बुधवार, अगस्त 06, 2008

बस थोड़ा सा गुस्सा अपने भीतर बचाए रखो और थोड़ी सी चुप्पी भी

छीटें और बौछारें  छींटे और बौछारें



आप इसे पढ़ रहे हैं तो निश्चित तौर पर या तो ब्लागर हैं या बनने वाले हैं या फ़िर इसे ब्लागर दरिया से डूब कर निकल चुके हैं। आपके मन में अपनी रचनायें छपवाने का मुलायम ख्याल कभी न कभी कुनमुनाया होगा। आप अपने सपने को अधूरा न छोडिये। अपने लेखों को आप पोथी डाट काम की सहायता से छपवा सकते हैं। मुफ़्त में। अरे हम सच कह रहे हैं जी। रविरतलामी ने छपवायी है-किसी हिंदी चिट्ठे की विश्व की पहली किताब । शायद इसके बाद और लोग भी इस दिशा में मन बनायें।

प्रियदर्शन की कविता गुस्सा और चुप्पी आज एक बार फ़िर पढी:
क्या कोई समझदारी भरा गुस्सा हो सकता है?
ऐसा गुस्सा जिसमें तुम्हारे मुंह से बिल्कुल सही शब्द निकलें
तुम्हारे हाथ से फेंकी गई कोई चीज बिल्कुल सही निशाने पर लगे
और सिर्फ वही टूटे जो तुम तोड़ना चाहते हो?


इस कविता की सीख है:
बस थोड़ा सा गुस्सा अपने भीतर बचाए रखो और थोड़ी सी चुप्पी भी
मुद्रा की तरह नहीं, प्रकृति की तरह
क्योंकि गुस्सा भी कुछ रचता है और चुप्पी भी
हो सकता है, दोनों तुम्हारे काम न आते हों,
लेकिन दूसरों को उससे बल मिलता है
जैसे तुम्हें उन दूसरों से,
कभी जिनका गुस्सा तुम्हें लुभाता है, कभी जिनकी चुप्पी तुम्हें डराती है।


यह बेहतरीन कविता आपको अपनी आवाज में सुनवा रहे हैं- अनुराग अन्वेषी। मुझे लगता है कि एक बार आप इसे सुन लेंगे तो आप भी अनुराग की तरह इसे दूसरों को सुनवायेंगे।

देवी नागरानीजी के गजल संग्रह के बारे में महावीर शर्माजी ने विस्तार से लिखा है। देखियेगा- कल्पना और भाषा की अद्भुत पकड़

फ़िर आना मम्मी एक पठनीय पोस्ट।

अब कुछ एकलाइना:

ब्लॉगरी ने ज़िन्दगी बदल दी है... : जिंदगी बची यही क्या कम है?

कुछ ना पके क्या खाऊँ मैं: जो पच सके।

लोक सभा बिकाऊ है खरीदोगे: अभी नही भाई जरा कड़की है।

डालर मंगता है: जरूर आलोक पुराणिक होगा।

ईमानदारी की गर्व का विषय नहीं है : बड़े शर्म की बात है।

“अलविदा सुदामा, अब मत आना”:जब आते हो पोस्ट लिखनी पड़ती है।

उपर नीचे मुछे ही मुछे : किसी नाई के यहां जाकर बनवा लो भाई।

मायावती इतना टैक्स देती हैं तो भ्रष्ट हैं और बाकी? : के बारे में जांच जारी है।

बाकी जो बचा सो महंगाई मार गई : मंहगाई के खिलाफ़ दफ़ा ३०२ में रिपोर्ट लिखवाओ भाई।

खुदा बचाये उजबकों से : शब्दों का सफ़र तक पसरे हैं।

बीच गलियारे में सोता शिशु: ज्ञानजी के कैमरे में सुरक्षित है।

मेरी भैंस को डंडा क्यूँ मारा : वो तो ब्लागर भी नहीं है।

राग-ए-बुलेट, राग-ए-यामाहा, राग-ए-बजाज.. : सारी जुगबंदियां राजेश रोशन घराने में हो रही हैं।
मेरी पसंद

सड़क हुई चौड़ी
मारे गए बबुआ।
मारे गए बबुआ हो
मारे गए रमुआ......

लोहे के हाथी और लोहे के घोड़े
बेलगाम हो कर के सड़कों पे दौड़े
मची है होड़ा होडी़
मारे गए बबुआ।
नई-नई घोड़ी विलायत से आई
नए-नए रंगों की महफिल सजाई
बिदक गई घोड़ी
मारे गए बबुआ।

चंदा औ सूरज सी जोड़ी रुपहली
ज़ालिम जमाने के पहियों ने कुचली
बिगड़ गई जोड़ी
मारे गए बबुआ।

महेन्द्र नेह

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8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह जी वाह.. खूब चर्चा जमाए है

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  2. ब्लॉगरी ने ज़िन्दगी बदल दी है... : जिंदगी बची यही क्या कम है?

    आज की सबसे बेहतरीन लाइना :)

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  3. प्रियदर्शन जी कविता वाकई अच्छी है....सटीक भी ...ओर आपकी लाइने भी....झकास ....डालर वाली ओर यामहा वाली जम गयी हमें

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  4. उत्तम चर्चा. बधाई एवं नियमित लिखते रहने के लिए इस उम्दा चर्चाकार को शुभकामनाऐं.

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  5. अनूप भाई, कहीं से घूमता-मंडराता यहां पहुंचा तो देखा कि प्रियदर्शन की कविता की चर्चा यहां है। धन्यवाद यहां चर्चा के लिए। पर एक जानकारी देना चाहूंगा कि वह कविता तो प्रियदर्शन की है पर आवाज मेरी। :-)

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  6. प्रियदर्शन का भी अपना ब्लॉग है 'भरोसा'। उसका URL है www.bharosa.blogspot.com यह इसलिए बता रहा हूं कि प्रियदर्शन के नाम के साथ या गुस्सा और चुप्पी के साथ उनके ब्लॉग का लिंक होना चाहिए, मेरे ब्लॉग का नहीं।

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  7. अनुरागजी, जरूरी सुधार कर दिये। गलती की तरफ़ ध्यान दिलाने का शुक्रिया।

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