आशीष श्रीवास्तव ने लगभग तीन महीने गायब रहने के बाद फिर से लिखना शुरू किया। इस बीच वे अपने घर गये और एक ही दिन में तीन गुरुजनों से मिले। तीनों से मिलने का उनका अंदाज-अलग था। इस बारे में अपनी सोच बताते हैं:-
मेरे मन मे शिक्षक के लिये हमेशा सम्मान रहा है और रहेगा। लेकिन आज मेरा व्यवहार तिनो शिक्षकों के लिये अलग अलग था। एक के मैने पांव छुये, दूसरे से मैने हाथ मिलाये, तीसरे से मैने अभिवादन तक नही किया ! ऐसा भी नही कि ऐसा करने से पहले मैने कुछ सोचा,सब कुछ अपने आप होते गया।क्यों का जवाब आप सोचिये और अपने जवाब का मिलान आशीष की पोस्ट के जवाब से करिये। इसके बाद आशीष ने खाली-पीली के पुरस्कारों के बारे में जानकारी देते हुये पोस्ट लिखी।
कुराहे गुरूदेव ने अपना हाथ मेरे सर की ओर बढ़ाया और मेरा सर उनके चरणॊ मे झुक गया। प्रो धारसकर ने हाथ बढ़ाया , मेरा सर झुका और मैने हाथ भी मिलाया लेकिन प्रो मिश्रा से मैने अभिवादन तक नही किया ऐसा क्यों ?
रमन कौल जानकारी देते हुये बताते हैं बुरका और बिकनी के मेलजोल या कहें कि घालमेल से नयी पोशाक बनी है -बुरकीनो! इसके बारे में जानकारी बकौल डिजाइनर ही लीजिये:-
आहीदा ज़नेती, जो बुरक़ीना की डिज़ाइनर हैं, कहती हैं, “केवल मुसलमान ही पर्दा नहीं करते। और भी शर्मदार लड़कियाँ होती हैं, जो बीच पर जाना चाहती हैं, पर बिकीनी नहीं पहनना चाहतीं… और फिर यह स्विमसूट केवल हया के लिए ही नहीं, यह आप की त्वचा को धूप, रेत, आदि से भी बचाता है।” आप का क्या कहना है? क्या शर्मसार ग़ैर-मुस्लिम महिलाएँ बुर्क़ीनी को आज़माएँगी, या इसे बुरक़े का ही एक रूप समझ कर इस से पर्दा करेंगी। वैसे, भारतीय समेत कई समाजों की ग़ैर-मुस्लिम महिलाओं को स्विमिंग पूल या बीच पर बिकिनी पहनने से परहेज़ होता है, और कई बार वे कपड़े पहन कर पूल में उतरने से भी मज़ाक का कारण बनती।
डिवाइन इंडिया में जहां एक तरफ़ साथी शीर्षक कविता में बयान किया है:-
अकेला ही खड़ा था...सफर की राह परवहीं समीरलालजी भी कम तड़पू नहीं हैं। आग का दरिया है और डूब के जाना है कि सफ़ाई पेश करते हुये और अपने को चिरकुट चक्रम बताते हुये वे लिखते हैं:-
अपनी मौजो में तेरा रुप तेरे अहसास का पल लिये
मगर नसीम की रुसवाईयों में वह भी बह गया
तकता-तकता राह मैं तेरी निराशा से भींग गया,
इसकी सिसकियों की जानलेवा आवाज से पता चला है कि इनकी तन्हाई करीब चार-पांच महीने की उमर की है। तबसे उसे सटाये हुये हैं और कुछ खूबसूरत लम्हे भी हैं इनकी यादों के खाते में:-
सिसक सिसक कर तन्हा तन्हा, कैसे काटी काली रात
टपक टपक कर आँसू गिरते, थी कैसी बरसाती रात.
राहें वही चुनी है मैने, जिस पर हम तुम साथ रहें,
क्यूँ कर मुझको भटकाने को, आई यह भरमाती रात.
समीरजी के यादें, तन्हाई, तड़पन से एकदम अलग तेवर की बात रचनाजी अपनी कविता जीवन में करती हैं। इनके सामने जीवन का सच है:-
जीवन मे हम सबको यूँ ही बस आना है,
थोडा ठहर करके फिर सबको जाना है.
थोडा-सा हँसना, और् थोडा-सा रोना है,
अपने-अपने कर्म हम सबको करना है.
सीधी-सीधी भाषा में अपनी बात कहने वाली रचनाजी धीरे से शाश्वत सच का दायरा बढा़ते हुये कहती हैं:-
तारों को हर रात यूँ ही टिमटिमाना है,
चंदा को हर पल यूँ ही घटना-बढना है.
सदियों से आज तक सबने ही माना है,
निश्चित है सब यहाँ! ना कुछ बदलना है!
अब जब बात कविता की हो रही है तो मोहल्ले की इस कविता को क्यों न देखा जाये। अपने समाज की तल्ख सच्चाई बयान करते हुये मोहल्ले वाले अविनाश विनय सौरभ की कविता सुनाते हैं:-
जिसके पास विज्ञापन की सबसे अच्छी भाषा थी
...वह बचा
वह औरत बची
जिसके पास सुंदर देह थी
और जो दूसरों के इशारे पर रात-रात भर नाचती रही
कुछ औरतें और मर्द... जिनमें खरीदने की हैसियत थी
और वे सारे लोग बचे
जो बेचने की कला जानते थे
रविरतलामी नये ब्लागर में साइडबार में कड़ियां बनाने की तरकीब बताते हुये सलाह भी देते हैं कि इसका इस्तेमाल करने के पहले टेस्टिंग करना न भूलें। गिरीन्द्रनाथ झा प्रख्यात कथाकार, उपन्यासकार फणीश्वर नाथ 'रेणु' की कथा भूमि कोसी के इलाके के बारे में जानकारियां देते हैं:-
इस बाजार से जब आगे बढा तो एक बोर्ड पर मेरी नज़र ठहर गयी.. लिखा था...."राजेन्द्र मेहता,खाद के अधिकृत विक्रेता.चम्पानगर..आवास-प्राणपट्टी."प्राणपट्टी पढते ही मैं चौंक पडा ! अरे ये तो रेणु के "परती परिकथा" का प्राणपट्टी है... जितू का इलाका.... उपन्यास का संपूर्ण पात्र मेरे जहन मे शोर मचाने लगा. अब मै प्राणपट्टी की ओर जाने का बना लिया..
गांधीजी के शुरुआती दिनों की जानकारी देने वाले ब्लाग शैशव में गांधी के बारे में बताते हुये अफलातून जानकारी गांधीजी के बारे में भी देते हैं:-
आश्रम में भोजन परोसने का काम बापू करते थे । भोजन-सम्बन्धी अपने तरह-तरह के प्रयोगों की जानकारी वे मेहमानों को देते जाते ।
इसके बाद बा के बारे में बताते हुये वे लिखते हैं:-
नयी - नयी चीज सीखने की हविस में बा को कभी बुढ़ापा छुआ नहीं। एक बालक के जितनी उत्सुकता से वह सीखने को तैयार रहती थीं । बा का अक्षर-ज्ञान मामूली था। इसलिए ज्ञान-विज्ञान के दरवाजे उनके लिए बन्द जैसे थे । बापू के साथ रहने में पढ़ाई का बड़ा मौका मिल सकता था यह बात सही है,लेकिन उनके साथ रहकर भी जड़ के जड़ रहे लोगों को भी मैंने देखा है । बा के बारे में यह बात नहीं थी । कुछ-न-कुछ नया सीखने के लिए उनका मन हमेशा ताजा था ।
आशीष ने अब अंतरिक्ष के बारे में भी लिखने का निश्चय किया है। आज वे नेप्च्यून के के बारे में जानकारी देते हैं:-
युरेनस के जैसे ही यह ग्रह पानी, मिथेन और अमोनिया से बना है और हायड्रोजन, हिलियम के एक मोटे आवरण से घिरा हुआ है। नेपच्युन का निला रंग इसके वातावरण की मिथेन के कारण है जो लाल रंग अवशोषीत कर लेती है।
इसके भी कई चन्द्रमा और वलय है।यह सूर्य की एक परिक्रमा पृथ्वी के १६५ वर्ष मे करता है। इसका अक्ष इसकी सूर्य की परिक्रमा के प्रतल से २९ अंश झुका हुआ है(पृथ्वी का अक्ष २३.५ अंश झुका हुआ है)।
नेपच्युन मे पूरे सौर मंडल मे सबसे तेज हवाये चलती है, कभी कभी २००० किमी प्रति घंटा की रफ्तार से !
नागरानीजी अपने गजल में बदलाव का जिक्र का करते हुये कहती हैं:-
स्वप्न आँखों में बसा पाए न हम
आँसुओं से भी सजा पाए न हम.
किस गिरावट ने हमें ऊंचा किया
कोई अंदाजा लगा पाए न हम.
इसके बाद अपने दिल का हाल बताते हुये वे लिखती हैं:-
यूं तो रौनक हर तरफ है फिर भी दिल लगता नहीं
क्या बताएं हम किसी को क्या कमी महफ़िल में है.
पूछो उससे बोझ हसरत का लिये फिरता है जो
क्या मज़ा उस ज़िंदगी में, गुज़री जो किल किल में है.
वंदेमातरम की यह प्रविष्टि लगभग तीन माह बाद आयी लेकिन जब आई तो बात किसी रोने-धोने की नहीं वरन गौरवपूर्ण सफलता की की गयी:-
आज इसरो आकाश से बातें कर पा रहा है क्योंकि उसकी नींव विक्रम साराभाई, सतीश धवन, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और अन्य वैज्ञानिकों के मजबूत कंधों पर रखी गयी है. अभी आने वाले समय में चन्द्रयान-१ और २, जी.एस.एल.वी. एम.के.-२,३,४ की परियोजनायें प्रमुख हैं. इसरो निश्चित ही विश्व-स्तर का कार्य कर रहा है. हमारे पास टी.ई.एस., कार्टोसेट - १ और २ ऐसे उपग्रह हैं जिनकी विभेदन क्षमता १ मीटर से भी बेहतर है, और गुणवत्ता की दृष्टि से इनसे ली गयीं तस्वीरें “गूगल अर्थ” की सर्वश्रेष्ठ तस्वीरों के आस-पास हैं.
अपनी कविता में बचपन की यादें सहेजते हुये सिलाई मशीन, चिट्ठी, कुर्सी, काला टीका, चारपाई का जिक्र करते हुये बेजीजी लिखती हैं:-
किताबों को पढ़कर चली कुछ बनाने....
सखी ने कहा बड़ा सुन्दर बना है...
तुझको दिया था बड़े प्यार से...
तू पहनेगी इसको इस अरमान से..
तूने उसको एक कोने में टाँगा........
तूने सोचा मैने देखा नहीं...
भरी आँख ले वहीं पर खड़ी थी....
शिल्पी जी ने आसाम की समस्या मद्देनजर दो लेख लिखे हैं-कैसे होगा पूर्वोत्तर की समस्या का हल। आसाम के निवासियों के असन्तोष का कारण बताते हुये उन्होंने लिखा:-
पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में व्यापार-तंत्र पर नियंत्रण उन लोगों का है जो यहाँ दूसरे राज्यों से आकर बस गए हैं। स्थानीय मूल आबादी में इस स्थिति के खिलाफ धीरे-धीरे असंतोष फैलना शुरू हुआ और इसलिए जब 1980 के दशक में कई उग्रवादी संगठन अलगाववाद का नारा देकर क्षेत्र में सक्रिय हुए तो उन्हें जनसमर्थन भी आसानी से मिल गया।अपने दूसरे लेख में इस समस्या के निदान के बारे में अपनी राय देते हुये शिल्पीजी ने लिखा:-
इसलिए, भारतीय संविधान के दायरे में यथासंभव स्वायत्तता प्रदान करते हुए उन्हें केन्द्रीय आर्थिक सहायता जारी रखना और साथ ही साथ उग्रवादी संगठनों के साथ सख्ती से निपटना ही पूर्वोत्तर की समस्या का सही समाधान है। लेकिन केन्द्र द्वारा दी जा रही आर्थिक सहायता का समुचित इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए उसपर लगातार निगरानी रखे जाने की भी जरूरत है। उग्रवादियों के साथ कारगर तरीके से निपटने के लिए सेना एवं अर्धसैनिक बलों के साथ-साथ गुप्तचर एजेंसियों को पहले से अधिक चौकस भूमिका निभानी होगी।
उपरोक्त पोस्टों के अलावा सुनीलदीपक जी की पोस्ट है जिसमें उन्होंने तस्लीमा नसरीन की तारीफ़ की है। तमाम ज्ञान की बाते हैं जिनमें पैंट की जिप फंसने से लेकर बाल से च्विंगम छुड़ाने तक के जुगाड़ हैं। महाभारत कथा है और साथ में गिरीन्द्र नाथ झा के अनुभव:-
मैने पढा था,
परखना मत परखने से कोई अपना नही रहता.
उस समय केवल पढा था,
अब समझता हुं.
दर-दर भटक रहा हुं,
तो समझ रहा हुं.
आज की चर्चा में फिलहाल इतना ही। भूल-चूक, लेनी देनी।कल की चर्चा करेंगे गिरिराज जोशी।
आज की टिप्पणी:-
१.शायद यह आपबीती है। यदि नहीं है तब भी बेरोजगार युवक की मन:स्थिति को बखूबी बयाँ करती है। लेकिन संवेदना के साथ कविता का तत्व भी कुछ जोड़िए इसमें। सपाट कथन को बीच-बीच से तोड़ देने को कविता नहीं कहते।
सृजन शिल्पी
२.पहले शिल्पी महोदय...को..कविता मात्र
तुक्बंदियों का भावनात्मक वेग नहीं है..
कविता मात्र एक लय है जो मनोभावनाओं
से होकर गुजरती है...अत्यंत भावुक है भाई..
keep it up...it reveals a suppressed
sound of today's students.
डिवाइन इंडिया
३.वाह गुरूदेव, आपकी महिमा तो अपरमपार है!!!
काव्य में दर्द झलक रहा है, आप तन्हा-तन्हा लग रहें है और बधाईंयाँ (टिप्पणियों में) भी स्वीकार कर रहें है।
वाह!!! पहली बार देख रहा हूँ कोई किसी को तन्हा होने पर बधाई दे रहा है। :)
अब तो मैं भी अपनी तन्हाई चिट्ठे पर लाने वाला हूँ, शायद मुझे भी, बधाई के बहाने ही सही, ढ़ेर सारी टिप्पणियाँ मिल जायें :)
मेरी ओर से भी बहुत-बहुत बधाई!!!
गिरिराज जोशी
डिवाइन इंडिया
आज की फोटो:
आज की पहली फोटो आशीष के ब्लागअंतरिक्षसे
आज की दूसरी फोटो सुनील दीपक के ब्लाग छायाचित्रकार से
बेहतरीन सधी हुई मजेदार चर्चा. बधाई.
जवाब देंहटाएंहर प्रविष्टियों को इतनी गहराई से मंझे हुए
जवाब देंहटाएंशब्दों का जामा पहनाया निश्चय हीं आप
बधाई के पात्र है...सुंदर चर्चा...
लिखूँ आपके लेखन पर कुछ, मुझसे संभव हो न पाया
जवाब देंहटाएंशब्दकोश लेकर बैठा था, शब्द नहीं कोई मिल पाया
जोड़ घटा कर, गुणा भाग कर, अक्षर मैने सभी संभाले
किन्तु न हासिल मुझे हुआ कुछ,कोरा बस पन्ना लहराया