शुक्रवार, अगस्त 29, 2008

आड़ हमारी ले कर लडते किसकी आजादी को

आजकल आइपाडी (iPody) संस्कृति खूब फलफूल रही है, उनके लिये जिनकी समझ ना आये मैं बता दूँ कि इस संस्कृति से infected लोग कान में सफेद रंग का तार घुसाये सारे काम करते हैं। यहाँ अमेरिका में इसका अच्छा खासा प्रभाव दिखता है, बस में, ट्रैन में, पैदल चलते हुए, किताब पढ़ते हुए, लिफ्ट में चढ़ते-उतरते हुए, मजाल है जो तार कान से बाहर आ जाये। आज हमने सोचा कि ऐसे तार तो हमारे पास भी रखे हुए हैं तो क्यों ना आज चिट्ठा चर्चा भी इसी संस्कृति के वशीभूत होकर करी जाय। चर्चा हम कर रहे हैं प्रेम पुजारी के गीत सुनते हुए इसके बारे में आप झरोखा में पढ़ सकते हैं।

पहले थोड़ा बात कर लेते हैं नोट वोट की, इसकी ही ध्वनि चहुँ और सुनायी दे रही है, ब्लोगवाणी के लिये वोट की आवाज यहाँ यहाँ से आ रही है - ब्लागवाणी को वोट कीजिये, यहाँ से आ रही है हिन्‍दी को हिन्‍दी-प्रेम की बैसाखियों से आजाद करने के लिए ब्‍लॉगवाणी को वोट दें, यहाँ से आ रही है मतगणना नहीं जनगणना में भाग लेना न भूलें, और यहाँ से भी आ रही है BlogVani जिंदाबाद और ये रही पाडभारती की अपील पॉडभारती टाटा नेन हॉटेस्ट स्टार्टअप पुरस्कार के लिये नामांकित। दोनों साईट हिंदी को बढ़ावा देने के लिये सराहनीय कार्य कर रही हैं इसलिये आप दोनों को ही वोट दीजियेगा।

उत्तरांचल के शहर पिथौरागढ़ के पास एक छोटा कस्बा है वड्डा जहाँ आर्मी वाले पाये जाते हैं क्योंकि ये छावनी है, जिन लोगों को अभी तक नही पता उन्हें बता दे कि देश की राजधानी दिल्ली में भी एक जगह है अड्डा जहाँ क्या पता आपको नीतिश राज मिल जायें।

आपने जनरल नॉलेज तो पढ़ा ही होगा, अगर नही तो क्या प्राचीन कालीन चैनल दूरदर्शन में जनरल नॉलेज बांचते सिदार्थ बासु को जरूर देखा होगा। अगर ये भी नही देखा तो एक अंतिम मौका है ये जानने का कि सामान्य ज्ञान के विषय में कैसे कैसे असामान्य सवाल पूछे जाते हैं

ये ना थी हमारी किस्मत कि लाल की लाली का दीदार होता, हमें ये पहले पता होता तो अभिषेक के साथ लंच हम बृहस्पतिवार की जगह शुक्रवार को करते। खैर, अभिषेक बगैर लाली के भी हमें तुम से मिलकर बहुत अच्छा लगा।

आजकल पानी की भी अजब माया है कोई पानी में प्यासा बैठा हैं तो कहीं गजल पानी में भीग रही है। जो इन दोनों से बच गये वो पसीने से ही भीगने की कोशिश कर रहे हैं।

शब्दों के ऊपर स्टिंग ओपरेशन करने के लिये मशहूर अजित जी इस बार कैमरे के पीछे पड़ गये हैं, वो इस स्टिंग आपरेशन के बारे में बताते हुए लिखते हैं -
बहरहाल कैमरे का जन्म कमरे से हुआ। पुराने ज़माने के कैमरे किसी कोठरी से कम नहीं होते थे और उनके नामकरण के पीछे यही वजह थी।

इस पर हमारी जेहन पर यही उठता है कि कमर क्या कमरा की टांग तोड़ने से बना है या इसकी कोई और वजह है।

कवि की जाति भी कमाल की होती है, कुछ भी कल्पना कर लेती है अब देखिये राकेश जी का कहना है मन पागल कुछ आज न बोले, वहीं सीमा पहले दिल को बस्ती बता रही हैं फिर खुद ही कह रही हैं कि बड़ी उजाड़ है, आम आदमी हंसाने को कहता है ये कह रही हैं कभी आ कर रुला जाते, अगर आप जालिम किस्म के हैं तो जाईये जरा उन्हें रूला आईये। ये दूसरे अजब कवि हैं कुमुद अधिकारी, जो पहले कहते हैं कविता वैसी कुछ खास चीज नहीं है, फिर लिखते हैं ये -
यादों में किसी दिन
सागर में बड़ी सुनामी आई
बहुत सी बस्तियाँ, गुंबद, निर्माण और लोगों को बहा ले गई
लोगों के बनाए प्रेम-स्मारक
प्रेम घोलकर पी जा रही कॉफी व कॉफी-शॉप
दिल में तान बजाते वॉयलिन
और एक बार की जिंदगी में गुजारे हुए प्रेम के पल
ऐसे बह गए जैसे सपने बहते हैं
वह प्रेम, वॉयलिन का दिल और धुन
कोई नहीं देख पाया, नहीं सुन पाया
देखा और सुना तो सिर्फ़ कवि ने
और छाती से लगाकर लिखा
धरती की सुनामी, सागर और प्रेम के साथ
किताबों के अक्षर के साथ जागकर चेतना में घूमती रही
कविता वैसी कुछ बड़ी
चीज नहीं है।

निठल्लों को कोई काम-धाम तो होता नही फिर भी ना जाने कैसे उन्हें भगवान मिल जाते हैं, निठल्ले ने पूरी रामायण बांच दी उसके बाद भी अनिल रघुराज को शक है और पूछ रहे हैं - कल जो कह गए वो भगवान थे क्या? आप बतायें इस बारे में क्या ख्याल हैं आपका? अरे मैं भगवान के बारे में नही बल्कि ख्याल के बारे में आपका ख्याल पूछ रहा हूँ, थोड़ा सा हिंट ये रहा - ख्याल दो प्रकार के होते हैं।

हमें तो पहले से ही पता है अब द्विवेदी जी ने भी मोहर लगा दी है कि ये अधकचरा ज्ञान है।

पिछले साढ़े चार साल से हम और ये चिट्ठे लिख ही नही रहे हैं बल्कि एक दूसरे के ब्लोग में टिपिया भी रहे हैं और अब साढ़े चार साल बाद फुरसतिया नींद से जागे। देखिये मिनट मिनट में पोस्ट ठेलने वालों को ये बता रहे हैं ऐसे लिखा जाता है ब्लाग, चलिये देर आये दुरस्त आये।
गुरू ये तो बड़ा धांसू लिख मारा। दुनिया पलट जायेगी इसे पढ़कर। होश उड़ जायेंगे जमाने के इसे देखकर। लेकिन जब दुबार बांचते हैं तो खुद के होश उड़ जाते हैं।

"कह नहीं सकती" पढ़ने के बाद हम भी होश उड़ने के जुमले से इत्तेफाक रखते हैं।

बच्चे बड़े मासूम होते हैं, कभी कभी इसी मासूमियत में ऐसे सवाल कर देते हैं कि अच्छे अच्छों को जवाब देते नही बनता, आप बतायें अगर कोई पूछे आड़ हमारी ले कर लडते किसकी आजादी को अंकल?
आड हमारी ले कर लडते
किसकी आजादी को अंकल?
और लडाई कैसी है यह
दो बिल्ली की म्याउं-म्याउं
बंदर उछल उछल कहता है
किस टुकडे को पहले खाउं?

बडे बहादुर हो तुम अंकल
बच्चो के पीछे छिप छिप कर
बडी बडी बातें करते हो

कल ही एक शर्ट लेकर आया समझ नही आ रहा अब इसका क्या करूँ प्रभात रंजन मोहल्ले में गुहार लगाकर सबको कह रहे हैं उठो कि इस दुनिया का सारा कपड़ा फिर से बुनना होगा -
मुझे आदमी का सड़क पार करना
हमेशा अच्छा लगता है
क्योंकि इस तरह
एक उम्मीद - सी होती है
कि दुनिया जो इस तरफ है
शायद उससे कुछ बेहतर हो
सड़क के उस तरफ।

समाचारपत्र की कतरन बनाने का जुगाड़ बता रहे हैं अमित, सैलेरी बढ़ाने का उपाय बता रहे हैं कीर्तिश
झरोखा

प्रेम पुजारी, १९७० में आयी थी ये फिल्म जिसमें अभिनय किया था देवानंद, वहीदा रेहमान, शत्रुघन सिंहा और सचिन ने, संगीत से सजाया था एस डी बर्मन ने। इस फिल्म के गीत और संगीत दोनों ही काफी मधुर थे यही नही फिल्म की कहानी भी आजकल की कई फिल्मों के सामने २० ही थी। अगर अभी तक आपने ये फिल्म नही देखी तो एक बार जरूर देखियेगा, स्टोरी के लिये नही तो संगीत के लिये ही सही।

इस फिल्म के गीतः
  • फूलों के रंग से, दिल की कलम से

  • रंगीला रे

  • शोखियों में घोला जाय फूलों का शवाब

  • दूँगी तैनो रेशमी रूमाल

  • यारों निलाम करो सुस्ती

  • ताकत वतन की हम से है

  • प्रेम के पुजारी हम हैं


  • एक दूजे के लिये:
    1. कोई तो बताये ये है माज़रा क्या? ये सारे लोग ईसाई और मुसलमान क्यों बनते हैं?

    2. यमराज बोले अरे प्रहलाद तू जल और मेरे साथ चल, प्रहलाद बोले जाने दो ना (जरा ध्यान रहे बोलकर कह रहे हैं लिखकर नही)

    3. आपकी जात क्या है pandey जी?, अच्छा जात छोड़िये ये बतायें बारिश में भीगना याद है? या ये भी भूल गए

    4. सींच रही हूँ अब तक फिर भी फूलों की घाटी का अस्तिव संकट में

    5. रहने को घर नही क्योंकि पानी में घिरे हुए हैं लोग

    6. बीजेपी प्रवक्ता ने इंदौर में छलकाए जाम वो बेचारा क्या जाने इससे मस्त व्यंजन है परनिंदा रस

    7. वो मुसाफिर किधर गया होगा जो ढूँढ रहा था बस इश्‍क़... मुहब्‍बत... अपनापन

    8. पंगेबाज ने "अथ श्री दुम कथा" की छेड़ी तान जैसे ही उन्हें पता चला कुत्ते ने बचाई नवजात की जान

    9. बंद को तो बीसवीं सदी में ही छोड़ आना चाहिए था, बात तो सही है लेकिन नही छोड़ पाये तो क्या इस सदी में छोड़ पायेंगे। सोचिये खाली बोर दोपहर मे यही सोचिये, और हमको दीजिये ईजाजत, अगले शनिवार फिर भेंट होगी।

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    9 टिप्‍पणियां:

    1. खालिस मेहनत का काम है यह चर्चा करना मित्र!

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    2. और हम इस मेहनत की कद्र करते हैं... जैसे प्रेम पुजारी का गाना 'ताकत वतन की हमसे है' वैसे ही हिन्दी ब्लॉग जगत ऐसे प्रयासों से ही चल रहा है !

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    3. बहुत बढ़िया चर्चा ...एक दूजे के लिए बहुत शानदार

      वो मुसाफिर किधर गया होगा जो ढूँढ रहा था बस इश्‍क़... मुहब्‍बत... अपनापन

      बहुत बढ़िया

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    4. एक दूजे के लिए...चिट्ठाचर्चा से अटूट बन्धन रहे.

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    5. एक दूजे के लिए चकाचक है जी.. मज़ा आ गया.. ऐसी चर्चा हर शनिवार जमाए रहिए..

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    6. मेहनत रंग लाई है,
      रोचक, सुंदर, मनमोहक
      कथा बनाई है

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    7. गजब की बंदिश है ! बहुत नायाब ....!
      बधाईयाँ !

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    8. बढ़िया चिट्ठाचर्चा ।

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