गुरुवार, दिसंबर 18, 2008

आप कौन हैं? इंडियन या भारतीय?

आप कौन हैं? इंडियन या भारतीय?

धीरू सिंह जी ने अपनी पोस्ट में ये सवाल उठाया है. बता रहे थे कि हम पहले भारतीय थे लेकिन अंग्रेजों ने हमारी पहचान बदल दी. हमें भारतीय से इंडियन बना दिया. अंग्रेज़ बदलाव में विश्वास करते थे. जहाँ भी जो भी कुछ मिलता, बदल डालते थे.
अंग्रेजों की इस नीति के बारे में बताते हुए धीरू जी लिखते हैं;

"लेकिन अंग्रेजो ने हम पर शासन किया और हमारी पहचान ही बदल दी हमें इंडियन कहा जाने लगा और हमारे देश को इंडिया. इंडियन शब्द दोयम दर्जे का ही प्रतीक होता है."

उनकी शिकायत उनलोगों से है जिन्हें इंडियन कहलाने पर गर्व की अनुभूति होती है. ऐसे लोगों के लिए सलाह देते हुए वे लिखते हैं;

"इसलिए इंडियन और इंडिया को अपने भारत से निकाल दो और सिर्फ़ और सिर्फ़ भारतीय कहने मे ही गर्व महसूस करें. एक मुहीम चले अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए इसलिए गर्व से कहो हम भारतीय है. proud to be Bhartiy not indian."

उनका मानना है कि देश को असली नाम से न जानने की वजह से ही देशप्रेम की भावना का संचार नहीं हो पा रहा है. वे आगे लिखते हैं;

"यदि देशप्रेम की भावना का संचार करना है तो पहले देश का तो असली नाम ज्ञात हो."

उनके इस आलेख पर ढेर सारे चिट्ठाकारों ने सहमति जताई. संगीता पुरी जी ने भी अपनी सहमति जताई लेकिन उनकी सहमति शंकामिश्रित थी. उन्होंने अपनी टिपण्णी में लिखा;

"आलेख तो बिल्‍कुल सही लिखा ,आपकी भावनाओ को समझ गयी, पर हिन्‍दी के आलेख में 'proud to be Bhartiy not indian' की क्‍या जरूरत ?"

संगीता जी के इस शंका का जवाब दिया हिमांशु जी ने. उन्होंने धीरू जी को बताया कि वे धीरू जी के साथ हैं. सपोर्ट देने की घोषणा के साथ ही उन्होंने संगीता जी की शंका का समाधान भी किया. अपनी टिप्पणी में उन्होंने लिखा;

"हम आपके साथ हैं.हमें इंडियन नहीं भारतीय होने पर गर्व है.

"शायद आपने अंग्रेजी में 'proud to be Bhartiy not indian'इसलिये लिखा कि इंडियन लोगों तक भी यह बात पहुंच जाय . सही है न ."


हिमांशु जी ने भी अपनी टिप्पणी के अंत में सवाल भी दाग दिया. शंका समाधान के लिए किए गए अपने प्रयास से शायद वे भी शंकित थे. लिहाजा अंत में सवाल पूछ बैठे; "सही है न."

धीरू सिंह की पोस्ट पढ़कर चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी को लगा कि कहीं लोग उन्हें इंडियन न समझ बैठें? शायद इसीलिए उन्होंने 'अदबदाकर' अपनी टिप्पणी में घोषणा कर डाली;

"हम है हिंदुस्तानी, हम है हिदुस्तानी..."

खैर, पता नहीं क्या सही और क्या ग़लत? लेकिन मंदी के फैलने की ख़बर सही है. मंदी ने सभी को हलकानियत कुबूल करने के लिए बाध्य कर दिया है. मंदी की मार से कौन परेशान नहीं है? तेजी को मारने के अलावा मंदी उद्योगों को, उद्योगपतियों को और नौकरीशुदा लोगों को भी मारे जा रही है.

लेकिन निवेश गुरु की मानें तो मंदी की मार का असर सबसे ज्यादा 'आई टी दूल्हों' के ऊपर है. और तो और, मंदी की मार ने शरीर के अंगों के रंगों को भी प्रभावित कर दिया है.

अपनी पोस्ट में निवेश गुरु लिखते हैं;

"मंदी से जहां दुल्हन की हाथ पीली नहीं हो पा रही है. वहीं दूल्हे का चेहरा लाल हो रहा है. खासकर आईटी और एनआरआई दूल्हे का."

चेहरे को लाल रखने के लिए लोग फलों के रस का सेवन करते थे. लेकिन अब कम से कम 'आई टी दूल्हों' को फलों के रस का सेवन करने की ज़रूरत नहीं. मंदी की मार से उनका चेहरा लाल हुआ जा रहा है.

निवेश गुरु बताते हैं कि छ महीने पहले तक आई टी दूल्हों की हालत ऐसी नहीं थी. उनकी तूती बोलती थी. डाऊरी बाज़ार में दुल्हों के रेट के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए वे लिखते हैं;

"मंदी के इस दौर में आईएएस और आईपीएस दूल्हे की मांग सबसे ज्यादा बढ़ चुकी है. और उनके के लिए दुल्हन के मां बाप एक से पांच रुपए खर्च करने को तैयार हैं. जबकि डॉक्टर दूल्हे के भाव 50 लाख से 1 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है."

शायद निवेश गुरु आईएएस और आईपीएस दूल्हों के रेट में से कुछ शून्य लगना भूल गए. ऐसा नहीं होता तो इस सेक्टर के दूल्हे एस से पाँच रूपये में नहीं मिलते.

मंदी ने लड़कियों को अच्छा डिसीजन मेकर भी बना दिया है. लड़कियाँ पहले शायद एवे ही शादी के लिए राजी हो जाती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है. उनके अनुसार;


"यही नहीं मंदी की इस मार में शादी के लिए लड़कियां फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही हैं. और कोई भी रिश्ता पक्का करने से पहले दूल्हे के प्रोफेशन और इस मंदी से उसके प्रोफेशन पर पड़ने वाले असर को जरुर जान लेना चाहती हैं."

मंदी की मार से हिन्दी ब्लॉग जगत भी अछूता नहीं रहा. हमारे समीर भाई पिछले कुछ दिनों से बिजी हैं, लिहाजा टिप्पणियों का बाज़ार मंदा है. लेकिन टिप्पणियों की मंदी के दौर में भी कोई चिट्ठाकार अपनी पोस्ट में समीर भाई का नाम लिखकर टिप्पणियों की बरसात करवा सकता है.

ये असर है समीर भाई के नाम का.

चलिए, आपको एक शेर पढ़वाता हूँ. लेकिन शेर पढने से पहले चाहूँगा कि आप "इरशाद" ज़रूर कहें....कह लिया? तो अब शेर पढिये...

बेचैनियाँ समेट कर सारे जहान की
नहीं कुछ मिला तो मेरा दिल बना दिया

मैं बात कर रहा हूँ इरशाद जी की. जी हाँ हिन्दी ब्लागिंग ने इरशाद भाई के दिल को बेचैन कर दिया है.

इरशाद भाई के परिचय के लिए बताता हूँ की उन्होंने फिल्मों के लिए काम किया है. आजकल टेलीविजन के लिए कार्यरत हैं. वे बताते हैं;

"पिछले कुछ महिनों से सिर्फ एक ही काम रह गया है कि हिन्दी ब्लॉग में कौन-कौन, कैसा-कैसा लिख रहे है. लगभग सभी हिन्दी ब्लॉगों को पढ़ा वहां टिपप्णीयां देखी बहुत सारी बातें सोची."

इरशाद भाई के लिए टेलीविजन में बिजी रहने के बावजूद पिछले कुछ महीनों से सिर्फ़ एक ही काम रह गया है. और वो है ये जानना कि "हिन्दी ब्लॉग में कौन-कौन कैसा-कैसा लिख रहे है."

मैं इसे हिन्दी ब्लागिंग की उपलब्धि मानता हूँ. टेलीविजन में काम करने वाले एक बिजी इंसान को कुछ महीनों के लिए अपनी तरफ़ खींच लेने को और क्या कहा जा सकता है? खैर, इरशाद भाई ने समीर लाल जी को हिन्दी ब्लॉग-जगत का डेविड धवन बताया है.

अपनी पोस्ट में डेविड धवन के बारे में वे लिखते हैं;


''फूहड़ हास्य का नया नाम डेविड धवन ''


अपनी बात को आगे ले जाते हैं;


"अब समीर लाल जी की बात करते... बहुत सारे ब्लॉग देखें हर किसी के लेख पर सिर्फ उसके हिसाब से टिप्पणीयां चिपकी हुई मिली लेकिन समीर भाई के यहा ये थोक के भाव में नजर आती है. वह किसी भी बेकार से लेख पर १०० से अधिक टिप्पणी पा जाते हैं. हालाकि हम सब जानते है कि लेखन की गुणवत्ता का टिप्पणी मिलने से कोई सरोकार नही होता लेकिन समीर भाई को कौन समझाये ये बात."
इरशाद जी भविष्य में हिन्दी ब्लागिंग के म्यूजियम की कल्पना भी करते हैं. फिल्मों से जुड़े लोगों को कल्पना के सागर में उतरने में समय नहीं लगता.

वे लिखते हैं;

"जब ब्लॉगगिंग का म्यूजियम बनेगा तब वहां समीर जी के कपड़े, जूते-चप्पलें, तेल-कंघा, साबून सब लोगो को दिखाया जायेगा. क्योकी इन सब के बिना ब्लॉगिंग का म्यूजियम अधूरा रह जायेगा.."

समीर भाई के बारे में इतनी जानकारी इकठ्ठा करने के बात इरशाद जी को पता चला कि समीर भाई बिलायत में रहते हैं. उन्होंने समीर भाई को अपना फूफा तक घोषित कर डाला.

वे लिखते हैं;

"तो भाई ब्लॉगिंग के विकास में अपने विलायती फुफा का योगदान अविस्मरणीय है."

ब्लॉग पर केवल मतलब का माल परोसा जाना चाहिए. इरशाद भाई इसके हिमायती है. वे लिखते हैं;

"आप मतलब का लिखिए या मतलब का माल परोसिए. बाकी ईश्वर यानी पाठकों पर छोड़ दीजिए."

इतना सबकुछ लिखने के बाद वे अंत में डिस्क्लेमर देते हैं. डिस्क्लेमर के साथ यही समस्या है. वे लिखते हैं;


"यह समीर जी के प्रेम में लिखा गया लेख है न की किसी आलोचना या ईष्यावष आशा है समीर जी बुरा न मानेगें."

प्रेम जो न करवाए. किसी का प्रेम किसी को कई महीनों तक कहीं का नहीं रखता. इरशाद जी के इस लेख को परिश्रम से लिखा हुआ बताते हुए चिट्ठाकारों ने टिप्पणियां की हैं.

लेकिन नटखट बच्चा ने अपनी टिप्पणी में लिखा;

"टी आर पी के चक्कर में आप कैसे कैसे लेख लिख रहे हो अंकल ?शास्त्री जी ब्लॉग जगत के उन बूढे लोगो में से एक है जो टिप्पणी कर कई लेख लिख चुके है ओर दूसरे बूढे कौन है ये बताने की जरुरत नही ,यहाँ सब टिप्पणी टिप्पणी करते मर जाते है ,आप भी"

दिनेश राय द्विवेदी जी को जुकाम ने परेशान कर रखा है. उनके जुकाम का आज तीसरा दिन है. जुकाम से इतने परेशान कि;

"रात बारह बजे बाद तक नाक की जलन के मारे नींद नहीं आ सकी थी और सुबह चार बजे ही खुल गई. तब से नाक एक तरफ से उस बरसाती छत की तरह टपकती रही जिस के टपके से डर कर शेर गधा हो गया था और कुम्हार ने उसे बांध लिया था."

जुकाम से नाक की हालत गंभीर है. प्रोफेशनल ड्यूटी के आड़े नाक आ गई है. मुवक्किल के लिए द्विवेदी जी को घर से निकलना था. उन्होंने अपने मुवक्किल को पहले ही कह रखा था;


"मुवक्किल को कल ही बता दिया था कि नाक ने साथ दिया तो जा पाऊँगा वरना नहीं. अब लगता है कि नहीं जा सकता."

द्विवेदी जी के अनुसार उनका मुवक्किल होशियार है. लिहाजा न जाने से अपना इंतजाम कर लेगा. वे लिखते हैं;


"उस का फोन आया तो ठीक, वरना मुवक्किल इतना होशियार है कि अपना इंतजाम खुद कर लेगा."

ऐसी होशियारी मुवक्किलों में कम ही देखने को मिलती है.

वैसे द्विवेदी जी की इस जुकाम-कथा पर ढेर सारे चिट्ठाकार इलाज बताने के लिए तैयार हो गए. पंगेबाज जी ने इलाज बताया.
घुघूती जी ने भी चाहा कि वे भी इलाज बताएं लेकिन उन्हें ढेर सारे इलाजों के क्लेश होने की आशंका थी. लिहाजा उन्होंने अपना विचार त्यागते हुए लिखा;

"सहानुभूति ! इलाज तो हम भी बता दें परन्तु यदि सब बताएँगे तो 'नाक एक इलाज अनेक' हो जाएँगे."

हमारी कामना है कि द्विवेदी जी का जुकाम जल्द ही चला जाए और नाक सामान्य हो जाए.

बहुत समय बीत गया इस बात पर बहस होते हुए कि संसद पर हुए हमले के मामले में फाँसी की सजा पाये अफ़ज़ल गुरु को फांसी क्यों नहीं हो रही? कोई फाँसी न होने को राजनीति से प्रेरित बताता है तो कोई और ही कारण बताता है.

लेकिन आज विवेक ने बताया कि अफ़ज़ल गुरु को फाँसी न देकर देश की सरकार गुरु-शिष्य परम्परा निभा रही है. अपनी बात लिखते हुए विवेक कहते हैं;


"पर सब लोग सरकार को ही दोष दिए जाएंगे । किसी ने यह नहीं सोचा कि सरकार के ऊपर तो देश की परम्पराओं को जीवित रखने की भी जिम्मेदारी है . उस जिम्मेदारी को नहीं निबाह सकी तो आने वाली पीढियों को कैसे मुँह दिखाएगी ? यह जो अफजल के नाम के पीछे जो गुरु शब्द लगा हुआ है उसने सारा खेल बिगाडा हुआ है."

विवेक आगे लिखते हैं;


"इस पर भी हमारे प्रधानमंत्री के लिए तो गुरु शब्द का और भी अधिक महत्व है. वैसे इस देश में ऐसा पहली बार नहीं है कि गुरु को मृत्यु दण्ड दिया गया हो. इससे पहले भी गुरु अर्जुनदेव को और गुरु तेगबहादुर को मुगलों ने मृत्यु दण्ड दिया था...."


उनके इस खुलासे से प्रभावित होकर चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी ने अपनी

टिपण्णी में लिखा; "वाह! मान गए गुरु..."

प्रभात गोपाल जी आज लालू प्रसाद जी से मिलवा रहे हैं. वे लिखते हैं;


"आर यू इन टेंशन. सो व्हाट, मीट आवर फोरमर चीफ मिनिस्टर नाऊ रेलवे मिनिस्टर मिस्टर लालू प्रसाद जी."

कुछ को टेंशन रहती है तो उसका इलाज लालू जी से मिलकर किया जा सकता है. जिन्हें टेंशन नहीं रहती वे भी लालू जी से मिल सकते हैं.

रेलवे के पहलवानों ने पदक जीता तो लालू जी ने जिस अंदाज़ में उनसे सबको मिलवाया, प्रभात गोपाल जी उससे प्रभावित होकर लिखते हैं;


"भाई कल देखा, रेलवे के पहलवान पदक जीत कर मिलने आये, तो उन्होंने उन्हें किस अनोखे अंदाज में मीडिया से रूबरू कराया. क्या बात है? लालू जी यू आर ग्रेट."

प्रभात जी लालू जी से घणे प्रभावित लग रहे हैं. उनके गुणों का बखान करते हुए वे लिखते हैं;

"लालू जी ने राजनीति में आज तक न जाने कितनी तकलीफें झेली होंगी, लेकिन उन्होंने कभी भी चेहरे पर शिकन नहीं आने दी."

उनकी इस पोस्ट को पढ़कर घूघुती जी ने लालू जी को महान बताया. उन्होंने अपनी

टिपण्णी में लिखा;

"वे सचमुच महान हैं."


अब कुछ धन्यवाद को कवर किया जाय.


आज पंकज अवधिया जी ने रवीश कुमार जी को धन्यवाद दिया. हिन्दुस्तान में अपने नियमित स्तम्भ "ब्लागवार्ता" में रवीश कुमार जी ने पंकज जी के ब्लॉग मेरी प्रतिक्रिया के बारे में लिखा है.


आज सीमा गुप्ता जी ने नवभारत टाईम्स का भार प्रकट किया. अखबार ने उनकी रचना "ख़्वाबों के आँगन" को अपनी साईट पर जगह दी.

चिट्ठाकार बन्धुवों ने उन्हें बधाई दी. विवेक सिंह जी ने उन्हें बधाई के साथ कुछ हँसी भी दी. विवेक जी ने अपनी टिप्पणी में लिखा;

"छपना मुबारक हो जी ! हा हा हा हा ...."

अब कुछ कविताओं की बात.

घूघुती जी अपनी कविता "नि:सारता" में लिखती हैं;

"एक उम्र गुजर जाती है
उम्र गुजरने का एहसास होने में
सब कुछ बिखर जाता है
बिखराव का एहसास होने में"


एहसास देर से होता है. उनकी इस कविता पर डॉक्टर अमर कुमार जी ने अपनी टिप्पणी में लिखा;

"सच है, जब तक ज़िन्दगी की समझ आती है..
टाइम इज़ अप का घंटा बजने को होता है !"


डॉक्टर चंद्र कुमार जैन अपनी कविता में लिखते हैं;

छोटी कविता,छोटे किस्से,
छोटी-छोटी बात लिखूंगा।

दिन होगा तो दिन ही लिखूंगा,
ये न समझना रात लिखूंगा।।

लेकिन जब अनगिन लोगों ने,
कभी सुबह तक न देखी हो।

स्याह-स्याह उनकी रातों को,
कभी न दिन बेबात लिखूंगा।।


उनकी इस कविता पर मीत जी ने अपनी टिप्पणी में लिखा;

"क्या बात है भाई.. बात छोटी तो नहीं ....."

दिव्यदृष्टि जी ने अपने कवित्त में अंतुले को तोलने की कोशिश की. उन्होंने लिखा;

"संसद में भी बोलते अब्दुल ओछे बोल
इसीलिए रहमान का कहीं न कोई मोल
कहीं न कोई मोल, बिना तोले हकलाएं
करें सार्थक नाम अनतुले वह कहलाएं
दिव्यदृष्टि मंत्री होकर भी करते शंका
फूंके उच्च कमान जल्द ही उनकी लंका"


अंत में

आज चिट्ठाचर्चा करने में देर के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. ब्लागिंग आफिस में ही करता हूँ. लेकिन आज कुछ काम की वजह से आफिस से बाहर था. एक लाईन लिखने की कोशिश रात को करूंगा.

तबतक आपसब से विदा लेता हूँ.

चर्चा देर से शुरू करने और जल्दी प्रकाशित करने के चक्कर में शीर्षक ही देना भूल गया था. ज्ञान भइया की टिप्पणी के बाद शीर्षक दिया.

Post Comment

Post Comment

24 टिप्‍पणियां:

  1. छा गए गुरु आत्तो . मुझे दिव्यदृष्टि की कुण्डलियाँ विशेष प्रिय हैं . पढवाने का शुक्रिया !

    जवाब देंहटाएं
  2. कमाल की चर्चा , अनेको रंग समेटे हुए ....

    Regards

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ख़ूबसूरत अंदाज़


    -------------------
    http://vinayprajapati.wordpress.com
    http://www.vinayprajapati.co.cc
    http://prajapativinay.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  4. चर्चाओं और टिप्पणियों का बढ़िया मिक्चर!!!!!!

    सुबह दोपहर शाम तीनो समय !!!!

    एक एक चर्चा!!!

    आख़िर दिल मांगे मोर !!!

    जवाब देंहटाएं
  5. अनूठा अन्दाज। इसका शीर्षक दे दें - "एक बिना शीर्षक चिठ्ठाचर्चा"।

    जवाब देंहटाएं
  6. अब मुझे लग रहा है कि मैं भी टिप्पणी करके नाम कमाउंगा. एक दिन में दो चर्चायें और दोनों में मेरी टिप्पणियों की चर्चा. वाह!वाह!

    इस मिक्स्चर के लिये धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  7. :) vaise aapne gyan bhaiya ki baat to nahi mani.. aapne shirshak kuchh dusara hi lagaya hai.. :D

    जवाब देंहटाएं
  8. इस चर्चा को पढ़ने के पहले कुश भाई की चर्चा पढ़ आया हूँ। उन्हों ने मेहनत भी खूब की है और नया रूप भी दिया है। पर वह सूचनात्मक अधिक हो गई है। रस कम दिखाई दिया। लेकिन जैसे जैसे रूप विकसित होगा उस में भी रस पैदा हो ही जाएगा। वैसे आप ने भी एक्सक्लूसिव चर्चा की है। लेकिन यदि दिन में एक से अधिक भी चर्चा होने लगे तो बुराई नहीं है। इस से अधिक से अधिक ब्लागरों को स्थान मिलने लगेगा। मेरा तो सुझाव था कि चर्चा की शिकायत करने वाले ब्लागर की शिकायत तभी मंजूर होनी चाहिए जब कि वह कम से कम एक चर्चा खुद करे। जैसे अदालत में दावा बिना शपथपत्र के मंजूर नहीं होता है।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत अच्छी चर्चा रही .

    जवाब देंहटाएं
  10. अच्छा जी ......समीर जी तो यूँ कहिये अब ब्रांड हो गये ...वैसे जिन भाई साहब ने लिखा है उनसे कहिये उनकी gaandhi वाली रचना पढ़ ले .जो किसी श्रेष्ट रचना से इतर नही है ....फ़िर भी अगर उन्हें लगता है की सिर्फ़ टिपियाने से ही अधिक टिपण्णी मिलती है तो सबको टिपियाये रोज....वैसे वे आज जिस मुकाम पर है अगर ना भी टिपियायेगे तो भी लोग उन्हें पढेगे .....अगर सार्थक चर्चा हो...ओर व्यक्ति विशेष पर आधारित ना हो तो बेहतर है .अफ़सोस उन्होंने pre mind सेट करके ये लिखा .....

    जवाब देंहटाएं
  11. हम तो सब के लिए नरम निवाला हैं। पहले आर्यव्र्त, फिर भारतवर्ष, फिर हिंदुस्तान, फिर इंडिया और अब... इंडिया दैट इज़ भारत!!!
    >आज ही कहीं पढा़ था कि द्विवेदी के ज़ुकाम की खबर सुन कर एक मुवक्किल ने एक कार्टन दस्ती बतौर घूस भेज दी है ताकि केस की पैरवी नाक की बजाय मुंह से करें। डिस्क्लेमर: यह न्यूज़ कहां तक सही है पता नहीं।
    >लालूजी के पहलवान को देखकर अब मुलायमजी भी सहमे हुए हैं। कभी वे भी दंगल में अपने पैंतरे बता चुके हैं पर अब...यह दाव-पेंच का काम अमरसिंह जी पर छोड दिया है।
    >घुघुतीजी की कविता ‘एक उम गुज़र..’ पर गालिब का यह मिसरा दिमाग पर गालिब हो गया - कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ के सर होने तक...’
    > भाई शिवकुमार मिश्र को अच्छी चर्चा के लिए बधाई और विशेष धन्यवाद भी...

    जवाब देंहटाएं
  12. भई हम तो चन्द्रमौलेश्वर जी की टिप्पणी स्टाइल के भक्त होते जारहे हैं . अमर कुमार जी और अनुराग जी से तो पहले से ही प्रभावित हैं . ये लोग कहीं भी औपचारिकता बजाते नज़र नहीं आते . हर टिप्पणी में नया जोश होता है . इनकी टिप्पणियाँ पोस्ट का मज़ा देतीं हैं .

    जवाब देंहटाएं
  13. किसी न किसी एक चिठ्ठे को लेकर उस पर केन्द्रित आपकी चर्चा की यह शैली चिट्ठाचर्चा को सतरंगा बनाती है। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  14. भाई विवेक सिंह जी, हम ‘उडन तश्तरी’ थोडे ही हैं :) आभार॥

    जवाब देंहटाएं
  15. मैं धन्य हुआ . मेरी एक मानसिक हलचल आपकी नज़र मे चर्चा का विषय बनी . आप की नज़र हम जैसे नए लोगो पर जब पड़ती है तो हमारा सिर गर्व से ऊपर हो जाता है और हम अधिक जिम्मेदारी से अपनी कलम का इस्तेमाल कर सके

    जवाब देंहटाएं
  16. मेरे लिए तो यह सब किसी अजूबे से कम नहीं है । कितने सारे लोग इस काम में लगे हुए हैं और वह भी निस्‍वार्थ भाव से - केवल ब्‍लाग जगत की चिन्‍ता करते हुए ।
    मुझे लगता है कि ब्‍लाग जगत के रीति रिवाजों और परम्‍पराओं की जानकारी जितने कम समय में और जिने विस्‍तार से ऐसी चर्चाओं में मिल जाती है, उतना सब कुछ तो सारे ब्‍लाग पढने पर भी नहीं मिल पाएगा ।
    आपके परिश्रम को सलाम ।

    जवाब देंहटाएं
  17. बढ़िया। अच्छा किये जो मोबाइल घर में छोड़ दिये और यह चर्चा किये।

    जवाब देंहटाएं
  18. चलिए शीर्षक ठीक कर दिया . वरना तो यही लग रहा था कि यहाँ भारतीय , इंडियन और धीरू सिंह के अलावा कोई हो ही नहीं सकता :)

    जवाब देंहटाएं
  19. समीर जी के बारे में लिखा गया लेख मैने भी देयखहा था.. पर उसे चर्चा में शामिल नही किया.. यदि ऐसा करता तो जो उन्हे चाहिए था वो मिल जाता.. इस प्रकार के लेखो को इग्नोर करना ही सही है.. वैसे आपने कम ब्लॉग्स शामिल किए पर उनकी विस्तृत चर्चा की.. इसके लिए बधाई स्वीकार करे..

    जवाब देंहटाएं
  20. धीरू सिंह, भाई इंडिया अंग्रेजों की कारस्तानी नही है , यह उस युग की उत्पति है जब अंग्रेज आधुनिक आदिवासियों [ उस युग के सापेक्ष ]की श्रेणी में आते थे , पत्तों -पेडों की छाल से जानवरों की खाल पहनने की स्थिति में आचुके थे , यह नाम ग्रीको - रोमन [यवन =यूनानी ] के '' इन्दुस या इन्डस " [Indus ] से जन्मा है जिसे उन्हों ने सिन्धु नदी एवं सिन्धुकुश पर्वत के आर -पार रहने वाले वासियों जिन्हें अरब देशों ने हिन्दू कुश और सिन्धु नदी के तीर रहने वाले लोगों को " हिंदू " अब इसपर अजित वडनेरकर ही ज्यादा हाई -मास्ट फेंक सकतें हैं [अज - कल कोहरा ज्यादा है तीनदिन से सूरज नही दिखा है ] , | यह इस लिए बता दिया की कहीं इसकी ख़बर हमारे " सरदार जी '' [ अरे डा ० महीप सिंह प्राजी o ना समझ लें ] को ख़बर ' लग गयी तो वे एक लेख अखबारों में अंग्रेजी दारू पीते दुम्बे की टांग पाडते "एन्ग्रेजों की प्रशस्ति" में एक लेख लिख फेंकेंगे [ब्लागर बन्धुओं देंखें ' 'दैनिक जागरण / दैनिक हिन्दुस्तान 2008 नव० 15 दिन शनिवार ' ना कहू से दोस्ती ना काहू से बैर :: अंग्रेंजी राज की याद में ::'] और गत वर्ष के हृदयाघात के बात से डाक्टरों ने मुझे इन चीजो से परहेज बाताया है इसी लिए मई अभी तक अंग्रेजी दारूओं का मुजियम देखने नही गया हूँ ] \ वैस धीरू भाई ने मेरी आत्मा की आवाज ही उठाए है | मेरे जमाने में डा ० लोहिया जी ......खैर यह किस्सा फ़िर कभी जय राम जी की

    जवाब देंहटाएं
  21. जो लोग टिप्पणियाँ बटोरते हैं उनसे सभी को ईर्ष्या होती है पर आरोप लगाने का मतलब तो टिपण्णी देने वालों पर शक करना हुआ न ?

    जवाब देंहटाएं

चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

Google Analytics Alternative