शुक्रवार, जनवरी 12, 2007

लिनेक्स प्रेमी पुरूष ज्यादा कामुक और भावुक

हिन्दी चिट्ठाजगत : बीते कल पर एक नज़र

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दिनांक : 11 जनवरी 2007
वार : गुरूवार
ज्ञात प्रविष्टियाँ : 32
ज्ञात टिप्पणियाँ : 74
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अब विस्तार से चर्चा करते हुए आपको ले चलते हैं मनिषा जी के पास जो बता रही हैं एक शौध के बारे में, जिसके अनुसार आपके खून की जाँच से दिल के दौरे का अनुमान लगाया जा सकता है। अगर खून की जाँच में यह पता चले कि आपको दिल का दौरा नहीं पड़ेगा तो कोई बात नहीं, इसका एक और अच्छा उपाय है तरूण जी के पास, जिससे आपको 100 प्रतिशत दिल का दौरा पड़ेगा। तरूणजी बता रहे हैं एम-पैसा के बारे में, जिससे मोबाइल से पैसा भेजा जाना संभव है मगर मोबाइल से पैसा प्राप्त करने का कोई भी तरीका अभी इजाद नहीं हो पाया है। भाई हम तो पैसा प्राप्त करने के इच्छुक हैं ना कि भेजने के। साथ ही तरूण जी किराये के कपड़े पहनने के बजाय सिलाई का कार्य भी शुरू कर दिया है, अब वे अपने कपड़े खुद ही सिला करेंगे। (भाई थोड़ा समय लगाकर हमारे कपड़े भी सिल दीजियेगा) क्या आपको पता है कि भारतीय लोकतंत्र में स्वतंत्र सेना गठन कार्य बहुत तीव्र गति से फैल रहा है। अभी कुछ समय पहले अहमदाबाद में दूर्गावाहिनी का गठन हुआ था और अब कानपुर में लाल सेना और काली सेना का गठन हो चुका है अब मैं भी सोच रहा हूँ कि चिट्ठा सेना, काव्य सेना, व्यंग्य सेना, पाठक सेना इत्यादि का गठन भी लगे हाथ हो ही जाना चाहिए। इसका एहसास बेजी जी को दुबई में हो रहा है, वो लिखती हैं -


...कुछ ऐसा एहसास
बहुत खास.........
ललित...
हर्षित...
अपरिभाषित...
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केन्द्र की मरमम्त का कार्य कैसे किया जाता है? किस तरह इसकी स्थापना की जाती है? इन सभी सवालों के जवाब आपको लेख़क जी दे रहें है, जरूर देखियेगा। उन्मुक्त सुन्दरियों के लिनेक्स टी-शर्ट वाली तस्वीरों के लिंक के साथ ताजे समाचार लाये हैं कि लिनेक्स प्रेमी पुरूष ज्यादा कामुक और भावुक होते हैं। उनके इस आलेख से विंडो प्रेमी रतलामी को मानों 440 वोल्ट का करंट लग गया। उन्मुक्तजी पर गिरियाते हुए उनके इस आलेख पर लिख आये –

तो क्या खिड़की (विंडोज) प्रेमी ठण्डे और कठोर होते हैं?


कोई अन्यथा ना लें इसके लिए एक स्माईली भी छोड़ आये। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने जो ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण का प्रशंसनिय कार्य किया है उसके बारे में संजय भाई संक्षिप्त जानकारी दे रहें है। इधर देवराज इन्द्र के आदेशानुसार सुखसागर में पाण्डव तीर्थयात्रा पर निकल गयें हैं। हिन्दी प्रयोक्ताओं के लिए एक और ख़ुशखबरी लेकर आयें है रवि रतलामी जी। इंडीवर्ड नाम का ऑनलाइन हिन्दी शब्द संसाधक निम्न खूबियों के साथ हाज़िर हैं –


1 यह इंटरनेट एक्सप्लोरर के साथ साथ फ़ॉयरफ़ॉक्स पर भी चलता है
2 अन्य ऑनलाइन कुंजीपटों के विपरीत यह ब्राउज़र विंडो में तीव्र गति से चलता है.
3 हिन्दी के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं का समर्थन है, तथा इन भाषाओं में लिपि परिवर्तन की सुविधा ऑनलाइन है.
4 चार कुंजीपटों का समर्थन है - सिस्टम, फ़ोनेटिक, इनस्क्रिप्ट, आईट्रांस
5 असीमित अनडू-रीडू समर्थन
6 इसे आसानी से जाल स्थलों पर इंटीग्रेट किया जा सकता है.
अब हिन्दी की प्रगति तीव्र गति से हो रही है। आओ हम सब भी इसमें अपना योगदान करें। यदि आपका कम्प्यूटर बूट होने में ज्यादा समय लेता है तो चिंता किस बात की ज्ञान का ख़जाना है ना, पढ़िये सागर भाई का यह आलेख और अपने कम्प्यूटर को जेट विमान की तरह उड़ाइये। ज्ञान के ख़जाने में ही पंकज भाई बता रहें है कि चिजों को याद कैसे रखा जाये? तो जीतू भाई गेम और स्वादिस्ट सलाद खिलाने के बाद यदि गले में दर्द की शिकायत हो तो उसका भी इलाज बता रहें है और आप इस चक्कर में अपने ए.टी.एम. के पिन नम्बर भूल जाते हैं तो इस पर चटका लगाइयेगा - अपने ए.टी.एम. का पिन नम्बर कैसे याद रखा जाये? आप भी ज्ञान के इस खजाने में अपना योगदान कर सकते है। रंजु जी बता रही हैं कि यह जो रेत से गीले पल हैं यह एक बार बह गये तो बह गये, फिर हाथ नहीं आते है सो ध्यान रखियेगा। बिहारी बाबू के व्यंग्य बाण चले हैं इस बार निठारी कांड और अमेरिका पर -


आजकल जहां देखिए, वहीं कंकालों की चरचा है। अपने देश के निठारी गांव से लेकर परदेस सोमालिया तक, हड्डी ही हड्डी! निठारी में भले-चंगे मानुषों को एक अमीर ने कंकाल बना
दिया, तो सोमालिया में गरीबी से कंकाल में बदल चुके मानुषों को अमीर अमेरिका अब पता नहीं किस चीज में बदलेगा।

साथ में वो एक और ऐसी बात कह गये जिसमें कहीं ना कहीं एक कड़की सच्चाई छुपी है -
गरीबों में एक खोट औरो होता है, जब ऊ अमीर हो जाता है, तो गरीबों से घोर नफरत करने लगता है।
गरीबों की राशि और नक्षत्र तो आपको बिहारी बाबू दिखा चुके, अब आप अपनी भी राशि और नक्षत्र के बारे में जान लिजिये। इधर अपने रविन्द्रनाथजी कहानी की भूमिका बनाने के चक्कर में ही एक कहानी गढ़ लिये।

अजीब है कहानी लिख पाना भी, कैसे भई लोग दूसरों को जिनकी जैसी जिन्दगी कभी जी नहीं, जिनको बस किनारे खड़े होकर परखा, जाना, बस देख कर साथ रह कर कैसे लिख देते हैं लोग । लिखना ही क्यों हो, डाक्टर ने बताया है क्या? कभी कभी तो लगता है कमीनापन है। कविता तो ठीक, बहुत सेफ़ तरीका है, रैंप पर आओ कम से कम कपडों मे, मटक कर उधर से इधर, फ़िर इधर से उधर, फ़ैसन है फ़ैसन, हम कहानी लिखें तो नंगे खडे हैं सड़क पर, जो आया दो तीन ढेले मार गया, हट्ट । मेहनत का मोल कहाँ, मोल है पत्थर की चमक का, पथरीली चमक ससुरी । कहानियां आती कहां से होंगी, सपने मे? धत ! यहीं आस पास देख, सुन, समझ, पढ़, सूंघ, और हाँ चख कर । अपने आस-पास और उससे कहीं ज्यादा खुद अपने को सूंघना हर कहीं गिद्ध की तरह निगाहें जमाये, बैठे रहना कमीनापन नहीं तो क्या है । "नहीं ऐसा भी नही, कल्पना भी कोई चीज है, क्या जरूरी है मुझे आम की कहानी लिखनी है तो पेड़ पर लटकना भी पड़े,और तभी आम होना समझा जा सके ।
लगता है 2007 चिट्ठाजगत में प्रतियोगिता वर्ष के रूप में याद किया जायेगा, पहले गुरूदेव सर्वश्रेष्ठ चिट्ठाकार बने, फिर हिन्द-युग्म वालों ने हर माह एक कवि और एक पाठक को पुरस्कृत करने का ऐलान किया और अब तरकश फिर से सर्वश्रेष्ठ प्रविष्टि प्रतियोगिता का आयोजन कर रहा है। “रंगे हाथ” को चित्रमय तरीके से प्रस्तुत कर रहे है गोपालपुर के प्रभाकरजी, बहुत ही उम्दा चित्रकारी की गई है उनके द्वारा, देखियेगा जरूर। चित्र देखकर ज्यादा खुश ना होवें, क्योंकि आस्था कि नगरी इलाहबाद में मौत का नृत्य देख कर लौटे अपने प्रमेन्द्रजी आँखो देखा हाल बता रहें है और साथ में दिल दहला देने वाले चित्र भी है। प्रभू मृत्तकों की आत्मा को शांति प्रदान करें। ग़म सिर्फ़ इतना ही नहीं है, लगातार हो रहने प्रकृति हनन से हमने चिड़ियाँ, गिलहरियाँ जैसे नन्हें जानवर भी खो दिये है। यह दर्द हम सभी के दिलों में है मगर इसको काव्य रूप में बयाँ किया है रचना जी ने, बहुत ही मार्मिक और दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ है। लगता है कहीं ना कहीं ग्रह-नक्षत्रों में ही कोई प्रोब्लम है, तो चलिये जानते हैं नक्षत्रों के स्वामी क्या कर रहें है। मजेदार और गुदगुदा देने वाली पोस्टों का सिलसिला जारी रखते हुए अनुराग जी इस बार लेकर आए हैं “गुसल गवैये”। जहाँ अनुरागजी मटरगस्ती कर रहें थे वहीं सृजन-शिल्पी जी ने अपनी पहचान के मुताबिक गम्भीर मुद्दों पर अपनी पैनी नज़र बनाये रखी। भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने कल जो ऐतिहासिक निर्णय दिया था उसके बाद विधायिका और कार्यपालिका के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं बचेगी जिसके द्वारा वे न्यायपालिका के अंकुश से बाहर जा सकें। इसके बारे में विस्तार से जानियें सृजन-शिल्पी जी से। इधर गुरूदेव अनुरागजी के अह्हा, आन्नदम, आन्नदम!! की बढ़ती मांग को देखकर पोस्ट लिख मारे मगर यह भी बिग बी की नकल करते अभिषेक सी ही शाबित हुई, अनुमानत: यह गुरूदेव की प्रथम पोस्ट है जो अभी तक टिप्पणियों की बाट जोह रही है। गीत-कलश में राकेशजी गीत सुना रहे हैं -
बन के दुल्हन हमारी गली में रही मुस्कुराती हुई चाँदनी एक दिन
चूमती थी अधर आ के मुस्कान की गुनगुनाती हुई रागिनी एक दिन
अब यदि आप बोर हो गयें है तो यह लिजिये, प्रतिक बाबू के आपके टाईम-पास के लिए अमिषा पटेल के शानदार पोज लेकर हाजिर हैं।

आज की टिप्पणी आशीष जी द्वारा गुसल गवैये पर -

अईयो अम आशीष है जी,साउथ से समाचार देता है जे....
जया अम्मा ये गाना गा रहा है जे...

क्या करूं राम मुझे बुढ्ढा मिल गया...


करुणानिधी अपने बाथ रुम जाते हुये...

साला मै तो साहब बन गया...

देवगौडा शावर के निचे बीच बीच मे झपकी मार रहा है ओर गा रहा है जे

ओ सोने दो सोने दो सोने दो सोने दो सोने दो
मुझ को नींद आ रही है सोने दो
दिल कह रहा है कुछ होने दो
हां मुझ को नींद ...
कुछ होने दो होने दो होने दो होने दो होने दो
मुझ को नींद ...

धरमसिंह...(अईयो वो मोटा भूतपुर्व चेफ मिनिस्टर जे)

दोस्त दोस्त ना रहा प्यार प्यार ना रहा
जिन्दगी हमे तेरा ऐतबार ना रहा...

चंद्राबाबु नाय़डू

वक्त ने किया क्या हंसी सीतम ...
हम रहे ना हम , तुम रहे ना तुम....

आज की तस्वीरें यहाँ, यहाँ और यहाँ देखें.

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3 टिप्‍पणियां:

  1. ओये गुरू.

    तुस्सी छा गए.. कविराज

    अब यही कामना है कि पूर्णकालीन चर्चाकार बन जाइए.. वैसे भी मेरे जैसे और भी कई चर्चाकार आलसी हो गए हैं.. तो आप ही इस धर्म को आगे बढाइए. आमीन.

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  2. स्वर्णाजी की यह प्रविष्टि http://achchalagthahai.blogspot.com/2007/01/blog-post_10.html नारद पर नहीं होने के कारण छूट गई है, कल के चिट्ठाचर्चाकार इसे सम्मलित करने का प्रयास करें।
    जीतु भाई से निवेदन है कि इस चिट्ठे को भी नारद में स्थान दें। प्रतिकजी आप भी इसे हिन्दी ब्लॉग्स डोट कॉम में जोड़ने की कृपा करावें।

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  3. बहुत सही, गिरिराज जी. बढ़ियां चर्चा की मगर कल की चर्चा पर मैने टिप्पणी कर तीन छूटी प्रविष्टियों का जिक्र किया था वो छूटी ही रह गईं.

    और हाँ, वैसे तो टिप्पणियां प्रसाद हैं, मिले न मिले. मगर वो पोस्ट टिप्पणियों का नहीं, उनके अप्रूव होने की बाट जोह रहीं थीं, क्योकि हम अति आनन्द की अवस्था में नींद को जल्दी प्राप्त हो गये थे. :) :) अब सब अप्रूव कर दी गई हैं.

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