये भी खूब रही! तालीपुराण लिखते-लिखते टिप्पणी पुराण भी लिख मारे! बेजीजी और दूसरे साथियों को शुक्रिया। सच तो यह है कि सबके साझे प्रयास से और पाठ्कों के सहयोग से चिट्ठाचर्चा सफल है। नित नये अंदाज में इसे देखने का मजा ही और है।
जवाब देंहटाएंबहुत गुस्से मे दिख रहे हैं , समीर जी,वैसे सही भी कह रहे हैं आप टिप्पणी विहीन ब्लाग बहूत सूना -2 लगता है।
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