मेरा क्या है, इस अंक में, प्रेम और सुन्दरी की देवी, मदाम एंजेलो की डायरी, का जिक्र तो यूं ही प्रसंगवश आ गया, नही तो (उत्तम) प्रदेश चर्चा और निरंकुशता के शिकार बच्चों का संकट कुछ कम था क्या। देश तो अभी भी शांति ही संस्कृति है कि नारे पर गर्व करने के बहाने अनेक ढूंढते हुए आस्था के कुम्भ आयोजित करता रहेगा। लेकिन मीडिया का नैतिक दायित्व भी तो कुछ होता है, प्रकाशन यात्रा के दो दशक होने को आए, आज भी सत्ता, गरीबी और वैश्वविक जल संकट ज्यों का त्यों है। आखिर कब सुधरेंगे हम? मीडिया को छोड़िए, हम चिट्ठाकारों ही अपने फर्ज को निभाएं और आइए हम चिट्ठों को आम-जन तक पहुँचाए, क्योंकि चिट्ठाकारों का आवाज ही दिल की आवाज है। इसे मेरा दीवानापन समझिए या गर्व करने का बहाना, हम पर्यावरण परिक्रमा करते हुए शादी की तैयारियां देखने चले गए, बड़ा मजमा लगा हुआ था भई, आखिर क्यों ना हो, जब शादी ही इतनी खास है। सोचा लौटते वक्त हुमायूं का मकबरा भी देख लेंगे, रास्ते में नौछमी नारेणा से आगे बढते ही बडारडा के पास एक और ट्रक दुर्घटना भी हो गयी, लेकिन आखिर ये हौंसला कैसे झुके ये आरजू कैसे रुके, पहुँच गए, जमुनालाल जी घर तक, उनको साथ लिया बीच बीच मे टाइम-पास करने के लिए बातचीत होती रही। जमुनालाल जी ने बताया कि जी.एम फसलओं मे नए मापदंडों की जरुरत है बोले अब पौधे भी कहेंगे, मै प्यासा हूँ पानी पिलाओ। उनकी रामायण में राम की सेना का सागरवतरण हो चुका था, वे अध्यात्म और पर्यावरण की बाते करके पका रहे तो हमने सोच हम भी शुरु हो जाएं। हमने भी कम्प्यूटर की बाते करके जैसे वर्डप्रेस को २.०.५ से २.०.७ अपडेट कैसे करें, सप्ताह ०३ के स्वादिष्ट पुस्तचिन्ह, विन्डोज एक्सपी टिप्स एवं ट्रिक्स, नए ब्लॉगर मे शीर्षक चित्र कैसे डालें? करके बहुत पकाया। पर्यावरण से कम्प्यूटर का पाला पड़ा तो वे बोले कि ऐसा है बहुत हो गया, कम्प्यूटर और पर्यावरण, सम-सामयिक चर्चा करते है। फिर वे शुरु हो गए, बोले कि अमरीका को चुनौती, भारत को सीख, बोले :
चीन ने 11 जनवरी को अपने ही एक बुढ़ा चुके मौसम-उपग्रह को अंतरिक्ष में ही सफलतापूर्वक मार गिराया. चीन ने आधिकारिक रूप से इस बारे में कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन अमरीका तथा ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे उसके पिछलग्गों के खुल कर विरोध जताने से साफ़ है कि चीन स्टार-वॉर्स के क्षेत्र में अमरीका को चुनौती देने की दिशा में पहला क़दम बढ़ा चुका है.
रात घिर आयी थी, हम भी सोचे अब बहुत समय हो चला है, वापस लौट लिया जाए, चिट्ठा चर्चा जो करनी है। अरे! ये तो बातो बातों मे ही चिट्ठा चर्चा हो गयी, चलो हम भी निकलते है, अच्छा जी, राम राम!
ये मजाक-मजाक में इतनी मेहनत कर डाली और निकल लिये!
जवाब देंहटाएंकहते-कहते सभी को समेट डाला…
जवाब देंहटाएंऐसे ही मजाक करते रहो, सही है. :)
जवाब देंहटाएंBahut badhiya jitu ji.. sab kuchh kah diya aur us par ye ki kuchh kaha hi nahi.. achha laga
जवाब देंहटाएंपर्यावरण डाइजेस्ट पर्यावरण पर समर्पित पत्रिका है जिसे रतलाम के पर्यावरण प्रेमी व पत्रकार मित्र प्रिंड एडीशन में निकालते रहे हैं. इस पत्रिका की सामग्री पिछले कुछ माह से ब्लॉगर की सेवा लेकर, प्रतिमाह, इंटरनेट पर सर्वजन हिताय प्रकाशित किया जा रहा है. इंटरनेट पर चूंकि सहयोग मेरा है, इसी लिए मेरा नाम नारद में आया है, अन्यथा इसका सारा श्रेय पर्यावरण डाइजेस्ट को ही जाना चाहिए.
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