सोमवार, मार्च 05, 2007

होरियाए चिट्ठे...


इतवार, होली के दिन चिट्ठों पर होली का रंग चढ़ा हुआ था और क्या खूब चढ़ा हुआ था. रंगों में सराबोर होली की बधाईयों का आदान-प्रदान जमकर हुआ. होली की ठिठोली के साथ ही समीर को उनके चिट्ठे के जन्म दिन की बधाईयाँ महाशक्ति प्रमेन्द्र ने कुछ यूँ दी

बधाई देने हम भी आ गये,

जन्‍म दिन की मिठाई खाने आ गये,

बासी है मिठाई फफूदी पड़ी है,

खा के मिठाई मुझे उल्‍टी करनी पड़ी है।

चिठ्ठा के चककर मे चाय भी न पूछा,

मेरी इस बधाई कविता के कारण

समीर लाल जी ने

उड़न तश्‍तरी पर बैठने को न पूछा

उड़न तश्‍तरी पर बैठाने का गम नही,

कीडे पड़ी मिठाई देख कर

बर्थ डे पार्टी मे न बुलाऐ जाने का गम नही।

मिठाई न खाने से हम मस्‍त है,

जिसने भी खाया वह दस्‍त से पस्‍त है।

ब्‍लाग सलाग लिखते नही

क्‍योकि वे पाकिस्‍तान मे ब्‍यस्‍त है।

होली की शुभ कामनाएं

इस बधाई को पाकर समीर सिर धुनने लगे और उन्होंने भंग की तरंग में एक नया शोधपत्र लिख डाला जिसे यहाँ उद्घृत नहीं किया जा सकता. शोधपत्र अवश्य पढ़ें. एक बार पढ़ने के बाद शर्तिया बार-बार पढ़ेंगे. हो सकता है कि उसमें आप पर भी कुछ रौशनी डाली गई हो या फिर आपका आभार-अभिनंदन ही हो वहां.

शायद यह शोधपत्र नीलिमा के कुछ काम आ सके जो हिन्दी चिट्ठाजगत् के साफ़ सुथरे पन से भौंचक थीं परंतु उनकी इस भौंचकता के खत्म होने के दिन आ गए लगते हैं. जैसे कि ज्ञानदत्त पाण्डेय की मानसिक हलचल बताती है. पहले तो मोहल्ले में सांप्रदायिक-सौहार्द कम दिखाई देने लगा था, फिर अब कॉफ़ी हाउस में वही चर्चा होने लगी है. आदरणीय एनोनिमस भाईयों का फ़* यू वाली टिप्पणियाँ भी दिख रही हैं. अब या तो कॉफ़ी हाउस वाले को यह नहीं पता कि अस्वच्छ टिप्पणियों को चिट्ठाकार मालिक द्वारा मिटाया भी जा सकता है, या फिर ये भी उनकी वैसी ही अस्वच्छ चाल है डेनमार्क के अखबारी कार्टून जैसा कमाल दिखाकर चिट्ठा-पाठन रेटिंग बढ़ाने का कारगर तरीक़ा! चिट्ठाकारों के पास धर्म जैसे कंट्रोवर्सियल विषय के अलावा और कुछ नहीं है लिखने को तो लानत है ऐसे लेखन पर.

वैसे, नीलिमा अब दूसरे तरीके से भौंचक हो रही हैं और हम भी सुखद भौंचक हैं नारद का क्लिक रेट हफ़्ते भर में दोगुना क्या किसी ने क्लिक-बॉट लगा रखा है?

मिर्ची सेठ अरसे बाद होली खेलने बाहर निकले. सेठ, साल-भर और भी बहुत से तीज त्यौहार होते हैं बधाईयों के लेन-देन का व्यापार लगातार चलने दिया करें तो चिट्ठापाठकों की तिजोरियों में भी कुछ माल आएगा. ई-स्वामी टैगिंग की होली खेलते दिखाई दिए, और उन्होंने अमित को संक्रमणकारी चिट्ठाकार का टेपा - टाइटल दे डाला

आमित हिंदी ब्लागमंडल के सबसे अधिक संक्रमणकारी चिट्ठाकार हैं. टैगिंग का रोग ये दूसरी मर्तबा सफ़लतापूर्वक फैला चुके हैं. अबकी बार कई तो इसकी चपेट में दो-तीन बार आ चुके हैं.

टैगिंग की होली प्रभात तथा मनीष भी खेलते दिखे. उधर आपको क्रिकेट खेलने का निमंत्रण निठल्ले चिंतक तरूण दे रहे हैं.

होली के रंगों में ये चिट्ठे भी सराबोर दिखाई दिए - दस्तक , मोहल्ला, तथा कुछ विचार.

चलते - चलते : हिन्दी युग्म में इस माह के विजेता कवि की घोषणा हो चुकी है.

चित्र नोटपैड से जहाँ महिला दिवस पर गूगल उपहार के बारे में पोस्ट है.

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व्यंज़ल

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धर्म को नकार दे कुछ ऐसा अधर्म कर

इनसानियत की खातिर ये कुकर्म कर


सदिच्छाओं से यदि मौसम मैलाता है

फिर ये गुजारिश है तू बस अकर्म कर


अब तक किया अपना ही उलूक सीधा

जाते-जाते दिखाने को जरा संकर्म कर


लकीरें तो सभी पीट लेते हैं बरखुरदार

कुछ नया सा कर पर जरा सधर्म कर


रुलाया है दुनिया को तुमने बहुत रवि

तेरी याद में रोएं ऐसा कुछ सुकर्म कर


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5 टिप्‍पणियां:

  1. अब या तो कॉफ़ी हाउस वाले को यह नहीं पता कि अस्वच्छ टिप्पणियों को चिट्ठाकार मालिक द्वारा मिटाया भी जा सकता है, या फिर ये भी उनकी वैसी ही अस्वच्छ चाल है – डेनमार्क के अखबारी कार्टून जैसा कमाल दिखाकर चिट्ठा-पाठन रेटिंग बढ़ाने का कारगर तरीक़ा! चिट्ठाकारों के पास धर्म जैसे कंट्रोवर्सियल विषय के अलावा और कुछ नहीं है लिखने को तो लानत है ऐसे लेखन पर.
    बहुत अच्छा लगा ये पंक्तियाँ पढ़ कर।

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  2. क्या हो रवि जी…जब ऐसी अशोभनीय बात हो रही हो दिखा मात्र रेटिंग को बढ़ाने धंधा है यह न होकर इसका दूसरा दृष्टिकोण भी हो सकता है कि टिप्पणी कर्ता सोंचे की क्या लिखा कर आये हैं…!!! हटा कर क्या हो जाएगा गालियाँ तो सुन ही ली…। और जो सुनता है वह जानता है की क्या दृदय में उठता है। आज के अपने लेख "1857 का Revolt" में मैनेण भी थोड़ा प्रकाश डाला है…लेकिन जो भी है बिल्कुल गलत है…!!!

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  3. बड़े इत्मिनान से की गई सुंदर और सकारात्मक चर्चा. रवि भाई, बधाई!!

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