गुरुवार, दिसंबर 11, 2008

बच्चा पुलिस, नीतिवचन और धरम पाजी....

आज की चिट्ठाचर्चा की शुरुआत कुश की एक पोस्ट से.

कुश फिर से अपनी पोस्ट लेकर आए. पोस्ट भी ऐसी जिसके शुरुआत में ही अपने 'बेशर्म' होने का डिस्क्लेमर टाइप कुछ दिया. कुश ने लिखा;

"देखिये न मैं भी कितना बेशर्म हूँ फ़िर आ गया हु अपनी पोस्ट लेकर.. "


उनकी नई पोस्ट पढ़कर चिट्ठाकार क्या सोच सकते हैं, इसका अनुमान लगाते हुए उन्होंने लिखा;

"आप लोग सोच रहे होंगे की ये कुश साला रोज़ रोज़ अपने ब्लॉग पर कोई नयी पोस्ट लेकर आ जाता है.. और फिर हमे उसे ज़बरदस्ती पढ़ना पड़ता है.. फिर टिपियाना भी पड़ता है.. उपर से उसको पढ़ पढ़ कर बोर और हो गये है.."

इतना लिखने के बाद वे अश्योर करते हुए लिखते हैं;

"तो दोस्तो घबराईए मत आपकी इसी बोरियत को दूर करने की तरकीब लेकर आया हू.. "

चिट्ठाकारों की बोरियत को दूर करने का काम उन्होंने दो प्रसिद्द चिट्ठाकारों के लेखन की मिमिक्री करते हुए किया.

ये दो चिट्ठाकार हैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय जी और डॉक्टर अमर कुमार जी. कुश पहले भी मिमिक्री 'लिख' चुके हैं. ज्ञानदत्त पाण्डेय जी के लेखन की मिमिक्री करते हुए उन्होंने लिखा;

"उसके ठेले पर करीब दस लोग खड़े थे.. जितनी देर मैं वहा खड़ा रहा.. करीब चालीस लोगो
ने वहा से सब्ज़ी खरीदी.. इस बीच कुछ लोग भाव पूछ कर भी चले गये.. कुछ ने वश्यकता
से अधिक सब्ज़ी खरीदी.. सब्ज़ी वाले ने अपने ठेले के नीसे वाली साइड में स्टेट काउंटर लगा रखा था.. मैं हमेशा कहता हू की इस तरह के स्टेट सबको अपने ठेले पर लगाने
चाहिए.."

अभी तक ठेलने पर स्टैटकाउंटर का उपयोग होता था लेकिन कुश ने ठेले पर करवा दिया. कुश के अनुसार तो ठेलेवाले के सब्जी बेचने के रेकॉर्ड्स का ग्राफ छपा है लेकिन ध्यान से देखेंगे तो पायेंगे कि ग्राफ पर ब्लॉग का रेकॉर्ड्स है.

कहीं सब्जी वाले ब्लॉग का उपयोग सब्जी बेचने के लिए तो नहीं कर रहे?

आख़िरी समाचार आने तक यह जानने के लिए एक ब्लॉगर कमिटी के गठन की सिफारिश की जा चुकी है. मामला इस बात पर अटका है कि इस कमिटी में 'सब्जी बेचक असोसिएशन' के लोगों को जगह दी जाए या नहीं?

डॉक्टर अमर कुमार जी की मिमक्री करते हुए कुश लिखते हैं;

"रूकावट के लिए खेद है..., मुसलचंद खरदूषनचंद की वारिस पंडिताइन यहा तांकझांक कर
हंसते हुए चली गयी, जाते जाते एक बोली कस गयी वा अलग से, "यह क्या अलाय बलाय लिख रहे हो? न कोई सर पैर है, न कोई विषय! अगर किसी की टिप्पणी आएगी भी तो यही होगी की आप जैसे चुगद को लिखने उखने की कोई तमीज़ भी है?" उनका हसना फिर शुरू हो गया.. हंस लो भाई हंस लो... आपकी इसी हँसी में तो मेरी ज़िंदगी फँसी है!"

कुश के लेख को पढ़कर ढेर सारे चिट्ठाकारों की बोरियत दूर हो गई. उनकी इस पोस्ट पर टिप्पणी करने वाले हर चिट्ठाकार ने सूचना दी कि वे सब खूब हँसे.

विश्वस्त सूत्रों के अनुसार बोरियत दूर करने के लिए लिखी गई इस पोस्ट का उपयोग आज संसद के वर्षाकालीन अधिवेशन में सांसदों की बोरियत दूर करने के लिए किया जानेवाला है. सुनने में आया है कि आज हमारे रेलमंत्री संसद में नहीं रहेंगे.

कुश की इस पोस्ट को पढ़कर ढेर सारे चिट्ठाकारों ने उनकी सोच को कमाल का बताया. डॉक्टर अनुराग ने कुश को ओरिजिनल ठेलक बताते हुए अपनी टिप्पणी में लिखा;

"कोई संतई नही ,कोई आतंकवाद नही ...इसे कहते है ओरिजनेलक ठेलक ....या असल की
नक़ल .....समझे वतन के सजीले नौजवान !"


डॉक्टर अनुराग की टिप्पणी से ये भी पता चला कि कुश ने उनसे अपनी फ़िल्म ब्लागीवुड के शोले में वीरू के किरदार की जो एक्टिंग करवाई थी, उसके पैसे उन्हें नहीं मिले हैं. अनुराग जी पैसे के एवज में ब्लॉग टेम्पलेट मांगते हुए बरामद हुए. उन्होंने अपनी टिप्पणी में आगे लिखा;

"वैसे तुम्हारे टेम्पलेट पर हमारी नजर पड़ गई है ,पिक्चर के पैसे तो देते नही ...अब
एक दो टेम्पलेट ही दे दो..."

अपनी लेखन स्टाइल की मिमिक्री पर डॉक्टर अमर कुमार जी ने भी टिप्पणी की. उनकी टिप्पणी से पता चला कि उनका मन ब्लागिंग से भरा हुआ है.

उनकी टिप्पणी पढ़कर शिव कुमार मिश्र ये सोचते रहे कि डॉक्टर साहब के 'मन में ब्लागिंग भरी हुई है' या वे 'ब्लागिंग से बोर' हो लिए हैं. अपनी टिप्पणी की शुरुआत करते हुए डॉक्टर साहब ने लिखा;

"ब्लागिंग से मन भरा हुआ है, फिर भी.."

टिप्पणी में वे आगे लिखते हैं;

"पन, अपुन को पेग तो चढ़ाइच नहीं,
चढ़ने नईं सकता, हाज़मा चाइयेराले बाप, हाज़मा !
खाली पीली फ़र्ज़ी पेग चाहे जितना पिला ले, अपुन को चलेंगा !"

कुश के लेखन को झक्कास बताते हुए डॉक्टर साहब ने कुश को इनाम देने की इच्छा जताई. लेकिन इनाम देने की उनकी पेशकश भी 'सब्जेक्ट टू' नामक क्लॉज़ के साथ थी. उन्होंने लिखा;

"पन, झक्कास लिखता है,. तू तो रे ?
अपुन तुमको इनाम देना माँगता भाई कुश, ..
बोल क्या माँग रैला यै ?

पन, वो लड़की नहीं माँगने का, जो तेरे को भाई नहीं बोलती...
वोइच तो लफ़ड़ा है, जो तू खुराफ़ात करने को टाइम पायेला है !"


हाल ही में दिल्ली में चुनाव हुए. दिल्ली में चुनाव हों और अलोक पुराणिक जी चुनावों पर कुछ न लिखें, ऐसा हो नहीं सकता.

आज अलोक जी ने कवि जालीदास द्बारा रचित 'चुनाव प्रपंच' नामक महाग्रंथ से लिए गए कुछ पंच, सॉरी छंद की व्याख्या की. चुनाव प्रपंच से लिया गया एक छंद है;

"वोटाणि, खोटाणि, च वार्ता आफ हार्ड पोटाणि
तदापि ना पिघला वोटर, सिर पर पड़ा सोटाणि
चालू वोटर च टालू प्रेमिका की पूछो ना बात
कोई ना जान सका, कोई ना बूझ सका हे तात"

इस छंद का भावार्थ बतलाते हुए आलोक जी लिखते हैं;

"जालीदास ने यह कवित्त खास तौर पर उन कैंडीडेटों की दशा और दिशा पर लिखा है, जो
चुनावों के रिजल्ट आने के बाद हार कर पस्त पड़े हुए हैं.चुनाव से पहले वोटों की
वार्ता की, तरह तरह के खोटों से रिझाने की कोशिश की. पोटा लगाने की बात की. पर वोटर
नहीं ना पिघला और उसकी प्रतिक्रिया सर पर सोटे के समान पड़ी है."

महाग्रंथ से लिया गया एक और छंद है;

बदला यहां का खेला
मजनू ना पहचानंति लैला
रोमियो के करीब जो पहुंची जूलियट
रिस्पांस मिला, चल हट
वोटर को देख लगा यूं करेंट

जैसे उधारखाऊ ने देख लिए हों वसूली एजेंट

उपरोक्त छंद का भावार्थ समझाते हुए आलोक जी लिखते हैं;

"चुनाव के बाद का खेल बदल गया है. मजनू लैला तक को पहचानने का इनकार कर रहा है. मजनू की इंटेशन साफ है कि अब चुनाव निपट गया है, लैला बतौर वोट यूज हो चुकी है. अब काहे को भाव दिया जाये. इसी तरह से जूलियट भी जब रोमियो के करीब पहुंची, तो उसे बताया गया चल हट, चुनावी बेला निपट ली है."

वैसे लैला और मजनू के मनोभावों को व्यक्त करते इस छंद पर ज्ञानदत्त पाण्डेय जी ने अपने निजी विचार व्यक्त किए. इसे प्रेम-गेम का सेमी-फाईनल करार देते हुए उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा;

"अगर मंजनू यह कर रहा है तो महान चुगदाचार्य है. प्रेम गेम का यह तो सेमीफाइनल था.
लैला के घर के आस पास जल्दी ही फाइनल के लिये चक्कर लगाने पड़ेंगे. बेहतर है भूल
जाये कि लैला कल किसके साथ डिनर पर गयी थी. वह उसे चोखी ढ़ाणी या फलाने फाइवस्टरार होटल में डिनर कराने का ऑफर सतत बरकरार रखे."

समीर भाई पहली बार जिस फाइव स्टार होटल में घुसे थे, वो था ताजमहल होटल. वही ताज जो हाल ही में आतंकवादियों का शिकार बन गया.

ताज के बारे में अपनी पोस्ट की शुरुआत वे शेर टाइप किसी चीज से करते हुए लिखते हैं;

अब न वो ताज रहा, औ न उसके चाहने वाले !
सहम के आते हैं, इस मुल्क में, वो जो हैं, आने वाले !!

उनका लिखा हुआ ये शेर भारतवर्ष में टूरिज्म इंडस्ट्री के भविष्य के बारे में एक इशारा सा करता प्रतीत होता है. एक चार्टर्ड एकाउंटेंट, जो कवि भी है, अर्थ-व्यवस्था या आतंकवाद की बात करेगा तो भी कविता में ही करेगा.

अपनी प्रथम फाइव स्टार होटल-यात्रा के बारे में याद करते हुए समीर भाई लिखते हैं;

"अपनी सबसे बेहतरीन वाली सिल्क की गहरी नीली कमीज, जो अमिताभ नें मिस्टर नटवर लाल में पहनी थी, वो प्रेस करवाई. साथ में सफेद बेलबॉटम ३४ बॉटम वाला."


बंबई में रहने का यही फायदा है. एक छात्र भी अमिताभ बच्चन द्बारा मिस्टर नटवरलाल फिलिम में पहनी हुई कमीज की प्राप्ति कर सकता है.

जवानी पर फैशन के असर की बात करते हुए समीर भाई लिखते हैं;

"जवानी का यही बहुत बड़ा पंगा है कि आदमी यह नहीं सोचता कि उस पर क्या फबता है. खुद का रंग रुप कैसा है. वो यह देखता है कि फैशन में क्या है. जब तक यह अच्छा बुरा
समझने की समझ आती है, तब तक इसका असर होने की उमर जा चुकी होती है. दोनों तरफ लूजर."

पहली बार फाइव-स्टार होटल में गए एक छात्र से क्या हो सकता है, इसके बारे में बताते हुए समीर भाई लिखते हैं;

"कॉफी आई तो आम ठेलों की तरह हमारा हाथ स्वतः ही वेटर की तरफ बढ़ गया आदतानुसार कप लेने के लिए और वो उसके लिए शायद तैयार न रहा होगा तो कॉफी का कप गिर गया हमारे सफेद बेलबॉटम पर."

दिनेश राय द्विवेदी जी ने समीर भाई के इस फाइव स्टार होटल-यात्रा को एक अनुभव बताया और उनके अनुभव को सलाम किया. उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा;

"आप के अनुभव को सलाम!"

अजित जी के ब्लॉग पर आजकल पल्लवी त्रिवेदी जी का 'बकलमखुद' छप रहा है. पल्लवी जी ने पुलिस डिपार्टमेंट में सेलेक्शन और ट्रेनिंग के बारे में अपने अनुभव के बारे में चर्चा की है. वे लिखती हैं;

"उस वक्त मैं बहुत दुबली पतली थी और एकदम बच्ची दिखती थी! सभी दोस्त " बच्चा पुलिस " कहकर चिढाते थे! एक बार आभा ने मेरे सर पर टमाटर रखकर रूमाल बाँध दिया!और तब से मैं उसके लिए " सरदार बच्चा " बन गयी और वो मेरे लिए " प्राजी" !"


अपनी ट्रेनिंग के दिनों के बारे में उन्होंने बहुत खूब लिखा है. ट्रेनिंग के दौरान law की क्लासेस के बारे में लिखते हुए उन्होंने बताया कि;

"पी.टी. परेड के बाद बोरिंग लम्बी law की क्लासेस बड़ी अखरती थीं ! ! सोने का विशेष गुण देकर प्रथ्वी पर भेजा था ईश्वर ने...सो क्लास में भी नींद लगते देर न लगती! ऊंघते आंघते जैसे तैसे थ्योरी क्लास निपटाते."

ट्रेनिंग के एपिसोड के बारे में लिखे गए उनके अनुभव पर दिनेश राय द्विवेदी जी ने अपनी टिप्पणी में लिखा;

"ये ट्रेनिंग का एपीसोड ऐसा है जैसे हम रुई के गोले पर धागा लपेट गेंद बनाने के बाद
रबर के पेड़ का दूध पिला रहे हों."

द्विवेदी जी कभी-कभी एक ही लाइन में इतनी सधी हुई टिप्पणी दे जाते हैं कि पढ़कर एक अलग अनुभव होता है.

प्रमोद जी को अभी तक यही लगता था कि पल्लवी जी केवल पीटती हैं. पता नहीं उन्होंने कब प्रमोद जी को पकड़ लिया था लेकिन उस घटना की याद करके और पल्लवी जी का लिखा हुआ पढ़कर प्रमोद जी ने समुचित आश्चर्य प्रकट किया.

प्रमोद जी ने अपनी टिप्पणी में लिखा;

"अरे, तो आप लिखती भी हैं? हमें तो जब पकड़ा था हम यही सोचते रहे थे कि सिर्फ़
पीटती हैं?"

पल्लवी जी ने प्रमोद जी को कब पकड़ा था, इस बात का खुलासा शायद बकलमखुद के अगले एपिसोड में हो. हमें उस एपिसोड का इंतजार है.

आज ज्ञानदत्त पाण्डेय जी ने संस्कृत के नीतिशतक 'भर्तृहरि शतकम्' के अंग्रेज़ी अनुवाद का हिन्दी अनुवाद करते हुए दो नीतिवचन पेश किए. ये नीतिवचन मूर्ख, विद्वान् और दम्भी को प्रसन्न करने के बारे में है.

किसे सरलता से, किसे कठिनता से और किसे कोशिश करने के बाद भी प्रसन्न नहीं किया जा सकता है? इसके बार में लिखा गया है;

"एक मूर्ख को सरलता से प्रसन्न किया जा सकता है. बुद्धिमान को प्रसन्न करना और भी
आसान है. पर एक दम्भी को, जिसे थोड़ा ज्ञान है, ब्रह्मा भी प्रसन्न नहीं कर सकते."


भर्तृहरि के नीतिवचन शायद अनूप शुक्ल जी को अच्छे नहीं लगे. लिहाजा वे भर्तृहरि को ग़लत साबित करने के लिए कमर कसे हुए हैं. वे शायद अबतक ऐसा कर चुके होते लेकिन दम्भी के यूआरएल के अभाव में ऐसा नहीं हो सका.

अपनी टिप्पणी में वे लिखते हैं;

"दंभी का यू आर एल मिलता तो हम भी कोशिश करते भर्तृहरि जी को गलत साबित करने को!"


ब्लॉग-समाज के सदस्यों ने दम्भी के करीब अट्ठावन यूआरएल खोजकर अनू जी को फॉरवर्ड किया लेकिन अनूप जी की समझ में नहीं आ रहा कि इन अट्ठावन यूआरएल में से कौन सा यूआरएल सबसे ऊंचे दर्जे के दम्भी का है.

एक शायर अपनी शायरी की प्रेरणा यहाँ-वहां, जहाँ-तहां से ले सकता है. लेकिन अगर एक शायर अपनी प्रेरणा धरम पाजी से ले तो उन्हें क्या कहेंगे?

शायद ही-मैन शायर.

जी हाँ, मैन नीरज गोस्वामी जी की बात कर रहा हूँ. फिलिम के दीवाने हमारे नीरज भइया ने आज चवन्नी चैप ब्लॉग पर धरम जी कि 'फिलिम' धरमवीर देखने के अपने अनुभव के बारे में लिखा है. एक तो धरम जी और दूसरे उनकी 'फिलिम' लुधियाना में देखना. दोनों बातें मजेदार!

टिकेट नहीं मिलने से उपजी स्थिति से निबटने के लिए किए गए अपने प्रयास के बारे में नीरज गोस्वामी जी लिखते हैं;

"धरम पाजी दा जवाब नहीं" वाक्य आप वहां खड़े हर दूसरे सरदार जी से सुन सकते थे. बहुत लम्बी लाइन लगी हुई थी टिकट के लिए...इसकी कोई सम्भावना नहीं थी की लाइन में खड़े हो कर टिकट मिल सकेगा. मेरे परिचित हार मानने वाले कहाँ थे मुझसे बोले एक काम करते हैं मनेजर से मिलते हैं, आप सिर्फ़ उसके सामने इंग्लिश बोलना और कहना की जयपुर से आया हूँ और धर्मेन्द्र पाजी का बहुत बड़ा फेन हूँ...बस, काम हो जाएगा."

सिनेमा हाल के 'भित्तर' की स्तिथि का वर्णन और भी मजेदार है. वे लिखते हैं;

"बैठने के बाद मैंने देखा की लगभग हर दूसरा सरदार अपनी पगड़ी खोल कर फेहराता और पाँच छे सीटों को ढक लेता...जिसकी पगड़ी के नीचे जितनी सीटें दब गयीं वो उसकी..." ओये मल लई मल लई सीट असां" ( हमने सीट रोक ली है) का शोर मचा हुआ था."

उनकी इस पोस्ट को पढ़कर प्रशांत (पीडी) ने नीरज जी को धरम पाजी जित्ता ग्रेट बताया. अपनी टिप्पणी में लिखा;

jabardast niraj paa ji..
tussi chha gaye..
kya sama bandha hai ji..
tussi to dharam pa ji jitta hi great ho.. :)

ये चर्चा लिखते हुए काफी समय लग गया. (करने में काफी समय नहीं लगता). यही कारण है कि अभी एक लाईना नहीं लिख रहा हूँ. एक लाईना रात को ज़रूर लिखूंगा.

हाँ, एक कविता 'अपनी पसंद' की ठेल रहा हूँ.

क्या बताये आपसे हम हाथ मलते रह
गीत सूखे पर लिखे थे, बाढ़ में सब बह गए
भूख, महगाई, गरीबी इश्क मुझसे कर रहीं थीं
एक होती तो निभाता, तीनो मुझपर मर रही थीं

मच्छर, खटमल और चूहे घर मेरे मेहमान थे
मैं भी भूखा और भूखे ये मेरे भगवान् थे

रात को कुछ चोर आए, सोचकर चकरा गए
हर तरफ़ चूहे ही चूहे, देखकर घबरा गए
कुछ नहीं जब मिल सका तो भाव में बहने लगे
और चूहों की तरह ही दुम दबा भगने लगे

हमने तब लाईट जलाई, डायरी ले पिल पड़े
चार कविता, पाँच मुक्तक, गीत दस हमने पढे
चोर क्या करते बेचारे उनको भी सुनने पड़े

रो रहे थे चोर सारे, भाव में बहने लगे
एक सौ का नोट देकर इस तरह कहने लगे
कवि है तू करुण-रस का, हम जो पहले जान जाते
सच बतायें दुम दबाकर दूर से ही भाग जाते

अतिथि को कविता सुनाना, ये भयंकर पाप है
हम तो केवल चोर हैं, तू डाकुओं का बाप है

---हुल्लड़ मुरादाबादी

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31 टिप्‍पणियां:

  1. चिटठा चर्चा का नाम कुछ चिट्ठो की नियमित चर्चा कर दे तो ठीक रहेगा

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  2. बहुत मजेदार रही चर्चा ! एक लाईना का इंतजार करते हैं तब तक !

    राम राम !

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  3. @ धीरू सिंह जी

    आपका सुझाव ब्लॉग माडरेटर तक पहुँचा दिया जायेगा.

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  4. मै भी धीरू जी की बात का समर्थन करती हूँ.
    सिर्फ़ कुछ चिट्ठों और चिट्ठाकारों का समूह हमेशा छाया रहता है
    मै ख़ुद इतना नही लिखती कि मै अपेक्षा करूँ पर और बहुत से लोग काफ़ी अच्छा लिखते रहते हैं
    मुझे लगा था कि चिटठा चर्चा एक रेफरेंस की तरह होगा पर ऐसा नही है.

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  5. मैं धीरू जी की तरह नहीं बोलूंगा . चिट्ठा चर्चा नाराज हो गया तो .

    पल्लवी जी को सम्मिलित करने के लिये धन्यवाद.

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  6. मिश्रजी, आधी चर्चा तो कुश की पोस्ट के बहाने ठेल गए।
    >समीरलालजी ताज से डर गए और बेताज टूरिस्ट बन गए - तो फिर उडन तश्तरी के उडन प्याला का क्या होगा?
    >पल्लवीजी, हम जानते हैं कि पुलिस में भीतर जाने वाला दरवाज़ा दुबला-पतला होता है और बाहर निकलने वाला भारी-भरक्म॥
    >इंटरवल के बाद के सीरियल का इन्तेज़ार रहेगा।

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  7. बेहतरीन तो है ही, पर..
    इतनी विशद चर्चा
    में कितना टाइम खर्चा
    शिवभाई ?

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  8. धीरू सिंह जी ने अपने सुझाव में लिखा;

    "चिटठा चर्चा का नाम कुछ चिट्ठो की नियमित चर्चा कर दे तो ठीक रहेगा."

    धीरू सिंह जी का कहना कुछ हद तक ठीक है. लेकिन एक बात मैंने कहना चाहता हूँ. आज मैंने चर्चा की. मेरी चर्चा में पाँच-छ पोस्ट की चर्चा होती है. लेकिन धीरू सिंह जी को यह बात समझने की ज़रूरत है कि सारे चर्चाकार मेरी तरह नहीं लिखते. अनूप जी, मसिजीवी जी, कुश जी, विवेज विवेक सिंह जी और कविता जी ढेर सारे चिट्ठों और पोस्ट का न सिर्फ़ जिक्र करते हैं बल्कि लिंक भी देते हैं.

    और जहाँ तक निशा जी की टिप्पणी की बात है तो मैं स्वीकार करूंगा कि मैं अच्छे लेखकों के चिट्ठे इस चर्चा में शामिल नहीं कर सका. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि बाकी के चिट्ठाकार भी नहीं करते. कविता जी, कुश जी, मसिजीवी जी, विवेक जी वगैरह अच्छे लेखकों की पोस्ट का जिक्र ज़रूर करते हैं.

    इसलिए मेरा कहना यही है कि केवल मेरी की गई चर्चा को आधार मानकर ऐसा न कहा जाय. मेरी भी कोशिश रहेगी कि अगली बार से अच्छे लेखकों के पोस्ट की चर्चा ज़रूर करूँगा.

    हिमांशु जी की पोस्ट को मैंने अपनी पिछली चर्चा में शामिल किया था. उन्होंने उसदिन मुझे धन्यवाद किया था. आज मैं उनकी पोस्ट को शामिल नहीं कर सका इसलिए उन्होंने पल्लवी जी के बिहाफ पर धन्यवाद दिया.

    हिमांशु जी को धन्यवाद देने के लिए मेरा धन्यवाद.

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  9. शरीफ-बदमाश लोगों की मिमिकरी करना कुश जैसा चण्ट चिठेरा ही कर सकता है, या फिर शिवकुमार मिश्र।
    एक चिठ्ठा लिख रहा है और दूसरा चर्चा कर रहा है तो हमारी क्या चलेगी जी! :-)

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  10. बड़े ही लगन से मन लगा कर की गई चर्चा का फारमेट पसंद आया. शिव भाई इस मेहनत और फारमेट के लिए साधुवाद के पात्र हैं. बाकी विमर्श जारी रहे, मेरी शुभकामनाऐं.

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  11. चिट्ठा चर्चा अब चरचा के लायक होती जा रही है।
    अब इसे किस्मत कहें या बदकिस्मती, लगता है मैं चिट्ठाकार से टिपियारे की श्रेष्ठता की और आगे बढ़ रहा हूँ।
    हाँ हुल्लड़ जी की पैरोडी पसंद आई।

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  12. अच्छे लेखक ?
    सभी तो फ़न्नेखाँ राइटर-ब्लागर हैं !!

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  13. धीरूसिंह जैसे और लोग भी होंगे जो उनकी जैसी धारणा रखते होंग। मेरे जैसे भी कई होंगे जो उनके मत से नाइत्तेफाकी रखते होंगे। मैं शिवकुमारजी से सहमत हूं। सबकि अपनी अपनी शैली है। मुझे याद है कि एक अर्से तक चिट्ठाचर्चा पर कोई भी सहयोग देने नहीं आता था। हफ्ते भर भी इस पर कोई समीक्षा नहीं लिखी जाती थी। अकेले अनूपजी ने इसे सक्रिय किया । ढूंढ-ढूंढ कर चिट्ठों के बारे में लोगों को बताया। ये उनका अंदाज ही था कि लोग इससे जुड़ते चले गए। आज तो सहयोगी भी कई हैं तो जाहिर है सबकी अलग शैली भी होगी। अपनी कहूं तो मुझे कई चिट्ठों की जानकारी तो सिर्फ चिट्ठाचर्चा के जरिये ही हुई है। कुश, पल्लवी , ताऊ, रख्शंदा जैसे नामों और उनके ब्लागों से मेरा परिचय चिट्ठाचर्चा की मार्फत ही हुआ। यहां अगर सिर्फ कुछ ही चिट्ठों की चर्चा होती तो मैं इतनें लोगों से कैसे मिल पाता ? यह संख्या लगातार बढ़ रही है।
    मुझे लगता है किन्हीं चिट्ठों की लगातार सक्रियता से वे अक्सर चिट्ठाचर्चा में स्थान पाते हैं तो इसमें क्या खराबी है ? देखनेवाली बात ये है कि सभी चर्चाकारों की चर्चाओं में ऐसे प्रमुख नाम कॉमन हैं।

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  14. मै निरंतर इस बात को कह रही हूँ की चिट्ठा चर्चा मे बार बार बात घूम कर कुछ ही ब्लॉग पर सिमिट जाती हैं . ये बात मैने अनूप जी की पोस्ट पर भी दो दिन पहले कहीं और उससे पहले भी कहा हैं . ये ठीक हैं की ये मंच हम से पहले आए ब्लोग्गेर्स की महनत का परिणाम हैं पर अगर आप ने मंच को सार्वजनिक कर दिया हैं तो फिर चर्चा को विस्तार दे . हर दिन नये ब्लॉग { 10 या १२ } लिये जाए और उनके बारे मे विस्तार से बात हो और कम से कम जब तक 100 ब्लॉग पूरे ना हो जाए जिन ब्लोग्स की चर्चा हो चुकी हैं उन पर दुबारा ना बात हो .
    या इसको चिट्ठा चर्चा ना कह कर दैनिक पोस्ट चर्चा कहें ताकि हम सब को इस से कोई ऐसी उम्मीद ना हो की हमारा ब्लॉग क्यूँ नहीं हैं .
    धीरू सिंह, निशा की बात का मै समर्थन करती हूँ . मंच के अभिभावक से निवेदन हैं की मंच को "बच्चा " ना रहने दे कुछ " बड़ा " करे क्युकी हिन्दी ब्लोगिंग अपने शैशव काल से बाहर आ गयी हैं . या बिल्कुल साफ़ सूचित कर दे की ये मंच सार्वजनिक नहीं हैं पर्सनल ब्लॉग हैं , कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिसमे अपनी पसंद के ब्लॉग की ही चर्चा होगी .

    this comment is being posted in larger context and interest . its not just related to mr shiv kumars charcha and in no way should be seen as any critisim of his hard work

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  15. कितने चिट्ठे कवर हुए इस विवाद से हमें क्या.. हम तो उतने भी नहीं पढ़ पाते जितने यहाँ चर्चित हैं. हमें तो चर्चा पसंद आई.

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  16. काफ़ी देर तक मेरी पोस्ट का ज़िक्र देखकर मुझे भी कुछ अजीब सा लगा.. दरअसल आदत नही है इसलिए.. धीरू सिंह जी को जो लगा वो मुझे भी लगा.. और खुशी हुई की उन्होने बेबाकी से अपनी राय दी.. मैं पहले भी कह चुका हू. चिट्ठा चर्चा को ऐसे ही पाठक चाहिए जो प्रशंसा के साथ साथ आलोचना भी करे.. जिससे की इसे भविष्य में और बेहतर बनाया जा सके..

    आज की पोस्ट में शिव कुमार जी अधिक पोस्ट शामिल नही कर पाए जो की स्वाभाविक है.. मैने खुद ने भी चर्चा की है इसलिए समझ सकता हू ये बहुत मेहनत का काम है.. इसमे काफ़ी वक़्त भी लगता है.. तो ये थोड़ा मुश्किल होता है की सभी ब्लॉग्स को शामिल किया जाए...

    आज की चर्चा में जिन पोस्ट का उल्लेख हुआ है.. उनका विस्तार से वर्णन करता हू..

    सबसे पहले मेरी पोस्ट.. आज प्रकाशित हुई है.. इस से पहले मैने अपने ब्लॉग पर पोस्ट लिखी थी 3 दिसंबर को.. और आज है 11 दिसंबर यानी की 8 दिनो तक मेरी ब्लॉग की चर्चा नही हुई थी..

    दूसरी पोस्ट है समीर लाल जी की.. उन्होने आज लिखी है 11 को इस से पूर्व उन्होने 8 दिसंबर को लिखा था.. और इस से पहले तो उन्होने एक दिसंबर को पोस्ट लिखी थी.. यानी ग्यारह दिन में 3 बार चर्चा हुई..

    तीसरी पोस्ट है.. बकलमखुद.. जो आज शामिल की गयी है. इस से पहले बकलमखुद कॉलम में 28 नवंबर को लिखा गया था.. यानी करीब 12-13 दिन से इस बारे में कोई पोस्ट नही आई चर्चा में..

    उसके बाद पांडे जी की पोस्ट है.. ये रोज़ इसलिए भी मिल जाती है.. क्योंकि पांडे जी रोज़ लिखते है..

    इसके बद चवन्नी चैप ब्लॉग की पोस्ट है.. मुझे याद नही आख़िरी बार चवन्नी चैप ब्लॉग की पोस्ट कब थी चर्चा में..



    इस महीने में यानी 11 दिनो में दो बार से ज़्यादा चर्चा किसी ब्लॉग की नही हुई (पांडे जी को छोड़कर)... यानी बाकी के 9 दिनो तक दूसरे ब्लॉग्स की चर्चा हो रही थी..


    फिर दस में से एक दिन ऐसा हो भी जाता है की हम सभी ब्लॉग्स को शामिल नही कर पाते.. परंतु इसके लिए चर्चाकार.. को उलाहना देने के बजाय उन्हे सुझाव दिया जाए तो मैं समझता हू ये ज़्यादा बेहतर है..

    बाकी पाठकगण सभी समझदार है.. ज़्यादा क्या कहु..

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  17. आदरणीय मिश्रा जी
    मैंने चिटठा चर्चा पर टिप्पणी की ,आप पर नहीं . ऐसा नहीं चिटठा चर्चा पर मेरी चर्चा नहीं हुई. सबसे पहली पोस्ट जिस पर मुझे टिप्पणी मिलने से पहले चिटठा चर्चा मे उसकी चर्चा हुई . खैर एक बेबजह विवाद खडा हुआ .मैं अपने को दोषी मानते हुए माफ़ी मांगता हूँ

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  18. भाई कुश आप के कमेन्ट से मे इतना ही समझी की आप और समीर जब भी लिखेगे तो चर्चा मे आना एक दम जरुरी हैं और जैसा की आपने ख़ुद कहा की पाण्डेय जी रोज लिखते हैं सो रोज चर्चा होगी ही .
    कुछ विरोधाभास हैं भाई कुश क्युकी अब
    या तो
    आप रोज की सक्रियता को बताते हैं चर्चा मे होने की वजह
    या
    आप कुछ चर्चित { भाई आप तो सबसे चर्चित हैं कहीं भी कमेन्ट दे दे पोस्ट बन जाती हैं !!!!!!!!!!! } ब्लॉगर की पोस्ट होने की वजह से चर्चा मे होना निरंतर जरुरी हैं !!!!!!!!
    ज़रा विस्तार से बता दे ताकि सुझाव दिये जा सके { वैस सुझाव देना इतना आसन नहीं हैं जितना आप सोचते !!! हैं } बड़ा दिमाग लगान पड़ता हैं और टाइम { इसकी कीमत हैं क्या कुछ ? } भी देना पड़ता हैं . जबकि हेमी पता हैं की सुझाव पर ध्यान दिया नहीं जाएगा !!!!
    कुश जवाब जरुर दे ताकि सबका विरोधाभास दूर हो

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  19. मैं आज तक शिवकुमार जी के ब्लॉग पर नही गया और न ही वे कभी मेरे पर आए ! चर्चा की बात तो दूर रही ! दोनों मिश्रा हैं और कुछ न कुछ अक्ल भी उधार मिली हुयी है .यह एक स्ट्रेंज मामला है -पर क्या यह महज एक संयोग है ? वैसे मैं बड़े ब्लागों पर नही जाता -उन्हें मुद्रण माध्यमों में ही निपटाता हूँ -जैसे पुराणिक जी हुए ,अशोक चक्रधर जी आदि आदि .वे भी मेरे प्रिय हैं पर मैं उनके ब्लॉग क्यों नही पढता ,विश्वास कीजिये मैं अपने दिमाग का गुलाम हो गया हूँ -वह पढने की इजाजत ही नही देता ! शिवकुमार जी को लेकर ऐसी ही कोई ग्रंथि मन में आ गयी है -निसंदेह मेरे दिमाग ने उन्हें भी बड़े लोगों की कोटि में रख दिया -न जाने कब से ! जबकि सुना है और मैं कनविंस भी हूँ कि वे भी ब्लागजगत के एक चतुर चितेरे हैं और उतने बड़े भी नहीं हैं .मैं भी शायद एक बुद्धिजीवी की काबिलियित जरूर रखता हूँ तभी ऐसा अजीब सा होता आ रहा है -वह बुद्धिजीवी ही कैसा जो कुछ सनक -idiosyncracy न पालता हो ! तो बंधुओं इस असहजता को भी सहज होकर लें -यदि किसी की चिट्ठा चर्चा में अन्यान्य कारणों से चर्चा नही होती तो इसका मतलब यह नही की जीवन ख़त्म हो गया ! अन्य संभावनाओं को खंगालिए ! चट्ठा चर्चा कोई श्रेष्ठता का मानक नही है ! यहाँ भी विषयनिष्ठता है ,अपने स्नेह सम्बन्ध हैं -ओब्लिगिसंस हैं ! इसे लेकर हो हल्ला करने की न तो कोई जरूरत है और न ही इसे कोई हल ही निकलेगा ! या निकलेगा अनूप जी ?

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  20. नहीं, धीरू सिंह को माफ़ी नहीं मिलनी चाहिये..
    जागरूक और बेबाक होना कोई अपराध नहीं है !
    विगत कई दिनों से चल रही विभिन्न मुद्दों पर बहस एक बहुत ही स्वस्थ संकेत है !
    आंशिक रूप से रचना जी से सहमति और असहमति के बीच डोलते हुये भी..हम, कम से कम मैं तो यही चाहता हूँ, कि इनसब मुसाहबे से निचुड़ कर चिट्ठाचर्चा ' नन दैन एनदर ' का स्वरूप निखर कर आये !
    चर्चाकार-मंडली की भैंस को डंडा मारना, सायास ही कोई क्यों चाहेगा ?
    चिट्ठाचर्चा पर इतनी चिल्ल-पों और पाठकों द्वारा इसपर इतना अधिकार जताना, इस मंच की जीवंतता का प्रतिमान है, न कि निकृष्टता का..
    रचना जी सहित अन्य चिट्ठाप्रेमियों से मैं आग्रह करूँगा, कि इस मंच पर रोमन में टिप्पणी देने से परहेज़ करें !
    भाषा चाहे हिन्दी हो.. या अंग्रेज़ी, यदि अपने मूल स्वरूप में दिखे, तभी उसकी गरिमा बढ़ती है !

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  21. वैसे टाइम तो आज नहीं है हमारे पास, पर फिर भी चूँकि फुरसतिया ने सिखाया है तो हर फटे में टाँग अडाना भी जरूरी है . है कि नही ? हाँ तो हम अपने विचार व्यक्त कर रहे थे . हमारे विचार निम्नलिखित हैं : ये जो चिट्ठा चर्चा है वह सार्वजनिक है और इसमें सभी चर्चाकार हैं पाठकों समेत . बल्कि यह कहें कि असली मजा तो नीचे यानी टिप्पणियों में ही है . ऊपर वाला सामान तो एग्रीगेटर से भी लोग पढ लेते हैं और जैसा कि कुछ अन्वेषी लोगों ने बताया था कि यहाँ से पढने कम ही लोग जाते हैं . चर्चाकार का उद्देश्य तो यहाँ सिर्फ एक ऐसा मुद्दा मुहैया कराना होता है जिस पर अधिक से अधिक लोग अपने विचार व्यक्त कर सकें . और उसी में नई चीजें निकलती हैं . यदि चर्चाकार से कोई जरूरी बात छूट जाती है तो पाठकों से विनम्र निवेदन है कि वे टिप्पणियों में उठाएं उन्हें . बाकी हम चाहते हैं कि अधिक से अधिक लोग यहाँ आएं और खूब बहस हो . इसी चक्कर में कई बार ऐसा भी हुआ कि हमने अन्धाधुंध चिट्ठों को समेटने की कोशिश की . सोचा नए लोगों की चर्चा होगी तो लोग आएंगे . परिवार बढेगा . पर ऐसा होता नहीं दिखा . फिर भी हम मानते हैं कि पक्षपात जैसी यहां कोई बात नहीं होती और नही होनी चाहिए . उस पर भी हम तो ऑन डिमाण्ड चर्चा के लिए भी उपलब्ध रहते हैं . वो क्या है कि कल से हमारे टैम ही टैम है देख लेना आप . काफी लिख दिया . अमर कुमार जी ने तो आज छोटी टिप्पणी की है फिर हम क्यों बडी टिप्पणी करें . देखा ये भी चर्चा हो गई :)

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  22. यदि किसी की चिट्ठा चर्चा में अन्यान्य कारणों से चर्चा नही होती तो इसका मतलब यह नही की जीवन ख़त्म हो गया ! अन्य संभावनाओं को खंगालिए ! चट्ठा चर्चा कोई श्रेष्ठता का मानक नही है ! यहाँ भी विषयनिष्ठता है ,अपने स्नेह सम्बन्ध हैं -ओब्लिगिसंस हैं ! इसे लेकर हो हल्ला करने की न तो कोई जरूरत है और न ही इसे कोई हल ही निकलेगा ! या निकलेगा अनूप जी ?@Arvind Mishra से सहमत !!!

    हलाकि मेरे ब्लाग की चर्चा ३-४ बार हो चुकी है/
    मै चाह्ता हू कि ब्लागर अपने ब्लाग की चर्चा की उमीद रखने के बजाय किसि अन्य ब्लागर के ब्लाग कि चर्चा करे!!!!

    त्रुतीयो के लिये यह हिन्दि राइतार जिम्मेदार है!!!

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  23. @ अरविन्द मिश्रा जी

    आप मेरे ब्लॉग पर नहीं गए और मैं आपके ब्लॉग पर. लेकिन मैं आपको बताता चलूँ कि मैंने अपनी पहली चर्चा में आपकी पोस्ट पर चर्चा की है. ये अलग बात है कि आपने शायद नहीं देखी.

    आप मेरे ब्लॉग पर नहीं आते, हो सकता है ये महज संयोग न हो. हो सकता है मैं जिन विषयों पर लिखता हूँ, आपकी रूचि उनमें न हो. ऐसा भी हो सकता है कि आप जिन विषयों पर लिखते हैं, मेरी रूचि उनमें न हो. लेकिन केवल इसलिए आप बनारस या दिल्ली में बैठे किसी के बारे में धारणा कैसे बना सकते हैं?

    एक तरफ़ तो आप अभिव्यक्ति की तथाकथित स्वतन्त्रता की तलवार भांजते रहते हैं, वहीँ दूसरी तरफ़ किसी के बारे में केवल इसलिए तीखी टिप्पणी लिखते हैं क्योंकि वो आपके ब्लॉग पर नहीं जाता. ये बात कहाँ तक जायज है?

    आप तो वैज्ञानिक हैं. एक वैज्ञानिक को अपने दिमाग का ही गुलाम रहना चाहिए. किसी और का नहीं. ऐसा न हुआ तो सबकुछ गड़बड़ हो जायेगा. मुझे लेकर आपके मन में ग्रंथि आ गयी है? एक ब्लॉगर को लेकर मन में ग्रंथि पालेंगे तो कैसे काम चलेगा? आपके अन्य कार्यों का क्या होगा?

    आप कन्विंस भी हैं और आपने सुना भी है कि मैं चतुर चितेरा हूँ. बड़ा भी नहीं हूँ. मैंने बड़ा होने का दावा कब कर लिया जो आपको इतना कुछ लिखना पड़ रहा है.?

    और आपको क्या लगता है? आप मुझे बड़ा होने का सर्टिफिकेट देंगे और मैं उसे लहराते हुए सातवें आसमान पर उदूंगा? सबको दिखाऊंगा? और उसे देखकर लोग मुझे बड़ा मानने लगेंगे? अपनी काबिलियत को लेकर मुझे कोई भ्रम नहीं है.

    आप बुद्धिजीवी की काबिलियत रखते होंगे. लेकिन सनक पालना कहाँ तक जरूरी है?

    जहाँ तक धीरू सिंह जी की टिप्पणी की बात है तो मैंने उनकी बात मानी. लेकिन मैं केवल इसलिए अपना लेखन बदल दूँ कि किसी को अच्छा नहीं लग रहा है?

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  24. धीरू भाई की बात के बहाने तमाम सार्थक, सटीक और मजेदार भी टिप्पणियां हो गईं।

    वैसे तो चर्चाकार साथियों ने अपनी बात रखी लेकिन अगर इस मसले पर शोले वाले अंदाज में हमारे कमेंट देखने हों तो आप रविरतलामी की १९ मार्च ,२००७ को की गयी चर्चा देख लें जिसे उन्होंने जनहित में रिठेल किया है आज।

    यह देखना बड़ा सुकूनदेह अनुभव है कि लोगों को हम चर्चाकारों से कुछ अपेक्षायें हैं। हम उनको कितना पूरा कर पाते हैं इसे समय बतायेगा।

    अगर इसे बहानेबाजी न माना जाये तो हम कहना चाहते हैं कि जो दोस्त/साथी हमारे चर्चाकार हैं वे अपने निजी समय से कुछ समय चुराकर चर्चा करते हैं। एक चर्चा में कम से कम तीन घंटे लगते हैं।
    इतने समय में अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार जिससे जो बन पड़ता है , करता है।

    हरेक की पसंद-नापसंद अपनी है। उस पर किसी तरह का कोई अंकुश/बंधन लगाना अपनी साथी की समझ पर शक करने की नासमझी करना है।

    चिट्ठाचर्चा को लेकर न मुझमें और न हमारे चर्चाकार साथियों में कोई पक्षपात या जानबूझकर उपेक्षा करने का कोई भाव नहीं है। अब अपने पसंद के चिट्ठे चुनने का हक तो होना ही चाहिये एक चर्चाकार को। आपकी प्रतिक्रिया अपने आप उसका आगे का रास्ता तय करेगी।


    बढ़ते चिट्ठों की संख्या के साथ धीरे-धीरे चर्चाकार को क्या संकलक को भी, जिनका काम सब कुछ एटोमैटिक होता है, चिट्ठों की सूचना देना तक मुश्किल होगा। तब हम-आप अंदाज ही नहीं लगा पायेंगे कि
    कित्ते चिट्ठे छप गये आज। उस समय मामला और सेलेक्टिव होता जायेगा। तब शायद चिट्ठों की कैटेगरी के अनुसार इस तरह की कई चिट्ठाचर्चा के मंच बन जायें।

    सभी साथियों के सुझाव हम ध्यान में रखते हुये उन पर अमल का प्रयास करते रहने का मन है लेकिन सुझाव देने वाले साथी जो सुझाव दे रहे हैं उन पर अमल करने का तरीका बतायें तो उनके मनमाफ़िक चीजें कर पाना और सुविधाजनक रहेगा। तब शायद उनको भी अच्छा लगेगा।

    कोई भी काम की तरह चर्चा भी एक दिन अच्छी की जा सकती है, दो दिन बहुत अच्छी की जा सकती है लेकिन दिन प्रतिदिन साल के तीन सौ पैंसठ दिन सर्वोत्तम चर्चा के लिये जितना समय चाहिये उतना हमेशा संभव नहीं हो पाता।

    जिन साथियों ने रचनात्मक सुझाव दिये हैं उनका शुक्रिया अदा करते हुये उनसे अनुरोध है कि वे चर्चा मंच से सार्थक टिप्पणीकार से और आगे बढ़कर चर्चा के काम में हाथ बंटायें। हफ़्ते -पन्द्रह दिन में एक दिन नियमित चर्चा करें ताकि उनके सुझाव पर सार्थक अमल हो सके।


    टिप्पणियों के चक्कर में हम ज्ञानजी से पूछ ही न पाये शरीफ़-बदमाश युग्म में उन्होंने शरीफ़ किसे बताया और बदमाश किसे। उन्होंने लिखा:
    शरीफ-बदमाश लोगों की मिमिकरी करना कुश जैसा चण्ट चिठेरा ही कर सकता है, या फिर शिवकुमार मिश्र।
    एक चिठ्ठा लिख रहा है और दूसरा चर्चा कर रहा है तो हमारी क्या चलेगी जी! :)


    हम भ्रम में हैं बोले तो कन्फ़्यूजिया गये हैं। हम समझ नहीं पा रहे हैं कि किसके लिये क्या कहा जा रहा है! क्योकि मेरी समझ में न तो डा.अमर कुमार इत्ते शरीफ़ हैं और न ज्ञानजी इत्ते बदमाश। कृपया हिंदी में स्पष्ट करें।

    बाकी खुश रहें भाई!

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  25. शिवकुमार जी ,
    हंसी मजाक को गंभीरता से न लें -यह आपके निकट आने का मेरा तरीका है -सादर !

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  26. रचना जी सहित अन्य चिट्ठाप्रेमियों से मैं आग्रह करूँगा, कि इस मंच पर रोमन में टिप्पणी देने से परहेज़ करें !
    dr amar
    some people here in hindi blogworld are not able to read english too well so they suggested to me that i can write in roman . since its not always easy to write in hindi due to professional constraints i write in roman hope this clarifies

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  27. सबसे पहले धीरू सिंह जी ,रचना जी ओर निशा को शुक्रिया जो उन्होंने अपनी असहमतियों को दर्ज कराया .उस बहाने एक खुली स्वस्थ बहस हुई......चूँकि इससे पूर्व की चर्चा में भी मैंने काफ़ी लम्बी टिप्पणी की थी इसलिए दुबारा करते वक़्त संकोच महसूस हो रहा है.....पर आज कई लोगो ने कई महतवपूर्ण बातें कही है ,उन्हें ही दोहरा देता हूँ
    बकोल
    @अरविन्द मिश्रा जी "चट्ठा चर्चा कोई श्रेष्ठता का मानक नही है ! यहाँ भी विषयनिष्ठता है ,अपने स्नेह सम्बन्ध हैं -ओब्लिगिसंस हैं !- अपनी सहमति दर्ज कराता हूँ .....
    बकोल
    @गुरुवर "जागरूक और बेबाक होना कोई अपराध नहीं है !चिट्ठाचर्चा पर इतनी चिल्ल-पों और पाठकों द्वारा इसपर इतना अधिकार जताना, इस मंच की जीवंतता का प्रतिमान है, न कि निकृष्टता का.. - सहमति

    बकोल @अनूप जी "जिन साथियों ने रचनात्मक सुझाव दिये हैं उनका शुक्रिया अदा करते हुये उनसे अनुरोध है कि वे चर्चा मंच से सार्थक टिप्पणीकार से और आगे बढ़कर चर्चा के काम में हाथ बंटायें। हफ़्ते -पन्द्रह दिन में एक दिन नियमित चर्चा करें ताकि उनके सुझाव पर सार्थक अमल हो सके।" ---------सौ बातो की एक बात ......


    मै इस बहस को स्वस्थ बहस मानता हूँ ओर चर्चा करने वाले चिट्ठाकारो की सदाशयता को भी स्वीकारता हूँ ....की उन्होंने इस बहस में खुले दिल ओर अच्छे मन से हिस्सा लिया है ....ओर जैसा की मैंने दो दिन पहले अपनी टिप्पणी में लिखा था अपनी पसंद से उबरने की कोशिश चिटठा चर्चा ने की है .धीरे से ही सही .पर वो जारी है......उम्मीद है ये बहस इस चर्चा कोओर सार्थक मोड़ पे ले जायेगी........
    ओर अधिक कुछ नही क्यूंकि कुछ ऐसे ब्लॉग है जिन्हें आज पढने की तीव्र इच्छा है जैसे सुरेश चिपलूनकर जी की पोस्ट ,घघूति जी का चाँद ,पूजा की सिगरेट ओर हिल स्टेशन की चाय से लेकर ढेर सारे ......

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  28. "मै इस बहस को स्वस्थ बहस मानता हूँ ओर चर्चा करने वाले चिट्ठाकारो की सदाशयता को भी स्वीकारता हूँ ....की उन्होंने इस बहस में खुले दिल ओर अच्छे मन से हिस्सा लिया है ....ओर जैसा की मैंने दो दिन पहले अपनी टिप्पणी में लिखा था अपनी पसंद से उबरने की कोशिश चिटठा चर्चा ने की है .धीरे से ही सही .पर वो जारी है......उम्मीद है ये बहस इस चर्चा कोओर सार्थक मोड़ पे ले जायेगी."
    बिल्कुल सही बात ,थैंक्यू डॉ अनुराग !

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  29. आप सबका धन्यवाद। हम थोड़ी देर से यहाँ आए। ...लेकिन काफी कु्छ ज्ञान लेकर जा रहें है।

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चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

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