बुधवार, दिसंबर 10, 2008

लड़कियाँ, तितली सी होती है

फ़ूल

आतंकवाद पर पिछले दिनों बहुत कुछ लिखा गया। आदर्श राठौर का कहना है कि कही हम लोगों को सियारों वाली आदत तो नहीं लग गयी?। अभिनव शुक्ल को समझ ही नहीं आया कि वे क्या लिखें? वे पूछते हैं-
भला लिखूं बुरा लिखूं,
ये न सोचूं कि क्या लिखूं,
उजालों को लिखूं दहशत,
अंधेरों को ख़ुदा लिखूं,


इस सवाल से कन्नी काटकर आलोक पुराणिक रा द्वारा आयोजित मुशायरे में भाग लेने के लिये निकल लिये। लेकिन सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने खामोशी छ: दिसम्बर… मना कर आज रपट जारी की।

अमेरिका की हालत मंदी के कारण बड़ी तो खराब हो ली है। बताओ गर्वनर तक गिरफ़्तार होने लगे वो भी सीनेट सीट बेचने में भ्रष्टाचार जैसे टुइयां आरोपों में। यह तो अपने यहां राजनीतिक पार्टियों के मौलिक अधिकार में आता है। उल्टे शिकायत करने वाला बाहर कर दिया जाता है। अच्छा हुआ कि भारत में यह सब बचकानी बातें नहीं होतीं वर्ना जाने कित्ते बड़े-बड़े नेताजी लोग जेल से ही चुनाव लड़ते।

रीताजी ने खरी-खरी भैया की शंका का विस्तार से समाधान किया और लिखा:
तो भैया खरी खरी, यह मेरा अपना भोगा यथार्थ है। जिन्दगी की जद्दोजहद से खुरदरी जमीन पर चलने की आदत पड़ गई है। खरी खरी सुनने पर कभी कभी मौन टूट जाता है।

कभी इलाहाबाद आयें तो मिलियेगा।


इस बीच सूचना मिली है कि जनता की बेहद मांग पर ज्ञानजी जल्द ही अपने लेख टिंकू भविष्य की आशा है का हिंदी अनुवाद शीघ्र ही जारी करेंगे ताकि लोग इसको समझ सकें।

लोग जरा-जरा बात में दुखी होने का बहाना खोज लेते हैं। लेकिन राजीव खुश रहने के कुछ सस्ते उपाय बताते हैं-
college मे ख़ुश रहो, घर में ख़ुश रहो...

आज पनीर नही है दाल में ही ख़ुश रहो...

आज gym जाने का समय नही, दो क़दम चल के ही ख़ुश रहो...

आज दोस्तो का साथ नही, TV देख के ही ख़ुश रहो...


आजादी के बाद के भारत के संक्षिप्त इतिहास में अगर आपकी रुचि हो तो आप तरुण विजय की यह पोस्ट देखें।

पश्चिम में सर्दी का मौसम आते ही क्रिसमस और बर्फ़ गिरने की बात होने लगती है। मानोसी इस पर बच्चा कविता लिखती हैं:
देखो देखो बरफ़ गिरी है
कितनी प्यारी मखमली है
चिन्टू मोनू को भी लायें
चलो बर्फ़ के गुड्डे बनायें
गोल मटोल से लगते प्यारे
गाजर नाक लगाये सारे


अभी संपन्न हुये चुनाव परिणाम की विवेचना करते हुये डा.वेदप्रकाश वैदिक ने लिखा - जनता ने अपना फ़ैसला खुद किया

नीरज ज्ञानजी के बहकावे पर हल्की-फ़ुल्की पोस्ट लिखने पर उतर आये।

प्रकाश बादल कहते हैं:
ऐसा नहीं के ज़िंदा जंगल नहीं है।
गांव के नसीब बस पीपल नहीं है।

ये आंदोलन नेताओं के पास हैं गिरवी,
दाल रोटी के मसलों का इनमें हल नहीं है।


अविनाश वाचस्पतिजी ने अभी सुबह अभिव्यक्ति में छपे अपने व्यंग्य लेख गया मेंढक कुएं में का लिंक दिया। अब बताओ भैया मेढक कुएं में न जायेगा तो कहां जायेगा?

सुप्रतिम बनर्जी अपनी पोस्ट दूसरों की निंदा करने का मंच बनते ब्लॉग!में लिखते हैं:

मीडिया के बाद ब्लॉग की दुनिया में सबसे हॉट टॉपिक आजकल आतंकवाद ही है। लेकिन ज़्यादातर ब्लॉग आतंकवाद से निबटने के तौर-तरीकों और इससे बचने पर चर्चा करने की बजाय मज़हबी नज़रिए से आतंकवाद को देखने की कोशिश में ज़्यादा नज़र आते हैं। नेताओं को गाली देने का शगल तो ख़ैर पुराना है। ईमानदारी से कहूं तो मैंने भी बारहा नेताओं को उनकी करतूतों पर लानत भेजी है, लेकिन ये भी सच है कि लानत भेजने से आगे भी सोचने की कोशिश की है।


जिन लोगों ने अभी तक अपना ब्लाग नहीं बनाया है उनकी जानकारी के लिये ई-गुरु सिखा रहे हैं -ब्लॉगर पर पहली पोस्ट कैसे लिखी जाय ?

दीपक गुप्ताजी का कहते हैं:
लोग मिलते हैं सवालों की तरह
जैसे बिन चाबी के तालों की तरह

भूख में लम्हात को खाया गया
सख्त रोटी के निवालों की तरह

घर अगर घर ही रहें तो ठीक है
क्यों बनाते हो शिवालों की तरह

दीप सा किरदार तो पैदा करो
लोग चाहेंगे उजालों की तरह



ऊपर की फोटो सिद्धेश्वर जी की ब्लाग पोस्ट से साभार!

एक लाइना



  1. रा का मुशायरा : आलोक पुराणिक की अध्यक्षता


  2. न जज, न अदालत और न ही वकील अंधे हैं :खाली किसी को कुछ दिखता नहीं है!


  3. भारतीय संस्कार: की नयी खेप के लिये पधारें


  4. आचार संहिता बंद, आ......चर संहिता शुरू : चल शुरू हो जा


  5. क्या हम पाकिस्तान होना चाहते हैं ? : सोच के बतायेंगे, लेकिन ये बतायें कि क्या-क्या आफ़र हैं इस पैकेज में?


  6. प्रिय भैया खरी खरी जी :कभी इलाहाबाद आयें तो मिलियेगा। ज्ञानजी भरतलाल के साथ आपका एक फोटॊ खींचेगे!


  7. दूसरों की निंदा करने का मंच बनते ब्लॉग!: ऐसी आजादी और कहां?


  8. सुबह जिससे हुई लड़ाई, शाम को उसीने जान बचाई :वाह क्या मजे हैं भाई


  9. ब्लॉगर पर पहली पोस्ट कैसे लिखी जाय ? : अरे ई कौन बड़ी बात है? समीरलाल तो अपनी एक ठो आखिरी पोस्ट भी लिख चुके हैं।


  10. ख्वाब इक नया चाहता हूँ: मिल जायेगा! किस रेंज में चाहिये?



मेरी पसंद


मुकेश कुमार तिवारी

इंदौर निवासी, मुकेश कुमार तिवारी की यह कविता मैंने नैनीताल में पढ़ी थी। मैंने उनकी यह पहली ही कविता पढ़ी थी। पढ़कर मन खुश हो गया। लेकिन फ़िर लिंक न मिला। मुकेश जी अपने बारे में लिखते हुये कहते हैं:
एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म, जहाँ ज़रुरते ज़ेब से बड़ी और समझदारी उम्र से बड़ी होती है. उस पर चार भाई-बहनों में बड़ा होने के नाते कुछ ज्यादा ही जिम्मेदारियों का बोझ ढोते ज़वान हो जाना. जिन्दगी को करीब से लगभग सभी रंगो में देखा, जहाँ अभावो ने सदा हौसला बढ़ाया कि हासिल करने को और भी मुकाम है सा सब़क हर कदम पर याद रहा. कविता मुझे उर्जा देती है और अपनी मुश्किलों से जूझने का हौसला भी


कल यह कविता दुबारा मिली सो आपके सामने पेश कर रहा हूं। शायद आपको भी पसंद आये।
लड़कियाँ,
तितली सी होती है
जहाँ रहती है रंग भरती हैं
चाहे चौराहे हो या गलियाँ
फ़ुदकती रहती हैं आंगन में
धमाचौकड़ी करती चिडियों सी

लड़कियाँ,
टुईयाँ सी होती है
दिन भर बस बोलती रहती हैं
पतंग सी होती हैं
जब तक डोर से बंधी होती हैं
डोलती रहती हैं इधर उधर
फ़िर उतर आती हैं हौले से

लड़कियाँ,
खुश्बू की तरह होती हैं
जहाँ रहती हैं महकती रहती है
उधार की तरह होती हैं
जब तक रह्ती हैं घर भरा लगता है
वरना खाली ज़ेब सा

लड़्कियाँ,
सुबह के ख्वाब सी होती हैं
जी चाहता हैं आँखों में बसी रहे
हरदम और लुभाती रहे
मुस्कुराहट सी होती हैं
सजी रह्ती हैं होठों पर

लड़कियाँ
आँसूओं की तरह होती हैं
बसी रहती हैं पलकों में
जरा सा कुछ हुआ नही की छलक पड़ती हैं
सड़कों पर दौड़ती जिन्दगी होती हैं
वो शायद घर से बाहर नही निकले तो
बेरंगी हो जाये हैं दुनियाँ
या रंग ही गुम हो जाये
लड़कियाँ,
अपने आप में
एक मुक्कमल जहाँ होती हैं




मुकेश कुमार तिवारी

और अंत में



कल ताऊजी बात हो रही थी। ताऊजी पहले अपने कमेंट और पोस्ट कट,कापी-पेस्ट तकनीक से करते थे। मैंने पहले भी उनको बाराहा के बारे में बताया था। लेकिन वे इसे अपने यहां प्रयोग न कर पाये शायद। कल पुन: वार्ता स्थापित हुई तो मैंने उनको बताया। सीधे कमेंट और लिखने की सुविधा पाकर उनकी बांछे (शरीर में जहां कहीं भी होती हों) खिल गयीं और वे फ़ुरसतिया की जय बोलते पकड़े गये!

कल जब ताऊ ने चिट्ठाचर्चा में टिपियाया:

शुकल जी आज आपने फ़ोन पर शानदार हथियार पकडा दिया ! आज तो बस सारे काम काज शुद्ध हिन्दी मे कर रहे हैं ! और ये टिपणी भी सिधे टीपणी बक्से मे लिख रहे हैं ! आज तो ऐसा लग रहा है जैसे बचपन मे कोई खिलोना मिलते समय लगता था !
मजा आ गया !


तो अनुपम अग्रवालजी ने लिखा:
baakee sab to theek hai .ye andha baante revree ,fir apnon ko de .
ye aapne taau ko hathiyaar kaun saa pakraa diya.gyan baaantiye kyonki usse badhtaaa hai


तो अगर जो साथी सीधे टाइप न करके कट-कापी-पेस्ट के झमेले में पड़े हों उनकी सुविधा के लिये है कि वे बाराहा का प्रयोग करें। शायद उनको अच्छा लगे।


बाकी तो सब ठीकै है।

फ़िलहाल आज इत्ता ही। कल आपकी मुलाकात शिवकुमार मिश्र जी से होगी।

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17 टिप्‍पणियां:

  1. शुक्रिया सर. आपको इस नाचीज के कैमरे से खींची तस्वीर पसंद आई - यह देख भला लगा.आप नैनीताल आए और मैं लगभग पास ही रह मिल न सका. खैर..

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  2. "नैनीताल की वादियों का खुबसुरत चित्र "

    लड़कियाँ
    आँसूओं की तरह होती हैं
    बसी रहती हैं पलकों में
    जरा सा कुछ हुआ नही की छलक पड़ती हैं
    " ह्रदय स्पर्शी भावः , शायद लडकियाँ ऐसे ही होती हैं ...."

    Regards

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  3. लड़कियाँ,
    खुश्बू की तरह होती हैं
    जहाँ रहती हैं महकती रहती है
    उधार की तरह होती हैं
    जब तक रह्ती हैं घर भरा लगता है
    वरना खाली ज़ेब सा
    सुन्दरतम कविता ! तिवारीजी को वाया आपके धन्यवाद !

    और अंत में अपने लिखा है "बाकी तो सब ठीकै है।
    तो ठीक नही जी सब चकाचक है ! मजे से हिन्दी लिख रहे हैं !

    राम राम !

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  4. लड़कियाँ, तितली सी होती है और लडके .... फ़ुरसतिया भुनगे :)

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  5. सब कुछ पक्षपाती बातें हैं लड़कियों को तितली कहा गया है, हम लड़के क्या इतने बुरे होते हैं, नहीं न. फ़िर क्यों नख-शिख वर्णन में नारियों का ही वर्णन होता है.
    अरे पुरूष चोटी नहीं रखता तो क्या जेल(कसाब को जो मिला है वह नहीं) तो लगाता है.
    और नाखून क्या हमारे नहीं होते !!
    हमको तो कोई तितला आज तक नहीं बोला.
    भौंरा ही बोल दो हम तो उतने से ही संतोष कर लेंगे.

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  6. वन लाइनर हमेशा की तरह अच्छी, और लड़कियां तो अच्छी होती ही हैं।

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  7. उनकी बांछे (शरीर में जहां कहीं भी होती हों) खिल गयीं और वे फ़ुरसतिया की जय बोलते पकड़े गये!
    ------------
    इस तरह का गलत काम करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है! :-)

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  8. अच्छी चर्चा के लिए बधाई। एक अमरीकी गवर्नर भी बाड़ की तरह खेत चर रहा है! जल्दी में आलोकजी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के बाद उर्फ कह कर रुक क्यों गये --पता नहीं, शायद इस भय से कि उन्हें ‘रा’ न चबा दिया जाय -:)

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  9. मुकेश तिवारी जी रूबरू करवाने का शुक्रिया .तितलिया .आह एक मीठी सी मुस्कान छोड़ जाती है अपने पीछे ....कल काफी गंभीर चर्चा हो गई इसलिए आज जाते परवीन शाकिर की एक नज़्म


    जाने से पहले
    उस ने मेरे आँचल से एक फिक्र बाँध दिया ..

    "I WILL MISS YOU.."

    सारा सफर ..

    खुशबू में बसा रहा ..!!

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  10. मुकेश तिवारी जी को मेरा भी अभिवादन, बहुत ही खूबसूरत कविता है। ज्ञान जी की चुटकी भी आज सटीक है, आखिर सीख ही गये मौज लेना। ताऊ जी की खुशी में हम भी शामिल हैं हम जानते हैं ऐसे नये खिलौने मिलने पर मन कैसा गार्डन गार्डन होता है , आप से अनुरोध है ऐसे ही खुशियां फ़ैलाते रहिए

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  11. मुकेश कुमारजी तिवारी की सुन्‍दर कविता के लिए धन्‍यवाद ।

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  12. बारहा के तो हम भी पुराने प्रायोजक रह चुके हैं...अब ताऊ को भी इस लिस्ट में पाकर खुशीए हुई...

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  13. इस चर्चा में 'लडकियां' पसंद आयीं !

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  14. धाँसू और फाँसू
    ताऊ के घोरे खुसियाली हुई.....
    तो, भतीजे भी खुस हुये कि ताऊ के धोरे नया मेहमान आया है !

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  15. इस चर्चा और कविता 'लडकियां, तितली-सी होती हैं, दोनों के लिए धन्यवाद.
    बराहा का प्रयोग मुझे भी मालूम नहीं था. आज देखा. पुनः धन्यवाद.

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