शुक्रवार, दिसंबर 19, 2008

रोटी पानी की जद्दोजहद में जुग़ाड़ की ज़िन्दगी

चिट्ठाचर्चा पर अपने मिजाज़ का रंग न आए यह कैसे सम्भव है भला , जब मनोविज्ञान कह चुका और रस-सिद्धांत ने उसे साहित्य पर लागू भी करके सिद्ध कर दिया कि व्यक्ति अपने अपने मूड के शेडस को ही बाहरी वातावरण पर आरोपित करता है ,खुश है तो मौसम खुशगवार लगता है ,उदास हैं तो सब जगह मनहूसियत बिखरी नज़र आती है, तो हम नाचीज़ पर यह नियम कैसे न लागू होगा। सो हम भी अपने मूड के हिसाब से चिट्ठे पढते हैं और न हुआ तो  नही पढते हैं। सो यह सवाल तो खारिज कर दिया जाए कि आज की चर्चा का दूसरे पहर ढले आने का क्या कारण है । और अब यह सवाल भी खारिज हो जाना चाहिए कि फलाँ चिटठे की ही चर्चा क्यों की ,फलाँ की क्यों नही की। 
क्या है कि दिल्ली का रुटीन आपसे बहुत कुछ छीन लेता है और प्रकृति का सान्निध्य भी मानवी आवश्यकता है इसे शहर का भागता दौड़्ता दिन शहर से हकाल देता है। ऐसे मे कोई आपको सोनापानी के स्वर्गिक सौन्दर्य की तफसील सुनाने लगे तो दिल पर हाथ रखकर हाय! ही फूटेगा न ज़बान से।
सोनापानी पहुंचने के लिए आपको करीब एक किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। यह दूरी आपकी उत्सुकता को और बढ़ाने का काम करती है क्योंकि आशीथ का रेजॉर्ट पहाड़ की ओट में इस तरह छिपा हुआ है कि अंतिम कुछ कदमों की दूरी रहने पर ही इसकी पहली झलक दिखाई पड़ती है। । बांज के पेड़ों की ठंडी छायाओं से भरे जंगल से घिरी वह जगह वाकई अनायास ही आपके सामने खुलती है और आप फलों और फूलों से लदे पेड़ों से पटी उस जगह से सामने दूर हिमालय की बर्फीली चोटियां देखकर कुछ देर तक स्तब्ध रह जाते हैं - जैसे अचानक किसी ने आपके सम्मुख बंद स्वर्ग का द्वार खोल दिया हो।  यहां सिर्फ और सिर्फ प्रकृति थी, नजर के छोर तक पसरी हुई।

हालाँकि यह मुझे पता नही कि खुशबू आँख मे कैसे आती है ,हाँ धुँआ पता है ,प्याज पता है ,धूल पता है ....फिर भी यह कविता बहुत सुहानी लगी सड़कों के साथ चल रहा हूँ ।शायद इसलिए हम कवि नही हो पाए :-(
सौंधी हुई एक खु़शबू
मेरी आँखों में आकर सो गयी है
कभी भर जो आती है आँख
सारा मंज़र महका देती है…
योगेन्द्र मौदगिल की कविता के लिए उन्हें बधाई जो उन्होंने बेटियों पर लिखी है और उन सभी को समर्पित भी की है जिन्होंने कभी भी बेटियों पर कलम चलाई है।वहाँ कॉपी करना मना है , वर्ना मै चर्चा मे आपको अवश्य पढवा देती।
क्या आपने इनमें से कोई काम किया है कभी ?
  • चीनी ख़त्म है तो चाय में वनिला आइस क्रीम डाल ली
  • चाय बहुत गरम है तो ठंडी करने के लिए बरफ का एक टुकड़ा डाल लिया
  • सफ़ेद कपडों की धुलाई के लिए नील नहीं है तो नीली स्याही डाल ली
  • एसी नहीं चल रहा है तो टेबल फैन के आगे बर्फ रखके ठंडी हवा का आनंद लिया
  • तड़के में डालने के लिए टमाटर नहीं है तो केचप डाल लिया
  • नहाने का साबुन ख़त्म है तो कपड़े धोने के साबुन से ही नहा लिए
  • इस्तरी काम नहीं कर रही तो कटोरी को गरम करके कपड़े प्रेस किए
  • सर्दियों में क्रीम ख़त्म हो जाने पर सरसों का तेल ही होंठों पर लगा लिया
    मैने तो किया है , इसी से कह सकती हूँ कि जुगाड़ तकनीक पर अनिल जी का या सिर्फ लड़कों का विशेषाधिकार नही है।यह तो प्रवृत्ति है । कौन बड़ा जुगाड़ू है इसे साबित करने के लिए आप सब अपने करम यहाँ टिप्पणी मे दर्ज कीजिए।
अब आप यह नही कह सकते कि स्त्रियाँ अपनी उम्र छिपाती हैं ,संगीता पुरी साफ बता रही हैं कि ?मैं 45 की हो गयीं {वैसे साफ बता दिया पर गन्दा कैसे बताया जाता है ,मै साफ साफ कह देती हूँ ,मै गन्दा गन्दा कह देती हूँ ?}उनके जन्म दिन की बधाई!
पर उपदेश कुशल बहुतेरे - अगर आप ऑफिस में बैठकर ब्लॉगिंग करते हैं तो यह पोस्ट आपको पढ लेनी चाहिए , वैसे मै इस वक़्त घर से ही चिट्ठाचर्चा कर रही हूँ और हमेशा घर से ही करती हूँ। 
संचिका की आज की पोस्ट जो सरकारी सेंसर का आतंक दिखाती है वहीं  पत्रकारिता के चरित्र को भी दर्शाती है जो किसी भी तरह अपना मनचाहा आपके मुख से उगलवा लेना चाहती है।   
"यह मैं नही जानता,पर मैं बचकर रहना चाहता हूँ. मैं नही चाहता की तुम्हे ऐसा लिखकर देने के कारन मैं किसी परेशानी में पड़ जाऊँ "
"अच्छा तो आप एक काम करें मैं स्वंय एक कागज पर लिख देता हूँ कि दो गुने दो चार होते हैं.बस आप उसपर दस्तखत कर दीजिये तब आपकी भी छुट्टी और मेरी भी, और आपको किसी भी प्रकार की परेशानी का खतरा भी नही रहेगा "
"यह तो वही बात हुई ! अगर तुम चाहो तो मैं यह लिखकर दे सकता हूँ कि आजकल सामान्यतः लोग मानते हैं कि दो गुने दो चार होते हैं .ठीक है न ? "
"नही .मैं आपकी राय जानना चाहता हूँ क्योंकि मैं लोगों के निर्भीक वक्तव्य एकत्र कर रहा हूँ "
"तब तुम भाड़ में जाओ मैं कुछ भी लिख कर देने वाला नही ."
"ठीक है ,पर यह भी याद रखिये. मैं सब लोगों से कह दूंगा की आपने कहा था, दो गुने दो चार होते हैं "
"मुझे इसकी चिंता नही मैं इंकार कर दूंगा की मैंने ऐसा कभी कहा था"

अब अगर आप कहेंगे कि यह चिट्ठाचर्चा स्तरहीन है तो मै भी इनकार कर दूँगी कि यह मैने नही की ,पता नही नोटपैड कौन है ? 
:-)

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17 टिप्‍पणियां:

  1. चिट्ठाचर्चा स्तरहीन कैसे हो सकती है . पहले तो स्तर की बात ही नहीं उठनी चाहिए क्योंकि चिट्ठाचर्चा अभी पूरी कहां हुई है ? चर्चा तो आपने शुरू की है बस अब कल तक नीचे टिप्पणियों में होने वाली ही तो असल चर्चा है .
    दूसरे यह कि स्तर ऊँचा या नीचा संभव है पर स्तरहीन कहना तो उपयुक्त न होगा :)

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  2. अब अगर आप कहेंगे कि यह चिट्ठाचर्चा स्तरहीन है तो मै भी इनकार कर दूँगी कि यह मैने नही की ,पता नही नोटपैड कौन है ?
    :-)

    राम राम !

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  3. अपनी अपनी शैली और भाषासंयोजन का एक अंदाज़ होता है..
    वह तो दिखेगा ही, चाहे वह चर्चा-लेखन हो या अपना निजी लेखन ...
    वरना परसाई की दुहाई देने वाले व्यंग्यकार स्वयं ही परसाई न बन जाते ?

    फिर इतनी सुघड़ चर्चा के बावज़ूद इस डिस्क्लेमर की ज़रूरत क्यों आन पड़ी ?
    नोटपैड कौन .. यह बताने या जानने की आवश्यकता ही क्या है ?
    मेरा जानना अलग बात है !

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  4. यदि कोई कहेगा कि हमने यह स्‍तरहीन चर्चा पढी है तो हम मना कर देंगे ।

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  5. सोनापानी के सुंदर दृश्य के लिए सुंदरचंद ठाकुर को बधाई। वैसे, दिल्ली ही क्यों, किसी भी महानगरीय जीवन की चूहा दौड में मानव को प्रकृति की ओर देखने की फुरसतिया ही कहां।
    >घरेलू टिप्स देने के लिए नोट पैडनी को धन्यवाद:)
    > संगीता पुरी जी को उनके ४५वें जन्मदिन पर बधाई और आनेवाला साल तो उनके लिए हिंदी में शुभकामनाएं लेकर आएगा। यह तो और भी शुभसमाचार है।
    नोटपैडनीजी, आपने खुद ही अपनी असलियत खोल दी तो आपका डिस्क्लेमर बेकार गया कि नै?

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  6. चर्चा होनी चाहिए वह कैसी भी हो। जितनी चर्चाएँ हों उतना अच्छा है।

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  7. नोट पैड ने कलम उठायी तो मैं चिट्ठा चर्चा तक पहुँच गया, पहुँचा तो पहले भी था लेकिन इस तरह तारीफ़ का पात्र आज तक बना हूँ, ख़ैर जो कोई भी है नोट पैड उनके साथ सभी पाठकों का शुक्रगुज़ार हूँ!

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  8. चलिए आपके बहाने एक ज्योतिष को हैप्पी बर्थ डे कह दिया ओर अपने नेट का बिल भी चेक कर लिया.....हमारी सरकारी अफसरों सी मौज कहाँ जी...बिल तो ख़ुद जमा करना पड़ता है जी.....

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  9. "अब अगर आप कहेंगे कि यह चिट्ठाचर्चा स्तरहीन है तो मै भी इनकार कर दूँगी कि यह मैने नही की"

    स्तरीय एवं पठनीय चर्चा रही. हां, कुछ लघु जरूर है. यदि कुछ एकलाईना एवं दोचार उल्लेखनीय नये चिट्ठाकारों को और जोड दें तो सोने मे सुहागा हो जायगा.

    अगले चर्चा के इंतजार में

    सस्नेह -- शास्त्री

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  10. आप यह संवाद पढेंगे तो नोटपैडनी जी का इनकार समझ आयेगा . इसे लवली जी के ब्लॉग से लिया गया है ( http://sanchika.blogspot.com/2008/12/blog-post_19.html)
    बुडापेस्ट से प्रकाशित होने वाले एक समाचार पत्र के रिपोर्टर ने राह चलते एक व्यक्ति से पूछा ,"दो गुने दो कितने होते हैं "
    "चार, पर इसमे पूछने की क्या बात है ? दो गुने दो चार होते हैं. " उस व्यक्ति का उत्तर था.
    "क्या आपको पुरा विश्वास है की दो गुने दो चार ही होते हैं "
    "हाँ ,दो गुने दो चार ही होते हैं ."
    "सचमुच ?"
    "हाँ, सचमुच.मैं इस बात पर ख़ुद को दाव पर लगाने को तैयार हूँ "
    "वाह ! क्या कहने ,अच्छा तो आप मुझे यह बात लिख कर दे सकतें हैं ?"
    "क्या ?"
    "यही की दो गुने दो चार होते हैं ..बस आप यह लिखकर आज की तारीख डालकर निचे अपने दस्तखत कर दीजिये "
    "आप बड़े मुर्ख जान पड़ते है.खैर मेरे पास कलम नही है "
    "आप कलम की चिंता न करें मेरी कलम से लिख दीजिये"
    "मैं दूसरों की कलम का उपयोग नही करता इससे छूत का भय रहता है "
    "अच्छा चलिए मैं आपको नई कलम खरीद कर देता हूँ "
    "तुमने क्या मुझे भिखारी समझ रखा है .मेरे घर पर मेरी अपनी बीसिओं कलमें हैं "
    "कोई बात नही .क्या आज शाम को मैं आपके घर आ सकता हूँ ?"
    "यदि तुम मेरे घर आओगे तो मैं तुम्हे धक्के मारकर निकाल दूंगा "
    "अच्छा! तो यह बताइए दस्तखत करने में क्यों हिचकिचा रहे हैं? आपने अभी-अभी कहा है की दो गुने दो चार होते हैं ,और इस बात पर आप ख़ुद को दाव लगाने को तैयार है. "
    "हाँ यह तो है ही ,पर मैं कभी भी तुम्हे यह लिखकर नही दूंगा. तुम उसे बाद में कभी भी किसी कोभी दिखा सकते हो "
    "तो इससे क्या हुआ? दो गुने दो तो हमेसा चार ही होते हैं न ?"
    "हाँ ,होतें हैं पर भाई देखो मैं बाल -बच्चे वाला आदमी हूँ कभी राजनीती के चक्कर में नही पड़ता "
    "पर यह राजनीती नही है "
    "यह मैं नही जानता,पर मैं बचकर रहना चाहता हूँ. मैं नही चाहता की तुम्हे ऐसा लिखकर देने के कारन मैं किसी परेशानी में पड़ जाऊँ "
    "अच्छा तो आप एक काम करें मैं स्वंय एक कागज पर लिख देता हूँ कि दो गुने दो चार होते हैं.बस आप उसपर दस्तखत कर दीजिये तब आपकी भी छुट्टी और मेरी भी, और आपको किसी भी प्रकार की परेशानी का खतरा भी नही रहेगा "
    "यह तो वही बात हुई ! अगर तुम चाहो तो मैं यह लिखकर दे सकता हूँ कि आजकल सामान्यतः लोग मानते हैं कि दो गुने दो चार होते हैं .ठीक है न ? "
    "नही .मैं आपकी राय जानना चाहता हूँ क्योंकि मैं लोगों के निर्भीक वक्तव्य एकत्र कर रहा हूँ "
    "तब तुम भाड़ में जाओ मैं कुछ भी लिख कर देने वाला नही ."
    "ठीक है ,पर यह भी याद रखिये. मैं सब लोगों से कह दूंगा की आपने कहा था, दो गुने दो चार होते हैं "
    "मुझे इसकी चिंता नही मैं इंकार कर दूंगा की मैंने ऐसा कभी कहा था"

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  11. भाई विवेक जी, आखिर दो गुने दो चार हुए कि नै?

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  12. संगीता पुरी को नवायुवर्ष की शुभ कामनाएं |' ज ' से जुगाड़ भी होता है और ' ज ' से ही जिंदगी भी फ़िर कोई यह दवा करही नही सकता कि उसकी ज़िन्दगी बिना जुगाड़ चलती है | जो कहे झूटों के सरताज कि ट्राफी देदी जाए | और यह स्तरीय चर्चा तो किसी और से नही लगती ? अरे " स्टारीय " चर्चा है सतसैया के नाविक के तीर से पूरा आनंद मिला ब्लागावाद [= धन्यवाद ]

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  13. @ चन्द्रमौलेश्वर जी , दो गुने दो चार होते तो हैं पर हम लिखकर नहीं दे सकते :)

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  14. "वैसे मै इस वक़्त घर से ही चिट्ठाचर्चा कर रही हूँ और हमेशा घर से ही करती हूँ। "
    aur maene hamesha ki tarah isae ghar par hii padha haen

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  15. छोटी सी रही यह चर्चा सुजाता जी ..अगली बार इतनी छोटी नही होनी चाहिए [बता दूँ ..मैं एक निर्भीक वक्तब्य दे रही हूँ :-)]

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  16. किसकी हिम्मत जो कोई कुछ कह के निकल जाये। अच्छा रहा मामला।

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  17. सुजाता जी मैं तो शायद पहली बार चिट्ठाचर्चा पर आया अच्छा लगा नये ब्लाग्स और टिपियाने के नये अंदाज़ से वाकिफ़ हो कर प्रसन्न हूं मेरी कविता की चर्चा के लिये आभार प्रकट कर आपके चयन को हल्काऊगां नहीं अब तो आना-जाना लगा रहेगा परिचय के लिये लावण्या जी का आभारी हूं शेष शुभ
    हां टिप्पणियों में विवेक जी की दो दूनी चार वाली चकल्लस भी मज़ा दे गयी

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